यमलार्जुन मोक्ष: Difference between revisions
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Latest revision as of 11:35, 15 July 2015
[[चित्र:Deliverance-of-Yamlarjun.jpg|thumb|250px|श्रीकृष्ण द्वारा यमलार्जुन का उद्धार]] अपनी बाल्यावस्था में भगवान श्रीकृष्ण बड़े नटखट और शरारती थे। उनकी प्रतिदिनों की शरारतों से माता यशोदा बहुत तंग आ गई थीं। लेकिन इन सभी शरारतों के साथ ही बालक कृष्ण का नटखटपन सभी को भाता भी था।
कथा
एक बार यशोदा माता ने मक्खन निकाला और उसे रखकर किसी कार्य से रसोई के अंदर गईं। इस अवसर का लाभ उठाकर कृष्ण ने चुपचाप मक्खन उठाया और थोड़ा बहुत स्वयं खाकर बाकी वानरों को खिलाने लगे। जब माता यशोदा वापस आईं तो देखा मक्खन गायब है। वे समझ गईं कि यह शरारत कृष्ण की ही है। तभी वानरों को मक्खन खिलाते कृष्ण दिखाई दिए। यह देख माता ने कृष्ण को बहुत डाँटा और फिर उन्हें बाँधने के लिए रस्सी उठाई। परंतु वे जिस रस्सी से भी कृष्ण को बाँधने का प्रयास करतीं, वह छोटी पड़ जाती। जब कृष्ण ने देखा कि माँ अपने कार्य में सफल नहीं हो पा रही हैं तो उन्होंने अपनी माया से छोटी रस्सी को बड़ा कर दिया। तब यशोदा ने उन्हें ऊखल से बाँध दिया और स्वयं घर के अन्य कार्यों में लग गईं।
यमलार्जुन वृक्ष को धराशायी करना
माता द्वारा रस्सी से बंधने के बाद कृष्ण भारी ऊखल को खींचते हुए बाहर ले गए। बाहर आस-पास दो पेड़ लगे हुए थे। उन्हें 'यमलार्जुन' के नाम से जाना जाता था। कृष्ण घूमते-घूमते उन दोनों पेड़ों के बीच में से निकले। वे स्वयं तो निकल गए, लेकिन ऊखल बीच में फँस गया। उन्होंने जोर से ऊखल को खींचा तो वे पेड़ भयंकर आवाज़ करते हुए धराशायी हो गए। पेड़ों के गरते ही उनमें से दो देव निकले। वे धन के देवता कुबेर के पुत्र थे। उनका नाम 'मणिग्रीव' और 'नीलकूबर' था।[1]
नारद द्वारा कुबेर पुत्रों को शाप
एक बार उद्दण्डता के कारण देवर्षि नारद ने मणिग्रीव और नीलकूबर को वृक्ष बन जाने का शाप दे दिया था। जब कुबेर-पुत्रों को अपने अपराध का आभास हुआ तो वे उनसे क्षमा यायना करने लगे। तब नारदजी ने कहा था कि द्वापर युग में भगवान श्रीकृष्ण उनका उद्धार करेंगे। इस प्रकार शाप के कारण वे दोनों वृक्ष बन गए थे। किंतु उन्हें अपना पिछला जीवन याद था। इसलिए वे दोनों निरंतर भगवान श्रीकृष्ण का स्मरण करते रहते थे
यमलार्जुन उद्धार
श्रीकृष्ण को नारदजी द्वारा कुबेर पुत्रों को दिए गए शाप के विषय में पता था। इसलिए उन्होंने कुबेर पुत्रों का उद्धार कर उन्हें वापस उनके लोक वापस भेज दिया। इस प्रकार लीलाधारी भगवान श्रीकृष्ण ने अपने भक्तों का उद्धार किया।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ यमलार्जुन पेड़ की कथा (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 01 अप्रैल, 2014।
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