ठग जाति: Difference between revisions
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'''ठग''' ([[संस्कृत भाषा]] में स्थग, | '''ठग''' ([[संस्कृत भाषा]] में स्थग, अर्थात् चोर, बदमाश) पेशेवर हत्यारों के सुसंगठित परिसंघ के सदस्य, जो सैकड़ों [[वर्ष|वर्षों]] तक दल बनाकर [[भारत]] भर में घूमते रहे।<ref>ठगों का सबसे पुराना प्रामाणिक विवरण [[ज़ियाउद्दीन बरनी]] की कृति 'तारीख़े फ़िरोज़शाही' में मिलता है, जो लगभग 1356 की है।</ref> ठग चालाकी से राहगीरों का विश्वास प्राप्त कर लेते थे और उनके साथ शामिल हो जाते थे। मौक़ा पाकर वे उनके गले में रुमाल या फंदा डाल कर उनकी हत्या कर देते थे और उनका माल लूटकर उन्हें दफ़ना देते थे। यह सब कुछ विशेष धार्मिक अनुष्ठानों के बाद प्राचीन और कठोर नियमों के अनुसार किया जाता था, जिसमें गैंती का पवित्रीकरण और शक्कर का अर्पण प्रमुख था। हालांकि ठग अपनी उत्पत्ति सात [[मुस्लिम]] जनजातियों से मानते थे, लेकिन [[हिंदू]] शुरू से ही जुड़ गए थे। बहरहाल, उनके द्वारा विध्वंस की देवी काली की पूजा जैसे आचार तथा धार्मिक मान्यताएं किसी भी तरह [[इस्लाम]] के प्रभाव को नहीं दर्शाती है। यह बिरादरी अपनी गुप्त बोली रमसी तथा संकेतों का उपयोग करती थी, जिससे इसके सदस्य एक-दूसरे को पहचानते थे। | ||
हालांकि इन दलों को समाप्त करने के यदा-कदा प्रयास किए गए, लेकिन इस व्यवस्था को गंभीर चोट जब पहुंची, जब [[लॉर्ड विलियम बैंटिक]] ([[भारत]] के [[गवर्नर जनरल|गवर्नर-जनरल]], 1833-35) ने इनके ख़िलाफ़ कठोर क़दम उठाए। उनके प्रमुख दूत कैप्टन विलियम स्लीमैन ने कई रियासतों में अधिकारियों की मदद से इस परेशानी को हल करने में इतनी सफलता प्राप्त की कि 1831 से 1837 के बीच कम से कम 3,266 ठग पकड़े गए, जिनमें से 412 को फांसी दे दी गई, 483 सरकारी गवाह बन गए तथा अन्य सभी को देश निकाला या आजीवन कारावास की सज़ा दी गई। इसके बाद यह बिरादरी समाप्त हो गई। | हालांकि इन दलों को समाप्त करने के यदा-कदा प्रयास किए गए, लेकिन इस व्यवस्था को गंभीर चोट जब पहुंची, जब [[लॉर्ड विलियम बैंटिक]] ([[भारत]] के [[गवर्नर जनरल|गवर्नर-जनरल]], 1833-35) ने इनके ख़िलाफ़ कठोर क़दम उठाए। उनके प्रमुख दूत कैप्टन विलियम स्लीमैन ने कई रियासतों में अधिकारियों की मदद से इस परेशानी को हल करने में इतनी सफलता प्राप्त की कि 1831 से 1837 के बीच कम से कम 3,266 ठग पकड़े गए, जिनमें से 412 को फांसी दे दी गई, 483 सरकारी गवाह बन गए तथा अन्य सभी को देश निकाला या आजीवन कारावास की सज़ा दी गई। इसके बाद यह बिरादरी समाप्त हो गई। |
Revision as of 07:46, 7 November 2017
ठग (संस्कृत भाषा में स्थग, अर्थात् चोर, बदमाश) पेशेवर हत्यारों के सुसंगठित परिसंघ के सदस्य, जो सैकड़ों वर्षों तक दल बनाकर भारत भर में घूमते रहे।[1] ठग चालाकी से राहगीरों का विश्वास प्राप्त कर लेते थे और उनके साथ शामिल हो जाते थे। मौक़ा पाकर वे उनके गले में रुमाल या फंदा डाल कर उनकी हत्या कर देते थे और उनका माल लूटकर उन्हें दफ़ना देते थे। यह सब कुछ विशेष धार्मिक अनुष्ठानों के बाद प्राचीन और कठोर नियमों के अनुसार किया जाता था, जिसमें गैंती का पवित्रीकरण और शक्कर का अर्पण प्रमुख था। हालांकि ठग अपनी उत्पत्ति सात मुस्लिम जनजातियों से मानते थे, लेकिन हिंदू शुरू से ही जुड़ गए थे। बहरहाल, उनके द्वारा विध्वंस की देवी काली की पूजा जैसे आचार तथा धार्मिक मान्यताएं किसी भी तरह इस्लाम के प्रभाव को नहीं दर्शाती है। यह बिरादरी अपनी गुप्त बोली रमसी तथा संकेतों का उपयोग करती थी, जिससे इसके सदस्य एक-दूसरे को पहचानते थे।
हालांकि इन दलों को समाप्त करने के यदा-कदा प्रयास किए गए, लेकिन इस व्यवस्था को गंभीर चोट जब पहुंची, जब लॉर्ड विलियम बैंटिक (भारत के गवर्नर-जनरल, 1833-35) ने इनके ख़िलाफ़ कठोर क़दम उठाए। उनके प्रमुख दूत कैप्टन विलियम स्लीमैन ने कई रियासतों में अधिकारियों की मदद से इस परेशानी को हल करने में इतनी सफलता प्राप्त की कि 1831 से 1837 के बीच कम से कम 3,266 ठग पकड़े गए, जिनमें से 412 को फांसी दे दी गई, 483 सरकारी गवाह बन गए तथा अन्य सभी को देश निकाला या आजीवन कारावास की सज़ा दी गई। इसके बाद यह बिरादरी समाप्त हो गई।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ ठगों का सबसे पुराना प्रामाणिक विवरण ज़ियाउद्दीन बरनी की कृति 'तारीख़े फ़िरोज़शाही' में मिलता है, जो लगभग 1356 की है।
बाहरी कड़ियाँ
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