महात्मा गाँधी के अनमोल वचन: Difference between revisions
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*एक सच्चे कलाकार के लिए सिर्फ़ वही चेहरा सुंदर होता है जो बाहरी दिखावे से परे, आत्मा की सुंदरता से चमकता है। | *एक सच्चे कलाकार के लिए सिर्फ़ वही चेहरा सुंदर होता है जो बाहरी दिखावे से परे, आत्मा की सुंदरता से चमकता है। | ||
*चरित्र और शैक्षणिक सुविधाएँ ही वह पूँजी है जो माता-पिता अपने संतान में समान रूप से स्थानांतरित कर सकते हैं। | *चरित्र और शैक्षणिक सुविधाएँ ही वह पूँजी है जो माता-पिता अपने संतान में समान रूप से स्थानांतरित कर सकते हैं। | ||
*विश्व के सारे | *विश्व के सारे महान् '''[[धर्म]]''' मानवजाति की समानता, भाईचारे और सहिष्णुता का संदेश देते हैं। | ||
*वक्ता के विकास और चरित्र का वास्तविक प्रतिबिंब '[[भाषा]]' है। | *वक्ता के विकास और चरित्र का वास्तविक प्रतिबिंब '[[भाषा]]' है। | ||
*विश्वविद्यालय का स्थान सर्वोच्च है। किसी भी वैभवशाली इमारत का अस्तित्व तभी संभव है जब उसकी नपव ठोस हो। | *विश्वविद्यालय का स्थान सर्वोच्च है। किसी भी वैभवशाली इमारत का अस्तित्व तभी संभव है जब उसकी नपव ठोस हो। | ||
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*प्रत्येक भौतिक आपदा के पीछे एक दैवी उद्देश्य विद्यमान होता है । | *प्रत्येक भौतिक आपदा के पीछे एक दैवी उद्देश्य विद्यमान होता है । | ||
*पीडा द्वारा तर्क मज़बूत होता है और पीडा ही व्यक्ति की अंत–दृष्टि खोल देती है। | *पीडा द्वारा तर्क मज़बूत होता है और पीडा ही व्यक्ति की अंत–दृष्टि खोल देती है। | ||
*पराजय के क्षणों में ही नायकों का निर्माण होता है। अंतः सफलता का सही अर्थ | *पराजय के क्षणों में ही नायकों का निर्माण होता है। अंतः सफलता का सही अर्थ महान् असफलताओं की श्रृंखला है।<ref>{{cite web |url=http://www.hindi.mkgandhi.org/efg.htm |title=गांधीजी के शब्दों में |accessmonthday=20 जनवरी |accessyear=2011 |last= |first= |authorlink= |format=एच.टी.एम.एल |publisher= |language=[[हिन्दी]]}}</ref> | ||
*मुठ्ठी भर संकल्पवान लोग, जिनकी अपने लक्ष्य में दृढ़ आस्था है, इतिहास की धारा को बदल सकते हैं। - <ref>{{cite web |url=http://hindisikhen.blogspot.com/2011/02/blog-post_6421.html |title=साहस / निर्भीकता / पराक्रम/ आत्म्विश्वास / प्रयत्न |accessmonthday=[[14 अप्रॅल]] |accessyear=[[2011]] |last= |first= |authorlink= |format=एच.टी.एम.एल |publisher=hindisikhen |language=[[हिन्दी]]}}</ref> | *मुठ्ठी भर संकल्पवान लोग, जिनकी अपने लक्ष्य में दृढ़ आस्था है, इतिहास की धारा को बदल सकते हैं। - <ref>{{cite web |url=http://hindisikhen.blogspot.com/2011/02/blog-post_6421.html |title=साहस / निर्भीकता / पराक्रम/ आत्म्विश्वास / प्रयत्न |accessmonthday=[[14 अप्रॅल]] |accessyear=[[2011]] |last= |first= |authorlink= |format=एच.टी.एम.एल |publisher=hindisikhen |language=[[हिन्दी]]}}</ref> | ||
* अहिंसा का मार्ग तलवार की धार पर चलने जैसा है। जरा सी गफलत हुई कि नीचे आ गिरे। घोर अन्याय करने वाले पर भी गुस्सा न करें, बल्कि उसे प्रेम करें, उसका भला चाहें। लेकिन प्रेम करते हुए भी अन्याय के वश में न हो। | * अहिंसा का मार्ग तलवार की धार पर चलने जैसा है। जरा सी गफलत हुई कि नीचे आ गिरे। घोर अन्याय करने वाले पर भी गुस्सा न करें, बल्कि उसे प्रेम करें, उसका भला चाहें। लेकिन प्रेम करते हुए भी अन्याय के वश में न हो। | ||
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* आत्मा से संबंध रखने वाली बातों में पैसे का कोई स्थान नहीं है। | * आत्मा से संबंध रखने वाली बातों में पैसे का कोई स्थान नहीं है। | ||
* आदमी को अपने को धोखा देने की शक्ति दूसरों को धोखा देने की शक्ति से कहीं अधिक है। इस बात का प्रत्यक्ष प्रमाण हरेक समझदार व्यक्ति है। | * आदमी को अपने को धोखा देने की शक्ति दूसरों को धोखा देने की शक्ति से कहीं अधिक है। इस बात का प्रत्यक्ष प्रमाण हरेक समझदार व्यक्ति है। | ||
* अशांति के बिना शांति नहीं मिलती। लेकिन अशांति हमारी अपनी हो। हमारे मन का जब खूब मंथन हो जाएगा, जब हम | * अशांति के बिना शांति नहीं मिलती। लेकिन अशांति हमारी अपनी हो। हमारे मन का जब खूब मंथन हो जाएगा, जब हम दु:ख की अग्नि में खूब तप जाएंगे, तभी हम सच्ची शांति पा सकेंगे। | ||
* स्वस्थ आलोचना मनुष्य को जीवन का सही मार्ग दिखाती है। जो व्यक्ति उससे परेशान होता है, उसे अपने बारे में गंभीरता से सोचना चाहिए। | * स्वस्थ आलोचना मनुष्य को जीवन का सही मार्ग दिखाती है। जो व्यक्ति उससे परेशान होता है, उसे अपने बारे में गंभीरता से सोचना चाहिए। | ||
* सही चीज़ के पीछे वक्त देना हमको खटकता है, निकम्मी चीज़ के पीछे ख्वार हैं, और खुश होते हैं। | * सही चीज़ के पीछे वक्त देना हमको खटकता है, निकम्मी चीज़ के पीछे ख्वार हैं, और खुश होते हैं। | ||
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* संगीत गले से ही निकलता है, ऐसा नहीं है। मन का संगीत है, इंद्रियों का है, हृदय का है। | * संगीत गले से ही निकलता है, ऐसा नहीं है। मन का संगीत है, इंद्रियों का है, हृदय का है। | ||
* समानता का बर्ताव ऐसा होना चाहिए कि नीचे वाले को उसकी खबर भी न हो। | * समानता का बर्ताव ऐसा होना चाहिए कि नीचे वाले को उसकी खबर भी न हो। | ||
* जिज्ञासा बिना ज्ञान नहीं होता। | * जिज्ञासा बिना ज्ञान नहीं होता। दु:ख बिना सुख नहीं होता। | ||
* जिस तरह अध्ययन करना अपने आप में कला है उसी प्रकार चिन्तन करना भी एक कला है। | * जिस तरह अध्ययन करना अपने आप में कला है उसी प्रकार चिन्तन करना भी एक कला है। | ||
* जो मनुष्य जाति की सेवा करता है वह ईश्वर की सेवा करता है। | * जो मनुष्य जाति की सेवा करता है वह ईश्वर की सेवा करता है। | ||
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* प्रेम द्वेष को परास्त करता है। | * प्रेम द्वेष को परास्त करता है। | ||
* एक स्थिति ऐसी होती है जब मनुष्य को विचार प्रकट करने की आवश्यकता नहीं रहती। उसके विचार ही कर्म बन जाते हैं, वह संकल्प से कर्म कर लेता है। ऐसी स्थिति जब आती है तब मनुष्य अकर्म में कर्म देखता है, अर्थात अकर्म से कर्म होता है। | * एक स्थिति ऐसी होती है जब मनुष्य को विचार प्रकट करने की आवश्यकता नहीं रहती। उसके विचार ही कर्म बन जाते हैं, वह संकल्प से कर्म कर लेता है। ऐसी स्थिति जब आती है तब मनुष्य अकर्म में कर्म देखता है, अर्थात अकर्म से कर्म होता है। | ||
* कोई भी संस्कृति जीवित नहीं रह सकती यदि वह अपने को अन्य से | * कोई भी संस्कृति जीवित नहीं रह सकती यदि वह अपने को अन्य से पृथक् रखने का प्रयास करे। | ||
* कोई असत्य से सत्य नहीं पा सकता। सत्य को पाने के लिए हमेशा सत्य का आचरण करना ही होगा। | * कोई असत्य से सत्य नहीं पा सकता। सत्य को पाने के लिए हमेशा सत्य का आचरण करना ही होगा। | ||
* कवि के अर्थ का अंत ही नहीं है। जैसे मनुष्य का वैसे ही महाकाव्यों के अर्थ का भी विकास होता ही रहता है। | * कवि के अर्थ का अंत ही नहीं है। जैसे मनुष्य का वैसे ही महाकाव्यों के अर्थ का भी विकास होता ही रहता है। | ||
* दुनिया में रहते हुए भी सेवाभाव से और सेवा के लिए जो जीता है, वह | * दुनिया में रहते हुए भी सेवाभाव से और सेवा के लिए जो जीता है, वह संन्यासी है। | ||
* दुनिया का अस्तित्व शस्त्रबल पर नहीं, बल्कि सत्य, दया और आत्मबल पर है। | * दुनिया का अस्तित्व शस्त्रबल पर नहीं, बल्कि सत्य, दया और आत्मबल पर है। | ||
* ग़लतियां करके, उनको मंजूर करके और उन्हें सुधार कर ही मैं आगे बढ़ सकता हूं। पता नहीं क्यों, किसी के बरजने से या किसी की चेतावनी से मैं उन्नति कर ही नहीं सकता। ठोकर लगे और दर्द उठे तभी मैं सीख पाता हूं। | * ग़लतियां करके, उनको मंजूर करके और उन्हें सुधार कर ही मैं आगे बढ़ सकता हूं। पता नहीं क्यों, किसी के बरजने से या किसी की चेतावनी से मैं उन्नति कर ही नहीं सकता। ठोकर लगे और दर्द उठे तभी मैं सीख पाता हूं। |
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ गांधीजी के शब्दों में (हिन्दी) (एच.टी.एम.एल)। । अभिगमन तिथि: 20 जनवरी, 2011।
- ↑ साहस / निर्भीकता / पराक्रम/ आत्म्विश्वास / प्रयत्न (हिन्दी) (एच.टी.एम.एल) hindisikhen। अभिगमन तिथि: 14 अप्रॅल, 2011।