कुम्हार: Difference between revisions
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कुम्हार [[मिट्टी]] के बर्तन एवं [[खिलौना]] बनाने वाली एक जाति होती है जो [[भारत]] के सभी प्रांतों में पाई जाती है। इस जाति के लोगों का विश्वास है कि उनके आदि पुरुष महर्षि [[अगस्त्य]] हैं। यह भी समझा जाता है कि यंत्रों में कुम्हार के [[चाक]] का सबसे पहले आविष्कार हुआ। लोगों ने सबसे पहले चाक घुमाकर मिट्टी के बर्तन बनाने का आविष्कार किया। इस प्रकार कुम्हार अपने को आदि यंत्र कला का प्रवर्तक कहते हैं जिसके कारण अनेक स्थान के कुम्हार अपने को प्रजापति कहते हैं। | कुम्हार [[मिट्टी]] के बर्तन एवं [[खिलौना]] बनाने वाली एक जाति होती है जो [[भारत]] के सभी प्रांतों में पाई जाती है। इस जाति के लोगों का विश्वास है कि उनके आदि पुरुष महर्षि [[अगस्त्य]] हैं। यह भी समझा जाता है कि यंत्रों में कुम्हार के [[चाक]] का सबसे पहले आविष्कार हुआ। लोगों ने सबसे पहले चाक घुमाकर मिट्टी के बर्तन बनाने का आविष्कार किया। इस प्रकार कुम्हार अपने को आदि यंत्र कला का प्रवर्तक कहते हैं जिसके कारण अनेक स्थान के कुम्हार अपने को प्रजापति कहते हैं। | ||
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कुम्हारों की अलग-अलग प्रदेशों में अलग-अलग उपजातियाँ हैं। [[उत्तर प्रदेश]] में कुम्हारों की उपजाति कनौजिया, हथेलिया, सुवारिया, बर्धिया, गदहिया, कस्तूर और चौहानी हैं। इन उपजातियों के नामकरण के संबंध में स्पष्ट रूप से कुछ भी ज्ञात नहीं है किंतु जो कुम्हार बैलों पर मिट्टी लाद कर लाते हैं वे बर्धिया और जो गधों पर लाते है वे गदहिया कहलाते हैं। [[चित्र: | कुम्हारों की अलग-अलग प्रदेशों में अलग-अलग उपजातियाँ हैं। [[उत्तर प्रदेश]] में कुम्हारों की उपजाति कनौजिया, हथेलिया, सुवारिया, बर्धिया, गदहिया, कस्तूर और चौहानी हैं। इन उपजातियों के नामकरण के संबंध में स्पष्ट रूप से कुछ भी ज्ञात नहीं है किंतु जो कुम्हार बैलों पर मिट्टी लाद कर लाते हैं वे बर्धिया और जो गधों पर लाते है वे गदहिया कहलाते हैं। [[चित्र:Kumhar-1.jpg|thumb|250px|left|कुम्हार]] इसी प्रकार [[पश्चिम बंगाल|बंगाल]] में इनकी उपजातियों की संख्या बीस के लगभग हैं जिनमें बड़भागिया और छोटभागिया मुख्य हैं बड़भागिया काले रंग के और छोटभागिया [[लाल रंग]] के बर्तन बनाते हैं। इसी प्रकार दक्षिण भारत में भी कुम्हारों में अनेक भेद हैं। [[कर्नाटक]] के कुम्हार अपने को अन्य प्रदेशों के कुम्हारों से श्रेष्ठ मानते हैं। | ||
==धार्मिक रूप== | ==धार्मिक रूप== | ||
धार्मिक दृष्टि से कुम्हार प्राय: वैष्णव हैं। [[उड़ीसा]] में [[जगन्नाथ पुरी|जगन्नाथ]] के उपासक होने के कारण वे जगन्नाथी कहलाते हैं। दक्षिण में कुम्हार प्राय: लिंगायत हैं किंतु इनमें विश्वकर्मा की पूजा विशेष प्रचलित हैं। बंगाल में तो उनकी बड़ी मान्यता है।<ref>{{cite book | last = पांडेय | first = सुधाकर | title = हिन्दी विश्वकोश | edition = 1963 | publisher = नागरी प्रचारिणी सभा वाराणसी | location = भारतडिस्कवरी पुस्तकालय | language = [[हिन्दी]] | pages = पृष्ठ सं 70 | chapter = खण्ड 3 }}</ref> | धार्मिक दृष्टि से कुम्हार प्राय: वैष्णव हैं। [[उड़ीसा]] में [[जगन्नाथ पुरी|जगन्नाथ]] के उपासक होने के कारण वे जगन्नाथी कहलाते हैं। दक्षिण में कुम्हार प्राय: लिंगायत हैं किंतु इनमें विश्वकर्मा की पूजा विशेष प्रचलित हैं। बंगाल में तो उनकी बड़ी मान्यता है।<ref>{{cite book | last = पांडेय | first = सुधाकर | title = हिन्दी विश्वकोश | edition = 1963 | publisher = नागरी प्रचारिणी सभा वाराणसी | location = भारतडिस्कवरी पुस्तकालय | language = [[हिन्दी]] | pages = पृष्ठ सं 70 | chapter = खण्ड 3 }}</ref> |
Revision as of 06:07, 8 January 2012
thumb|कुम्हार कुम्हार मिट्टी के बर्तन एवं खिलौना बनाने वाली एक जाति होती है जो भारत के सभी प्रांतों में पाई जाती है। इस जाति के लोगों का विश्वास है कि उनके आदि पुरुष महर्षि अगस्त्य हैं। यह भी समझा जाता है कि यंत्रों में कुम्हार के चाक का सबसे पहले आविष्कार हुआ। लोगों ने सबसे पहले चाक घुमाकर मिट्टी के बर्तन बनाने का आविष्कार किया। इस प्रकार कुम्हार अपने को आदि यंत्र कला का प्रवर्तक कहते हैं जिसके कारण अनेक स्थान के कुम्हार अपने को प्रजापति कहते हैं।
उपजाति
कुम्हारों की अलग-अलग प्रदेशों में अलग-अलग उपजातियाँ हैं। उत्तर प्रदेश में कुम्हारों की उपजाति कनौजिया, हथेलिया, सुवारिया, बर्धिया, गदहिया, कस्तूर और चौहानी हैं। इन उपजातियों के नामकरण के संबंध में स्पष्ट रूप से कुछ भी ज्ञात नहीं है किंतु जो कुम्हार बैलों पर मिट्टी लाद कर लाते हैं वे बर्धिया और जो गधों पर लाते है वे गदहिया कहलाते हैं। thumb|250px|left|कुम्हार इसी प्रकार बंगाल में इनकी उपजातियों की संख्या बीस के लगभग हैं जिनमें बड़भागिया और छोटभागिया मुख्य हैं बड़भागिया काले रंग के और छोटभागिया लाल रंग के बर्तन बनाते हैं। इसी प्रकार दक्षिण भारत में भी कुम्हारों में अनेक भेद हैं। कर्नाटक के कुम्हार अपने को अन्य प्रदेशों के कुम्हारों से श्रेष्ठ मानते हैं।
धार्मिक रूप
धार्मिक दृष्टि से कुम्हार प्राय: वैष्णव हैं। उड़ीसा में जगन्नाथ के उपासक होने के कारण वे जगन्नाथी कहलाते हैं। दक्षिण में कुम्हार प्राय: लिंगायत हैं किंतु इनमें विश्वकर्मा की पूजा विशेष प्रचलित हैं। बंगाल में तो उनकी बड़ी मान्यता है।[1]
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख