मनोहर: Difference between revisions
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*इनके | *इनके श्रृंगारिक दोहे मार्मिक और मधुर हैं पर उनमें कुछ फारसी के छींटे मौजूद हैं। उदाहरणार्थ - | ||
<poem>इंदु बदन, नरगिस नयन, संबुलवारे बार, | <poem>इंदु बदन, नरगिस नयन, संबुलवारे बार, | ||
उर कुंकुम, कोकिल बयन, जेहि लखि लाजत मार। | उर कुंकुम, कोकिल बयन, जेहि लखि लाजत मार। |
Latest revision as of 07:56, 7 November 2017
- मनोहर कवि एक कछवाहे सरदार थे जो अकबर के दरबार में रहा करते थे।
- 'शिवसिंह सरोज' में लिखा है कि ये फारसी और संस्कृत के अच्छे विद्वान् थे और फारसी कविता में अपना उपनाम 'तौसनी' रखते थे।
- इन्होंने 'शतप्रश्नोत्तरी' नामक पुस्तक लिखी है तथा नीति और श्रृंगार रस के बहुत से फुटकर दोहे कहे हैं।
- इनका कविता काल संवत 1620 के आगे माना जा सकता है।
- इनके श्रृंगारिक दोहे मार्मिक और मधुर हैं पर उनमें कुछ फारसी के छींटे मौजूद हैं। उदाहरणार्थ -
इंदु बदन, नरगिस नयन, संबुलवारे बार,
उर कुंकुम, कोकिल बयन, जेहि लखि लाजत मार।
बिथुरे सुथुरे चीकने घने घने घुघुवार,
रसिकन को जंजीर से बाला तेरे बार।
अचरज मोहिं हिंदू तुरुक बादि करत संग्राम,
इक दीपति सों दीपियत काबा काशीधाम।
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