सहरिया जनजाति: Difference between revisions
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'''सहरिया जनजाति''' [[मध्य प्रदेश]] के [[भिंडी|भिंड]], [[मुरैना ज़िला|मुरैना]], [[ग्वालियर]] और [[शिवपुरी]] में पायी जाती है। 'सहरिया' शब्द [[पारसी]] के 'सहर' शब्द से बना है, जिसका अर्थ होता है- 'जंगल'। इस जाति के लोग जंगल में निवास करते हैं। इन लोगों का परिवार पितृसत्तात्मक होता है। भारत सरकार ने सहरिया जनजाति को आदिम जनजाति माना है। | '''सहरिया जनजाति''' [[राजस्थान]], [[मध्य प्रदेश]] के [[भिंडी|भिंड]], [[मुरैना ज़िला|मुरैना]], [[ग्वालियर]] और [[शिवपुरी]] में पायी जाती है। 'सहरिया' शब्द [[पारसी]] के 'सहर' शब्द से बना है, जिसका अर्थ होता है- 'जंगल'। इस जाति के लोग जंगल में निवास करते हैं। इन लोगों का परिवार पितृसत्तात्मक होता है। भारत सरकार ने सहरिया जनजाति को आदिम जनजाति माना है। | ||
*सहरिया लोग अपनी उत्पत्ति [[भील|भीलों]] से मानते हैं। | *सहरिया लोग अपनी उत्पत्ति [[भील|भीलों]] से मानते हैं। | ||
*ये राजस्थान की एकमात्र आदिम जनजाति है। | |||
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*सहरिया जनजाति के लोग [[हिन्दू देवी-देवता|हिन्दू देवी-देवताओं]] की [[पूजा]] करते हैं। | *सहरिया जनजाति के लोग [[हिन्दू देवी-देवता|हिन्दू देवी-देवताओं]] की [[पूजा]] करते हैं। |
Revision as of 07:33, 11 May 2013
सहरिया जनजाति राजस्थान, मध्य प्रदेश के भिंड, मुरैना, ग्वालियर और शिवपुरी में पायी जाती है। 'सहरिया' शब्द पारसी के 'सहर' शब्द से बना है, जिसका अर्थ होता है- 'जंगल'। इस जाति के लोग जंगल में निवास करते हैं। इन लोगों का परिवार पितृसत्तात्मक होता है। भारत सरकार ने सहरिया जनजाति को आदिम जनजाति माना है।
- सहरिया लोग अपनी उत्पत्ति भीलों से मानते हैं।
- ये राजस्थान की एकमात्र आदिम जनजाति है।
- इस जाति के लोगों का मुख्य व्यवसाय कंदमूल, फल एवं लकड़ियाँ एकत्रित करना है। साथ ही ये लोग जंगली जानवरों का शिकार भी करते हैं।
- सहरिया जनजाति के लोग हिन्दू देवी-देवताओं की पूजा करते हैं।
- इन लोगों के नृत्यों में 'लहकी', 'दुलदुल घोड़ी', सरहुल, नृत्यरागनि एवं तेजाजी की कथा लोक गायन शैली आदि प्रमुख हैं।
- विवाह पद्धति के अंतर्गत इस जाति में सहपलायन, सेवा एवं क्रय विवाह की प्रथा प्रचलित है।
- सहरिया जनजाति में मुद्रा का प्रचलन बहुत कम होता है। ये लोग वस्तु विनिमय की प्रथा को अपनाते हैं।
निवास स्थान
सहरिया जनजाति का विस्तार क्षेत्र अन्य जनजातियों के छोटे क्षेत्रों की तुलना में भिन्न प्रकार का है। यह जनजाति मध्य प्रदेश के उत्तर पश्चिमी ज़िलों में फैली हुई है। यह जनजाति आधुनिक ग्वालियर एवं चंबल संभाग के ज़िलों में प्रमुखता से पाई जाती है। इन संभागों के ज़िलों में इस जनजाति की जनसंख्या का 84.65 प्रतिशत निवास करता है। शेष भाग भोपाल, सागर, रीवा, इंदौर और उज्जैन संभागों में निवास करता है। पुराने समय में यह समस्त क्षेत्र वनाच्छादित था और यह जनजाति शिकार और संचयन से अपना जीवन-यापन करती थी, किंतु अब अधिकांश सहरिया या तो छोटे किसान हैं या मजदूर। इनका रहन-सहन और धार्मिक मान्यताएँ क्षेत्र के अन्य हिन्दू समाज जैसी ही हैं, किंतु गोदाना गुदाने की परंपरा अभी भी प्रचलित है। सहरिया जनजाति मोटे अन्न पर निर्भर हैं। इस जाति के लोग शराब और बीड़ी के विशेष शौकीन होते हैं।[1]
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ मध्य प्रदेश की जनजाति (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 28 अक्टूबर, 2012।
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