ब्रज एक अद्भुत संस्कृति -आदित्य चौधरी: Difference between revisions
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ब्रज में वास्तुकला के भी विलक्षण प्रयोग हुए हैं। जिनमें [[उत्तर भारत|उत्तर-भारत]] में वास्तुशैली का उत्कृष्टतम सृजन [[वृंदावन]] का [[गोविन्ददेव मन्दिर वृन्दावन|गोविन्ददेव जी मंदिर]] है। इस मंदिर के निर्माण में उत्तर और दक्षिण भारत की हिन्दू मंदिर निर्माण शैली, जयपुर-राजस्थानी शैली, मुग़ल शैली, यूनानी शैली और गोथिक<ref>गोथिक शैली से अभिप्राय तिकोने मेहराबों वाली यूरोपीय शैली से है जिससे इमारत के विशाल होने का आभास होता है </ref> शैली का प्रयोग हुआ है। बादशाह [[अकबर]] ने भी इस मंदिर के निर्माण के लिए लाल पत्थर भिजवाया था। कहते हैं कि यह सात मंज़िल का था किन्तु अब चार ही बची हैं। [[गोवर्धन]] में हरदेव मंदिर, वृन्दावन में [[जुगल किशोर मंदिर वृन्दावन|जुगल किशोर]], राधा बल्लभ, [[गोपीनाथ जी मन्दिर वृन्दावन|गोपीनाथ]] और [[मदन मोहन मंदिर वृन्दावन|मदनमोहन मंदिर]] की गणना प्राचीन मंदिरों में होती है किन्तु अब इन मंदिरों में धार्मिक पर्यटक नहीं आते केवल इतिहास और पुरातत्व में रुचि रखने वाले पर्यटक ही आते हैं। [[चैतन्य महाप्रभु]] के शिष्यों-[[जीव गोस्वामी]], [[रूप गोस्वामी]] और [[सनातन गोस्वामी]] ने वृंदावन में इन मंदिरों का निर्माण कराने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। ये सभी मंदिर [[औरंगज़ेब]] के शासन में उजाड़े और तोड़े गये, साथ ही वृंदावन का नाम ‘मोमिना बाद’ और मथुरा का नाम ‘इस्लामाबाद’ कर दिया गया। | ब्रज में वास्तुकला के भी विलक्षण प्रयोग हुए हैं। जिनमें [[उत्तर भारत|उत्तर-भारत]] में वास्तुशैली का उत्कृष्टतम सृजन [[वृंदावन]] का [[गोविन्ददेव मन्दिर वृन्दावन|गोविन्ददेव जी मंदिर]] है। इस मंदिर के निर्माण में उत्तर और दक्षिण भारत की हिन्दू मंदिर निर्माण शैली, जयपुर-राजस्थानी शैली, मुग़ल शैली, यूनानी शैली और गोथिक<ref>गोथिक शैली से अभिप्राय तिकोने मेहराबों वाली यूरोपीय शैली से है जिससे इमारत के विशाल होने का आभास होता है </ref> शैली का प्रयोग हुआ है। बादशाह [[अकबर]] ने भी इस मंदिर के निर्माण के लिए लाल पत्थर भिजवाया था। कहते हैं कि यह सात मंज़िल का था किन्तु अब चार ही बची हैं। [[गोवर्धन]] में हरदेव मंदिर, वृन्दावन में [[जुगल किशोर मंदिर वृन्दावन|जुगल किशोर]], राधा बल्लभ, [[गोपीनाथ जी मन्दिर वृन्दावन|गोपीनाथ]] और [[मदन मोहन मंदिर वृन्दावन|मदनमोहन मंदिर]] की गणना प्राचीन मंदिरों में होती है किन्तु अब इन मंदिरों में धार्मिक पर्यटक नहीं आते केवल इतिहास और पुरातत्व में रुचि रखने वाले पर्यटक ही आते हैं। [[चैतन्य महाप्रभु]] के शिष्यों-[[जीव गोस्वामी]], [[रूप गोस्वामी]] और [[सनातन गोस्वामी]] ने वृंदावन में इन मंदिरों का निर्माण कराने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। ये सभी मंदिर [[औरंगज़ेब]] के शासन में उजाड़े और तोड़े गये, साथ ही वृंदावन का नाम ‘मोमिना बाद’ और मथुरा का नाम ‘इस्लामाबाद’ कर दिया गया। | ||
मथुरा में सबसे प्राचीन और विशालतम मंदिर केशवदेव जी का था। इस मंदिर के अवशेष भी अब मौजूद नहीं हैं। यह स्थान लगभग वही है जहाँ आज [[कृष्ण जन्मभूमि]] है। ईसा पूर्व सन् 80-57 के [[महाक्षत्रप सौदास]] (शोडास अथवा षोडास) के समय के एक [[ब्राह्मी लिपि]] शिलालेख से ज्ञात होता है कि किसी वसु नामक व्यक्ति ने श्रीकृष्ण जन्मस्थान पर एक मंदिर तोरण द्वार और वेदिका का निर्माण कराया था। दोबारा यह मंदिर गुप्तकाल में बना जो [[महमूद ग़ज़नवी]] का कोपभाजन बना। तीसरी बार ग्यारहवीं शताब्दी में बना जिसे [[इब्राहिम लोदी]] ने तुड़वाया। चौथी बार मुग़ल बादशाह [[जहाँगीर]] के शासनकाल में [[ओरछा]] के शासक राजा वीरसिंह जू देव ने इसे बनवाया जिसे औरंगज़ेब ने तुड़वाया। इसकी भव्यता का अनुमान इससे लगाया जा सकता है कि इसके संबंध में फ़्रांसीसी यात्री तॅवरनियर (Jean-Baptiste Tavernier) ने लिखा है कि “यह मंदिर भारत की सबसे भव्य और सुन्दर इमारतों में से एक है… जो 5 से 6 कोस की दूरी से भी दिखाई देती है”।<ref>ट्रॅवल्स इन इंडिया लेखक: ज़्यां-बॅपतिस्ते तॅवरनियर अध्याय 12 पृष्ठ 272</ref> एक कोस ([[क्रोश]]) में लगभग 3 किलोमीटर होते हैं तो यह दूरी लगभग 16 किलोमीटर होती है। | मथुरा में सबसे प्राचीन और विशालतम मंदिर केशवदेव जी का था। इस मंदिर के अवशेष भी अब मौजूद नहीं हैं। यह स्थान लगभग वही है जहाँ आज [[कृष्ण जन्मभूमि]] है। ईसा पूर्व सन् 80-57 के [[महाक्षत्रप सौदास]] (शोडास अथवा षोडास) के समय के एक [[ब्राह्मी लिपि]] शिलालेख से ज्ञात होता है कि किसी वसु नामक व्यक्ति ने श्रीकृष्ण जन्मस्थान पर एक मंदिर तोरण द्वार और वेदिका का निर्माण कराया था। दोबारा यह मंदिर गुप्तकाल में बना जो [[महमूद ग़ज़नवी]] का कोपभाजन बना। तीसरी बार ग्यारहवीं शताब्दी में बना जिसे [[इब्राहिम लोदी]] ने तुड़वाया। चौथी बार मुग़ल बादशाह [[जहाँगीर]] के शासनकाल में [[ओरछा]] के शासक राजा वीरसिंह जू देव ने इसे बनवाया जिसे औरंगज़ेब ने तुड़वाया। इसकी भव्यता का अनुमान इससे लगाया जा सकता है कि इसके संबंध में फ़्रांसीसी यात्री तॅवरनियर (Jean-Baptiste Tavernier) ने लिखा है कि “यह मंदिर भारत की सबसे भव्य और सुन्दर इमारतों में से एक है… जो 5 से 6 कोस की दूरी से भी दिखाई देती है”।<ref>ट्रॅवल्स इन इंडिया लेखक: ज़्यां-बॅपतिस्ते तॅवरनियर अध्याय 12 पृष्ठ 272</ref> एक कोस ([[क्रोश]]) में लगभग 3 किलोमीटर होते हैं तो यह दूरी लगभग 16 किलोमीटर होती है। | ||
ब्रज की पहचान [[कृष्ण]], [[मोर]], [[गाय]], गोधूलि, करील, [[कदम्ब]], [[यमुना]] आदि से होती रही है तो ब्रजसंस्कृति की पहचान के चिह्न हैं [[होली]], [[सावन]] के झूले और [[गीत]], [[नौटंकी]] (सांगीत), मंदिर, यमुना के घाट, भांग-ठंडाई, मथुरा के चौबे, [[कंस मेला]], [[गुरु पूर्णिमा|मुड़िया पूनों का मेला]] और हाँ निश्चित रूप से आपकी प्रिय मिठाई ‘पेड़ा’। | ब्रज की पहचान [[कृष्ण]], [[मोर]], [[गाय]], गोधूलि, करील, [[कदम्ब]], [[यमुना]] आदि से होती रही है तो ब्रजसंस्कृति की पहचान के चिह्न हैं [[होली]], [[सावन]] के झूले और [[गीत]], [[नौटंकी]] (सांगीत), मंदिर, यमुना के घाट, भांग-ठंडाई, मथुरा के चौबे, [[कंस मेला]], [[गुरु पूर्णिमा|मुड़िया पूनों का मेला]] और हाँ निश्चित रूप से आपकी प्रिय मिठाई ‘पेड़ा’। | ||
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<small>संस्थापक एवं प्रधान सम्पादक</small> | <small>संस्थापक एवं प्रधान सम्पादक</small> |
Revision as of 08:17, 23 September 2014
50px|right|link=|
20px|link=http://www.facebook.com/bharatdiscovery|फ़ेसबुक पर भारतकोश (नई शुरुआत) भारतकोश ‘ब्रज’ एक अद्भुत संस्कृति -आदित्य चौधरी ब्रज का ज़िक्र आते ही जो सबसे पहली आवाज़ हमारी स्मृति में आती है, वह है घाटों से टकराती हुई यमुना की लहरों की आवाज़… कृष्ण के साथ-साथ खेलकर यमुना ने बुद्ध और महावीर के प्रवचनों को साक्षात उन्हीं के मुख से अपनी लहरों को थाम कर सुना… फ़ाह्यान की चीनी भाषा में कहे गये मो-तो-लो (मोरों का नृत्य स्थल ‘मथुरा’) को भी समझ लिया और प्लिनी के ‘जोमनेस’ उच्चारण को भी… यमुना की ये लहरें रसख़ान और रहीम के दोहों पर झूमी हैं… सूर और मीरा के पदों पर नाची हैं… लेकिन महमूद ग़ज़नवी के नरसंहार से रक्ताभ हुई ये यमुना की सहमी हुई लहरों को मियां तानसेन की तोड़ी से कितनी राहत मिली थी यह तो यमुना ही जाने… बादशाह अकबर के बनवाये हुए घाटों को अभी अच्छी तरह पखार भी न पायी थी यमुना… कि अहमद शाह अब्दाली ने इन लहरों को ब्रजवासियों के रक्त से सने उसके सिपाहियों के हाथों को धोने पर मजबूर किया… यह सब तो चलता ही रहा साथ ही साथ यमुना ने ही जन्म दिया ब्रज-संस्कृति को…right|250px
पौराणिक ग्रंथों में मथुरा के अनेक उल्लेख हैं। वराह पुराण[2] में आया है- विष्णु कहते हैं कि इस पृथिवी या अन्तरिक्ष या पाताल लोक में कोई ऐसा स्थान नहीं है जो मथुरा के समान मुझे प्यारा हो- मथुरा मेरा प्रसिद्ध क्षेत्र है और मुक्तिदायक है, इससे बढ़कर मुझे कोई अन्य स्थल नहीं लगता। पद्म पुराण[3] में आया है- 'माथुरक नाम विष्णु को अत्यन्त प्रिय है'। हरिवंश पुराण[4] में मथुरा का सुन्दर वर्णन किया है: 'मथुरा मध्य-देश का ककुद (अर्थात् अत्यन्त महत्त्वपूर्ण स्थल) है, यह लक्ष्मी का निवास-स्थल है, या पृथिवी का श्रृंग है। इसके समान कोई अन्य नहीं है और यह प्रभूत धन-धान्य से पूर्ण है।'[5] |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ महाभारत आदिपर्व 221 | 46
- ↑ वराह पुराण 152 | 8 एवं 11
- ↑ पद्म पुराण 4 | 69 | 12
- ↑ हरिवंश पुराण, विष्णुपर्व, 57 | 2-3
- ↑ तस्मान्माथुरक नाम विष्णोरेकान्तवल्लभम्। पद्म पुराण 4 | 69 | 12
मध्यदेशस्य ककुदं धाम लक्ष्म्याश्च केवलम्।
श्रृंगं पृथिव्या: स्वालक्ष्यं प्रभूतधनधान्यवत्॥ हरिवंश पुराण, विष्णुपर्व, 57 | 2-3 - ↑ अंगुत्तरनिकाय 1 | 167, एकं समयं आयस्मा महाकच्छानो मधुरायं विहरति गुन्दावने [
- ↑ मज्झिम 2 | 84
- ↑ मथुरा का निवासी, या वहाँ उत्पन्न हुआ या मथुरा से आया हुआ
- ↑ पाणिनि, 4 | 2 | 82
- ↑ पाणिनि 4 | 3 | 98
- ↑ 3 | 1 | 138 एवं वार्तिक 'गविच विन्दे: संज्ञायाम्'
- ↑ बाल्मीकि रामायाण,किष्किन्धाकाण्ड़,त्रिचत्वारिंशः सर्गः।
तत्र म्लेच्छान् पुलिन्दांश्र्च शूरसेनां स्तथैव च।
प्रस्थलान् भरतांश्र्चैव कुरुंश्र्च सह मद्रकैः॥
काम्बोजयवनांश्र्चैव शकानां पत्तनानि च। - ↑ यह पुस्तक, लेखक की वेबसाइट, www.brajdiscovery.org पर उपलब्ध है।
- ↑ गोथिक शैली से अभिप्राय तिकोने मेहराबों वाली यूरोपीय शैली से है जिससे इमारत के विशाल होने का आभास होता है
- ↑ ट्रॅवल्स इन इंडिया लेखक: ज़्यां-बॅपतिस्ते तॅवरनियर अध्याय 12 पृष्ठ 272
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