कोरबा जनजाति: Difference between revisions
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कोरबाओं की अपनी पंचायत होती है, जिसे 'मैयारी' कहते हैं। सारे गाँव के कोरबाओं के बीच एक प्रधान होता है, जो 'मुखिया' कहलाता है। बड़े-बूढ़े तथा समझदार लोग पंचायत के सदस्य होते हैं। पंचायत का फैसला सबको मान्य होता है। | कोरबाओं की अपनी पंचायत होती है, जिसे 'मैयारी' कहते हैं। सारे गाँव के कोरबाओं के बीच एक प्रधान होता है, जो 'मुखिया' कहलाता है। बड़े-बूढ़े तथा समझदार लोग पंचायत के सदस्य होते हैं। पंचायत का फैसला सबको मान्य होता है। |
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कोरबा जनजाति मध्य प्रदेश में छोटा नागपुर से आयी है। यह कोल प्रजाति की जनजाति है। कोरबा बहुत ही पिछड़ी जनजातियों में से एक है। यह जनजाति उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर, मध्य प्रदेश के जशपुर, सरगुजा और बिहार के पलामू ज़िलों में मुख्य रूप से पायी जाती है। उत्तर प्रदेश के कोरबा का मजूमदार और पलामू के कोरबा का सण्डवार नामक विद्वानों ने विस्तृत अध्ययन किया था। पहाड़ों में रहने वाले कोरबा 'पहाड़ी कोरबा' तथा मैदानी क्षेत्रों के कोरबा 'डीह कोरबा' कहलाते हैं। मिर्जापुर के कोरबा अपने को डीह कोरबा तथा पहाड़ी कोरबा के अतिरिक्त 'डंड कोरबा' श्रेणि का बताते हैं।
रंग-रूप
कोरबा जनजाति के लोग कम ऊँचाई के तथा काले रंग के होते हैं। ये शरीर से मजबूत लोग हैं, किन्तु उनके पैर शरीर की तुलना में कुछ छोटे दिखई पड़ते हैं। पुरुषों की औसत ऊंचाई 5 फिट 3 इंच तथा महिलाओं की 4 फिट 9 इंच पायी जाती है। पहाड़ी कोरबाओं की दाढ़ी और मूंछों के अलावा शरीर के बाल भी बड़े रहते हैं। साधारणत: वे कुरूप दिखलाई देते हैं।[1]
पंचायत
कोरबाओं की अपनी पंचायत होती है, जिसे 'मैयारी' कहते हैं। सारे गाँव के कोरबाओं के बीच एक प्रधान होता है, जो 'मुखिया' कहलाता है। बड़े-बूढ़े तथा समझदार लोग पंचायत के सदस्य होते हैं। पंचायत का फैसला सबको मान्य होता है।
निवास तथा कृषि
इनका घर बहुत ही साधारण होता है। कोरबा जनजाति के लोग जंगल में घास-फूस से बने छोटे-छोटे घरों में रहते हैं। जो लोग गाँव में बस गए हैं, वे बाँस और लकड़ी के घर बनाते और खपरैल तथा पुआल से छाते हैं। पहाड़ी कोरबा पहले 'बेआरा' खेती भी करते थे, लेकिन सरकारी नियमों के तरत इस प्रकार की खेती पर बंदिश है। डीह कोरबा साधारण खेती करते हैं।
उपजाति
कोरबा जनजाति की एक उपजाति 'कोरकू' है और जिस तरह सतपुड़ा की दूसरी कोरकू जनजाति मुसाई भी कहलाती है, उसी तरह कोरकू भी 'मुसाई' नाम से पहचाने जाते हैं। जिनका शाब्दिक अर्थ है- 'चोर' या 'डकैत'। कूक कोरबा और 'कूक' को एक ही जनजाति के दो उपभेद मानते हैं। जबकि ग्रिमर्सन भाषा के आधार पर उनकी भाषा को असुरों के अधिक निकट पाते हैं। कोरबा लोगों में 'मांझी' सम्मान सूचक पदवी मानी जाती है। संथालों में भी ऐसा ही है।[1]
जीवन-स्तर तथा विकास
पहाड़ी कोरबा मध्य प्रदेश की आदिम जातियों में से एक है, जिसका जीवन-स्तर तथा विकास अत्यंत ही प्रारंभिक व्यवस्था में है। यह उनके जीवन के प्रत्येक क्रिया-कलापों में देखा जा सकता है। रहन-सहन के मामले में वे शारीरिक स्वच्छता से कोसों दूर हैं। उनके सिर के बाल मैल के कारण रस्सी जैसी लटाओं में परिवर्तित हो जाते हैं। महिलाओं के कपड़े बहुत गंदे रहेते हैं। शरीर के अंग प्रत्यंगों पर मैल की परत पायी जाती है। महिलाएँ आभूषण के आधार पर केवल लाल रंग की चिन्दियाँ सिर पर बांध लेती है। उनकी सामाजिक मान्यताएँ भी अन्य आदिवासियों की तुलना में काफ़ी पिछड़ी हुई हैं, जैसे- कहा जाता है कि पहाड़ी कोरबा कुछ परिस्थितियों में बहन से भी विवाह कर सकते हैं। पहाड़ी कोरबा में विवाह के लिए माँ-बाप की अनुमति की आवश्यकता नहीं होती है।
अंधविश्वास
कोरबा जनजाति में शिकार प्रियता के साथ शिकार से संबंधित अंधविश्वास ओर टोने-टोटके भी हैं, जैसे- शिकार पर जाते समय बच्चे का रोना अशुभ माना जाता है। कुण्टे के अनुसार, शिकार यात्रा पर जाते समय एक व्यक्ति ने अपने दो वर्षीय बच्चे को पत्थर पर पटक दिया, क्योंकि उसने रोना शुरू कर दया था। इसी भांति वे शिकार की यात्रा के पूर्व मुर्गों के सामने अन्न के कुछ दाने छिटका देते हैं। यदि मुर्गों ने ठोस दाने को पहले चुना तो यात्रा की सफलता असंदग्धि मानी जाती है। कोरबा लोगों में किसी प्रकार के आदर्श को महत्व नहीं दिया जाता। जंगल का क़ानून ही उनकी मानसिकता है। शिकार यात्रा के समय बच्चे का रोना अशुभ माना जाता है।[1]
व्यवसाय
कोरबाओं के क्षेत्रों में जलाऊ लकड़ी का विशेष महत्त्व है। शीतकाल में आदिवासी लकड़ियाँ जलाकर ही उष्णता प्राप्त करते हैं। नक़द पैसा उन्हें अधिकतर अचार की चिरौंजी से मिलता है। चिरौंजी की मांग तथा मूल्य दोनों में लगातार वृद्धि हो रही है। कोरबा लोग जड़ी-बूटियों को बेचना तो दूर उनके बारे में किसी अन्य को बताना भी पसंद नहीं करते।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ 1.0 1.1 1.2 मध्य प्रदेश की जनजातियाँ (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 31 अक्टूबर, 2012।
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