पृथ्वीराज कपूर: Difference between revisions

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Jump to navigation Jump to search
[unchecked revision][unchecked revision]
No edit summary
 
(5 intermediate revisions by 3 users not shown)
Line 5: Line 5:
|प्रसिद्ध नाम=
|प्रसिद्ध नाम=
|अन्य नाम=
|अन्य नाम=
|जन्म= [[3 नवंबर]], 1906
|जन्म= [[3 नवंबर]], [[1906]]
|जन्म भूमि=पंजाब, ([[पाकिस्तान]])
|जन्म भूमि=पंजाब, ([[पाकिस्तान]])
|मृत्यु=[[29 मई]], 1972
|मृत्यु=[[29 मई]], 1972
|मृत्यु स्थान=[[मुम्बई]], [[महाराष्ट्र]]
|मृत्यु स्थान=[[मुम्बई]], [[महाराष्ट्र]]
|अभिभावक=दीवान बशेस्वरनाथ कपूर (पिता)
|अभिभावक=दीवान बशेस्वरनाथ कपूर ([[पिता]])
|पति/पत्नी=राम सरनी देवी
|पति/पत्नी=राम सरनी देवी
|संतान=[[राज कपूर]], [[शम्मी कपूर]], [[शशि कपूर]]
|संतान=[[राज कपूर]], [[शम्मी कपूर]], [[शशि कपूर]]
Line 15: Line 15:
|कर्म-क्षेत्र=[[अभिनेता]]  
|कर्म-क्षेत्र=[[अभिनेता]]  
|मुख्य रचनाएँ=
|मुख्य रचनाएँ=
|मुख्य फ़िल्में=[[मुग़ले आज़म]] (1960), आवारा (1951), सिंकदरा (1941), [[आलम आरा]] (1931) आदि।  
|मुख्य फ़िल्में='[[मुग़ले आज़म]]' ([[1960]]), 'आवारा' ([[1951]]), 'सिंकदरा' ([[1941]]), '[[आलम आरा]]' ([[1931]]) आदि।  
|विषय=
|विषय=
|शिक्षा=
|शिक्षा=
Line 33: Line 33:
}}  
}}  
{{बहुविकल्प|बहुविकल्पी शब्द=पृथ्वीराज|लेख का नाम=पृथ्वीराज (बहुविकल्पी)}}
{{बहुविकल्प|बहुविकल्पी शब्द=पृथ्वीराज|लेख का नाम=पृथ्वीराज (बहुविकल्पी)}}
'''पृथ्वीराज कपूर''' ([[अंग्रेज़ी]]:Prithviraj Kapoor) [जन्म: [[3 नवंबर]], [[1906]] पंजाब, [[पाकिस्तान]] (पहले [[भारत]] में) -  मृत्यु: [[29 मई]], [[1972]] [[बंबई]], [[महाराष्ट्र]]] हिंदी फ़िल्म और [[रंगमंच]] अभिनय के इतिहास पुरुष, जिन्होंने बंबई में पृथ्वी थिएटर स्थापित किया। भारतीय सिनेमा जगत के युगपुरुष पृथ्वीराज कपूर का नाम एक ऐसे [[अभिनेता]] के रूप में याद किया जाता है, जिन्होंने अपनी कड़क आवाज, रोबदार भाव भंगिमाओं और दमदार अभिनय के बल पर लगभग चार दशकों तक सिने दर्शकों के दिलों पर राज किया।  
'''पृथ्वीराज कपूर''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Prithviraj Kapoor'', जन्म: [[3 नवंबर]], [[1906]] पंजाब, [[पाकिस्तान]]<ref>पहले भारत में</ref>; मृत्यु: [[29 मई]], [[1972]] [[बंबई]], [[महाराष्ट्र]]) हिंदी फ़िल्म और [[रंगमंच]] अभिनय के इतिहास पुरुष, जिन्होंने बंबई में पृथ्वी थिएटर स्थापित किया। 'भारतीय सिनेमा जगत् के युगपुरुष' पृथ्वीराज कपूर का नाम एक ऐसे [[अभिनेता]] के रूप में याद किया जाता है, जिन्होंने अपनी कड़क आवाज, रोबदार भाव भंगिमाओं और दमदार अभिनय के बल पर लगभग चार दशकों तक सिने दर्शकों के दिलों पर राज किया।  
==जीवन परिचय==
==जीवन परिचय==
====शिक्षा====
====शिक्षा====
पृथ्वीराज ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा [[लायलपुर]] और [[लाहौर]] ([[पाकिस्तान]]) में रहकर पूरी की। पृथ्वीराज के पिता दीवान बशेस्वरनाथ कपूर पुलिस विभाग में सब इंस्पेक्टर के रूप में कार्यरत थे। बाद में उनके पिता का तबादला [[पेशावर]] में हो गया। पृथ्वीराज ने अपनी आगे की पढ़ाई पेशावर के एडवर्ड कॉलेज से की। साथ ही उन्होंने एक वर्ष तक क़ानून की पढ़ाई भी की लेकिन बीच मे ही उन्होंने अपनी पढ़ाई छोड़ दी, क्योंकि उस समय तक उनका रुझान थिएटर की ओर हो गया था।<ref name="JYI">{{cite web |url=http://121.101.146.68/cinemaaza/cinema/memories/201_201_8302.html |title=पृथ्वीराज कपूर: आधुनिक हिंदी थिएटर के पितामह |accessmonthday=29 सितंबर |accessyear=2011 |last= |first= |authorlink= |format=एच.टी.एम.एल |publisher=जागरण याहू इंडिया |language=हिन्दी}}</ref>
पृथ्वीराज ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा [[लायलपुर]] और [[लाहौर]] ([[पाकिस्तान]]) में रहकर पूरी की। पृथ्वीराज के पिता दीवान बशेस्वरनाथ कपूर पुलिस विभाग में सब इंस्पेक्टर के रूप में कार्यरत थे। बाद में उनके पिता का तबादला [[पेशावर]] में हो गया। पृथ्वीराज ने अपनी आगे की पढ़ाई पेशावर के एडवर्ड कॉलेज से की। साथ ही उन्होंने एक वर्ष तक क़ानून की पढ़ाई भी की लेकिन बीच में ही उन्होंने अपनी पढ़ाई छोड़ दी, क्योंकि उस समय तक उनका रुझान थिएटर की ओर हो गया था।<ref name="JYI">{{cite web |url=http://121.101.146.68/cinemaaza/cinema/memories/201_201_8302.html |title=पृथ्वीराज कपूर: आधुनिक हिंदी थिएटर के पितामह |accessmonthday=29 सितंबर |accessyear=2011 |last= |first= |authorlink= |format=एच.टी.एम.एल |publisher=जागरण याहू इंडिया |language=हिन्दी}}</ref>
====विवाह ====
====विवाह ====
पृथ्वीराज कपूर का महज 18 वर्ष की उम्र में ही विवाह हो गया और वर्ष 1928 में अपनी चाची से आर्थिक सहायता लेकर पृथ्वीराज कपूर अपने सपनों के शहर मुंबई पहुंचे।  
पृथ्वीराज कपूर का महज 18 वर्ष की उम्र में ही [[विवाह]] हो गया और वर्ष [[1928]] में अपनी चाची से आर्थिक सहायता लेकर पृथ्वीराज कपूर अपने सपनों के शहर मुंबई पहुंचे।  
====कैरियर की शुरुआत====
====कैरियर की शुरुआत====
पृथ्वीराज कपूर 1928 में मुंबई में इंपीरियल फ़िल्म कंपनी से जुडे़ थे। वर्ष 1930 में बीपी मिश्रा की फ़िल्म 'सिनेमा गर्ल' में उन्होंने अभिनय किया। इसके कुछ समय पश्चात् एंडरसन की थिएटर कंपनी के नाटक शेक्सपियर में भी उन्होंने अभिनय किया। लगभग दो वर्ष तक फ़िल्म इंडस्ट्री में संघर्ष करने के बाद पृथ्वीराज को वर्ष 1931 में प्रदर्शित फ़िल्म [[आलम आरा]] में सहायक अभिनेता के रूप में काम करने का मौक़ा मिला। [[चित्र:Prithviraj-Kapoor.jpg|thumb|पृथ्वीराज कपूर|left]] वर्ष 1933 में पृथ्वीराज कपूर [[कोलकाता]] के मशहूर न्यू थिएटर के साथ जुड़े। वर्ष 1933 में प्रदर्शित फ़िल्म 'राज रानी' और वर्ष [[1934]] में [[देवकी बोस]] की फ़िल्म 'सीता' की कामयाबी के बाद बतौर अभिनेता पृथ्वीराज अपनी पहचान बनाने में सफल हो गए। इसके बाद पृथ्वीराज ने न्यू थिएटर की निर्मित कई फ़िल्मों मे अभिनय किया। इन फ़िल्मों में 'मंजिल' 1936 और 'प्रेसिडेंट' 1937 जैसी फ़िल्में शामिल हैं। वर्ष 1937 में प्रदर्शित फ़िल्म विद्यापति में पृथ्वीराज के अभिनय को दर्शकों ने काफ़ी सराहा। वर्ष 1938 में चंदू लाल शाह के रंजीत मूवीटोन के लिए पृथ्वीराज अनुबंधित किए गए। रंजीत मूवी के बैनर तले वर्ष 1940 में प्रदर्शित फ़िल्म 'पागल' में पृथ्वीराज कपूर अपने सिने कैरियर में पहली बार एंटी हीरो की भूमिका निभाई। इसके बाद वर्ष 1941 में [[सोहराब मोदी]] की फ़िल्म सिकंदर की सफलता के बाद पृथ्वीराज कामयाबी के शिखर पर जा पहुंचे। <ref name="JYI"/>
पृथ्वीराज कपूर [[1928]] में [[मुंबई]] में [[इंपीरियल फ़िल्म कंपनी]] से जुडे़ थे। वर्ष [[1930]] में बीपी मिश्रा की फ़िल्म 'सिनेमा गर्ल' में उन्होंने अभिनय किया। इसके कुछ समय पश्चात् एंडरसन की थिएटर कंपनी के नाटक शेक्सपियर में भी उन्होंने अभिनय किया। लगभग दो वर्ष तक फ़िल्म इंडस्ट्री में संघर्ष करने के बाद पृथ्वीराज को वर्ष [[1931]] में प्रदर्शित फ़िल्म [[आलम आरा]] में सहायक अभिनेता के रूप में काम करने का मौक़ा मिला। [[चित्र:Prithviraj-Kapoor.jpg|thumb|पृथ्वीराज कपूर|left]] वर्ष [[1933]] में पृथ्वीराज कपूर [[कोलकाता]] के मशहूर न्यू थिएटर के साथ जुड़े। वर्ष 1933 में प्रदर्शित फ़िल्म 'राज रानी' और वर्ष [[1934]] में [[देवकी बोस]] की फ़िल्म 'सीता' की कामयाबी के बाद बतौर अभिनेता पृथ्वीराज अपनी पहचान बनाने में सफल हो गए। इसके बाद पृथ्वीराज ने [[न्यू थियेटर फ़िल्म कंपनी|न्यू थिएटर]] की निर्मित कई फ़िल्मों में अभिनय किया। इन फ़िल्मों में 'मंजिल' [[1936]] और 'प्रेसिडेंट' [[1937]] जैसी फ़िल्में शामिल हैं। वर्ष [[1937]] में प्रदर्शित फ़िल्म विद्यापति में पृथ्वीराज के अभिनय को दर्शकों ने काफ़ी सराहा। वर्ष [[1938]] में [[चंदूलाल शाह]] के [[रणजीत मूवीटोन|रंजीत मूवीटोन]] के लिए पृथ्वीराज अनुबंधित किए गए। रंजीत मूवी के बैनर तले वर्ष [[1940]] में प्रदर्शित फ़िल्म 'पागल' में पृथ्वीराज कपूर अपने सिने कैरियर में पहली बार एंटी हीरो की भूमिका निभाई। इसके बाद वर्ष [[1941]] में [[सोहराब मोदी]] की फ़िल्म सिकंदर की सफलता के बाद पृथ्वीराज कामयाबी के शिखर पर जा पहुंचे। <ref name="JYI"/>
====पृथ्वी थिएटर की स्थापना====
वर्ष [[1944]] में पृथ्वीराज कपूर ने अपनी खुद की थियेटर कंपनी पृथ्वी थिएटर शुरू की। पृथ्वी थिएटर में उन्होंने आधुनिक और शहरी विचारधारा का इस्तेमाल किया, जो उस समय के फारसी और परंपरागत थिएटरों से काफ़ी अलग था। धीरे-धीरे दर्शकों का ध्यान थिएटर की ओर से हट गया, क्योंकि उन दिनों दर्शकों के ऊपर रुपहले पर्दे का क्रेज कुछ ज़्यादा ही हावी हो चला था। सोलह वर्ष में पृथ्वी थिएटर के 2662 शो हुए जिनमें पृथ्वीराज ने लगभग सभी शो में मुख्य किरदार निभाया। पृथ्वी थिएटर के प्रति पृथ्वीराज इस क़दर समर्पित थे कि तबीयत ख़राब होने के बावजूद भी वह हर शो में हिस्सा लिया करते थे। वह शो एक दिन के अंतराल पर नियमित रूप से होता था। '''एक बार तत्कालीन [[प्रधानमंत्री]] [[जवाहर लाल नेहरू]] ने उनसे विदेश में जा रहे सांस्कृतिक प्रतिनिधिमंडल का प्रतिनिधित्व करने की पेशकश की, लेकिन पृथ्वीराज ने नेहरू जी से यह कह उनकी पेशकश नामंजूर कर दी कि वह थिएटर के काम को छोड़कर वह विदेश नहीं जा सकते।''' पृथ्वी थिएटर के बहुचर्चित कुछ प्रमुख नाटकों में दीवार, पठान, 1947, गद्दार, 1948 और पैसा 1954 शामिल है। पृथ्वीराज ने अपने थिएटर के जरिए कई छुपी हुई प्रतिभा को आगे बढ़ने का मौक़ा दिया, जिनमें [[रामानंद सागर]] और [[शंकर जयकिशन]] जैसे बड़े नाम शामिल है। <ref name="JYI"/>


====पृथ्वी थिएटर की स्थापना====
वर्ष 1944 में पृथ्वीराज कपूर ने अपनी खुद की थियेटर कंपनी पृथ्वी थिएटर शुरू की। पृथ्वी थिएटर में उन्होंने आधुनिक और शहरी विचारधारा का इस्तेमाल किया, जो उस समय के फारसी और परंपरागत थिएटरों से काफ़ी अलग था। धीरे-धीरे दर्शको का ध्यान थिएटर की ओर से हट गया, क्योंकि उन दिनों दर्शकों के उपर रूपहले पर्दे का क्रेज कुछ ज़्यादा ही हावी हो चला था। सोलह वर्ष में पृथ्वी थिएटर के 2662 शो हुए जिनमें पृथ्वीराज ने लगभग सभी शो में मुख्य किरदार निभाया। पृथ्वी थिएटर के प्रति पृथ्वीराज इस क़दर समर्पित थे कि तबीयत ख़राब होने के बावजूद भी वह हर शो में हिस्सा लिया करते थे। वह शो एक दिन के अंतराल पर नियमित रूप से होता था। '''एक बार तत्कालीन [[प्रधानमंत्री]] [[जवाहर लाल नेहरू]] ने उनसे विदेश में जा रहे सांस्कृतिक प्रतिनिधिमंडल का प्रतिनिधित्व करने की पेशकश की, लेकिन पृथ्वीराज ने नेहरू जी से यह कह उनकी पेशकश नामंजूर कर दी कि वह थिएटर के काम को छोड़कर वह विदेश नहीं जा सकते।''' पृथ्वी थिएटर के बहुचर्चित कुछ प्रमुख नाटकों में दीवार, पठान, 1947, गद्दार, 1948 और पैसा 1954 शामिल है। पृथ्वीराज ने अपने थिएटर के जरिए कई छुपी हुई प्रतिभा को आगे बढ़ने का मौक़ा दिया, जिनमें [[रामानंद सागर]] और [[शंकर जयकिशन]] जैसे बड़े नाम शामिल है। <ref name="JYI"/>
====रंगमंच के पुरोधा====
====रंगमंच के पुरोधा====
आकर्षक व्यक्तित्व व शानदार आवाज़ के स्वामी पृथ्वीराज कपूर ने सिनेमा और [[रंगमंच]] दोनों माध्यमों में अपनी अभिनय क्षमता का परिचय दिया हालांकि उनका पहला प्यार थिएटर ही था। उनके पृथ्वी थिएटर ने क़रीब 16 वर्षों में दो हज़ार से अधिक नाट्य प्रस्तुतियां कीं। पृथ्वी राज कपूर ने अपनी अधिकतर नाट्य प्रस्तुतियों मे महत्वपूर्ण भूमिकाएं निभाईं। थिएटर के प्रति उनकी दीवानगी स्पष्ट थी। पृथ्वी थिएटर की नाट्य प्रस्तुतियों में सामाजिक जागरूकता के साथ ही देशभक्ति और मानवीयता को प्रश्रय दिया गया। वर्ष 1944 में स्थापित पृथ्वी थिएटर के नाटकों में यथार्थवाद और आदर्शवाद पर भी पर्याप्त ज़ोर दिया गया।<ref name="WDH">{{cite web |url=http://merinajar.mywebdunia.com/2009/05/28/1243521660000.html |title=हिंदी रंगमंच के पुरोधा थे पृथ्वीराज कपूर |accessmonthday=29 सितंबर |accessyear=2011 |last= |first= |authorlink= |format=एच.टी.एम.एल |publisher=वेब दुनिया हिन्दी |language=हिन्दी}}</ref>
आकर्षक व्यक्तित्व व शानदार आवाज़ के स्वामी पृथ्वीराज कपूर ने सिनेमा और [[रंगमंच]] दोनों माध्यमों में अपनी अभिनय क्षमता का परिचय दिया हालांकि उनका पहला प्यार थिएटर ही था। उनके पृथ्वी थिएटर ने क़रीब 16 वर्षों में दो हज़ार से अधिक नाट्य प्रस्तुतियां कीं। पृथ्वी राज कपूर ने अपनी अधिकतर नाट्य प्रस्तुतियों में महत्वपूर्ण भूमिकाएँ निभाईं। थिएटर के प्रति उनकी दीवानगी स्पष्ट थी। पृथ्वी थिएटर की नाट्य प्रस्तुतियों में सामाजिक जागरूकता के साथ ही देशभक्ति और मानवीयता को प्रश्रय दिया गया। वर्ष 1944 में स्थापित पृथ्वी थिएटर के नाटकों में यथार्थवाद और आदर्शवाद पर भी पर्याप्त ज़ोर दिया गया।<ref name="WDH">{{cite web |url=http://merinajar.mywebdunia.com/2009/05/28/1243521660000.html |title=हिंदी रंगमंच के पुरोधा थे पृथ्वीराज कपूर |accessmonthday=29 सितंबर |accessyear=2011 |last= |first= |authorlink= |format=एच.टी.एम.एल |publisher=वेब दुनिया हिन्दी |language=हिन्दी}}</ref>
====प्रमुख फ़िल्में====
====प्रमुख फ़िल्में====
[[चित्र:Mughal-E-Azam-1.jpg|[[मुग़ले आज़म]]|thumb|250px]]
[[चित्र:Mughal-E-Azam-1.jpg|[[मुग़ले आज़म]]|thumb|250px]]
इसी दौरान पृथ्वीराज कपूर की मुग़ले आजम, हरिश्चंद्र तारामती, सिकंदरे आजम, आसमान, महल जैसी कुछ सफल फ़िल्में प्रदर्शित हुई। वर्ष 1960 में प्रदर्शित [[के. आसिफ]] की मुग़ले आजम में उनके सामने अभिनय सम्राट [[दिलीप कुमार]] थे, इसके बावजूद पृथ्वीराज कपूर अपने दमदार अभिनय से दर्शकों का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करने में सफल रहे। वर्ष 1965 में प्रदर्शित फ़िल्म आसमान महल में पृथ्वीराज ने अपने सिने कैरियर की एक और न भूलने वाली भूमिका निभाई। इसके बाद वर्ष 1968 में प्रदर्शित फ़िल्म तीन बहुरानियां में पृथ्वीराज ने परिवार के मुखिया की भूमिका निभाई, जो अपनी बहुरानियों को सच्चाई की राह पर चलने केलिए प्रेरित करता है। इसके साथ ही अपने पुत्र [[रणधीर कपूर]] की फ़िल्म कल आज और कल में भी पृथ्वीराज कपूर ने यादगार भूमिका निभाई। वर्ष 1969 में पृथ्वीराज कपूर ने एक पंजाबी फ़िल्म नानक नाम जहां है में भी अभिनय किया। फ़िल्म की सफलता ने लगभग गुमनामी में आ चुके पंजाबी फ़िल्म इंडस्ट्री को एक नया जीवन दिया।<ref name="JYI"/>  
इसी दौरान पृथ्वीराज कपूर की मुग़ले आजम, हरिश्चंद्र तारामती, सिकंदरे आजम, आसमान, महल जैसी कुछ सफल फ़िल्में प्रदर्शित हुईं। वर्ष [[1960]] में प्रदर्शित [[के. आसिफ]] की [[मुग़ले आज़म]] में उनके सामने अभिनय सम्राट [[दिलीप कुमार]] थे, इसके बावजूद पृथ्वीराज कपूर अपने दमदार अभिनय से दर्शकों का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करने में सफल रहे। वर्ष [[1965]] में प्रदर्शित फ़िल्म आसमान महल में पृथ्वीराज ने अपने सिने कैरियर की एक और न भूलने वाली भूमिका निभाई। इसके बाद वर्ष [[1968]] में प्रदर्शित फ़िल्म तीन बहुरानियां में पृथ्वीराज ने परिवार के मुखिया की भूमिका निभाई, जो अपनी बहुरानियों को सच्चाई की राह पर चलने के लिए प्रेरित करता है। इसके साथ ही अपने पुत्र [[रणधीर कपूर]] की फ़िल्म कल आज और कल में भी पृथ्वीराज कपूर ने यादगार भूमिका निभाई। वर्ष [[1969]] में पृथ्वीराज कपूर ने एक पंजाबी फ़िल्म नानक नाम जहां है में भी अभिनय किया। फ़िल्म की सफलता ने लगभग गुमनामी में आ चुके पंजाबी फ़िल्म इंडस्ट्री को एक नया जीवन दिया।<ref name="JYI"/>  
====पुत्र राज कपूर के साथ अभिनय====
====पुत्र राज कपूर के साथ अभिनय====
पचास के दशक में पृथ्वीराज कपूर की जो फ़िल्में प्रदर्शित हुईं उनमें शांताराम की दहेज 1950 के साथ ही उनके पुत्र [[राज कपूर]] की निर्मित फ़िल्म आवारा प्रमुख है। फ़िल्म आवारा में पृथ्वीराज कपूर ने अपने पुत्र राजकपूर के साथ अभिनय किया। साठ का दशक आते-आते पृथ्वीराज कपूर ने फ़िल्मों में काम करना काफ़ी कम कर दिया।<ref name="JYI"/>  
पचास के दशक में पृथ्वीराज कपूर की जो फ़िल्में प्रदर्शित हुईं उनमें शांताराम की दहेज [[1950]] के साथ ही उनके पुत्र [[राज कपूर]] की निर्मित फ़िल्म आवारा प्रमुख है। फ़िल्म आवारा में पृथ्वीराज कपूर ने अपने पुत्र राजकपूर के साथ अभिनय किया। साठ का दशक आते-आते पृथ्वीराज कपूर ने फ़िल्मों में काम करना काफ़ी कम कर दिया।<ref name="JYI"/>  
==सम्मान और पुरस्कार==
==सम्मान और पुरस्कार==
पृथ्वीराज को देश के सर्वोच्च फ़िल्म सम्मान [[दादा साहब फाल्के पुरस्कार|दादा साहब फाल्के]] के अलावा [[पद्म भूषण]] तथा कई अन्य पुरस्कारों से भी नवाजा गया। उन्हें [[राज्यसभा]] के लिए भी नामित किया गया था।<ref name="WDH"/>
पृथ्वीराज को देश के सर्वोच्च फ़िल्म सम्मान [[दादा साहब फाल्के पुरस्कार|दादा साहब फाल्के]] के अलावा [[पद्म भूषण]] तथा कई अन्य पुरस्कारों से भी नवाजा गया। उन्हें [[राज्यसभा]] के लिए भी नामित किया गया था।<ref name="WDH"/>
==अंतिम समय==
==अंतिम समय==
उनकी अंतिम फ़िल्मों में राज कपूर की आवारा (1951), कल आज और कल, जिसमें कपूर परिवार की तीन पीढ़ियों ने अभिनय किया था और [[ख़्वाजा अहमद अब्बास]] की 'आसमान महल' भी थी। एक अभिनेता और प्रतिभा पारखी के रूप में उनकी दुर्जेय प्रतिष्ठा मूल रूप से उनके शान्दार फ़िल्मी जीवन के पूर्वार्द्ध पर आधारित है। फ़िल्मों में अपने अभिनय से सम्मोहित करने वाले और [[रंगमंच]] को नई दिशा देने वाली यह महान् हस्ती का [[29 मई]], 1972 को इस दुनिया से रुखसत हो गए। उन्हें मरणोपरांत [[दादा साहब फाल्के पुरस्कार]] से सम्मानित किया गया था।
उनकी अंतिम फ़िल्मों में [[राज कपूर]] की आवारा ([[1951]]), कल आज और कल, जिसमें कपूर परिवार की तीन पीढ़ियों ने [[अभिनय]] किया था और [[ख़्वाजा अहमद अब्बास]] की 'आसमान महल' भी थी। एक अभिनेता और प्रतिभा पारखी के रूप में उनकी दुर्जेय प्रतिष्ठा मूल रूप से उनके शानदार फ़िल्मी जीवन के पूर्वार्द्ध पर आधारित है। फ़िल्मों में अपने अभिनय से सम्मोहित करने वाले और [[रंगमंच]] को नई दिशा देने वाली यह महान् हस्ती [[29 मई]], [[1972]] को इस दुनिया से रुखसत हो गए। उन्हें मरणोपरांत [[दादा साहब फाल्के पुरस्कार]] से सम्मानित किया गया था।
 


{{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक=प्रारम्भिक3 |माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }}
{{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक=प्रारम्भिक3 |माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }}
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
<references/>
<references/>
==बाहरी कड़ियाँ==
==बाहरी कड़ियाँ==
*[https://www.youtube.com/watch?v=eZcbfVkW_zg&list=CLfE_Cw960L3I पृथ्वीराज कपूर का बॉलीवुड सफ़र (यू-ट्यूब विडियो)]
*[https://www.youtube.com/watch?v=eZcbfVkW_zg&list=CLfE_Cw960L3I पृथ्वीराज कपूर का बॉलीवुड सफ़र (यू-ट्यूब विडियो)]
==संबंधित लेख==
==संबंधित लेख==
{{फ़िल्म निर्माता और निर्देशक}}
{{फ़िल्म निर्माता और निर्देशक}}{{अभिनेता}}{{दादा साहब फाल्के पुरस्कार}}
{{अभिनेता}}{{दादा साहब फाल्के पुरस्कार}}
[[Category:अभिनेता]][[Category:फ़िल्म निर्देशक]][[Category:फ़िल्म निर्माता]][[Category:कला कोश]][[Category:पद्म भूषण]][[Category:प्रसिद्ध व्यक्तित्व]][[Category:प्रसिद्ध व्यक्तित्व कोश]][[Category:चरित कोश]][[Category:दादा साहब फाल्के पुरस्कार]]
[[Category:अभिनेता]]
[[Category:फ़िल्म निर्देशक]]
[[Category:फ़िल्म निर्माता]]
[[Category:कला कोश]]
[[Category:पद्म भूषण]]
[[Category:प्रसिद्ध व्यक्तित्व]]
[[Category:प्रसिद्ध व्यक्तित्व कोश]][[Category:चरित कोश]]
[[Category:दादा साहब फाल्के पुरस्कार]]
__INDEX__
__INDEX__
__NOTOC__

Latest revision as of 15:46, 4 June 2018

पृथ्वीराज कपूर
पूरा नाम पृथ्वीराज कपूर
जन्म 3 नवंबर, 1906
जन्म भूमि पंजाब, (पाकिस्तान)
मृत्यु 29 मई, 1972
मृत्यु स्थान मुम्बई, महाराष्ट्र
अभिभावक दीवान बशेस्वरनाथ कपूर (पिता)
पति/पत्नी राम सरनी देवी
संतान राज कपूर, शम्मी कपूर, शशि कपूर
कर्म भूमि मुम्बई
कर्म-क्षेत्र अभिनेता
मुख्य फ़िल्में 'मुग़ले आज़म' (1960), 'आवारा' (1951), 'सिंकदरा' (1941), 'आलम आरा' (1931) आदि।
पुरस्कार-उपाधि दादा साहब फाल्के पुरस्कार, पद्म भूषण
नागरिकता भारतीय
चित्र:Disamb2.jpg पृथ्वीराज एक बहुविकल्पी शब्द है अन्य अर्थों के लिए देखें:- पृथ्वीराज (बहुविकल्पी)

पृथ्वीराज कपूर (अंग्रेज़ी: Prithviraj Kapoor, जन्म: 3 नवंबर, 1906 पंजाब, पाकिस्तान[1]; मृत्यु: 29 मई, 1972 बंबई, महाराष्ट्र) हिंदी फ़िल्म और रंगमंच अभिनय के इतिहास पुरुष, जिन्होंने बंबई में पृथ्वी थिएटर स्थापित किया। 'भारतीय सिनेमा जगत् के युगपुरुष' पृथ्वीराज कपूर का नाम एक ऐसे अभिनेता के रूप में याद किया जाता है, जिन्होंने अपनी कड़क आवाज, रोबदार भाव भंगिमाओं और दमदार अभिनय के बल पर लगभग चार दशकों तक सिने दर्शकों के दिलों पर राज किया।

जीवन परिचय

शिक्षा

पृथ्वीराज ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा लायलपुर और लाहौर (पाकिस्तान) में रहकर पूरी की। पृथ्वीराज के पिता दीवान बशेस्वरनाथ कपूर पुलिस विभाग में सब इंस्पेक्टर के रूप में कार्यरत थे। बाद में उनके पिता का तबादला पेशावर में हो गया। पृथ्वीराज ने अपनी आगे की पढ़ाई पेशावर के एडवर्ड कॉलेज से की। साथ ही उन्होंने एक वर्ष तक क़ानून की पढ़ाई भी की लेकिन बीच में ही उन्होंने अपनी पढ़ाई छोड़ दी, क्योंकि उस समय तक उनका रुझान थिएटर की ओर हो गया था।[2]

विवाह

पृथ्वीराज कपूर का महज 18 वर्ष की उम्र में ही विवाह हो गया और वर्ष 1928 में अपनी चाची से आर्थिक सहायता लेकर पृथ्वीराज कपूर अपने सपनों के शहर मुंबई पहुंचे।

कैरियर की शुरुआत

पृथ्वीराज कपूर 1928 में मुंबई में इंपीरियल फ़िल्म कंपनी से जुडे़ थे। वर्ष 1930 में बीपी मिश्रा की फ़िल्म 'सिनेमा गर्ल' में उन्होंने अभिनय किया। इसके कुछ समय पश्चात् एंडरसन की थिएटर कंपनी के नाटक शेक्सपियर में भी उन्होंने अभिनय किया। लगभग दो वर्ष तक फ़िल्म इंडस्ट्री में संघर्ष करने के बाद पृथ्वीराज को वर्ष 1931 में प्रदर्शित फ़िल्म आलम आरा में सहायक अभिनेता के रूप में काम करने का मौक़ा मिला। thumb|पृथ्वीराज कपूर|left वर्ष 1933 में पृथ्वीराज कपूर कोलकाता के मशहूर न्यू थिएटर के साथ जुड़े। वर्ष 1933 में प्रदर्शित फ़िल्म 'राज रानी' और वर्ष 1934 में देवकी बोस की फ़िल्म 'सीता' की कामयाबी के बाद बतौर अभिनेता पृथ्वीराज अपनी पहचान बनाने में सफल हो गए। इसके बाद पृथ्वीराज ने न्यू थिएटर की निर्मित कई फ़िल्मों में अभिनय किया। इन फ़िल्मों में 'मंजिल' 1936 और 'प्रेसिडेंट' 1937 जैसी फ़िल्में शामिल हैं। वर्ष 1937 में प्रदर्शित फ़िल्म विद्यापति में पृथ्वीराज के अभिनय को दर्शकों ने काफ़ी सराहा। वर्ष 1938 में चंदूलाल शाह के रंजीत मूवीटोन के लिए पृथ्वीराज अनुबंधित किए गए। रंजीत मूवी के बैनर तले वर्ष 1940 में प्रदर्शित फ़िल्म 'पागल' में पृथ्वीराज कपूर अपने सिने कैरियर में पहली बार एंटी हीरो की भूमिका निभाई। इसके बाद वर्ष 1941 में सोहराब मोदी की फ़िल्म सिकंदर की सफलता के बाद पृथ्वीराज कामयाबी के शिखर पर जा पहुंचे। [2]

पृथ्वी थिएटर की स्थापना

वर्ष 1944 में पृथ्वीराज कपूर ने अपनी खुद की थियेटर कंपनी पृथ्वी थिएटर शुरू की। पृथ्वी थिएटर में उन्होंने आधुनिक और शहरी विचारधारा का इस्तेमाल किया, जो उस समय के फारसी और परंपरागत थिएटरों से काफ़ी अलग था। धीरे-धीरे दर्शकों का ध्यान थिएटर की ओर से हट गया, क्योंकि उन दिनों दर्शकों के ऊपर रुपहले पर्दे का क्रेज कुछ ज़्यादा ही हावी हो चला था। सोलह वर्ष में पृथ्वी थिएटर के 2662 शो हुए जिनमें पृथ्वीराज ने लगभग सभी शो में मुख्य किरदार निभाया। पृथ्वी थिएटर के प्रति पृथ्वीराज इस क़दर समर्पित थे कि तबीयत ख़राब होने के बावजूद भी वह हर शो में हिस्सा लिया करते थे। वह शो एक दिन के अंतराल पर नियमित रूप से होता था। एक बार तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने उनसे विदेश में जा रहे सांस्कृतिक प्रतिनिधिमंडल का प्रतिनिधित्व करने की पेशकश की, लेकिन पृथ्वीराज ने नेहरू जी से यह कह उनकी पेशकश नामंजूर कर दी कि वह थिएटर के काम को छोड़कर वह विदेश नहीं जा सकते। पृथ्वी थिएटर के बहुचर्चित कुछ प्रमुख नाटकों में दीवार, पठान, 1947, गद्दार, 1948 और पैसा 1954 शामिल है। पृथ्वीराज ने अपने थिएटर के जरिए कई छुपी हुई प्रतिभा को आगे बढ़ने का मौक़ा दिया, जिनमें रामानंद सागर और शंकर जयकिशन जैसे बड़े नाम शामिल है। [2]

रंगमंच के पुरोधा

आकर्षक व्यक्तित्व व शानदार आवाज़ के स्वामी पृथ्वीराज कपूर ने सिनेमा और रंगमंच दोनों माध्यमों में अपनी अभिनय क्षमता का परिचय दिया हालांकि उनका पहला प्यार थिएटर ही था। उनके पृथ्वी थिएटर ने क़रीब 16 वर्षों में दो हज़ार से अधिक नाट्य प्रस्तुतियां कीं। पृथ्वी राज कपूर ने अपनी अधिकतर नाट्य प्रस्तुतियों में महत्वपूर्ण भूमिकाएँ निभाईं। थिएटर के प्रति उनकी दीवानगी स्पष्ट थी। पृथ्वी थिएटर की नाट्य प्रस्तुतियों में सामाजिक जागरूकता के साथ ही देशभक्ति और मानवीयता को प्रश्रय दिया गया। वर्ष 1944 में स्थापित पृथ्वी थिएटर के नाटकों में यथार्थवाद और आदर्शवाद पर भी पर्याप्त ज़ोर दिया गया।[3]

प्रमुख फ़िल्में

[[चित्र:Mughal-E-Azam-1.jpg|मुग़ले आज़म|thumb|250px]] इसी दौरान पृथ्वीराज कपूर की मुग़ले आजम, हरिश्चंद्र तारामती, सिकंदरे आजम, आसमान, महल जैसी कुछ सफल फ़िल्में प्रदर्शित हुईं। वर्ष 1960 में प्रदर्शित के. आसिफ की मुग़ले आज़म में उनके सामने अभिनय सम्राट दिलीप कुमार थे, इसके बावजूद पृथ्वीराज कपूर अपने दमदार अभिनय से दर्शकों का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करने में सफल रहे। वर्ष 1965 में प्रदर्शित फ़िल्म आसमान महल में पृथ्वीराज ने अपने सिने कैरियर की एक और न भूलने वाली भूमिका निभाई। इसके बाद वर्ष 1968 में प्रदर्शित फ़िल्म तीन बहुरानियां में पृथ्वीराज ने परिवार के मुखिया की भूमिका निभाई, जो अपनी बहुरानियों को सच्चाई की राह पर चलने के लिए प्रेरित करता है। इसके साथ ही अपने पुत्र रणधीर कपूर की फ़िल्म कल आज और कल में भी पृथ्वीराज कपूर ने यादगार भूमिका निभाई। वर्ष 1969 में पृथ्वीराज कपूर ने एक पंजाबी फ़िल्म नानक नाम जहां है में भी अभिनय किया। फ़िल्म की सफलता ने लगभग गुमनामी में आ चुके पंजाबी फ़िल्म इंडस्ट्री को एक नया जीवन दिया।[2]

पुत्र राज कपूर के साथ अभिनय

पचास के दशक में पृथ्वीराज कपूर की जो फ़िल्में प्रदर्शित हुईं उनमें शांताराम की दहेज 1950 के साथ ही उनके पुत्र राज कपूर की निर्मित फ़िल्म आवारा प्रमुख है। फ़िल्म आवारा में पृथ्वीराज कपूर ने अपने पुत्र राजकपूर के साथ अभिनय किया। साठ का दशक आते-आते पृथ्वीराज कपूर ने फ़िल्मों में काम करना काफ़ी कम कर दिया।[2]

सम्मान और पुरस्कार

पृथ्वीराज को देश के सर्वोच्च फ़िल्म सम्मान दादा साहब फाल्के के अलावा पद्म भूषण तथा कई अन्य पुरस्कारों से भी नवाजा गया। उन्हें राज्यसभा के लिए भी नामित किया गया था।[3]

अंतिम समय

उनकी अंतिम फ़िल्मों में राज कपूर की आवारा (1951), कल आज और कल, जिसमें कपूर परिवार की तीन पीढ़ियों ने अभिनय किया था और ख़्वाजा अहमद अब्बास की 'आसमान महल' भी थी। एक अभिनेता और प्रतिभा पारखी के रूप में उनकी दुर्जेय प्रतिष्ठा मूल रूप से उनके शानदार फ़िल्मी जीवन के पूर्वार्द्ध पर आधारित है। फ़िल्मों में अपने अभिनय से सम्मोहित करने वाले और रंगमंच को नई दिशा देने वाली यह महान् हस्ती 29 मई, 1972 को इस दुनिया से रुखसत हो गए। उन्हें मरणोपरांत दादा साहब फाल्के पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. पहले भारत में
  2. 2.0 2.1 2.2 2.3 2.4 पृथ्वीराज कपूर: आधुनिक हिंदी थिएटर के पितामह (हिन्दी) (एच.टी.एम.एल) जागरण याहू इंडिया। अभिगमन तिथि: 29 सितंबर, 2011।
  3. 3.0 3.1 हिंदी रंगमंच के पुरोधा थे पृथ्वीराज कपूर (हिन्दी) (एच.टी.एम.एल) वेब दुनिया हिन्दी। अभिगमन तिथि: 29 सितंबर, 2011।

बाहरी कड़ियाँ

संबंधित लेख