उरांव जाति: Difference between revisions
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Latest revision as of 13:36, 28 September 2012
उरांव जाति के लोग झारखंड राज्य के छोटा नागपुर क्षेत्र के आदिवासी हैं। ये लोग स्वयं को 'कुरूख' कहते हैं और गोंडी तथा मध्य भारत की अन्य आदिम भाषा जैसी द्रविड़ भाषा बोलते हैं। कभी उरांव जाति के लोग सुदूरवर्ती दक्षिण-पश्चिम में रोहतास के पठार पर रहते थे, लेकिन अन्य लोगों द्वारा विस्थापित किए जाने पर ये लोग छोटा नागपुर चले आए। यहाँ पर यह मुंडा बोलने वाले आदिवासियों के आस-पास बस गए।
कुल तथा भाषा
उंराव बोलने वालों की संख्या लगभग 19 लाख है, लेकिन शहरी क्षेत्रों, विशेषकर ईसाईयों के बीच कई उंराव अपनी मातृभाषा के रूप में हिन्दी बोलते हैं। यह जनजाति पशु-पौधों तथा खनिज गणचिह्नों से जुड़े कई कुलों में विभाजित है। प्रत्येक गाँव में एक मुखिया तथा पुश्तैनी पुरोहित होता है। कई पड़ोसी गाँव के लोग मिलकर एक संगठन गठित करते हैं, जिसके मामले एक प्रतिनिधि परिषद द्रारा निर्दिष्ट होते हैं।
शयनागार व्यवस्था
एक गाँव के सामाजिक जीवन की महत्त्वपूर्ण विशेषता अविवाहित पुरुषों का सार्वजनिक शयनागार है। सभी कुंवारे शयनागार में, जो आमतौर पर गाँव के बाहर होता है, एक साथ सोते हैं। महिलायों के लिए एक अलग भवन होता है। शयनागार व्यवस्था युवाओं के समाजीकरण तथा प्रशिक्षण का कार्य करती है।
धर्म
उरांवों के पारंपरिक धर्म में एक सर्वोच्च ईश्वर धर्मेश की उपासना, पूर्वजों की पूजा तथा अनगिनत अभिरक्षक देवताओं तथा आत्माओं की आराधना शामिल है। रस्मों तथा कुछ मान्यताओं पर हिन्दूवाद का प्रभाव है। अधिकांश शिक्षित लोगों सहित कई उरांव ईसाई बन गए हैं।
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