थानेदार: Difference between revisions
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*थानेदार के अधीनस्थ सहायक कर्मचारियों का एक छोटा समुदाय होता है और उनके उपयोग के लिये आग्नेय आयुध एवं अन्य साज-सज्जा थाने पर रहती है। | *थानेदार के अधीनस्थ सहायक कर्मचारियों का एक छोटा समुदाय होता है और उनके उपयोग के लिये आग्नेय आयुध एवं अन्य साज-सज्जा थाने पर रहती है। | ||
*उपर्युक्त दायित्वों एवं कर्त्तव्यों का यथा विधि पालन करने के निमित्त भारतीय दंड विधि संहिता एवं अन्य विशेष अधिनियमों के अंतर्गत थानेदार को लोगों को बंदी करने, निवास स्थान अथवा | *उपर्युक्त दायित्वों एवं कर्त्तव्यों का यथा विधि पालन करने के निमित्त 'भारतीय दंड विधि संहिता' एवं अन्य विशेष अधिनियमों के अंतर्गत थानेदार को लोगों को बंदी करने, निवास स्थान अथवा व्यक्तियों की तलाशी लेने, आवश्यकता पड़ने पर शारीरिक बल अथवा शस्त्रादि प्रयोग करने के अनेक अधिकार प्रदान किये गए हैं। | ||
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Revision as of 06:46, 18 February 2015
थानेदार पद का प्रारंभ भारत में प्रथम बार मुग़ल काल में हुआ। उस समय नगर का पुलिस शासन कोतवाल एवं ग्रामीण पुलिस (फ़ौजदार) के अधिकार में होता था। इन दोनों अधिकारियों की सहायता के लिये शिक़दार एवं आमिल होते थे और आवश्यकता होने पर अधिकार क्षेत्र को छोटी-छोटी इकाइयों में बाँटकर प्रत्येक इकाई थानेदार के अधिकार में दे दी जाती थी।[1]
- वर्तमान समय में भारत में पुलिस थाने के अध्यक्ष को थानाध्यक्ष अथवा थानेदार कहते हैं।
- अपने अधिकार के क्षेत्र में शांति व्यवस्था बनाये रखने एवं अपराध निरोध का भार थानेदार पर होता है।
- थानेदार के अधीनस्थ सहायक कर्मचारियों का एक छोटा समुदाय होता है और उनके उपयोग के लिये आग्नेय आयुध एवं अन्य साज-सज्जा थाने पर रहती है।
- उपर्युक्त दायित्वों एवं कर्त्तव्यों का यथा विधि पालन करने के निमित्त 'भारतीय दंड विधि संहिता' एवं अन्य विशेष अधिनियमों के अंतर्गत थानेदार को लोगों को बंदी करने, निवास स्थान अथवा व्यक्तियों की तलाशी लेने, आवश्यकता पड़ने पर शारीरिक बल अथवा शस्त्रादि प्रयोग करने के अनेक अधिकार प्रदान किये गए हैं।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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