अरहंत

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अरहंत (अंग्रेज़ी: Arhant) बौद्ध धर्म की दार्शनिक अवधारणा है। बौद्ध थेरवाद में अर्हत (अरहत या अरहंत) का अर्थ है- 'जो योग्य है'। वह पूर्ण मनुष्य जिसने अस्तित्व की यथार्थ प्रकृति का अन्तर्ज्ञान प्राप्त कर लिया हो और जिसे निर्वाण की प्राप्त हो चुकी हो।

  • बौद्ध धर्म की अन्य परम्पराओं में इस शब्द का अब तक 'आत्मज्ञान के रास्ते पर उन्नत लोगों' के अर्थ में प्रयोग किया गया है।
  • अतिशय पूजासत्कार के योग्य होने से इन्हें (अर्ह योग्य होना) कहा गया है। मोहरूपी शत्रु (अरि) का अथवा आठ कर्मों का नाश करने के कारण ये 'अरिहन्त' (अरि का नाश करनेवाला) कहे जाते हैं।
  • जैनों के णमोकार मंत्र में पंचपरमेष्ठियों में सर्वप्रथम अरिहंतों को नमस्कार किया गया है।
  • सिद्ध परमात्मा हैं, लेकिन अरिहंत भगवान् लोक के परम उपकारक हैं, इसलिए इन्हें सर्वोत्तम कहा गया है।
  • जैन आगमों को अर्हत् द्वारा भाषित कहा गया है। अरिहंत तीर्थंकर, केवली और सर्वज्ञ होते हैं।
  • महावीर जैन धर्म के चौबीसवें (अंतिम) तीर्थंकर माने जाते हैं। बुरे कर्मों का नाश होने पर केवल ज्ञान द्वारा वे समस्त पदार्थों को जानते हैं, इसलिए उन्हें केवली कहा गया है।


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