ब्रज एक अद्भुत संस्कृति -आदित्य चौधरी: Difference between revisions
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[[ब्रज]] का ज़िक्र आते ही जो सबसे पहली आवाज़ हमारी स्मृति में आती है, वह है घाटों से टकराती हुई [[यमुना]] की लहरों की आवाज़… [[कृष्ण]] के साथ-साथ खेलकर यमुना ने [[बुद्ध]] और [[महावीर]] के प्रवचनों को साक्षात उन्हीं के मुख से अपनी लहरों को थाम कर सुना… [[फ़ाह्यान]] की चीनी भाषा में कहे गये मो-तो-लो (मोरों का नृत्य स्थल ‘मथुरा’) को भी समझ लिया और [[प्लिनी]] के ‘जोमनेस’ उच्चारण को भी… यमुना की ये लहरें [[रसखान|रसख़ान]] और [[रहीम]] के दोहों पर झूमी हैं… [[सूरदास|सूर]] और [[मीरा]] के पदों पर नाची हैं… लेकिन [[महमूद ग़ज़नवी]] के नरसंहार से रक्ताभ हुई ये यमुना की सहमी हुई लहरों को [[तानसेन|मियां तानसेन]] की तोड़ी से कितनी राहत मिली थी यह तो यमुना ही जाने… [[अकबर|बादशाह अकबर]] के बनवाये हुए घाटों को अभी अच्छी तरह पखार भी न पायी थी यमुना… कि [[अहमद शाह अब्दाली]] ने इन लहरों को ब्रजवासियों के रक्त से सने उसके सिपाहियों के हाथों को धोने पर मजबूर किया… यह सब तो चलता ही रहा साथ ही साथ यमुना ने ही जन्म दिया ब्रज-संस्कृति को… | [[ब्रज]] का ज़िक्र आते ही जो सबसे पहली आवाज़ हमारी स्मृति में आती है, वह है घाटों से टकराती हुई [[यमुना]] की लहरों की आवाज़… [[कृष्ण]] के साथ-साथ खेलकर यमुना ने [[बुद्ध]] और [[महावीर]] के प्रवचनों को साक्षात उन्हीं के मुख से अपनी लहरों को थाम कर सुना… [[फ़ाह्यान]] की चीनी भाषा में कहे गये मो-तो-लो (मोरों का नृत्य स्थल ‘मथुरा’) को भी समझ लिया और [[प्लिनी]] के ‘जोमनेस’ उच्चारण को भी… यमुना की ये लहरें [[रसखान|रसख़ान]] और [[रहीम]] के दोहों पर झूमी हैं… [[सूरदास|सूर]] और [[मीरा]] के पदों पर नाची हैं… लेकिन [[महमूद ग़ज़नवी]] के नरसंहार से रक्ताभ हुई ये यमुना की सहमी हुई लहरों को [[तानसेन|मियां तानसेन]] की तोड़ी से कितनी राहत मिली थी यह तो यमुना ही जाने… [[अकबर|बादशाह अकबर]] के बनवाये हुए घाटों को अभी अच्छी तरह पखार भी न पायी थी यमुना… कि [[अहमद शाह अब्दाली]] ने इन लहरों को ब्रजवासियों के रक्त से सने उसके सिपाहियों के हाथों को धोने पर मजबूर किया… यह सब तो चलता ही रहा साथ ही साथ यमुना ने ही जन्म दिया ब्रज-संस्कृति को…[[चित्र:Krishn-title.jpg|right|250px]] | ||
ब्रज की संस्कृति के साथ ही 'ब्रज' शब्द का चलन [[भक्ति आंदोलन]] के दौरान पूरे चरम पर पहुँच गया। चौदहवीं-पन्द्रहवीं शताब्दी की कृष्ण भक्ति की व्यापक लहर ने ब्रज शब्द की पवित्रता को जन-जन में पूर्ण रूप से प्रचारित कर दिया। सूर, मीरां (मीरा) और रसख़ान के भजन तो जैसे आज भी ब्रज के वातावरण में गूंजते रहते हैं। कृष्ण भक्ति में ऐसा क्या है जिसने मीरां से राजसी रहन-सहन छुड़वा दिया और सूर की रचनाओं की गहराई को जानकर विश्व भर में इस विषय पर ही शोध होता रहा कि सूर वास्तव में दृष्टिहीन थे भी या नहीं। संगीत विशेषज्ञों की एक धारणा यह भी है कि ब्रज में सोलह हज़ार राग रागनियों का निर्माण हुआ था। जिन्हें कृष्ण की रानियाँ भी कहा जाता है।[[चित्र:Buddha-3.jpg|150px|right|border|बुद्ध प्रतिमा]] | ब्रज की संस्कृति के साथ ही 'ब्रज' शब्द का चलन [[भक्ति आंदोलन]] के दौरान पूरे चरम पर पहुँच गया। चौदहवीं-पन्द्रहवीं शताब्दी की कृष्ण भक्ति की व्यापक लहर ने ब्रज शब्द की पवित्रता को जन-जन में पूर्ण रूप से प्रचारित कर दिया। सूर, मीरां (मीरा) और रसख़ान के भजन तो जैसे आज भी ब्रज के वातावरण में गूंजते रहते हैं। कृष्ण भक्ति में ऐसा क्या है जिसने मीरां से राजसी रहन-सहन छुड़वा दिया और सूर की रचनाओं की गहराई को जानकर विश्व भर में इस विषय पर ही शोध होता रहा कि सूर वास्तव में दृष्टिहीन थे भी या नहीं। संगीत विशेषज्ञों की एक धारणा यह भी है कि ब्रज में सोलह हज़ार राग रागनियों का निर्माण हुआ था। जिन्हें कृष्ण की रानियाँ भी कहा जाता है।[[चित्र:Buddha-3.jpg|150px|right|border|बुद्ध प्रतिमा]] | ||
...कहते हैं कि आस्था के प्रश्नों के उत्तर इतिहास में नहीं खोजे जाते लेकिन आस्था जन्म देती है संस्कृति को और संस्कृति के स्थायित्व से ही जन्म लेती है कोई महान सभ्यता। दुनिया भर में नदियों ने हमें अनेक महान सभ्यताएँ दी हैं। [[सिन्धु नदी]] ने दी ‘[[सिन्धु घाटी सभ्यता|सिन्धु-घाटी सभ्यता]]’ ([[हड़प्पा]] और [[मुअन जो दड़ो|मुअन-जो-दाड़ो]])। सिन्धु सभ्यता की प्राचीन लिपि पढ़ी तो नहीं जा सकी लेकिन उस [[लिपि]] के अपने आप में पूर्ण और उन्नत होने पर सभी विद्वान सहमत हैं। मैसोपोटामियां और हड़प्पा में व्यापारिक संबंध कितने व्यवस्थित थे इसकी कहानी अनेक मुहरबंद पार्सलों पर लगी मुहरें कहती हैं। [[नील नदी]] (मिस्री भाषा में ‘इतेरू’) ने दी ‘मिस्र की सभ्यता’ जहाँ फ़राऊनों के बनवाये अद्भुत पिरॅमिडों को देखकर जो सवाल मस्तिष्क में आते हैं उनका उत्तर इतिहासकारों और वैज्ञानिकों के पास भी नहीं है। | ...कहते हैं कि आस्था के प्रश्नों के उत्तर इतिहास में नहीं खोजे जाते लेकिन आस्था जन्म देती है संस्कृति को और संस्कृति के स्थायित्व से ही जन्म लेती है कोई महान सभ्यता। दुनिया भर में नदियों ने हमें अनेक महान सभ्यताएँ दी हैं। [[सिन्धु नदी]] ने दी ‘[[सिन्धु घाटी सभ्यता|सिन्धु-घाटी सभ्यता]]’ ([[हड़प्पा]] और [[मुअन जो दड़ो|मुअन-जो-दाड़ो]])। सिन्धु सभ्यता की प्राचीन लिपि पढ़ी तो नहीं जा सकी लेकिन उस [[लिपि]] के अपने आप में पूर्ण और उन्नत होने पर सभी विद्वान सहमत हैं। मैसोपोटामियां और हड़प्पा में व्यापारिक संबंध कितने व्यवस्थित थे इसकी कहानी अनेक मुहरबंद पार्सलों पर लगी मुहरें कहती हैं। [[नील नदी]] (मिस्री भाषा में ‘इतेरू’) ने दी ‘मिस्र की सभ्यता’ जहाँ फ़राऊनों के बनवाये अद्भुत पिरॅमिडों को देखकर जो सवाल मस्तिष्क में आते हैं उनका उत्तर इतिहासकारों और वैज्ञानिकों के पास भी नहीं है। |
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20px|link=http://www.facebook.com/bharatdiscovery|फ़ेसबुक पर भारतकोश (नई शुरुआत) भारतकोश ‘ब्रज’ एक अद्भुत संस्कृति -आदित्य चौधरी ब्रज का ज़िक्र आते ही जो सबसे पहली आवाज़ हमारी स्मृति में आती है, वह है घाटों से टकराती हुई यमुना की लहरों की आवाज़… कृष्ण के साथ-साथ खेलकर यमुना ने बुद्ध और महावीर के प्रवचनों को साक्षात उन्हीं के मुख से अपनी लहरों को थाम कर सुना… फ़ाह्यान की चीनी भाषा में कहे गये मो-तो-लो (मोरों का नृत्य स्थल ‘मथुरा’) को भी समझ लिया और प्लिनी के ‘जोमनेस’ उच्चारण को भी… यमुना की ये लहरें रसख़ान और रहीम के दोहों पर झूमी हैं… सूर और मीरा के पदों पर नाची हैं… लेकिन महमूद ग़ज़नवी के नरसंहार से रक्ताभ हुई ये यमुना की सहमी हुई लहरों को मियां तानसेन की तोड़ी से कितनी राहत मिली थी यह तो यमुना ही जाने… बादशाह अकबर के बनवाये हुए घाटों को अभी अच्छी तरह पखार भी न पायी थी यमुना… कि अहमद शाह अब्दाली ने इन लहरों को ब्रजवासियों के रक्त से सने उसके सिपाहियों के हाथों को धोने पर मजबूर किया… यह सब तो चलता ही रहा साथ ही साथ यमुना ने ही जन्म दिया ब्रज-संस्कृति को…right|250px
पौराणिक ग्रंथों में मथुरा के अनेक उल्लेख हैं। वराह पुराण[2] में आया है- विष्णु कहते हैं कि इस पृथिवी या अन्तरिक्ष या पाताल लोक में कोई ऐसा स्थान नहीं है जो मथुरा के समान मुझे प्यारा हो- मथुरा मेरा प्रसिद्ध क्षेत्र है और मुक्तिदायक है, इससे बढ़कर मुझे कोई अन्य स्थल नहीं लगता। पद्म पुराण[3] में आया है- 'माथुरक नाम विष्णु को अत्यन्त प्रिय है'। हरिवंश पुराण[4] में मथुरा का सुन्दर वर्णन किया है: 'मथुरा मध्य-देश का ककुद (अर्थात् अत्यन्त महत्त्वपूर्ण स्थल) है, यह लक्ष्मी का निवास-स्थल है, या पृथिवी का श्रृंग है। इसके समान कोई अन्य नहीं है और यह प्रभूत धन-धान्य से पूर्ण है।'[5] |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ महाभारत आदिपर्व 221 | 46
- ↑ वराह पुराण 152 | 8 एवं 11
- ↑ पद्म पुराण 4 | 69 | 12
- ↑ हरिवंश पुराण, विष्णुपर्व, 57 | 2-3
- ↑ तस्मान्माथुरक नाम विष्णोरेकान्तवल्लभम्। पद्म पुराण 4 | 69 | 12
मध्यदेशस्य ककुदं धाम लक्ष्म्याश्च केवलम्।
श्रृंगं पृथिव्या: स्वालक्ष्यं प्रभूतधनधान्यवत्॥ हरिवंश पुराण, विष्णुपर्व, 57 | 2-3 - ↑ अंगुत्तरनिकाय 1 | 167, एकं समयं आयस्मा महाकच्छानो मधुरायं विहरति गुन्दावने [
- ↑ मज्झिम 2 | 84
- ↑ मथुरा का निवासी, या वहाँ उत्पन्न हुआ या मथुरा से आया हुआ
- ↑ पाणिनि, 4 | 2 | 82
- ↑ पाणिनि 4 | 3 | 98
- ↑ 3 | 1 | 138 एवं वार्तिक 'गविच विन्दे: संज्ञायाम्'
- ↑ बाल्मीकि रामायाण,किष्किन्धाकाण्ड़,त्रिचत्वारिंशः सर्गः।
तत्र म्लेच्छान् पुलिन्दांश्र्च शूरसेनां स्तथैव च।
प्रस्थलान् भरतांश्र्चैव कुरुंश्र्च सह मद्रकैः॥
काम्बोजयवनांश्र्चैव शकानां पत्तनानि च। - ↑ यह पुस्तक, लेखक की वेबसाइट, www.brajdiscovery.org पर उपलब्ध है।
- ↑ गोथिक शैली से अभिप्राय तिकोने मेहराबों वाली यूरोपीय शैली से है जिससे इमारत के विशाल होने का आभास होता है
- ↑ ट्रॅवल्स इन इंडिया लेखक: ज़्यां-बॅपतिस्ते तॅवरनियर अध्याय 12 पृष्ठ 272
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