अक्षय नवमी: Difference between revisions

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*अक्षय्यनवमी के दिन ही [[द्वापर युग]] का प्रारम्भ माना जाता है।
*अक्षय्यनवमी के दिन ही [[द्वापर युग]] का प्रारम्भ माना जाता है।
*अक्षय्यनवमी को ही [[विष्णु]] भगवान [[कुष्माण्डक]] दैत्य को मारा था और उसके रोम से कुष्माण्ड की बेल हुई।
*अक्षय्यनवमी को ही [[विष्णु]] भगवान [[कुष्माण्डक]] दैत्य को मारा था और उसके रोम से कुष्माण्ड की बेल हुई।
*इसी कारण [[कुष्माण्ड]] का दान करने से उत्तम फल मिलता है। इसमें [[गन्ध]], [[पुष्प]] और [[अक्षत|अक्षतों]] से कुष्माण्ड ([[काशीफल]], सीताफल या कद्दू भी कहते हैं) का पूजन करना चाहिये।
*इसी कारण [[कुष्माण्ड]] का दान करने से उत्तम फल मिलता है। इसमें [[गन्ध]], [[भारत के पुष्प|पुष्प]] और [[अक्षत|अक्षतों]] से कुष्माण्ड ([[काशीफल]], सीताफल या कद्दू भी कहते हैं) का पूजन करना चाहिये।
*विधि विधान से [[तुलसी]] का विवाह कराने से कन्यादान तुल्य फल मिलता है।
*विधि विधान से [[तुलसी]] का विवाह कराने से कन्यादान तुल्य फल मिलता है।
*कार्तिक शुक्ला नवमी के दिन [[जितेन्द्रिय]] होकर तुलसीसहित सोने के भगवान बनाये। पीछे भक्तिपूर्वक विधि के साथ तीन दिन तक पूजन करना चाहिये एवं विधि के साथ विवाह की विधि करे। नवमी के अनुरोध से यहाँ ही तीन रात्रि ग्रहण करनी चाहिये, इसमें अष्टमी विद्धा मध्याह्नव्यापिनी नवमी लेनी चाहिये। [[धात्री]] और [[अश्वत्थ]] को एक जगह पालकर उनका आपस में विवाह कराये। उनका पुण्यफल सौ कोटि कल्प में भी नष्ट नहीं होता।
*कार्तिक शुक्ला नवमी के दिन [[जितेन्द्रिय]] होकर तुलसीसहित सोने के भगवान बनाये। पीछे भक्तिपूर्वक विधि के साथ तीन दिन तक पूजन करना चाहिये एवं विधि के साथ विवाह की विधि करे। नवमी के अनुरोध से यहाँ ही तीन रात्रि ग्रहण करनी चाहिये, इसमें अष्टमी विद्धा मध्याह्नव्यापिनी नवमी लेनी चाहिये। [[धात्री]] और [[अश्वत्थ]] को एक जगह पालकर उनका आपस में विवाह कराये। उनका पुण्यफल सौ कोटि कल्प में भी नष्ट नहीं होता।

Revision as of 10:28, 5 September 2010

  • अक्षय्यनवमी कार्तिक शुक्ला नवमी को कहते हैं।
  • अक्षय्यनवमी के दिन ही द्वापर युग का प्रारम्भ माना जाता है।
  • अक्षय्यनवमी को ही विष्णु भगवान कुष्माण्डक दैत्य को मारा था और उसके रोम से कुष्माण्ड की बेल हुई।
  • इसी कारण कुष्माण्ड का दान करने से उत्तम फल मिलता है। इसमें गन्ध, पुष्प और अक्षतों से कुष्माण्ड (काशीफल, सीताफल या कद्दू भी कहते हैं) का पूजन करना चाहिये।
  • विधि विधान से तुलसी का विवाह कराने से कन्यादान तुल्य फल मिलता है।
  • कार्तिक शुक्ला नवमी के दिन जितेन्द्रिय होकर तुलसीसहित सोने के भगवान बनाये। पीछे भक्तिपूर्वक विधि के साथ तीन दिन तक पूजन करना चाहिये एवं विधि के साथ विवाह की विधि करे। नवमी के अनुरोध से यहाँ ही तीन रात्रि ग्रहण करनी चाहिये, इसमें अष्टमी विद्धा मध्याह्नव्यापिनी नवमी लेनी चाहिये। धात्री और अश्वत्थ को एक जगह पालकर उनका आपस में विवाह कराये। उनका पुण्यफल सौ कोटि कल्प में भी नष्ट नहीं होता।
  • श्री कृष्ण की मुरली की त्रिलोक मोहिनी तान और राधा के नुपुरों की रूनझुन का संगीत सुनाती और प्रभु और उनकी आल्हादिनी शक्ति के स्वरूप मथुरा-वृन्दावन और गरूड गोविंद की परिक्रमा मन को शक्ति और शान्ति देती है।
  • धर्म और श्रम के सम्मिश्रण से पर्यावरण संरक्षण संदेश के साथ यह पर्व मंगल में भक्तों के मंगल के लिए अनेक मार्ग खोलता है।
  • यही वह दिन है जब भगवान श्री कृष्ण ने कंस-वध से पहले तीन वन की परिक्रमा करके क्रान्ति का शंखनाद किया था।
  • इसी परम्परा का निर्वहन करते हुए लोग आज भी अक्षय नवमी पर असत्य के विरुद्ध सत्य की जीत के लिए मथुरा वृन्दावन की परिक्रमा करते हैं।

राधा-दामोदर स्वरूप

मथुरा-वृन्दावन एवं कार्तिक मास साक्षात राधा-दामोदर स्वरूप है। इसी मास में श्री कृष्ण ने पूतना-वध के बाद मैदान में क्रीड़ा करने के लिए नंद बाबा से गो-चारण की आज्ञा ली।

युद्ध आह्वान दिवस

श्री कृष्ण ने ग्वाल बाल और ब्रजवासियों को एक सूत्र में पिरोने के लिए अक्षय नवमी तिथि को तीन वन की परिक्रमा कर क्रांति का अलख जगाया। मंगल की प्रतिनिधि तिथि नवमी को किया। क्रांति का शंखनाद ही अगले दिन दशमी को कंस के वध का आधार बना।

आंवला पूजन

नवमी को आंवला पूजन स्त्री जाति के लिए अखंड सौभाग्य और पेठा पूजन से घर में शांति, आयु एवं संतान वृद्धि होती है। पुराणाचार्य कहते हैं कि आंवला त्योहारों पर खाये गरिष्ठ भोजन को पचाने और पति-पत्नी के मधुर सबंध बनाने वाली औषधि है।

पुनर्जन्म से मुक्ति का साधन

  • नवमी के दिन युगल उपासना करने से भक्त शान्ति, सद्भाव, सुख और वंश वृद्धि के साथ पुनर्जन्म के बंधन से मुक्ति प्राप्त करने का अधिकारी बनाता है।
  • प्रभु का दिया धर्म ही जीव को नियमों की सीख देता है। जो मनुष्य क़ानून के दंड से नहीं डरते उन्हें यह राह दिखाता है।
  • नियमों से साक्षात्कार कराने के लिए प्रभु ने अक्षय नवमी परिक्रमा कर असत्य का शंखनाद और एकादशी परिक्रमा करके अभय करने के लिए प्रभु ने ब्रजवासियों का वृहद समागम किया।
  • गुजरात में द्वारिकानाथ, राजस्थान में श्रीनाथ, मध्यप्रदेश में गुरु संदीपन आश्रम, पांडवों के कारण पंजाब-दिल्ली के साथ अन्य अनेक लीला स्थलियों से आने वाले श्रद्धालु ब्रज-परिक्रमा करते हैं।

सम्बंधित लिंक

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