त्रिरत्न: Difference between revisions
Jump to navigation
Jump to search
[unchecked revision] | [unchecked revision] |
(''''त्रिरत्न''' एक संस्कृत शब्द है, जिसका शाब्दिक अर्थ ...' के साथ नया पन्ना बनाया) |
No edit summary |
||
Line 1: | Line 1: | ||
'''त्रिरत्न''' एक [[संस्कृत]] शब्द है, जिसका शाब्दिक अर्थ है- 'तीन रत्न'। [[पालि|पालि भाषा]] में इसे 'ति-रतन' लिखा जाता है। इसे 'त्रिध' या 'त्रिगुण शरण' भी कहते हैं, जो [[बौद्ध धर्म|बौद्ध]] और [[जैन धर्म|जैन]] के तीन घटक हैं। | '''त्रिरत्न''' एक [[संस्कृत]] शब्द है, जिसका शाब्दिक अर्थ है- 'तीन रत्न'। [[पालि|पालि भाषा]] में इसे 'ति-रतन' लिखा जाता है। इसे 'त्रिध' या 'त्रिगुण शरण' भी कहते हैं, जो [[बौद्ध धर्म|बौद्ध]] और [[जैन धर्म|जैन]] के तीन घटक हैं। | ||
*[[बौद्ध धर्म]] में त्रिरत्न '[[बुद्ध]]', 'धर्म' (सिद्धांत या विधि) तथा 'संघ' (मठीय व्यवस्था या धार्मिकों का समुदाय) हैं। बुद्ध के समय से ही | *[[बौद्ध धर्म]] में त्रिरत्न '[[बुद्ध]]', 'धर्म' (सिद्धांत या विधि) तथा 'संघ' (मठीय व्यवस्था या धार्मिकों का समुदाय) हैं। बुद्ध के समय से ही बौद्ध मत में दीक्षा त्रित्व के इन शब्दों की औपचारिक मान्यताओं में निहित है- | ||
<blockquote> | <blockquote> | ||
"मैं बुद्ध की शरण में जाता हूँ, मैं धर्म की शरण में जाता हूँ, मैं संघ की शरण में जाता हूँ।" (बुद्धं शरणम् गच्छामि, धम्मम् धरणम् गच्छामि, संघम् शरणम् गच्छामि)</blockquote> | "मैं बुद्ध की शरण में जाता हूँ, मैं धर्म की शरण में जाता हूँ, मैं संघ की शरण में जाता हूँ।" (बुद्धं शरणम् गच्छामि, धम्मम् धरणम् गच्छामि, संघम् शरणम् गच्छामि)</blockquote> |
Revision as of 08:56, 17 December 2014
त्रिरत्न एक संस्कृत शब्द है, जिसका शाब्दिक अर्थ है- 'तीन रत्न'। पालि भाषा में इसे 'ति-रतन' लिखा जाता है। इसे 'त्रिध' या 'त्रिगुण शरण' भी कहते हैं, जो बौद्ध और जैन के तीन घटक हैं।
- बौद्ध धर्म में त्रिरत्न 'बुद्ध', 'धर्म' (सिद्धांत या विधि) तथा 'संघ' (मठीय व्यवस्था या धार्मिकों का समुदाय) हैं। बुद्ध के समय से ही बौद्ध मत में दीक्षा त्रित्व के इन शब्दों की औपचारिक मान्यताओं में निहित है-
"मैं बुद्ध की शरण में जाता हूँ, मैं धर्म की शरण में जाता हूँ, मैं संघ की शरण में जाता हूँ।" (बुद्धं शरणम् गच्छामि, धम्मम् धरणम् गच्छामि, संघम् शरणम् गच्छामि)
- जैन धर्म में तीन रत्न, जिसे 'रत्नत्रय' भी कहते हैं, को 'सम्यक दर्शन' (सही दर्शन), 'सम्यक ज्ञान' और 'सम्यक चरित्र' के रूप में मान्यता प्राप्त है। इनमें से किसी का भी अन्य दो के बिना अलग से अस्तित्व नहीं हो सकता है तथा आध्यात्मिक मुक्ति या मोक्ष के लिए तीनों आवश्यक हैं। कला में त्रिरत्न को अक्सर त्रिशूल से दर्शाया जाता है।[1]
|
|
|
|
|
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ भारत ज्ञानकोश, खण्ड-2 |लेखक: इंदु रामचंदानी |प्रकाशक: एंसाइक्लोपीडिया ब्रिटैनिका प्राइवेट लिमिटेड, नई दिल्ली और पॉप्युलर प्रकाशन, मुम्बई |संकलन: भारतकोश पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 398 |