कमार: Difference between revisions

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19वीं सदी तक कमार जनजाति के लोग अत्यंत पिछड़ी हुई अवस्था में थी। इन लोगों के विषय में जो थोड़ा बहुत विवरण उपलब्ध है, वह अब संदेहास्पद प्रतीत होता है, जैसे- कतिपय [[अंग्रेज़]] लेखकों ने इन्हें गुहावासी बतलाया है। आज के समय में [[मध्य प्रदेश]] के वनों या [[पर्वत|पर्वतों]] में कोई भी आदिवासी समूह गुहावासी नहीं है।<ref>{{cite web |url=http://www.mpinfo.org/mpinfonew/hindi/factfile/jankamar.asp |title=मध्य प्रदेश की जनजातियाँ |accessmonthday= 30 अक्टूबर|accessyear= 2012|last= |first= |authorlink= |format= |publisher= |language=[[हिन्दी]]}}</ref>
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==व्यवसाय==
==व्यवसाय==
वर्तमान में कमारों के व्यवसायों में टोकरी बनाना भी सम्मिलित हैं, जिसमें उन्हें बसोरों से प्रतिस्पर्धा करना पड़ती है। शासकीय सहायता योजना के अंतर्गत कमारों को कम दाम पर [[बाँस]] उपलब्ध कराया जाता है। उनके द्वारा बनाई गई चटाईयाँ एवं टोकरियाँ सीधे ही खरीद ली जाती हैं। बदलते जमाने में कमारों ने [[कृषि]] करना भी सीख लिया है। वर्ष [[1981]] में 444 कमार परिवारों के पास स्वयं की छोटी ही सही लेकिन कृषि भूमि थी।
वर्तमान में कमारों के व्यवसायों में टोकरी बनाना भी सम्मिलित हैं, जिसमें उन्हें बसोरों से प्रतिस्पर्धा करना पड़ती है। शासकीय सहायता योजना के अंतर्गत कमारों को कम दाम पर [[बाँस]] उपलब्ध कराया जाता है। उनके द्वारा बनाई गई चटाईयाँ एवं टोकरियाँ सीधे ही ख़रीद ली जाती हैं। बदलते जमाने में कमारों ने [[कृषि]] करना भी सीख लिया है। वर्ष [[1981]] में 444 कमार परिवारों के पास स्वयं की छोटी ही सही लेकिन कृषि भूमि थी।
====भेद====
====भेद====
कमार जनजाति के दो उप भेद हैं-
कमार जनजाति के दो उप भेद हैं-

Revision as of 14:27, 21 February 2013

कमार मध्य प्रदेश में पाई जाने वाली जनजाति है। सन 1961 और 1971 में की गई कमारों की जनसंख्या का ज़िलेवार विवरण प्राप्त किया गया था, जिसके अनुसार कमार लगभग 10 प्रतिशत ग्रामीण अधिवासी में रहने वाले आदिवासी हैं।

निवास स्थान

रायपुर ज़िले के कमार विशेष रूप से पिछड़े माने गए हैं। इस ज़िले में कमार बिंद्रावनगढ़ और धमतरी तहसील में पाए जाते हैं। कमार विकास अभिकरण का मुख्यालय गरिमा बंद में है, जिसके अंतर्गत घुरा, गरियाबंद, नातारी ओर मैनपुर विकास खंड कमारों की मूलभूमि है, जहाँ से वे बाहर गए थे या फिर मजदूरों के रूप में ले उन्हें बाहर ले जाया गया था।

इतिहास

19वीं सदी तक कमार जनजाति के लोग अत्यंत पिछड़ी हुई अवस्था में थी। इन लोगों के विषय में जो थोड़ा बहुत विवरण उपलब्ध है, वह अब संदेहास्पद प्रतीत होता है, जैसे- कतिपय अंग्रेज़ लेखकों ने इन्हें गुहावासी बतलाया है। आज के समय में मध्य प्रदेश के वनों या पर्वतों में कोई भी आदिवासी समूह गुहावासी नहीं है।[1]

व्यवसाय

वर्तमान में कमारों के व्यवसायों में टोकरी बनाना भी सम्मिलित हैं, जिसमें उन्हें बसोरों से प्रतिस्पर्धा करना पड़ती है। शासकीय सहायता योजना के अंतर्गत कमारों को कम दाम पर बाँस उपलब्ध कराया जाता है। उनके द्वारा बनाई गई चटाईयाँ एवं टोकरियाँ सीधे ही ख़रीद ली जाती हैं। बदलते जमाने में कमारों ने कृषि करना भी सीख लिया है। वर्ष 1981 में 444 कमार परिवारों के पास स्वयं की छोटी ही सही लेकिन कृषि भूमि थी।

भेद

कमार जनजाति के दो उप भेद हैं-

  1. बुधरजिया
  2. मांकडिया

बुधरजिया उच्च वर्ग के माने जाते हैं, जबकि मांकडिया निम्न वर्ग के। ये बंदरों का माँस खाते थे। इन दोनों ही वर्ग लोग अब कृषि करने लगे हैं।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. मध्य प्रदेश की जनजातियाँ (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 30 अक्टूबर, 2012।

बाहरी कड़ियाँ

संबंधित लेख