यशवंतराव चह्वाण: Difference between revisions

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1969 के कांग्रेस विभाजन के समय यशवंतराव चह्वाण के व्यवहार की आलोचना हुई थी। पहले उन्होंने इंदिरा जी के विरोध में मत दिया, किन्तु जब उस पक्ष को सफलता नहीं मिली तो वे फिर इंदिरा कांग्रेस में आ गए। 1977 की कांग्रेस की पराजय के बाद चह्वाण प्रतिपक्ष के नेता बने थे। जनता पार्टी की सरकार के गिरने पर उन्होंने एक बार फिर दल बदला और [[चरण सिंह चौधरी|चरणसिंह]] के साथ मिल गए। चरणसिंह की सरकार तो नहीं बन पाई, लोगों की दृष्टि में चह्वाण की प्रतिष्ठा गिर गई।  
==निधन==
==निधन==
इतने उच्च पदों पर रहने के बाद जीवन के अंतिम पहर में वे राष्ट्र की राजनीति के पटल से लुप्तप्राय हो गए थे। यशवंतराव चह्वाण का 25 नवंबर, 1984 में निधन हो गया।  
इतने उच्च पदों पर रहने के बाद जीवन के अंतिम पहर में वे राष्ट्र की राजनीति के पटल से लुप्तप्राय हो गए थे। यशवंतराव चह्वाण का 25 नवंबर, 1984 को [[दिल्ली]] में निधन हो गया।  





Revision as of 11:56, 8 May 2012

यशवंतराव चह्वाण
पूरा नाम यशवंतराव बलवंतराव चह्वाण
जन्म 12 मार्च, 1913
जन्म भूमि सातारा ज़िला, महाराष्ट्र
मृत्यु 25 नवंबर, 1984
मृत्यु स्थान दिल्ली
नागरिकता भारतीय
प्रसिद्धि राजनेता, स्वतंत्रता सेनानी और लेखक
पार्टी कांग्रेस, जनता पार्टी
पद भारत के पाँचवे उपप्रधानमंत्री, महाराष्ट्र के प्रथम मुख्यमंत्री
कार्य काल 28 जुलाई, 1979 से 14 जनवरी, 1980 (उपप्रधानमंत्री)
विशेष योगदान महाराष्ट्र में किसानों की बेहतरी के लिए सहकारी समितियों को स्थापित करने में महत्वपूर्ण योगदान दिया।

यशवंतराव बलवंतराव चह्वाण (जन्म- 12 मार्च, 1913 - मृत्यु- 25 नवंबर, 1984) भारत के पाँचवे उपप्रधानमंत्री और महाराष्ट्र के प्रथम मुख्यमंत्री थे। एक समय भारत देश के प्रमुख राजनेता और केन्द्र सरकार के महत्त्वपूर्ण विभागों के सफल मंत्री थे। यशवंतराव चह्वाण एक मजबूत कांग्रेस नेता, स्वतंत्रता सेनानी, सहकारी नेता, सामाजिक कार्यकर्ता और लेखक थे। ये 'आम आदमी के नेता' के रूप में लोकप्रिय थे। यशवंतराव चह्वाण ने अपने भाषणों और लेखों में दृढ़ता से समाजवादी लोकतंत्र की वकालत की और महाराष्ट्र में किसानों की बेहतरी के लिए सहकारी समितियों को स्थापित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

जीवन परिचय

यशवंतराव बलवंतराव चह्वाण का जन्म 12 मार्च, 1914 ई. को महाराष्ट्र के सातारा ज़िले के एक किसान परिवार में हुआ था। बचपन में ही इनके पिताजी का देहांत हो गया था, इसलिये इनका लालन पालन इनके चाचा और माँ ने किया था। अपने बचपन से ही भारत के स्वतंत्रता संघर्ष से प्रभावित थे। प्रतिकूल पारिवारिक स्थिति के बावजूद यशवंतराव अपनी शिक्षा पूर्ण करने में सफल रहे। पुणे से क़ानून की डिग्री लेने के बाद वे वकालत करने लगे। 1932 के सविनय अवज्ञा आन्दोलन में गिरफ्तारी के साथ उनका सार्वजनिक जीवन आरम्भ हुआ। भारत छोड़ो आन्दोलन में कुछ समय भूमिगत रहकर सतारा के आन्दोलन में सहायता देते हुए 1943 में वे फिर पकड़ लिए गए।

राजनैतिक जीवन

जेल से रिहा होने के बाद चह्वाण मुंबई विधानसभा के सदस्य चुने गए। 1952 के चुनाव में सफल होने पर उन्हें मंत्रिमंडल में लिया गया। फिर वे मुंबई के मुख्यमंत्री और गुजरात के पृथक राज्य बनने पर महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री बने। 1962 के चीनी आक्रमण के समय जब कृष्ण मेनन को रक्षा मंत्री का पद छोड़ना पड़ा तो यशवंतराव चह्वाण को देश के रक्षा मंत्री के पद पर नियुक्त किया गया। 1966 तक वे इस पद पर रहे। फिर उन्होंने क्रमश: गृहमंत्री, वित्त मंत्री और विदेश मंत्री के पद संभाले।

राजनैतिक पार्टी

1969 के कांग्रेस विभाजन के समय यशवंतराव चह्वाण के व्यवहार की आलोचना हुई थी। पहले उन्होंने इंदिरा जी के विरोध में मत दिया, किन्तु जब उस पक्ष को सफलता नहीं मिली तो वे फिर इंदिरा कांग्रेस में आ गए। 1977 की कांग्रेस की पराजय के बाद चह्वाण प्रतिपक्ष के नेता बने थे। जनता पार्टी की सरकार के गिरने पर उन्होंने एक बार फिर दल बदला और चरणसिंह के साथ मिल गए। चरणसिंह की सरकार तो नहीं बन पाई, लोगों की दृष्टि में चह्वाण की प्रतिष्ठा गिर गई।

निधन

इतने उच्च पदों पर रहने के बाद जीवन के अंतिम पहर में वे राष्ट्र की राजनीति के पटल से लुप्तप्राय हो गए थे। यशवंतराव चह्वाण का 25 नवंबर, 1984 को दिल्ली में निधन हो गया।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

भारतीय चरित कोश |लेखक: लीलाधर शर्मा 'पर्वतीय' |प्रकाशक: शिक्षा भारती, दिल्ली |पृष्ठ संख्या: 673 |


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