प्रांगण:मुखपृष्ठ/कला: Difference between revisions
गोविन्द राम (talk | contribs) No edit summary |
गोविन्द राम (talk | contribs) No edit summary |
||
Line 14: | Line 14: | ||
|- | |- | ||
| class="headbg12" style="border:1px solid #f0b67d;padding:10px;width:50%; -moz-border-radius: 6px;-webkit-border-radius: 6px; border-radius: 6px; " valign="top" | <div class="headbg11" style="padding-left:8px; background:#fbe1c7; border: thin solid #f0b67d">'''विशेष आलेख'''</div> | | class="headbg12" style="border:1px solid #f0b67d;padding:10px;width:50%; -moz-border-radius: 6px;-webkit-border-radius: 6px; border-radius: 6px; " valign="top" | <div class="headbg11" style="padding-left:8px; background:#fbe1c7; border: thin solid #f0b67d">'''विशेष आलेख'''</div> | ||
<div align="center" style="color:#34341B;">'''[[ | <div align="center" style="color:#34341B;">'''[[मेवाड़ की चित्रकला]]'''</div> | ||
[[चित्र: | [[चित्र:Mewar-painting.jpg|right|120px|शिकार के लिए जाते हुए मेवाड़ के प्रधानमंत्री अमीर चंद बडवा|link=मेवाड़ की चित्रकला]] | ||
<poem> | |||
'''[[मेवाड़ की चित्रकला]]''' काफ़ी लम्बे समय से ही लोगों का ध्यान आकर्षित करती रही है। यहाँ चित्रांकन की अपनी एक विशिष्ट परंपरा है, जिसे यहाँ के चित्रकार पीढ़ियों से अपनाते रहे हैं। 'चितारे' अपने अनुभवों एवं सुविधाओं के अनुसार चित्रण के कई नए तरीक़े भी खोजते रहे। रोचक तथ्य यह है कि यहाँ के कई स्थानीय चित्रण केन्द्रों में वे परंपरागत तकनीक आज भी जीवित है। तकनीकों का प्रादुर्भाव पश्चिमी भारतीय चित्रण पद्धति के अनुरूप ही [[ताड़पत्र (लेखन सामग्री)|ताड़पत्रों]] के चित्रण कार्यों में ही उपलब्ध होता है। यशोधरा द्वारा उल्लेखित षडांग के संदर्भ एवं 'समराइच्चकहा' एवं 'कुवलयमाला' कहा जैसे ग्रंथों में 'दट्ठुम' शब्द का प्रयोग चित्र की समीक्षा हेतु हुआ है, जिससे इस क्षेत्र की उत्कृष्ट परंपरा के प्रमाण मिलते हैं। ये चित्र मूल्यांकन की कसौटी के रूप में प्रमुख मानक तथा समीक्षा के आधार थे। विकास के इस सतत् प्रवाह में विष्णुधर्मोत्तर पुराण, समरांगण सूत्रधार एवं चित्र लक्षण जैसे अन्य ग्रंथों में वर्णित चित्रकर्म के सिद्धांत का भी पालन किया गया है। परंपरागत कला सिद्धांतों के अनुरूप ही शास्त्रीय विवेचन में आये आदर्शवाद एवं यथार्थवाद का निर्वाह हुआ है। '''[[मेवाड़ की चित्रकला|.... और पढ़ें]]''' | |||
</poem> | |||
|- | |- | ||
| class="headbg22" style="border:1px solid #FFA6A6;padding:10px; -moz-border-radius: 6px;-webkit-border-radius: 6px; border-radius: 6px; " valign="top" colspan="2" | <div style="padding-left:8px; background:#f7dadb; border:thin solid #FFA6A6">'''चयनित लेख'''</div> | | class="headbg22" style="border:1px solid #FFA6A6;padding:10px; -moz-border-radius: 6px;-webkit-border-radius: 6px; border-radius: 6px; " valign="top" colspan="2" | <div style="padding-left:8px; background:#f7dadb; border:thin solid #FFA6A6">'''चयनित लेख'''</div> | ||
<div align="center" style="color:#34341B;">'''[[ | <div align="center" style="color:#34341B;">'''[[आलम आरा]]'''</div> | ||
[[चित्र: | [[चित्र:Alam-Ara-Poster.jpg|120px|border|right|link=आलम आरा]] | ||
<Poem> | <Poem> | ||
'''[[आलम आरा]]''' [[भारत]] की पहली बोलती फ़िल्म है जिसका निर्देशन 'अर्देशिर ईरानी' ने किया था। आलम आरा का प्रदर्शन (रिलीज) [[14 मार्च]] [[1931]] को हुआ। फ़िल्म के नायक की भूमिका निभाई मास्टर विट्ठल ने और नायिका थीं ज़ुबैदा। फ़िल्म में [[पृथ्वीराज कपूर]] की भी एक महत्त्वपूर्ण भूमिका थी। राजकुमार और बंजारिन की प्रेम कहानी पर आधारित यह फ़िल्म एक पारसी नाटक से प्रेरित थी। पहली सवाक फ़िल्म होने के कारण सामने आने वाली तमाम समस्याओं के बावजूद अर्देशिर ईरानी ने साढ़े दस हज़ार फ़ीट लंबी इस फ़िल्म का निर्माण चार महीने में ही पूरा किया। इस पर कुल मिलाकर चालीस हज़ार रुपए की लागत आई थी। 'आलम आरा' की कामयाबी को देखते हुए तीसरे ही [[सप्ताह]] में उर्दू फ़िल्म 'शीरी-फ़रहाद' आई। इस फ़िल्म में आलम आरा के मुक़ाबले तीन गुना अधिक [[गीत]] थे जो जहाँआरा कज्जन और मास्टर निसार की आवाज़ों में गाए गए थे। [[भारत]] में बनी पहली बोलती फ़िल्म 'आलम आरा' की आवाज़ अब कहीं सुनाई नहीं देगी। [[चेन्नई]] में क्षेत्रीय सिनेमा पर आयोजित एक सेमिनार में सूचना व प्रसारण मंत्रालय के संयुक्त सचिव वी. बी. प्यारेलाल के अनुसार आलम आरा के सभी प्रिंट नष्ट हो चुके हैं। '''[[आलम आरा|.... और पढ़ें]]'''</Poem> | |||
|} | |} | ||
|} | |} | ||
Line 35: | Line 31: | ||
|-valign="top" | |-valign="top" | ||
| class="headbg22" style="border:1px solid #FFA6A6;padding:10px; -moz-border-radius: 6px;-webkit-border-radius: 6px; border-radius: 6px; width:50%" valign="top" | <div style="padding-left:8px; background:#f7dadb; border:thin solid #FFA6A6">'''कुछ लेख'''</div> | | class="headbg22" style="border:1px solid #FFA6A6;padding:10px; -moz-border-radius: 6px;-webkit-border-radius: 6px; border-radius: 6px; width:50%" valign="top" | <div style="padding-left:8px; background:#f7dadb; border:thin solid #FFA6A6">'''कुछ लेख'''</div> | ||
* [[ललित कला अकादमी]] | * [[ललित कला अकादमी]] | ||
* [[आलम आरा]] | * [[आलम आरा]] | ||
Line 50: | Line 40: | ||
* [[शास्त्रीय नृत्य]] | * [[शास्त्रीय नृत्य]] | ||
* [[कुट्टी अट्टम नृत्य]] | * [[कुट्टी अट्टम नृत्य]] | ||
* [[चौंसठ कलाएँ]] | |||
* [[जैन चित्रकला]] | |||
* [[पाल चित्रकला]] | |||
* [[मुग़ल चित्रकला]] | |||
* [[पटना चित्रकला]] | |||
* [[राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय]] | |||
* [[मोहनी अट्टम नृत्य]] | * [[मोहनी अट्टम नृत्य]] | ||
* [[सालारजंग संग्रहालय]] | * [[सालारजंग संग्रहालय]] | ||
Line 80: | Line 76: | ||
| style="background:#fdbaba; width:5%;"| | | style="background:#fdbaba; width:5%;"| | ||
| style="width:90%;" valign="top" | | | style="width:90%;" valign="top" | | ||
[[चित्र: | [[चित्र:Chhau-Dance-2.jpg|220px|छाऊ नृत्य, पश्चिम बंगाल|center]] | ||
| style="background:#fdbaba; width:5%" | | | style="background:#fdbaba; width:5%" | | ||
|- | |- | ||
| colspan="3"| | | colspan="3"| | ||
---- | ---- | ||
<div style="text-align:center;">[[ | <div style="text-align:center;">[[छाऊ नृत्य]], [[पश्चिम बंगाल]]</div> | ||
|} | |} | ||
{| width="100%" | {| width="100%" |
Revision as of 14:30, 9 September 2017
| |||
|
चयनित चित्र
| ||
|
संबंधित लेख |