Difference between revisions of "सारस्वत"

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[[ब्रह्मा]] के पुत्र [[भृगु]] ने तपस्या से युक्त लोक-मंगलकारी [[दधीचि]] को उत्पन्न किया था। मुनि दधीचि की घोर तपस्या से [[इंद्र]] भयभीत हो उठे। अत: उन्होंने अनेक [[भारत के फल|फलों]]-[[भारत के फूल|फूलों]] इत्यादि से मुनि को रिझाने के असफल प्रयास किये। अन्त में इंद्र ने 'अलंबूषा' नाम की एक अप्सरा को दधीचि का तप भंग करने के लिए भेजा। वे देवताओं का तर्पण कर रहे थे। सुन्दरी अप्सरा को वहाँ देखकर उनका वीर्य रुस्खलित हो गया। [[सरस्वती नदी]] ने उसे अपनी कुक्षी में धारण किया तथा एक पुत्र के रूप में जन्म दिया, जो कि सारस्वत कहलाया। पुत्र को लेकर वह दधीचि के पास गई तथा पूर्वघटित सब याद दिलाया। दधीचि ने प्रसन्नतापूर्वक अपने पुत्र का माथा सूँघा और सरस्वती को वर दिया कि अनावृष्टि के बारह वर्ष में वही देवताओं, पितृगणों, अप्सराओं और गंधर्वों को तृप्त करेगी। नदी अपने पुत्र को लेकर पुन: चली गई।
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{{बहुविकल्प|बहुविकल्पी शब्द=सारस्वत|लेख का नाम=सारस्वत (बहुविकल्पी)}}
  
कालान्तर में देवासुर संग्राम में इंद्र को शत्रु विनाशक [[अस्त्र शस्त्र|शस्त्र]] बनाने के लिए दधीचि की अस्थियों की आवश्यकता पड़ी। दधीचि ने प्रसन्नतापूर्वक अपनी [[दधीचि का अस्थि दान|अस्थियों]] का समर्पण कर दिया। फलत: देह त्याग वे अक्षय लोकों में चले गये। अस्थि निर्मित अस्त्रों के प्रयोग के कारण बारह वर्ष तक अनावृष्टि नहीं। सब लोग इधर-उधर भागकर भोजन प्राप्त करने का प्रयास करते रहे। सारस्वत एक मात्र ऐसे मुनि बालक थे, जो कि भोजन की ओर निश्चिंत रहे। सरस्वती नदी न केवल जल प्रदान करती थी, अपितु भोजनार्थ मछलियाँ भी प्रदान करती रहती थी। सारस्वत का कार्य वेदपाठ इत्यादि था। अनावृष्टि की समाप्ति के उपरान्त मालूम पड़ा कि नित्य वेदपाठ न करने के कारण ब्राह्मण उस विद्या को पूरी तरह से नहीं जानते। अत: सब लोगों ने मिलकर धर्म की रक्षा के लिए बालक सारस्वत को गुरु धारण किया तथा उनसे विधिपूर्वक वेदों का उपदेश पाकर धर्म का पुन: अनुष्ठान किया।<ref>[[दधीचि]] [[महाभारत]], [[शल्य पर्व]], 51|5-53</ref>
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'''सारस्वत''' [[भारत]] की पौराणिक नदी [[सरस्वती नदी|सरस्वती]] के किनारे रहने वालों को कहा जाता है। एक अन्य मान्यता के अनुसार सरस्वती [[दधीचि|दधीचि ऋषि]] से सारस्वत कुल का उत्पन्न होना बताया गया है। सरभ ऋषि की संतान के रूप में भी इनकी प्रसिद्धि है।
  
{{लेख प्रगति
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*सारस्वत प्रदेश [[हस्तिनापुर]] के पश्चिमोत्तर भाग में स्थित था।
|आधार=
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*इस देश के निवासी [[ब्राह्मण]] भी सारस्वत कहे जाते हैं, जो पंचगौड़ ब्राह्मणों की एक शाखा है।
|प्रारम्भिक=प्रारम्भिक1
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*पंचगौड़ों में निम्न ब्राह्मण सम्मिलित किये जाते हैं-
|माध्यमिक=
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#[[गौड़|गौड़]]
|पूर्णता=
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#सारस्वत
|शोध=
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#[[कान्यकुब्ज ब्राह्मण|कान्यकुब्ज]]
}}
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#मैथिल
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#उत्कल
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*एक कल्प विशेष का नाम भी 'सारस्वत' है।
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{{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक=प्रारम्भिक1|माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }}
 
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
 
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
 
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==संबंधित लेख==
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{{जातियाँ और जन जातियाँ}}
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[[Category:जातियाँ और जन जातियाँ]][[Category:पौराणिक कोश]][[Category:संस्कृति कोश]]
 
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Latest revision as of 10:23, 29 July 2013

chitr:Disamb2.jpg sarasvat ek bahuvikalpi shabd hai any arthoan ke lie dekhean:- sarasvat (bahuvikalpi)

sarasvat bharat ki pauranik nadi sarasvati ke kinare rahane valoan ko kaha jata hai. ek any manyata ke anusar sarasvati v dadhichi rrishi se sarasvat kul ka utpann hona bataya gaya hai. sarabh rrishi ki santan ke roop mean bhi inaki prasiddhi hai.

  • sarasvat pradesh hastinapur ke pashchimottar bhag mean sthit tha.
  • is desh ke nivasi brahman bhi sarasvat kahe jate haian, jo panchagau d brahmanoan ki ek shakha hai.
  • panchagau doan mean nimn brahman sammilit kiye jate haian-
  1. gau d
  2. sarasvat
  3. kanyakubj
  4. maithil
  5. utkal
  • ek kalp vishesh ka nam bhi 'sarasvat' hai.


panne ki pragati avastha
adhar
prarambhik
madhyamik
poornata
shodh

tika tippani aur sandarbh

sanbandhit lekh