पारधी जनजाति

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पारधी जनजाति मध्य प्रदेश राज्य के रायसेन एवं सीहोर में पाई जाती है। 'पारधी' मराठी शब्द 'पारध' का तद्भव रूप है, जिसका अर्थ होता है- 'आखेट'। इस जाति का मुख्य व्यवसाय जाल में पशु-पक्षियों एवं जानवरों को फँसाकर उनका शिकार करना है। मोटे तौर पर पारधी जनजाति के साथ बहेलियों को भी शामिल कर लिया जाता है। अनुसूचित जनजातियों की शासकीय सूची में भी इस जनजाति के अंतर्गत बहेलियों को सम्मिलित किया गया है।

निवास स्थान तथा शिकार

मध्य प्रदेश के एक बड़े भाग में पारधी पाए जाते हैं। पारधी और शिकारी में मुख्य अंतर यह है कि शिकारी आखेट करने में बंदूकों का उपयोग करते हैं, जबकि पारधी इसके बदले जाल का इस्तेमाल करते हैं। पारधियों द्वारा बंदूक के स्थान पर जाल का उपयोग किन्हीं धार्मिक विश्वासों के आधार पर किया जाता है। उनका मानना है कि महादेव ने उन्हें वन पशुओं को जाल से पकड़ने की कला सिखाकर बंदूक से पशुओं के शिकार के पाप से बचा लिया है। फिर भी इनके उपभेद भील पारधियों में बंदूक से शिकार करने में कोई प्रतिबंध नहीं है। भील पारधी भोपाल, रायसेन और सीहोर ज़िलों में पाए जाते हैं।[1]

उपजातियाँ

  • गोसाई पारधी - गोसाई पारधी गैरिक वस्त्र धारण करते हैं तथा भगवा वस्त्रधारी साधुओं जैसे दिखाई देते हैं। ये हिरणों का शिकार करते हैं।
  • चीता पारधी - ये लोग कुछ सौ वर्ष पूर्व तक चीता पालते थे, किंतु अब भारत की सीमा रेखा से चीता विलुप्त हो गया है। अत: अब चीता पारधी नाम का पारधियों का एक वर्ग ही शेष बचा है। चीता पारधियों की ख्याति समूची दुनिया में थी। मुग़ल बादशाह अकबर और अन्य बादशाहों के यहाँ चीता पारधी नियमित सेवक हुआ करते थे। जब भारत में चीता पाया जाता था, तब चीता पारधी उसे पालतू बनाने का कार्य करते और शिकार करने की ट्रनिंग देते थे।
  • भील पारधी - ये बंदूकों से शिकार किया करते थे।
  • लंगोटी पारधी - इस उपजाति में वस्त्र के नाम पर केवल लंगोटी ही पहनी जाती है।
  • टाकनकार और टाकिया पारधी - सामान्यत: शिकारी और हांका लगाने वाले पारधी।
  • बंदर वाला पारधी - बंदर नचाने वाले पारधी।
  • शीशी का तेल वाले पारधी - पुराने समय में मगरमच्छ आदि का तेल निकालने वाले पारधी।
  • फाँस पारधी - शिकार को जाल में पकड़ने वाले।

गोत्र

बहेलियों का एक उपवर्ग भी है, जो 'कारगर' कहलाता है। यह केवल काले रंग के पक्षियों का ही शिकार करता है। इनके सभी गोत्र राजपूतों से मिलते हैं, जैसे- सीदिया, सोलंकी, चौहान और राठौर आदि। सभी पारधी देवी के आराधक हैं। लंगोटी पारधी चांदी की देवी की प्रतिमा रखते हैं। यही कारण है कि लंगोटी पारधियों की महिलाएँ कमर से नीचे चांदी के आभूषण धारण नहीं करती और न ही घुटनों के नीचे धोती। उनकी मान्यता है कि ऐसा करने से देवी की बराबरी करने का भाव आ जाता है।[1]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 1.0 1.1 मध्य प्रदेश की जनजातियाँ (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 28 अक्टूबर, 2012।

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