भीमसेन जोशी: Difference between revisions
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देश का सबसे बड़ा नागरिक सम्मान मिलने के बारे में जब उनके पुत्र श्रीनिवास जोशी ने उन्हें बताया तो भीमसेन जोशी ने पुणे में | |||
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कर्नाटक के गड़ग में | [[कर्नाटक]] के 'गड़ग' में [[4 फ़रवरी]], [[1922]] ई. को भीमसेन जोशी का जन्म हुआ था। उनके [[पिता]] 'गुरुराज जोशी' स्थानीय हाई स्कूल के हेडमास्टर और [[कन्नड़ भाषा|कन्नड़]], [[अंग्रेज़ी भाषा|अंग्रेज़ी]] और [[संस्कृत]] के विद्वान थे। उनके चाचा जी.बी जोशी चर्चित नाटककार थे तथा उन्होंने धारवाड़ की मनोहर ग्रन्थमाला को प्रोत्साहित किया था। उनके दादा प्रसिद्ध कीर्तनकार थे। | ||
पाठशाला के रास्ते में 'भूषण ग्रामोफ़ोन शॉप' थी। ग्राहकों को सुनाए जा रहे गानों को सुनने के लिए किशोर भीमसेन खड़े हो जाते थे। एक दिन उन्होंने 'अब्दुल करीम ख़ान' का गाया राग वसंत में फगवा 'बृज देखन को' और 'पिया बिना नहि आवत चैन'- [[ठुमरी]] सुनी। कुछ ही दिनों पश्चात उन्होंने कुंडगोल के समारोह में सवाई गंधर्व को सुना। मात्र ग्यारह वर्षीय भीमसेन के मन में उन्हें गुरु बनाने की इच्छा हुई। पुत्र की संगीत में | ==संगीत में रुचि== | ||
पाठशाला के रास्ते में 'भूषण ग्रामोफ़ोन शॉप' थी। ग्राहकों को सुनाए जा रहे गानों को सुनने के लिए किशोर भीमसेन खड़े हो जाते थे। एक दिन उन्होंने 'अब्दुल करीम ख़ान' का गाया 'राग वसंत' में 'फगवा' 'बृज देखन को' और 'पिया बिना नहि आवत चैन'- [[ठुमरी]] सुनी। कुछ ही दिनों पश्चात उन्होंने कुंडगोल के समारोह में सवाई गंधर्व को सुना। मात्र ग्यारह वर्षीय भीमसेन के मन में उन्हें गुरु बनाने की इच्छा हुई। पुत्र की [[संगीत]] में होने का पता चलने पर गुरुराज ने 'अगसरा चनप्पा' को भीमसेन का संगीत शिक्षक नियुक्त किया। एक बार पंचाक्षरी गवई ने भीमसेन को गाते हुए सुनकर चनप्पा से कहा, "इस लड़के को सिखाना तुम्हारे बस की बात नहीं, इसे किसी बेहतर गुरु के पास भेजो।" | |||
==गुरु की खोज== | ==गुरु की खोज== | ||
एक दिन भीमसेन घर से भाग लिए। उस घटना को याद कर वह विनोद में कहते हैं - 'ऐसा करके उन्होंने परिवार की परम्परा ही निभाई थी।' मंज़िल का पता नहीं था। रेल में बिना टिकट बैठ गये और [[बीजापुर]] तक का सफर किया। टी.टी. को राग भैरव में 'जागो मोहन प्यारे' और 'कौन-कौन गुन गावे' सुना कर मुग्ध कर दिया। साथ के यात्रियों पर भी उनके गायन का जादू चल गया। सहयात्रियों ने रास्ते में खिलाया- पिलाया। अंतत: वह बीजापुर पहुँच गये। गलियों में गा गा कर और लोगों के घरों के बाहर रात गुज़ार कर दो हफ़्ते बीत गये। एक संगीत प्रेमी ने सलाह दी, ‘संगीत सीखना हो तो [[ग्वालियर]] जाओ।’ | एक दिन भीमसेन घर से भाग लिए। उस घटना को याद कर वह विनोद में कहते हैं - 'ऐसा करके उन्होंने परिवार की परम्परा ही निभाई थी।' मंज़िल का पता नहीं था। रेल में बिना टिकट बैठ गये और [[बीजापुर]] तक का सफर किया। टी.टी. को राग भैरव में 'जागो मोहन प्यारे' और 'कौन-कौन गुन गावे' सुना कर मुग्ध कर दिया। साथ के यात्रियों पर भी उनके गायन का जादू चल गया। सहयात्रियों ने रास्ते में खिलाया- पिलाया। अंतत: वह बीजापुर पहुँच गये। गलियों में गा गा कर और लोगों के घरों के बाहर रात गुज़ार कर दो हफ़्ते बीत गये। एक संगीत प्रेमी ने सलाह दी, ‘संगीत सीखना हो तो [[ग्वालियर]] जाओ।’ | ||
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==पहला संगीत प्रदर्शन== | ==पहला संगीत प्रदर्शन== | ||
भीमसेन ने | [[1941]] में भीमसेन जोशी ने 19 साल की उम्र में मंच पर अपनी पहली प्रस्तुति दी। उनका पहला एल्बम 20 [[वर्ष]] की आयु में निकला, जिसमें [[कन्नड़ भाषा|कन्नड़]] और [[हिन्दी]] में कुछ धार्मिक गीत थे। इसके दो साल बाद वह रेडियो कलाकार के तौर पर [[मुंबई]] में काम करने लगे। अपने गुरु की याद में उन्होंने वार्षिक 'सवाई गंधर्व संगीत समारोह' प्रारम्भ किया। पुणे में यह समारोह हर साल [[दिसंबर]] में होता है। भीमसेन के पुत्र भी शास्त्रीय गायक एवं संगीतकार हैं। | ||
====बुलंद आवाज़ तथा संवेदनशीलता==== | ====बुलंद आवाज़ तथा संवेदनशीलता==== | ||
पंडित भीमसेन जोशी को बुलंद आवाज़, सांसों पर बेजोड़ नियंत्रण, [[संगीत]] के प्रति संवेदनशीलता, जुनून और समझ के लिए जाना जाता था। उन्होंने 'सुधा कल्याण', 'मियां की तोड़ी', 'भीमपलासी', 'दरबारी', 'मुल्तानी' और 'रामकली' जैसे अनगिनत [[राग]] छेड़ संगीत के हर मंच पर संगीत प्रमियों का दिल जीता। पंडित मोहनदेव ने कहा, "उनकी गायिकी पर केसरबाई केरकर, उस्ताद आमिर ख़ान, बेगम बेख़्तर का गहरा प्रभाव था। वह अपनी गायिकी में सरगम और तिहाईयों का जमकर प्रयोग करते थे। उन्होंने [[हिन्दी]], कन्नड़ और मराठी में ढेरों भजन गाए थे। | पंडित भीमसेन जोशी को बुलंद आवाज़, सांसों पर बेजोड़ नियंत्रण, [[संगीत]] के प्रति संवेदनशीलता, जुनून और समझ के लिए जाना जाता था। उन्होंने 'सुधा कल्याण', 'मियां की तोड़ी', 'भीमपलासी', 'दरबारी', 'मुल्तानी' और 'रामकली' जैसे अनगिनत [[राग]] छेड़ संगीत के हर मंच पर संगीत प्रमियों का दिल जीता। पंडित मोहनदेव ने कहा, "उनकी गायिकी पर केसरबाई केरकर, उस्ताद आमिर ख़ान, बेगम बेख़्तर का गहरा प्रभाव था। वह अपनी गायिकी में सरगम और तिहाईयों का जमकर प्रयोग करते थे। उन्होंने [[हिन्दी]], कन्नड़ और मराठी में ढेरों भजन गाए थे। | ||
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*भीमसेन जोशी को [[4 नवम्बर]], [[2008]] को देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान, [[भारत रत्न]] पुरस्कार दिया गया। | *भीमसेन जोशी को [[4 नवम्बर]], [[2008]] को देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान, [[भारत रत्न]] पुरस्कार दिया गया। | ||
*उन्हें [[संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार]] से भी सम्मानित किया जा चुका है। | *उन्हें [[संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार]] से भी सम्मानित किया जा चुका है। | ||
इनसे पहले [[1998]] में [[सुब्बुलक्ष्मी]] को शास्त्रीय गायन के लिए यह पुरस्कार मिला था। [[1954]] में भारत रत्न की शुरुआत होने के बाद से कुल 41 प्रमुख हस्तियों को यह पुरस्कार मिल चुका है। | |||
==अविस्मरणीय संगीत== | ==अविस्मरणीय संगीत== | ||
पंडित भीमसेन जोशी को '''मिले सुर मेरा तुम्हारा''' के लिए याद किया जाता है, जिसमें उनके साथ बालमुरली कृष्णा और [[लता मंगेशकर]] ने जुगलबंदी की है। [[1985]] से ही वे ‘मिले सुर मेरा तुम्हारा’ के जरिये घर-घर में पहचाने जाने लगे थे। तब से लेकर आज भी इस गाने के बोल और धुन पंडित जी की पहचान बने हुए हैं। जोशी जी को '[[पद्म विभूषण]]', '[[पद्म भूषण]]' और '[[पद्म श्री]]' सहित कई पुरस्कार मिल चुके हैं। | पंडित भीमसेन जोशी को '''मिले सुर मेरा तुम्हारा''' के लिए याद किया जाता है, जिसमें उनके साथ बालमुरली कृष्णा और [[लता मंगेशकर]] ने जुगलबंदी की है। [[1985]] से ही वे ‘मिले सुर मेरा तुम्हारा’ के जरिये घर-घर में पहचाने जाने लगे थे। तब से लेकर आज भी इस गाने के बोल और धुन पंडित जी की पहचान बने हुए हैं। जोशी जी को '[[पद्म विभूषण]]', '[[पद्म भूषण]]' और '[[पद्म श्री]]' सहित कई पुरस्कार मिल चुके हैं। | ||
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पंडित भीमसेन जोशी ने कई फ़िल्मों के लिए भी गाने गाए। उन्होंने ‘तानसेन’, ‘सुर संगम’, ‘बसंत बहार’ और ‘अनकही’ जैसी कई फ़िल्मों के लिए गायिकी की। पंडित जी शराब पीने के शौकीन थे, लेकिन संगीत कॅरियर पर इसका प्रभाव पड़ने पर [[1979]] में उन्होंने शराब का पूरी तरह से त्याग कर दिया।<ref name="aa">{{cite web |url= http://www.samaylive.com/entertainment-news-in-hindi/bollywod/140265/indian-classical-music-twentieth-century-new-direction-and-dimen.html|title= बीसवीं सदी के महान शास्त्रीय गायक पंडित भीमसेन जोशी|accessmonthday= 20 जनवरी|accessyear= 2015|last= |first= |authorlink= |format= |publisher= सहारा समय|language= हिन्दी}}</ref> | |||
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विभिन्न घरानों के गुणों को मिलाकर वह अद्भुत गायन प्रस्तुत करते हैं। पंडित जोशी [[किराना घराना|किराना घराने]] के गायक हैं। उन्हें उनके [[ख़्याल]] शैली और भजन गायन के विशेष रूप से जाना जाता है। | विभिन्न घरानों के गुणों को मिलाकर वह अद्भुत गायन प्रस्तुत करते हैं। पंडित जोशी [[किराना घराना|किराना घराने]] के गायक हैं। उन्हें उनके [[ख़्याल]] शैली और भजन गायन के विशेष रूप से जाना जाता है। | ||
==निधन== | |||
शास्त्रीय गायिकी के लिए अपना महत्त्वपूर्ण योगदान देने वाले पंडित भीमसेन जोशी का निधन [[24 जनवरी]], [[2011]] को [[पुणे]], [[महाराष्ट्र]] में हुआ। पंडित के विषय में कई लोगों ने अपने विचार व्यक्त किये हैं, जैसे- | |||
*‘हिन्दुस्तानी म्यूजिक टुडे’ किताब में लेखक दीपक एस राजा ने भीमसेन जोशी के लिए लिखा है कि "जोशी 20वीं सदी के सबसे महान शास्त्रीय गायकों में से एक थे। उन्होंने हिन्दी, कन्नड़ और मराठी में ख़्याल, ठुमरी और भजन गायन से तीन पीढ़ियों को आनंदित किया। उनकी अपनी अलग गायन [[शैली]] थी। | |||
*राजा के अनुसार, "जोशी ने सवाई गंधर्व से गायिकी का प्रशिक्षण लिया था। उनके संगीत कॅरियर में एक से बढ़कर एक बेजोड़ उपलब्धियां शामिल हैं। जोशी जी 'ग्रामोफोन कंपनी ऑफ़ इंडिया' (एचएमवी) का 'प्लैटिनम पुरस्कार' पाने वाले एकमात्र भारतीय शास्त्रीय संगीत गायक थे।<ref name="aa"/> | |||
==समाचार== | ==समाचार== |
Revision as of 13:20, 20 January 2015
भीमसेन जोशी
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पूरा नाम | पंडित भीमसेन गुरुराज जोशी |
जन्म | 4 फ़रवरी, 1922 |
जन्म भूमि | गडग, कर्नाटक |
मृत्यु | 24 जनवरी, 2011 |
मृत्यु स्थान | पुणे, महाराष्ट्र |
संतान | श्रीनिवास जोशी (पुत्र) |
कर्म-क्षेत्र | शास्त्रीय गायन |
मुख्य रचनाएँ | मिले सुर मेरा तुम्हारा |
विषय | शास्त्रीय संगीत |
पुरस्कार-उपाधि | भारत रत्न, पद्म विभूषण, संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार, पद्म भूषण, पद्म श्री |
प्रसिद्धि | हिन्दुस्तानी शास्त्रीय गायक |
नागरिकता | भारतीय |
अन्य जानकारी | पंडित जोशी किराना घराने के गायक हैं। उन्हें उनके ख़्याल शैली और भजन गायन के विशेष रूप से जाना जाता है। |
पंडित भीमसेन जोशी (जन्म- 4 फ़रवरी, 1922, गड़ग, कर्नाटक; मृत्यु- 24 जनवरी, 2011, पुणे, महाराष्ट्र) किराना घराने के महत्त्वपूर्ण शास्त्रीय गायक थे। उन्होंने 19 साल की उम्र से गायन शुरू किया था और वे सात दशकों तक शास्त्रीय गायन करते रहे। भीमसेन जोशी ने कर्नाटक को गौरवान्वित किया है। भारतीय संगीत के क्षेत्र में इससे पहले एम. एस. सुब्बुलक्ष्मी, उस्ताद बिस्मिल्ला ख़ान, पंडित रविशंकर और लता मंगेशकर को 'भारत रत्न' से सम्मानित किया जा चुका है। उनकी योग्यता का आधार उनकी महान संगीत साधना है। देश-विदेश में लोकप्रिय हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत के महान गायकों में उनकी गिनती होती थी। अपने एकल गायन से हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत में नए युग का सूत्रपात करने वाले पंडित भीमसेन जोशी कला और संस्कृति की दुनिया के छठे व्यक्ति थे, जिन्हें देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान 'भारत रत्न' से सम्मानित किया गया था। 'किराना घराने' के भीमसेन गुरुराज जोशी ने गायकी के अपने विभिन्न तरीकों से एक अद्भुत गायन की रचना की। देश का सबसे बड़ा नागरिक सम्मान मिलने के बारे में जब उनके पुत्र श्रीनिवास जोशी ने उन्हें बताया था तो भीमसेन जोशी ने पुणे में कहा था कि-
"मैं उन सभी हिंदुस्तानी शास्त्रीय गायकों की तरफ से इस सम्मान को स्वीकार करता हूं जिन्होंने अपनी ज़िंदगी संगीत को समर्पित कर दी।"
जन्म
कर्नाटक के 'गड़ग' में 4 फ़रवरी, 1922 ई. को भीमसेन जोशी का जन्म हुआ था। उनके पिता 'गुरुराज जोशी' स्थानीय हाई स्कूल के हेडमास्टर और कन्नड़, अंग्रेज़ी और संस्कृत के विद्वान थे। उनके चाचा जी.बी जोशी चर्चित नाटककार थे तथा उन्होंने धारवाड़ की मनोहर ग्रन्थमाला को प्रोत्साहित किया था। उनके दादा प्रसिद्ध कीर्तनकार थे।
संगीत में रुचि
पाठशाला के रास्ते में 'भूषण ग्रामोफ़ोन शॉप' थी। ग्राहकों को सुनाए जा रहे गानों को सुनने के लिए किशोर भीमसेन खड़े हो जाते थे। एक दिन उन्होंने 'अब्दुल करीम ख़ान' का गाया 'राग वसंत' में 'फगवा' 'बृज देखन को' और 'पिया बिना नहि आवत चैन'- ठुमरी सुनी। कुछ ही दिनों पश्चात उन्होंने कुंडगोल के समारोह में सवाई गंधर्व को सुना। मात्र ग्यारह वर्षीय भीमसेन के मन में उन्हें गुरु बनाने की इच्छा हुई। पुत्र की संगीत में होने का पता चलने पर गुरुराज ने 'अगसरा चनप्पा' को भीमसेन का संगीत शिक्षक नियुक्त किया। एक बार पंचाक्षरी गवई ने भीमसेन को गाते हुए सुनकर चनप्पा से कहा, "इस लड़के को सिखाना तुम्हारे बस की बात नहीं, इसे किसी बेहतर गुरु के पास भेजो।"
गुरु की खोज
एक दिन भीमसेन घर से भाग लिए। उस घटना को याद कर वह विनोद में कहते हैं - 'ऐसा करके उन्होंने परिवार की परम्परा ही निभाई थी।' मंज़िल का पता नहीं था। रेल में बिना टिकट बैठ गये और बीजापुर तक का सफर किया। टी.टी. को राग भैरव में 'जागो मोहन प्यारे' और 'कौन-कौन गुन गावे' सुना कर मुग्ध कर दिया। साथ के यात्रियों पर भी उनके गायन का जादू चल गया। सहयात्रियों ने रास्ते में खिलाया- पिलाया। अंतत: वह बीजापुर पहुँच गये। गलियों में गा गा कर और लोगों के घरों के बाहर रात गुज़ार कर दो हफ़्ते बीत गये। एक संगीत प्रेमी ने सलाह दी, ‘संगीत सीखना हो तो ग्वालियर जाओ।’ thumb|left|भीमसेन जोशी उन्हें पता नहीं था ग्वालियर कहाँ है। वह एक अन्य ट्रेन पर सवार हो गये। इस बार पुणे पहुँच गये। उन्हें नहीं पता था कि पुणे उनका स्थायी निवास स्थान बनेगा। रेल गाड़ियाँ बदलते और रेलकर्मियों से बचते-बचाते भीमसेन आख़िर ग्वालियर पहुँच गये। वहाँ के 'माधव संगीत विद्यालय' में प्रवेश ले लिया। किंतु भीमसेन को किसी कक्षा की नहीं, एक गुरु की ज़रूरत थी। भीमसेन तीन साल तक गुरु की खोज में भटकते रहे। फिर उन्हें 'करवल्लभ संगीत सम्मेलन' में विनायकराव पटवर्धन मिले। विनायकराव को आश्चर्य हुआ कि सवाई गन्धर्व उसके घर के बहुत पास रहते हैं। सवाई गन्धर्व ने भीमसेन को सुनकर कहा, "मैं इसे सिखाऊँगा यदि यह अब तक का सीखा हुआ सब भुला सके।” डेढ़ साल तक उन्होंने भीमसेन को कुछ नहीं सिखाया। एक बार भीमसेन के पिता उनकी प्रगति का हाल जानने आए, उन्हें आश्चर्य हुआ कि वह अपने गुरु के घर के लिए पानी से भरे बड़े बड़े घड़े ढो रहे हैं। भीमसेन ने अपने पिता से कहा-"मैं यहाँ खुश हूँ। आप चिन्ता न करें।"
पहला संगीत प्रदर्शन
1941 में भीमसेन जोशी ने 19 साल की उम्र में मंच पर अपनी पहली प्रस्तुति दी। उनका पहला एल्बम 20 वर्ष की आयु में निकला, जिसमें कन्नड़ और हिन्दी में कुछ धार्मिक गीत थे। इसके दो साल बाद वह रेडियो कलाकार के तौर पर मुंबई में काम करने लगे। अपने गुरु की याद में उन्होंने वार्षिक 'सवाई गंधर्व संगीत समारोह' प्रारम्भ किया। पुणे में यह समारोह हर साल दिसंबर में होता है। भीमसेन के पुत्र भी शास्त्रीय गायक एवं संगीतकार हैं।
बुलंद आवाज़ तथा संवेदनशीलता
पंडित भीमसेन जोशी को बुलंद आवाज़, सांसों पर बेजोड़ नियंत्रण, संगीत के प्रति संवेदनशीलता, जुनून और समझ के लिए जाना जाता था। उन्होंने 'सुधा कल्याण', 'मियां की तोड़ी', 'भीमपलासी', 'दरबारी', 'मुल्तानी' और 'रामकली' जैसे अनगिनत राग छेड़ संगीत के हर मंच पर संगीत प्रमियों का दिल जीता। पंडित मोहनदेव ने कहा, "उनकी गायिकी पर केसरबाई केरकर, उस्ताद आमिर ख़ान, बेगम बेख़्तर का गहरा प्रभाव था। वह अपनी गायिकी में सरगम और तिहाईयों का जमकर प्रयोग करते थे। उन्होंने हिन्दी, कन्नड़ और मराठी में ढेरों भजन गाए थे।
भारत रत्न
कर्नाटक में जन्मे भीमसेन जोशी अंतिम 50 से अधिक वर्षों से पुणे में रहे। कला और संस्कृति के क्षेत्र से संबंधित उनसे पहले सत्यजीत रे, कर्नाटक संगीत की कोकिला एम.एस.सुब्बालक्ष्मी, पंडित रविशंकर, लता मंगेशकर और उस्ताद बिस्मिल्ला ख़ाँ को भारत रत्न मिल चुका है। भीमसेन दूसरे शास्त्रीय गायक हैं जिन्हें भारत रत्न मिला है।
- भीमसेन जोशी को 1972 में पद्म श्री से सम्मानित किया जा चुका है।
- भारत सरकार द्वारा कला के क्षेत्र में सन् 1985 में पद्म भूषण पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।
- पंडित जोशी को सन् 1999 में पद्म विभूषण से सम्मानित किया जा चुका है।
- भीमसेन जोशी को 4 नवम्बर, 2008 को देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान, भारत रत्न पुरस्कार दिया गया।
- उन्हें संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार से भी सम्मानित किया जा चुका है।
इनसे पहले 1998 में सुब्बुलक्ष्मी को शास्त्रीय गायन के लिए यह पुरस्कार मिला था। 1954 में भारत रत्न की शुरुआत होने के बाद से कुल 41 प्रमुख हस्तियों को यह पुरस्कार मिल चुका है।
अविस्मरणीय संगीत
पंडित भीमसेन जोशी को मिले सुर मेरा तुम्हारा के लिए याद किया जाता है, जिसमें उनके साथ बालमुरली कृष्णा और लता मंगेशकर ने जुगलबंदी की है। 1985 से ही वे ‘मिले सुर मेरा तुम्हारा’ के जरिये घर-घर में पहचाने जाने लगे थे। तब से लेकर आज भी इस गाने के बोल और धुन पंडित जी की पहचान बने हुए हैं। जोशी जी को 'पद्म विभूषण', 'पद्म भूषण' और 'पद्म श्री' सहित कई पुरस्कार मिल चुके हैं।
फ़िल्मों के लिए गायन
पंडित भीमसेन जोशी ने कई फ़िल्मों के लिए भी गाने गाए। उन्होंने ‘तानसेन’, ‘सुर संगम’, ‘बसंत बहार’ और ‘अनकही’ जैसी कई फ़िल्मों के लिए गायिकी की। पंडित जी शराब पीने के शौकीन थे, लेकिन संगीत कॅरियर पर इसका प्रभाव पड़ने पर 1979 में उन्होंने शराब का पूरी तरह से त्याग कर दिया।[1]
किराना घराना
विभिन्न घरानों के गुणों को मिलाकर वह अद्भुत गायन प्रस्तुत करते हैं। पंडित जोशी किराना घराने के गायक हैं। उन्हें उनके ख़्याल शैली और भजन गायन के विशेष रूप से जाना जाता है।
निधन
शास्त्रीय गायिकी के लिए अपना महत्त्वपूर्ण योगदान देने वाले पंडित भीमसेन जोशी का निधन 24 जनवरी, 2011 को पुणे, महाराष्ट्र में हुआ। पंडित के विषय में कई लोगों ने अपने विचार व्यक्त किये हैं, जैसे-
- ‘हिन्दुस्तानी म्यूजिक टुडे’ किताब में लेखक दीपक एस राजा ने भीमसेन जोशी के लिए लिखा है कि "जोशी 20वीं सदी के सबसे महान शास्त्रीय गायकों में से एक थे। उन्होंने हिन्दी, कन्नड़ और मराठी में ख़्याल, ठुमरी और भजन गायन से तीन पीढ़ियों को आनंदित किया। उनकी अपनी अलग गायन शैली थी।
- राजा के अनुसार, "जोशी ने सवाई गंधर्व से गायिकी का प्रशिक्षण लिया था। उनके संगीत कॅरियर में एक से बढ़कर एक बेजोड़ उपलब्धियां शामिल हैं। जोशी जी 'ग्रामोफोन कंपनी ऑफ़ इंडिया' (एचएमवी) का 'प्लैटिनम पुरस्कार' पाने वाले एकमात्र भारतीय शास्त्रीय संगीत गायक थे।[1]
समाचार
सोमवार,24 जनवरी, 2011
thumb|पं. भीमसेन जोशी
Pt. Bhimsen Joshi
- भारत रत्न सम्मानित शास्त्रीय गायक पंडित भीमसेन जोशी जी का निधन
देश के महान शास्त्रीय गायक और भारत रत्न से सम्मानित पंडित भीमसेन जोशी जी का सोमवार सुबह पुणे के एक अस्पातल में निधन हो गया। वह 89 वर्ष के थे। शास्त्रीय संगीत को नई ऊंचाइयों पर ले जाने वाले पं. जोशी जी की आवाज़ अब हमेशा के लिए खामोश हो गई है। जोशी जी पिछले दो साल से बीमार थे।
समाचार को विभिन्न स्रोतों पर पढ़ें
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ 1.0 1.1 बीसवीं सदी के महान शास्त्रीय गायक पंडित भीमसेन जोशी (हिन्दी) सहारा समय। अभिगमन तिथि: 20 जनवरी, 2015।
बाहरी कड़ियाँ
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