तर्बियत ख़ाँ मीर आतिश: Difference between revisions

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'''तर्बियत ख़ाँ मीर आतिश''' का वास्तविक नाम 'मीर मोहम्मद खलील' था। [[औरंगजेब]] के शासन काल के अंतिम भाग में यह उसकी सेवा में नियुक्त हुआ था। औरंगजेब ने इसे दोहजारी 1200 सवार का [[मनसब]] दिया। उसने इधर के विद्रोहों को दबाने में अच्छी सफलता प्राप्त की। यह राज्य के 'मीर आतिश' के पद पर नियुक्त किया गया।<ref name="nn">{{cite web |url=http://khoj.bharatdiscovery.org/india/%E0%A4%A4%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%AC%E0%A4%BF%E0%A4%AF%E0%A4%A4_%E0%A4%96%E0%A4%BC%E0%A4%BE%E0%A4%81_%E0%A4%AE%E0%A5%80%E0%A4%B0_%E0%A4%86%E0%A4%A4%E0%A4%BF%E0%A4%B6|title=तर्बियत ख़ाँ मीर आतिश|accessmonthday=6 अगस्त|accessyear=2015|last= |first= |authorlink= |format= |publisher=भरतखोज|language=हिन्दी}}</ref>
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*[[औरंगजेब]] ने [[शिवाजी]] के [[दुर्ग|दुर्गों]] को विजय करने के लिए बढ़ा तो उसने 'मीर आतिश' को बसंतगढ़ के मोर्चों का निरीक्षक नियुक्त किया। उसने अपना कौशल इस प्रकार प्रदर्शित किया कि मैसूरी दुर्ग सम्राट औरंगजेब के अधिकार में आ गया।  

Revision as of 12:31, 6 August 2015

तर्बियत ख़ाँ मीर आतिश का वास्तविक नाम 'मीर मोहम्मद खलील' था। औरंगजेब के शासन काल के अंतिम भाग में यह उसकी सेवा में नियुक्त हुआ था। औरंगजेब ने इसे दोहज़ारी 1200 सवार का मनसब दिया। उसने इधर के विद्रोहों को दबाने में अच्छी सफलता प्राप्त की। यह राज्य के 'मीर आतिश' के पद पर नियुक्त किया गया।[1]

  • औरंगजेब ने शिवाजी के दुर्गों को विजय करने के लिए बढ़ा तो उसने 'मीर आतिश' को बसंतगढ़ के मोर्चों का निरीक्षक नियुक्त किया। उसने अपना कौशल इस प्रकार प्रदर्शित किया कि मैसूरी दुर्ग सम्राट औरंगजेब के अधिकार में आ गया।
  • परनाला और पवनगढ़ नामक दुर्ग की मोर्चाबंदी में इसने आश्चर्यजनक कार्य किया। खलना दुर्ग पर चिजय प्राप्त करने के परिणाम स्वरूप इसके मनसब में वृद्धि हुई।
  • कोनदाना दुर्ग पर विजय भी 'मीर आतिश' की वीरता द्वारा मिली थी।
  • राजगढ़ दुर्ग पर अधिकार करने के प्रसाद स्वरूप इसके मंसब में पुन: वृद्धि हुई। तत्पश्चात यह मंसूर खाँ के स्थान पर दक्षिण के तोपखाने के लिए निरीक्षक के पद पर नियुक्त किया गया था।
  • इसे बहादुर की उपाधि दी गई और वाकिन्केरा दुर्ग विजय करने पर एक शाही डंके से इसे सम्मानित किया गया।
  • मोहम्मद आजमशाह ने औरंगजेब की मृत्यु के पश्चात, इसे तोपखाने के प्रबंधक पद से हटा दिया और यह बहादुरशाह के विरुद्ध युद्ध में यह मारा गया।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. तर्बियत ख़ाँ मीर आतिश (हिन्दी) भरतखोज। अभिगमन तिथि: 6 अगस्त, 2015।

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