रायपुर: Difference between revisions
[unchecked revision] | [unchecked revision] |
व्यवस्थापन (talk | contribs) m (Text replace - "महत्वपूर्ण" to "महत्त्वपूर्ण") |
व्यवस्थापन (talk | contribs) m (Text replace - "{{लेख प्रगति" to "{{प्रचार}} {{लेख प्रगति") |
||
Line 6: | Line 6: | ||
==टीका टिप्पणी और संदर्भ== | ==टीका टिप्पणी और संदर्भ== | ||
* ऐतिहासिक स्थानावली से पेज संख्या 794-795 | विजयेन्द्र कुमार माथुर | वैज्ञानिक तथा तकनीकी शब्दावली आयोग | मानव संसाधन विकास मंत्रालय, [[भारत]] सरकार | * ऐतिहासिक स्थानावली से पेज संख्या 794-795 | विजयेन्द्र कुमार माथुर | वैज्ञानिक तथा तकनीकी शब्दावली आयोग | मानव संसाधन विकास मंत्रालय, [[भारत]] सरकार | ||
{{प्रचार}} | |||
{{लेख प्रगति | {{लेख प्रगति | ||
|आधार= | |आधार= |
Revision as of 12:34, 10 January 2011
छत्तीसगढ़ (प्राचीन दक्षिण कोसल) के क्षेत्र का मुख्य नगर है।
इतिहास
इसकी स्थापना सम्भवतः 14वीं शती के अन्तिम चरण में हुई थी। खलारी के कलचुरी नरेश राजा सिंहा ने प्रभम बार यहाँ अपनी राजधानी बनाई।
मन्दिर
रायपुर में एक मध्ययुगीन दुर्ग भी है। जिसके अन्दर कई प्राचीन मन्दिर हैं। रायपुर का सर्वश्रेष्ठ मन्दिर दूधाधारी महाराज के नाम से प्रसिद्ध है। इसमें बहुत से भाग श्रीपुर या सिरपुर के कलावशेषों से निर्मित किए गए हैं। इनमें मुख्य पत्थर के स्तम्भ हैं, जिन पर हिन्दू देवी-देवताओं की अनेक मूर्तियाँ खुदी हुई हैं। मन्दिर के शिखर के निचले भाग में रामायण की कथा के कुछ सुन्दर दृश्य उत्कीर्ण हैं। जो अधिक प्राचीन नहीं हैं। प्रदक्षिणापथ के गवाक्ष में नृसिंहावतार की मूर्ति तथा अन्य मूर्तियाँ स्थापित हैं। ये सिरपुर से लाई गई थीं। ये उच्चकोटि की मूर्तिकला के उदाहरण हैं। इस मन्दिर तथा संलग्न मठ का निर्माण दूधाधारी महाराज के द्वारा भौंसले राजाओं के समय में किया गया था। इससे पहले छत्तीसगढ़ में तांत्रिक सम्प्रदाय का बहुत ज़ोर था। दूधाधारी महाराज ने प्रान्त की नवीन सांस्कृतिक चेतना के उदबोधन में प्रमुख भाग लिया और तांत्रिक सम्प्रदाय की भ्रष्ट परम्पराओं को वैष्णव मत की सुरुचि सम्पन्न मान्यताओं द्वारा परिष्कृत करने में महत्त्वपूर्ण योग दिया था। रायपुर से राजा महासौदेवराज का सरभपुर नामक ग्राम से प्रचलित किया गया एक ताम्रदानपट्ट प्राप्त हुआ है। जिसके अभिलेख से यह गुप्तकालीन सिद्ध होता है। इसमें सौदेवराज द्वारा पूर्वराष्ट्र में स्थित श्रीसाहिक नामक ग्राम को दो ब्राह्मणों को दान में दिए जाने का उल्लेख है।
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ऐतिहासिक स्थानावली से पेज संख्या 794-795 | विजयेन्द्र कुमार माथुर | वैज्ञानिक तथा तकनीकी शब्दावली आयोग | मानव संसाधन विकास मंत्रालय, भारत सरकार
|
|
|
|
|
संबंधित लेख