फ़ाह्यान द्वारा श्रावस्ती का वर्णन: Difference between revisions

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==फ़ाह्यान का विवरण==
==फ़ाह्यान का विवरण==

Revision as of 11:34, 18 March 2017

[[चित्र:Anathapindika-Stupa.jpg|250px|thumb|अनाथपिंडक स्तूप, श्रावस्ती]] कोसल साम्राज्य का जैसे-जैसे अध:पतन होने लगा, वैसे-वैसे श्रावस्ती की भी समृद्धि घटने लगी। जिस समय चीनी यात्री फ़ाह्यान यहाँ पहुँचा, उस समय वहाँ के नागरिकों की संख्या पहले की समता में कम रह गई थी। अब कुल मिलाकर केवल दो सौ परिवार ही यहाँ रह गये थे। पूर्वाराम, मल्लिकाराम और जेतवन के मठ खंडहर को प्राप्त होने लगे थे। उनकी दशा को देखकर फ़ाह्यान दु:खी हो गया था।

फ़ाह्यान का विवरण

फ़ाह्यान ने लिखा है कि- "श्रावस्ती में जो नागरिक रह गये थे, वे बड़े ही अतिथि-परायण और दानी थे।" ह्वेन त्सांग के आगमन के समय यह नगर उजड़ चुका था। चारों ओर खंडहर ही दिखाई दे रहे थे। फ़ाह्यान साकेत से दक्षिण दिशा की ओर आठ योजन चलकर कोशल[1] जनपद के नगर श्रावस्ती[2] में पहुँचा था। फ़ाह्यान लिखता है कि- "नगर में अधिवासियों की संख्या कम है और वे बिखरे हुए हैं। उसकी यात्रा के दौरान यहाँ पर सब मिलाकर केवल दो सौ परिवार ही रह गए थे।"

वह आगे लिखता है कि- "इस नगर में प्राचीन काल में राजा प्रसेनजित, जो कि गौतम बुद्ध का समकालीन था, राज्य करता था। यहाँ पर महा प्रजापति का प्राचीन विहार विद्यमान है। नगर के दक्षिणी द्वार के बाहर 1200 क़दम की दूरी पर वह स्थान है, जहाँ वैश्याधिपति अनाथपिंडक (सुदत्त) ने एक विहार बनवाया था। जेतवन विहार से उत्तर-पश्चिम चार ली की दूरी पर ‘चक्षुकरणी’ नामक एक वन है, जहाँ जन्मांध लोगों को श्री बुद्धदेव की कृपा से ज्योति प्राप्त हुई थी। जेतवन संघाराम के श्रमण भोजनांतर प्राय: इस वन में बैठकर ध्यान लगाया करते थे।" फ़ाह्यान के अनुसार जेतवन विहार के पूर्वोत्तर 6.7 ली की दूरी पर माता विशाखा द्वारा निर्मित एक विहार था।[3]

फ़ाह्यान पुन: लिखता है कि जेतवन विहार के प्रत्येक कमरे में, जहाँ भिक्षु रहते है, दो-दो दरवाज़े हैं; एक उत्तर और दूसरा पूर्व की ओर। वाटिका उस स्थान पर बनी है जिसे सुदत्त ने सोने की मुहरें बिछाकर ख़रीदा था। बुद्धदेव इस स्थान पर बहुत समय तक रहे और उन्होंने लोगों को धर्मोपदेश दिया। बुद्ध ने जहाँ चक्रमण किया, जिस स्थान पर बैठे, सर्वत्र स्तूप बने हैं, और उनके अलग-अलग नाम है। यहीं पर सुंदरी ने एक मनुष्य का वध करके श्री बुद्धदेव पर दोषारोपण किया था।[4] फ़ाह्यान आगे उस स्थान को इंगित करता है जहाँ पर श्री बुद्धदेव और विधर्मियों के बीच शास्त्रार्थ हुआ था। यहाँ एक 60 फुट ऊँचा विहार बना हुआ था।



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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. इस नाम के दो भारतीय राज्य थे- उत्तरी एवं दक्षिणी कोशल। यह उत्तरी कोशल था जो कि आधुनिक अवध का एक भाग था।
  2. इसका आधुनिक समीकरण सहेत-महेत हैं; द्रष्टव्य, जेम्स लेग्गे, दि ट्रैवेल्स् आफ फ़ाह्यान, (ओरियंटल पब्लिशर्स, दिल्ली, 1972), पृष्ठ 56
  3. जेम्स लेग्गे, दि ट्रेवल्स आफ फ़ाह्यान, पृष्ठ 59
  4. जेम्स लेग्गे, दि ट्रैवेल्स आफ फ़ाह्यान, पृष्ठ 60
  • ऐतिहासिक स्थानावली | विजयेन्द्र कुमार माथुर | वैज्ञानिक तथा तकनीकी शब्दावली आयोग | मानव संसाधन विकास मंत्रालय, भारत सरकार

बाहरी कड़ियाँ

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