अम्बष्ठ: Difference between revisions
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'''अम्बष्ठ गण''' (तृतीय-चतुर्थ शताब्दी ईसा पूर्व) चिनाब और सिन्धु नदी के आस-पास रहते थे। इनका निवास विशेष रूप से [[भारत]] का पश्चिमोत्तर क्षेत्र था। [[सिकंदर]] ने जब पंजाब पर आक्रमण किया तब अम्बष्ठ गण अपना क़बाइली जीवन सुचारु रूप से जी रहे थे। इनका, चिनाब और सिन्धु के उत्तरी हिस्से में रहने का उल्लेख सिकंदर के आक्रमण के समय का ही मिलता है। यह वह स्थान था जो इन नदियों के संगम स्थल से उत्तर में पड़ता था। | |||
==उल्लेख== | |||
*[[ऐतरेय ब्राह्मण]] [[महाभारत]] | इनका उल्लेख 'अम्बप्टनोई' भी मिलता है किन्तु यह नाम यूनानी इतिहासकारों का दिया हुआ है। यूनानियों द्वारा संस्कृत भाषा के अम्बष्ठ को ज्यों का त्यों लिख-बोल न पाने के कारण यह नाम बदल गया। संस्कृत भाषा के जिन ग्रंथों में इनका उल्लेख मिलता है उनमें प्रमुख हैं- | ||
*[[ऐतरेय ब्राह्मण]] | |||
*[[महाभारत]] | |||
*बार्हस्पत्य अर्थशास्त्र | |||
==जीविका== | |||
अम्बष्ठ गण प्रारम्भिक समय में अपनी जीविका के युद्धों पर निर्भर थे। इसलिए इन्हें एक युद्ध-प्रिय जाति माना गया है। कालांतर में इन्होंने धार्मिक अनुष्ठानों को अपनाया। धीरे-धीरे खेती को अपना कर इन्होंने स्वयं को कृषक जाति के रूप में भी पारंगत कर लिया। वैद्यों के उल्लेख भी अबष्ठों के पाए जाते हैं। | |||
अम्बष्ठों ने जिस प्रकार समय-समय पर अपनी जीवन शैली को बदला वह बहुत विचित्र लगता है। | |||
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==टीका टिप्पणी और संदर्भ== | ==टीका टिप्पणी और संदर्भ== |
Revision as of 12:55, 21 May 2012
अम्बष्ठ गण (तृतीय-चतुर्थ शताब्दी ईसा पूर्व) चिनाब और सिन्धु नदी के आस-पास रहते थे। इनका निवास विशेष रूप से भारत का पश्चिमोत्तर क्षेत्र था। सिकंदर ने जब पंजाब पर आक्रमण किया तब अम्बष्ठ गण अपना क़बाइली जीवन सुचारु रूप से जी रहे थे। इनका, चिनाब और सिन्धु के उत्तरी हिस्से में रहने का उल्लेख सिकंदर के आक्रमण के समय का ही मिलता है। यह वह स्थान था जो इन नदियों के संगम स्थल से उत्तर में पड़ता था।
उल्लेख
इनका उल्लेख 'अम्बप्टनोई' भी मिलता है किन्तु यह नाम यूनानी इतिहासकारों का दिया हुआ है। यूनानियों द्वारा संस्कृत भाषा के अम्बष्ठ को ज्यों का त्यों लिख-बोल न पाने के कारण यह नाम बदल गया। संस्कृत भाषा के जिन ग्रंथों में इनका उल्लेख मिलता है उनमें प्रमुख हैं-
- ऐतरेय ब्राह्मण
- महाभारत
- बार्हस्पत्य अर्थशास्त्र
जीविका
अम्बष्ठ गण प्रारम्भिक समय में अपनी जीविका के युद्धों पर निर्भर थे। इसलिए इन्हें एक युद्ध-प्रिय जाति माना गया है। कालांतर में इन्होंने धार्मिक अनुष्ठानों को अपनाया। धीरे-धीरे खेती को अपना कर इन्होंने स्वयं को कृषक जाति के रूप में भी पारंगत कर लिया। वैद्यों के उल्लेख भी अबष्ठों के पाए जाते हैं।
अम्बष्ठों ने जिस प्रकार समय-समय पर अपनी जीवन शैली को बदला वह बहुत विचित्र लगता है।