त्रागा: Difference between revisions
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'''त्रागा''' भाटों तथा चारणों की एक जाति है। एक आश्चर्यजनक तथ्य भाट एवं चारण जातियों के विषय में यह है कि वे अवध्य समझे गये हैं। इस विश्वास के पीछे उनके स्वभावत: दूत एवं कीर्तिगायक होने का गुण है।<ref>{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=हिन्दू धर्मकोश|लेखक=डॉ. राजबली पाण्डेय|अनुवादक= |आलोचक= |प्रकाशक=उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान |संकलन= |संपादन= |पृष्ठ संख्या=304|url=}}</ref> | '''त्रागा''' भाटों तथा [[चारण|चारणों]] की एक जाति है। एक आश्चर्यजनक तथ्य भाट एवं चारण जातियों के विषय में यह है कि वे अवध्य समझे गये हैं। इस विश्वास के पीछे उनके स्वभावत: दूत एवं कीर्तिगायक होने का गुण है।<ref>{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=हिन्दू धर्मकोश|लेखक=डॉ. राजबली पाण्डेय|अनुवादक= |आलोचक= |प्रकाशक=उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान |संकलन= |संपादन= |पृष्ठ संख्या=304|url=}}</ref> | ||
*[[पश्चिमी भारत]] में 'त्रागा' की कहानी विशेष तौर पर सुनी गयी है। | *[[पश्चिमी भारत]] में 'त्रागा' की कहानी विशेष तौर पर सुनी गयी है। | ||
*'त्रागा' आत्महत्या या आत्मघात को कहते हैं, जिसे इस जाति वाले (भाट या चारण) किसी कोश की रक्षा या अन्य महत्त्वपूर्ण कार्यरत रहते समय, आक्रमण किए जाने पर किया करते थे। | *'त्रागा' आत्महत्या या आत्मघात को कहते हैं, जिसे इस जाति वाले (भाट या [[चारण]]) किसी कोश की रक्षा या अन्य महत्त्वपूर्ण कार्यरत रहते समय, आक्रमण किए जाने पर किया करते थे। | ||
*[[काठियावाड़]] के सभी भागों में गाँवों के बाहर पालियाँ दृष्टिगोचर होती हैं। ये रक्षक पत्थर हैं, जो उपर्युक्त जाति के उन पुरुष एवं स्त्रियों के सम्मान में स्थापित हैं, जिन्होंने पशुओं आदि के रक्षार्थ त्रागा किया था। उन व्यक्तियों एवं घटनां का विवरण भी इन पत्थरों पर अभिलिखित है। | *[[काठियावाड़]] के सभी भागों में गाँवों के बाहर पालियाँ दृष्टिगोचर होती हैं। ये रक्षक पत्थर हैं, जो उपर्युक्त जाति के उन पुरुष एवं स्त्रियों के सम्मान में स्थापित हैं, जिन्होंने पशुओं आदि के रक्षार्थ त्रागा किया था। उन व्यक्तियों एवं घटनां का विवरण भी इन पत्थरों पर अभिलिखित है। | ||
Latest revision as of 09:11, 22 July 2014
त्रागा भाटों तथा चारणों की एक जाति है। एक आश्चर्यजनक तथ्य भाट एवं चारण जातियों के विषय में यह है कि वे अवध्य समझे गये हैं। इस विश्वास के पीछे उनके स्वभावत: दूत एवं कीर्तिगायक होने का गुण है।[1]
- पश्चिमी भारत में 'त्रागा' की कहानी विशेष तौर पर सुनी गयी है।
- 'त्रागा' आत्महत्या या आत्मघात को कहते हैं, जिसे इस जाति वाले (भाट या चारण) किसी कोश की रक्षा या अन्य महत्त्वपूर्ण कार्यरत रहते समय, आक्रमण किए जाने पर किया करते थे।
- काठियावाड़ के सभी भागों में गाँवों के बाहर पालियाँ दृष्टिगोचर होती हैं। ये रक्षक पत्थर हैं, जो उपर्युक्त जाति के उन पुरुष एवं स्त्रियों के सम्मान में स्थापित हैं, जिन्होंने पशुओं आदि के रक्षार्थ त्रागा किया था। उन व्यक्तियों एवं घटनां का विवरण भी इन पत्थरों पर अभिलिखित है।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ हिन्दू धर्मकोश |लेखक: डॉ. राजबली पाण्डेय |प्रकाशक: उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान |पृष्ठ संख्या: 304 |