जहाँआरा: Difference between revisions
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*जहाँआरा [[फ़ारसी भाषा|फ़ारसी]] के पद्य और गद्य की अच्छी ज्ञाता थी, और साथ ही इसे वेद्यक का भी ज्ञान था। | *जहाँआरा [[फ़ारसी भाषा|फ़ारसी]] के पद्य और गद्य की अच्छी ज्ञाता थी, और साथ ही इसे वेद्यक का भी ज्ञान था। | ||
*इसे शेरों-शायरी की भी शौक था, उसके लिखे हुए बहुत से शेर मिलते हैं। | *इसे शेरों-शायरी की भी शौक था, उसके लिखे हुए बहुत से शेर मिलते हैं। | ||
*अपनी मां | *अपनी मां मुमताज़ महल की मृत्यु के बाद शाहजहाँ के जीवनभर जहाँआरा उसकी सबसे विश्वासपात्र रही। | ||
*एक बार बुरी तरह जल जाने के कारण इसे चार महीने तक जीवन-मरण के बीच संघर्ष करना पड़ा था। | *एक बार बुरी तरह जल जाने के कारण इसे चार महीने तक जीवन-मरण के बीच संघर्ष करना पड़ा था। | ||
*सबकी सम्मान-भाजन होने के कारण सभी जहाँआरा से परामर्श लिया करते थे। | *सबकी सम्मान-भाजन होने के कारण सभी जहाँआरा से परामर्श लिया करते थे। |
Revision as of 13:48, 9 April 2012
जहाँआरा (जन्म- 23 मार्च, 1614 ई., मृत्यु- 6 सितम्बर, 1681 ई.) मुग़ल बादशाह शाहजहाँ और 'मुमताज़ महल' (नूरजहाँ) की सबसे बड़ी पुत्री थी। इसका जन्म अजमेर में 1681 ई. में हुआ था। जब यह चौदह वर्ष की थी, तभी से अपने पिता के राजकार्यों में उसका हाथ बंटाती थी। जहाँआरा 'पादशाह बेगम' या 'बेगम साहब' के नाम से भी प्रसिद्ध रही।
- जहाँआरा फ़ारसी के पद्य और गद्य की अच्छी ज्ञाता थी, और साथ ही इसे वेद्यक का भी ज्ञान था।
- इसे शेरों-शायरी की भी शौक था, उसके लिखे हुए बहुत से शेर मिलते हैं।
- अपनी मां मुमताज़ महल की मृत्यु के बाद शाहजहाँ के जीवनभर जहाँआरा उसकी सबसे विश्वासपात्र रही।
- एक बार बुरी तरह जल जाने के कारण इसे चार महीने तक जीवन-मरण के बीच संघर्ष करना पड़ा था।
- सबकी सम्मान-भाजन होने के कारण सभी जहाँआरा से परामर्श लिया करते थे।
- भाइयों में सत्ता संघर्ष को टालने की जहाँआरा ने बहुत कोशिश की, लेकिन वह सफल नहीं हो पाई।
- इसकी सहानुभूति दारा शिकोह के प्रति थी, फिर भी इसने विजयी औरंगज़ेब और मुराद से भेंट की और प्रस्ताव रखा कि चारों भाई साम्राज्य को परस्पर बांटकर शांतिपूर्वक रहें। लेकिन यह सम्भव नहीं हो पाया।
- औरंगज़ेब ने जब शाहजहाँ को आगरा के क़िले में क़ैद कर लिया तो उसकी मृत्यु (जनवरी, 1666 ई.) तक जहाँआरा ने पिता के साथ रहकर उसकी सेवा की।
- अपने अंतिम दिनों में यह लाहौर के संत मियाँ पीर की शिष्या बन गई थी।
- 6 सितम्बर, 1681 ई. को जहाँआरा की मृत्यु हुई।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
भारतीय चरित कोश |लेखक: लीलाधर शर्मा 'पर्वतीय' |प्रकाशक: शिक्षा भारती, मदरसा रोड, कश्मीरी गेट, दिल्ली |पृष्ठ संख्या: 317 |