महात्मा गाँधी के अनमोल वचन: Difference between revisions
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'''महात्मा, ट्रुथ इज गॉड, एविल रोट बाइ द इंग्लिश मिडीयम, द मैसेज ऑफ द गीता और माइंड ऑफ महात्मा गांधी''' पुस्तकों से [[चित्र:Mahatma-Gandhi-2.jpg|150px|right|[[महात्मा गाँधी]]|thumb]] | '''महात्मा, ट्रुथ इज गॉड, एविल रोट बाइ द इंग्लिश मिडीयम, द मैसेज ऑफ द गीता और माइंड ऑफ महात्मा गांधी''' पुस्तकों से [[चित्र:Mahatma-Gandhi-2.jpg|150px|right|[[महात्मा गाँधी]]|thumb]] | ||
*सार्थक [[कला]] रचनाकार की प्रसन्नता, समाधान और पवित्रता की गवाह होती है। | *सार्थक [[कला]] रचनाकार की प्रसन्नता, समाधान और पवित्रता की गवाह होती है। | ||
* | *सच्ची अहिंसा मृत्युशैया पर भी मुस्कराती रहेगी। '''अहिंसा''' ही वह एकमात्र शक्ति है जिससे हम शत्रु को अपना मित्र बना सकते हैं और उसके प्रेमपात्र बन सकते हैं | | ||
*स्वच्छता, पवित्रता और आत्म-सम्मान से जीने के लिए धन की आवश्यकता नहीं होती। | |||
*सुखद जीवन का भेद त्याग पर आधारित है। त्याग ही जीवन है। | |||
*सच्चा व्यक्तित्व अकेले ही सत्य तक पहुंच सकता है। | |||
*साहस कोई शारीरिक विशेषता न होकर आत्मिक विशेषता है। | |||
*संपूर्ण विश्व का इतिहास उन व्यक्तियों के उदाहरणों से भरा पडा है जो अपने आत्म-विश्वास, साहस तथा दृढता की शक्ति से नेतृत्व के शिखर पर पहुंचे हैं। | |||
*सत्याग्रह और चरखे का घनिष्ठ संबंध है तथा इस अवधारणा को जितनी अधिक चुनौतियां दी जा रही हैं इससे मेरा विश्वास और अधिक दृढ होता जा रहा है। | |||
*'''सभ्यता''' का सच्चा अर्थ अपनी इच्छाओं की अभिवृद्धि न कर उनका स्वेच्छा से परित्याग करना है। | |||
*सादगी ही सार्वभौमिकता का सार है। | |||
*समुद्र जलराशियों का समूह है। प्रत्येक बूंद का अपना अस्तित्व है तथापि वे अनेकता में एकता के द्योतक हैं। | |||
*स्त्री का अंतर्ज्ञान पुरुष के श्रेष्ठ ज्ञानी होने की घमंडपूर्ण धारणा से अधिक यथार्थ है। | |||
*स्वामी की आज्ञा का अनिवार्य रूप से पालन करना परतंत्रता है परंतु पिता की आज्ञा का स्वेच्छा से पालन करना पुत्रत्व का गौरव प्रदान करती है। | |||
*'''स्त्री''' पुरुष की सहचारिणी है जिसे समान मानसिक सामर्थ्य प्राप्त है । | |||
*स्त्री जीवन के समस्त पवित्र एवं धार्मिक धरोहर की मुख्य संरक्षिका है। | |||
*स्वतंत्रता एक जन्म की भांति है। जब तक हम पूर्णतः स्वतंत्र नहीं हो जाते तब तक हम परतंत्र ही रहेंगे। | |||
*मनुष्य अक्सर '''सत्य''' का सौंदर्य देखने में असफल रहता है, सामान्य व्यक्ति इससे दूर भागता है और इसमें निहित सौंदर्य के प्रति अंधा बना रहता है। | *मनुष्य अक्सर '''सत्य''' का सौंदर्य देखने में असफल रहता है, सामान्य व्यक्ति इससे दूर भागता है और इसमें निहित सौंदर्य के प्रति अंधा बना रहता है। | ||
* | *मैं यह अनुभव करता हूं कि गीता हमें यह सिखाती है कि हम जिसका पालन अपने दैनिक जीवन में नहीं करते हैं, उसे धर्म नहीं कहा जा सकता है। | ||
* | *मेरे विचारानुसार [[गीता]] का उद्देश्य आत्म-ज्ञान की प्राप्ति का सर्वोत्तम मार्ग बताना है। | ||
*मनुष्य अपनी तुच्छ वाणी से केवल ईश्वर का वर्णन कर सकता है। | |||
*मेरी अस्पृश्यता के विरोध की लडाई, मानवता में छिपी अशुद्धता से लडाई है। | |||
*मेरे विचारानुसार मैं निरंतर विकास कर रहा हूं। मुझे बदलती परिस्थितियों के प्रति अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करना आ गया है तथापि मैं भीतर से अपरिवर्तित ही हूं। | |||
*महाभारत के रचयिता ने भौतिक युद्ध की अनिवार्यता का नहीं वरन् उसकी निरर्थकता का प्रतिपादन किया है। | |||
*मनुष्य तभी विजयी होगा जब वह जीवन-संघर्ष के बजाय परस्पर-सेवा हेतु संघर्ष करेगा। | |||
*मजदूर के दो हाथ जो अर्जित कर सकते हैं वह मालिक अपनी पूरी संपत्ति द्वारा भी प्राप्त नहीं कर सकता। | |||
*'''अहिंसा''' एक [[विज्ञान]] है। विज्ञान के शब्दकोश में 'असफलता' का कोई स्थान नहीं। | |||
*अधिकारों की प्राप्ति का मूल स्रोत कर्तव्य है। | *अधिकारों की प्राप्ति का मूल स्रोत कर्तव्य है। | ||
*अधभूखे राष्ट्र के पास न कोई धर्म, न कोई कला और न ही कोई संगठन हो सकता है। | *अधभूखे राष्ट्र के पास न कोई धर्म, न कोई कला और न ही कोई संगठन हो सकता है। | ||
*आत्मरक्षा हेतु मारने की शक्ति से बढ़कर मरने की हिम्मत होनी चाहिए। | *आत्मरक्षा हेतु मारने की शक्ति से बढ़कर मरने की हिम्मत होनी चाहिए। | ||
* | *अधिकार-प्राप्ति का उचित माध्यम कर्तव्यों का निर्वाह है। | ||
* | *'''आत्मा''' की शक्ति संपूर्ण विश्व के हथियारों को परास्त करने की क्षमता रखती है। | ||
*अपने कर्तव्यों को जानने व उनका निर्वाह करने वाली स्त्री ही अपनी गौरवपूर्ण मर्यादा को पहचान सकती है। | |||
*अंततः अत्याचार का परिणाम और कुछ नहीं केवल अव्यवस्था ही होती है। | |||
*अयोग्य व्यक्ति को यह अधिकार नहीं है कि वह किसी दूसरे अयोग्य व्यक्ति के विषय में निर्णय दे। | |||
*अहिंसा पर आधारित स्वराज्य में, व्यक्ति को अपने अधिकारों को जानना उतना आवश्यक नहीं है जितना कि अपने कर्तव्यों का ज्ञान होना। | |||
*आधुनिक सभ्यता ने हमें रात को दिन में और सुनहरी खामोशी को पीतल के कोलाहल और शोरगुल में परिवर्तित करना सिखाया है। | |||
*अपनी भूलों को स्वीकारना उस झाडू के समान है जो गंदगी को साफ कर उस स्थान को पहले से अधिक स्वच्छ कर देती है। | |||
*क्रूरता का उत्तर क्रूरता से देने का अर्थ अपने नैतिक व बौद्धिक पतन को स्वीकार करना है। | *क्रूरता का उत्तर क्रूरता से देने का अर्थ अपने नैतिक व बौद्धिक पतन को स्वीकार करना है। | ||
* | *किसी भी स्वाभिमानी व्यक्ति के लिए सोने की बेडियां, लोहे की बेडियों से कम कठोर नहीं होगी। चुभन धातु में नहीं वरन् बेडियों में होती है। | ||
* | *किसी भी समझौते की अनिवार्य शर्त यही है कि वह अपमानजनक तथा कष्टप्रद न हो। | ||
* | *किसी भी विश्वविद्यालय के लिए वैभवपूर्ण इमारत तथा सोने-चांदी के खजाने की आवश्यकता नहीं होती। इन सबसे अधिक जनमत के बौद्धिक ज्ञान-भंडार की आवश्यकता होती है। | ||
*जीवन में स्थिरता, शांति और विश्वसनीयता की स्थापना का एकमात्र साधन '''भक्ति''' है। | *जीवन में स्थिरता, शांति और विश्वसनीयता की स्थापना का एकमात्र साधन '''भक्ति''' है। | ||
* | *जहाँ तक मेरी दृष्टि जाती है मैं देखता हूं कि परमाणु शक्ति ने सदियों से मानवता को संजोये रखने वाली कोमल भावना को नष्ट कर दिया है। | ||
* | *जब भी मैं सूर्यास्त की अद्भुत लालिमा और चंद्रमा के सौंदर्य को निहारता हूँ तो मेरा हृदय सृजनकर्ता के प्रति श्रद्धा से भर उठता है। | ||
* | *जहाँ '''प्रेम''' है, वही जीवन है। ईर्ष्या-द्वेष विनाश की ओर ले जाते हैं। | ||
*ज़िम्मेदारी युवाओं को मृदु व संयमी बनाती है ताकि वे अपने दायित्त्वों का निर्वाह करने के लिए तैयार हो सकें। | |||
*जो व्यक्ति अहिंसा में विश्वास करता है और ईश्वर की सत्ता में आस्था रखता है वह कभी भी पराजय स्वीकार नहीं करता। | |||
*जब कोई युवक विवाह के लिए दहेज की शर्त रखता है तब वह न केवल अपनी शिक्षा और अपने देश को बदनाम करता है बल्कि स्त्री जाति का भी अपमान करता है। | |||
*[[गुलाब]] को उपदेश देने की आवश्यकता नहीं होती। वह तो केवल अपनी खुशबू बिखेरता है। उसकी खुशबू ही उसका संदेश है। | *[[गुलाब]] को उपदेश देने की आवश्यकता नहीं होती। वह तो केवल अपनी खुशबू बिखेरता है। उसकी खुशबू ही उसका संदेश है। | ||
*गीता में उल्लिखित भक्ति, कर्म और प्रेम के मार्ग में मानव द्वारा मानव के तिरस्कार के लिए कोई स्थान नहीं है। | *गीता में उल्लिखित भक्ति, कर्म और प्रेम के मार्ग में मानव द्वारा मानव के तिरस्कार के लिए कोई स्थान नहीं है। | ||
* | *गति जीवन का अंत नहीं हैं। सही अर्थों में मनुष्य अपने कर्तव्यों का निर्वाह करते हुए जीवित रहता है। | ||
*हज़ारों लोगों द्वारा कुछ सैकडों की हत्या करना बहादुरी नहीं है। यह कायरता से भी बदतर है। यह किसी भी राष्ट्रवाद और धर्म के विरुद्ध है। | *हज़ारों लोगों द्वारा कुछ सैकडों की हत्या करना बहादुरी नहीं है। यह कायरता से भी बदतर है। यह किसी भी राष्ट्रवाद और धर्म के विरुद्ध है। | ||
* | *हमारा जीवन सत्य का एक लंबा अनुसंधान है और इसकी पूर्णता के लिए आत्मा की शांति आवश्यक है। | ||
*हृदय में क्रोध, लालसा व इसी तरह की भावनाओं को रखना, सच्ची अस्पृश्यता है। | *हृदय में क्रोध, लालसा व इसी तरह की भावनाओं को रखना, सच्ची अस्पृश्यता है। | ||
* | *हम धर्म के नाम पर गौ-रक्षा की दुहाई देते हैं किंतु बाल-विधवा के रूप में मौजूद उस मानवीय गाय की सुरक्षा से इंकार कर देते हैं। | ||
* | *हमें बच्चों को ऐसी शिक्षा नहीं देनी चाहिए जिससे वे श्रम का तिरस्कार करें। | ||
*हमारा समाजवाद अथवा साम्यवाद अहिंसा पर आधारित होना चाहिए जिसमें मालिक मजदूर एवं जमपदार किसान के मध्य परस्पर सद्भावपूर्ण सहयोग हो। | |||
*हमारा | |||
*यदि समाजवाद का अर्थ शत्रु के प्रति मित्रता का भाव रखना है तो मुझे एक सच्चा समाजवादी समझा जाना चाहिए। | *यदि समाजवाद का अर्थ शत्रु के प्रति मित्रता का भाव रखना है तो मुझे एक सच्चा समाजवादी समझा जाना चाहिए। | ||
*यदि अंधकार से [[प्रकाश]] उत्पन्न हो सकता है तो द्वेष भी प्रेम में परिवर्तित हो सकता है। | *यदि अंधकार से [[प्रकाश]] उत्पन्न हो सकता है तो द्वेष भी प्रेम में परिवर्तित हो सकता है। | ||
*यदि आप न्याय के लिए लड रहे हैं, तो ईश्वर सदैव आपके साथ है। | *यदि आप न्याय के लिए लड रहे हैं, तो ईश्वर सदैव आपके साथ है। | ||
*यदि आपको अपने उद्देश्य और साधन तथा ईश्वर में आस्था है तो सूर्य की तपिश भी शीतलता प्रदान करेगी। | *यदि आपको अपने उद्देश्य और साधन तथा ईश्वर में आस्था है तो सूर्य की तपिश भी शीतलता प्रदान करेगी। | ||
*युद्धबंदी के लिए प्रयत्नरत् इस विश्व में उन राष्ट्रों के लिए कोई स्थान नहीं है जो दूसरे राष्ट्रों का शोषण कर उन पर वर्चस्व स्थापित करने में लगे हैं। | *युद्धबंदी के लिए प्रयत्नरत् इस विश्व में उन राष्ट्रों के लिए कोई स्थान नहीं है जो दूसरे राष्ट्रों का शोषण कर उन पर वर्चस्व स्थापित करने में लगे हैं। | ||
* | *यदि शक्ति का तात्पर्य नैतिक दृढता से है तो स्त्री पुरुषों से अधिक श्रेष्ठ है । | ||
*'''नारी''' को अबला कहना अपमानजनक है। यह पुरुषों का नारी के प्रति अन्याय है। | |||
*निःशस्त्र '''अहिंसा''' की शक्ति किसी भी परिस्थिति में सशस्त्र शक्ति से सर्वश्रेष्ठ होगी। | |||
*निर्मल चरित्र एवं आत्मिक पवित्रता वाला व्यक्तित्व सहजता से लोगों का विश्वास अर्जित करता है और स्वतः अपने आस पास के वातावरण को शुद्ध कर देता है। | |||
*[[बुद्ध]] ने अपने समस्त भौतिक सुखों का त्याग किया क्योंकि वे संपूर्ण विश्व के साथ यह खुशी बांटना चाहते थे जो मात्र सत्य की खोज में कष्ट भोगने तथा बलिदान देने वालों को ही प्राप्त होती है। | *[[बुद्ध]] ने अपने समस्त भौतिक सुखों का त्याग किया क्योंकि वे संपूर्ण विश्व के साथ यह खुशी बांटना चाहते थे जो मात्र सत्य की खोज में कष्ट भोगने तथा बलिदान देने वालों को ही प्राप्त होती है। | ||
* | *ब्रह्मचर्य क्या है ? यह जीवन का एक ऐसा मार्ग है जो हमें परमेश्वर की ओर अग्रसर करता है। | ||
* | *एकमात्र वस्तु जो हमें पशु से भिन्न करती है वह है सही और ग़लत के मध्य भेद करने की क्षमता जो हम सभी में समान रूप से विद्यमान है। | ||
* | *एक सच्चे कलाकार के लिए सिर्फ़ वही चेहरा सुंदर होता है जो बाहरी दिखावे से परे, आत्मा की सुंदरता से चमकता है। | ||
* | *चरित्र और शैक्षणिक सुविधाएँ ही वह पूँजी है जो माता-पिता अपने संतान में समान रूप से स्थानांतरित कर सकते हैं। | ||
* | |||
*विश्व के सारे महान '''[[धर्म]]''' मानवजाति की समानता, भाईचारे और सहिष्णुता का संदेश देते हैं। | |||
*वक्ता के विकास और चरित्र का वास्तविक प्रतिबिंब '[[भाषा]]' है। | |||
*विश्वविद्यालय का स्थान सर्वोच्च है। किसी भी वैभवशाली इमारत का अस्तित्व तभी संभव है जब उसकी नपव ठोस हो। | *विश्वविद्यालय का स्थान सर्वोच्च है। किसी भी वैभवशाली इमारत का अस्तित्व तभी संभव है जब उसकी नपव ठोस हो। | ||
* | *वीरतापूर्वक सम्मान के साथ मरने की कला के लिए किसी विशेष प्रशिक्षण की आवश्यकता नहीं होती। उसके लिए परमात्मा में जीवंत श्रद्धा काफ़ी है। | ||
*शांति का मार्ग ही सत्य का मार्ग है। शांति की अपेक्षा सत्य अत्यधिक महत्त्वपूर्ण है। | |||
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*धर्म के नाम पर हम उन तीन लाख बाल-विधवाओं पर वैधव्य थोप रहे हैं जिन्हें विवाह का अर्थ भी ज्ञात नहीं है। | *धर्म के नाम पर हम उन तीन लाख बाल-विधवाओं पर वैधव्य थोप रहे हैं जिन्हें विवाह का अर्थ भी ज्ञात नहीं है। | ||
* | *'''धर्म''' के बिना व्यक्ति पतवार बिना नाव के समान है। | ||
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* | *'''ईश्वर''' इतना निर्दयी व क्रूर नहीं है जो पुरुष-पुरुष और स्त्री-स्त्री के मध्य ऊंच-नीच का भेद करे। | ||
*उस आस्था का कोई मूल्य नहीं जिसे आचरण में न लाया जा सके। | |||
*उफनते तूफ़ान को मात देना है तो अधिक जोखिम उठाते हुए हमें पूरी शक्ति के साथ आगे बढना होगा। | |||
*भारतीयों के एक वर्ग को दूसरे के प्रति शत्रुता की भावना से देखने के लिए प्रेरित करने वाली मनोवृत्ति आत्मघाती है। यह मनोवृत्ति परतंत्रता को चिरस्थायी बनाने में ही उपयुक्त होगी। | *भारतीयों के एक वर्ग को दूसरे के प्रति शत्रुता की भावना से देखने के लिए प्रेरित करने वाली मनोवृत्ति आत्मघाती है। यह मनोवृत्ति परतंत्रता को चिरस्थायी बनाने में ही उपयुक्त होगी। | ||
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* | *प्रेम और एकाधिकार एक साथ नहीं हो सकता है। | ||
*प्रतिज्ञा के बिना जीवन उसी तरह है जैसे लंगर के बिना नाव या रेत पर बना महल। | |||
*प्रत्येक भौतिक आपदा के पीछे एक दैवी उद्देश्य विद्यमान होता है । | |||
*पीडा द्वारा तर्क मज़बूत होता है और पीडा ही व्यक्ति की अंत–दृष्टि खोल देती है। | |||
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*पराजय के क्षणों में ही नायकों का निर्माण होता है। अंतः सफलता का सही अर्थ महान असफलताओं की श्रृंखला है।<ref>{{cite web |url=http://www.hindi.mkgandhi.org/efg.htm |title=गांधीजी के शब्दों में |accessmonthday=20 जनवरी |accessyear=2011 |last= |first= |authorlink= |format=एच.टी.एम.एल |publisher= |language=[[हिन्दी]]}}</ref> | *पराजय के क्षणों में ही नायकों का निर्माण होता है। अंतः सफलता का सही अर्थ महान असफलताओं की श्रृंखला है।<ref>{{cite web |url=http://www.hindi.mkgandhi.org/efg.htm |title=गांधीजी के शब्दों में |accessmonthday=20 जनवरी |accessyear=2011 |last= |first= |authorlink= |format=एच.टी.एम.एल |publisher= |language=[[हिन्दी]]}}</ref> | ||
*मुठ्ठी भर संकल्पवान लोग, जिनकी अपने लक्ष्य में दृढ़ आस्था है, इतिहास की धारा को बदल सकते हैं। - <ref>{{cite web |url=http://hindisikhen.blogspot.com/2011/02/blog-post_6421.html |title=साहस / निर्भीकता / पराक्रम/ आत्म्विश्वास / प्रयत्न |accessmonthday=[[14 अप्रॅल]] |accessyear=[[2011]] |last= |first= |authorlink= |format=एच.टी.एम.एल |publisher=hindisikhen |language=[[हिन्दी]]}}</ref> | *मुठ्ठी भर संकल्पवान लोग, जिनकी अपने लक्ष्य में दृढ़ आस्था है, इतिहास की धारा को बदल सकते हैं। - <ref>{{cite web |url=http://hindisikhen.blogspot.com/2011/02/blog-post_6421.html |title=साहस / निर्भीकता / पराक्रम/ आत्म्विश्वास / प्रयत्न |accessmonthday=[[14 अप्रॅल]] |accessyear=[[2011]] |last= |first= |authorlink= |format=एच.टी.एम.एल |publisher=hindisikhen |language=[[हिन्दी]]}}</ref> |
Revision as of 20:58, 17 July 2012
महात्मा गाँधी के अनमोल वचन |
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ गांधीजी के शब्दों में (हिन्दी) (एच.टी.एम.एल)। । अभिगमन तिथि: 20 जनवरी, 2011।
- ↑ साहस / निर्भीकता / पराक्रम/ आत्म्विश्वास / प्रयत्न (हिन्दी) (एच.टी.एम.एल) hindisikhen। अभिगमन तिथि: 14 अप्रॅल, 2011।