दीवान-ए-ख़ास (आगरा): Difference between revisions
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*'दीवान-ए-ख़ास' दो हिस्सों में विभाजित है, जो तीन बुर्जों से आपस में जुड़ा हुआ है। | *'दीवान-ए-ख़ास' दो हिस्सों में विभाजित है, जो तीन बुर्जों से आपस में जुड़ा हुआ है। | ||
Latest revision as of 07:55, 7 November 2017
दीवान-ए-ख़ास 1637 ई. में मुग़ल बादशाह शाहजहाँ द्वारा आगरा के क़िले में बनवाया गया था। यह सफ़ेद संगमरमर से निर्मित एक आयताकार इमारत थी। इस इमारत का प्रयोग बादशाह के उच्चाधिकारियों की गोष्ठी एवं उच्च स्तर की मंत्रणा आदि के लिये होता था।
- 'दीवान-ए-ख़ास' में केवल महत्त्वपूर्ण राज्य के अमीर एवं बादशाह के उच्चाधिकारी ही आ-जा सकते थे।
- संगमरमर से निर्मित फर्श वाली इस इमारत में मेहराब स्वर्ण एवं रंगों से सजे हैं।
- इमारत में अन्दर की छत क़ीमती चाँदी से निर्मित थी तथा उसमें संगमरमर, सोने और बहुमूल्य पत्थरों की मिली-जुली सजावट थी, जो उस पर खुदे फ़ारसी अभिलेख- 'अगर फ़िरदौस बररूये ज़मी अस्त, हमीं अस्त, उ हमीं अस्त, उ हमीं अस्त, अर्थात् "यदि भूमि पर कही परमसुख का स्वर्ग है, तो यहीं है, यहीं है, दूसरा कोई नहीं" को चरितार्थ करती थी।
- 'दीवान-ए-ख़ास' दो हिस्सों में विभाजित है, जो तीन बुर्जों से आपस में जुड़ा हुआ है।
- REDIRECTसाँचा:इन्हें भी देखें
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