हो जाति: Difference between revisions
Jump to navigation
Jump to search
[unchecked revision] | [unchecked revision] |
m (Adding category Category:झारखण्ड (को हटा दिया गया हैं।)) |
m (Adding category Category:बिहार (को हटा दिया गया हैं।)) |
||
Line 22: | Line 22: | ||
[[Category:जातियाँ और जन जातियाँ]] | [[Category:जातियाँ और जन जातियाँ]] | ||
[[Category:झारखण्ड]] | [[Category:झारखण्ड]] | ||
[[Category:बिहार]] | |||
__INDEX__ | __INDEX__ |
Revision as of 10:02, 16 November 2011
हो जाति को झारखण्ड राज्य की एक आदिवासी जनजाति के रूप में जाना जाता है। इस जाति के लोग 'लरका कोल' भी कहलाते हैं। ये जनजाति मुख्य रूप से निचले छोटा नागपुर पठार के कोलहान क्षेत्र में बसी हुई है। 20वीं सदी के अन्त में इनकी संख्या क़रीब 11.50 लाख थी, जो अधिकांशत: पूर्वोत्तर भारत के झारखण्ड (भूतपूर्व बिहार) और उड़ीसा राज्य में थी।
- इस जाति के लोग मुंडा कुल की भाषा बोलते हैं और ऐसा प्रतीत होता है कि ये सुदूर उत्तर से धीरे-धीरे इन क्षेत्रों में आए।
- इनकी परम्परागत सामाजिक परम्परा में अन्य मुंडाभाषी जनजातियों की सामान्य विशेषताएँ शामिल हैं।
- लड़के और लड़कियों के युवागृहों की स्थापना, ग्राम कार्यालयों की विस्तृत पद्धति और अर्द्ध सैनिक महासंघ में क्षेत्रीय संगठन की व्यवस्था, इनकी परम्परागत विशेषताएँ हैं।
- उनका वंश निर्धारण पैतृक आधार पर होता है और युवाओं से अपेक्षा रहती है कि वह अपने पैतृक कुटुंब के बाहर शादी करें।
- हो जाति में मातृपक्ष की बहन से विवाह करने की प्रथा भी प्रचलित है।
- भागकर विवाह करना और अपहरण के द्वारा विवाह की प्रथा भी इनकी सामान्य परम्परा है।
- हो जाति के लोग प्राय: आत्माओं की पूजा को बड़ा ही महत्त्व प्रदान करते है।
- उनका मानना है कि इनमें से कुछ आत्माएँ बीमारियों का कारण होती हैं।
- ये दैवी भविष्यवाणी और जादू-टोने के माध्यम से आत्माओं से सम्पर्क करते हैं।
- हो जनजाति की परम्परागत अर्थव्यवस्था शिकार और आदिम झूम खेती पर आधारित थी।
- स्थायी कृषि और पशुपालन में वृद्धि के कारण उनका यह व्यवसाय कम होता चला गया।
- इनमें से कई पुरुष खदानों और कारख़ानों में श्रमिक के रूप में भी काम करते हैं।
|
|
|
|
|
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख