चकमा (जाति): Difference between revisions

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==भाषा==
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चकमाओं ने अपनी मौलिक बर्मी भाषा को त्याग दिया है और अब वे एक [[बांग्ला भाषा|बांग्ला]] बोली बोलते हैं। राज्य व्यवस्था के अभाव में चकमाओं ने वंश व्यवस्था द्वारा अपनी सुरक्षा की है, जो चटगांव क्षेत्र की अन्य जनजातियों में नहीं पाया जाता।  
चकमाओं ने अपनी मौलिक बर्मी भाषा को त्याग दिया है और अब वे एक [[बांग्ला भाषा|बांग्ला]] बोली बोलते हैं। राज्य व्यवस्था के अभाव में चकमाओं ने वंश व्यवस्था द्वारा अपनी सुरक्षा की है, जो चटगांव क्षेत्र की अन्य जनजातियों में नहीं पाया जाता।  
==कृषि==
==व्यवसाय==
चकमा मिश्रित झूम और स्थायी [[कृषि]] करते हैं और [[चावल]] के साथ-साथ बाजरा, मक्का और सरसों उगाते हैं। पारंपरिक तौर पर कृषि के लिए ये लोग कुदाल का प्रयोग करते थे, किंतु हाल में इन्होंने हल का प्रयोग शुरू किया है। महिलाएं अपने परिवार की आय में मदद करने और पहनने के लिए एक विशेष प्रकार का कपड़ा बुनती हैं।  
चकमा मिश्रित झूम और स्थायी [[कृषि]] करते हैं और [[चावल]] के साथ-साथ बाजरा, मक्का और सरसों उगाते हैं। पारंपरिक तौर पर कृषि के लिए ये लोग कुदाल का प्रयोग करते थे, किंतु हाल में इन्होंने हल का प्रयोग शुरू किया है। महिलाएं अपने परिवार की आय में मदद करने और पहनने के लिए एक विशेष प्रकार का कपड़ा बुनती हैं।  
==धर्म==
==धर्म==

Revision as of 07:41, 5 March 2011

दक्षिण-पूर्वी बांग्लादेश के चटगांव क्षेत्र में निवास करने वाली सबसे बड़ी जनजातीय है। 20वीं सदी के उत्तरार्द्ध में इनकी संख्या 3,50,000 थी।

निवास स्थान

चकमा कसलांग और मध्य कर्णफूली घाटी में निवास करते है और प्रजातीय रूप से दक्षिण बर्मा के मंगोल अराकानियों से संबंधित हैं; ये मग, टीपरा और तेंचुग्य जैसी छोटी जनजातीयों से बहुत अधिक समानता लिए हुए जीवन व्यतीत करते है। अंशत: बंगाली संस्कृति को ग्रहण करने से उनकी मौलिक संस्कृति धीरे-धीरे धुंधली पड़ती जा रही है।

भाषा

चकमाओं ने अपनी मौलिक बर्मी भाषा को त्याग दिया है और अब वे एक बांग्ला बोली बोलते हैं। राज्य व्यवस्था के अभाव में चकमाओं ने वंश व्यवस्था द्वारा अपनी सुरक्षा की है, जो चटगांव क्षेत्र की अन्य जनजातियों में नहीं पाया जाता।

व्यवसाय

चकमा मिश्रित झूम और स्थायी कृषि करते हैं और चावल के साथ-साथ बाजरा, मक्का और सरसों उगाते हैं। पारंपरिक तौर पर कृषि के लिए ये लोग कुदाल का प्रयोग करते थे, किंतु हाल में इन्होंने हल का प्रयोग शुरू किया है। महिलाएं अपने परिवार की आय में मदद करने और पहनने के लिए एक विशेष प्रकार का कपड़ा बुनती हैं।

धर्म

जीववाद, हिंदू धर्म और बौद्ध धर्म का पालन करने वाले चकमा अब लगभग पूर्ण रूप से बौद्ध हो गए हैं। बौद्ध परंपरा, जैसे वर के गांव में वधू के आगमन पर सूअर की बलि देना, अब सूअर का मांस खाने जैसे रिवाजों के साथ घुलमिल गई है। यह एक ऐसी प्रथा है, जिसे बंगाली घृणा से देखते हैं।


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