ज़फ़र महल, महरौली: Difference between revisions

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'''ज़फ़र महल''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Zafar Mahal'') मुग़लकालीन ऐतिहासिक इमारत है जो दक्षिणी [[दिल्ली]] के महरौली इलाके में स्थित है। [[मुग़लकालीन शासन व्यवस्था|मुग़ल शासन]] द्वारा इस इमारत का निर्माण ग्रीष्मकालीन राजमहल के रूप में करवाया गया था। उपलब्ध ऐतिहासिक दस्तावेजों के मुताबिक इस इमारत के भीतरी ढांचे का निर्माण मुग़ल बादशाह [[अकबर द्वितीय]] द्वारा करवाया गया था जबकि इसको और भव्य रूप देते हुए इसके बाहरी भाग और आलिशान द्वार का निर्माण [[बहादुरशाह ज़फ़र]] द्वारा 19वीं सदी में करवाया गया।
'''ज़फ़र महल''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Zafar Mahal'') मुग़लकालीन ऐतिहासिक इमारत है जो दक्षिणी [[दिल्ली]] के महरौली इलाके में स्थित है। [[मुग़लकालीन शासन व्यवस्था|मुग़ल शासन]] द्वारा इस इमारत का निर्माण ग्रीष्मकालीन राजमहल के रूप में करवाया गया था। उपलब्ध ऐतिहासिक दस्तावेजों के मुताबिक इस इमारत के भीतरी ढांचे का निर्माण मुग़ल बादशाह [[अकबर द्वितीय]] द्वारा करवाया गया था जबकि इसको और भव्य रूप देते हुए इसके बाहरी भाग और आलिशान द्वार का निर्माण [[बहादुरशाह ज़फ़र]] द्वारा 19वीं सदी में करवाया गया।
==इतिहास
==इतिहास==
ज़फ़र महल का निर्माण मुग़लों द्वारा ग्रीष्मकालीन आरामगाह के रूप में कराया गया था। महरौली का इलाका उस समय भी घने जंगलों से आच्छादित था, जो शिकार और दिल्ली की अपेक्षा कम [[तापमान]] की वजह से गर्मियों में रिहाइश के लिए उपयुक्त जगह थी। महरौली में ज़फ़र महल के पड़ोस में [[जहांदार शाह]] ने अपने पिता [[बहादुरशाह प्रथम]] की कब्र के पास संगमरमर की जाली का निर्माण करवाया था। [[मुग़ल]] बादशाह शाहआलम को भी इसी इलाके में दफनाया गया था। शाहआलम के पुत्र अकबर शाह द्वितीय की कब्र भी ज़फ़र महल के पास ही है। ज़फ़र ने खुद को दफनाए जाने की जगह को भी इसी इलाके में चिह्नित कर रखा था लेकिन दुर्भाग्यवश [[मुग़ल वंश]] के आखिरी बादशाह को अंग्रेजों द्वारा [[रंगून]] निर्वासित कर दिया गया।
ज़फ़र महल का निर्माण मुग़लों द्वारा ग्रीष्मकालीन आरामगाह के रूप में कराया गया था। महरौली का इलाका उस समय भी घने जंगलों से आच्छादित था, जो शिकार और दिल्ली की अपेक्षा कम [[तापमान]] की वजह से गर्मियों में रिहाइश के लिए उपयुक्त जगह थी। महरौली में ज़फ़र महल के पड़ोस में [[जहांदार शाह]] ने अपने पिता [[बहादुरशाह प्रथम]] की कब्र के पास संगमरमर की जाली का निर्माण करवाया था। [[मुग़ल]] बादशाह शाहआलम को भी इसी इलाके में दफनाया गया था। शाहआलम के पुत्र अकबर शाह द्वितीय की कब्र भी ज़फ़र महल के पास ही है। ज़फ़र ने खुद को दफनाए जाने की जगह को भी इसी इलाके में चिह्नित कर रखा था लेकिन दुर्भाग्यवश [[मुग़ल वंश]] के आखिरी बादशाह को अंग्रेजों द्वारा [[रंगून]] निर्वासित कर दिया गया।
==स्थापत्य==
==स्थापत्य==

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ज़फ़र महल (अंग्रेज़ी: Zafar Mahal) मुग़लकालीन ऐतिहासिक इमारत है जो दक्षिणी दिल्ली के महरौली इलाके में स्थित है। मुग़ल शासन द्वारा इस इमारत का निर्माण ग्रीष्मकालीन राजमहल के रूप में करवाया गया था। उपलब्ध ऐतिहासिक दस्तावेजों के मुताबिक इस इमारत के भीतरी ढांचे का निर्माण मुग़ल बादशाह अकबर द्वितीय द्वारा करवाया गया था जबकि इसको और भव्य रूप देते हुए इसके बाहरी भाग और आलिशान द्वार का निर्माण बहादुरशाह ज़फ़र द्वारा 19वीं सदी में करवाया गया।

इतिहास

ज़फ़र महल का निर्माण मुग़लों द्वारा ग्रीष्मकालीन आरामगाह के रूप में कराया गया था। महरौली का इलाका उस समय भी घने जंगलों से आच्छादित था, जो शिकार और दिल्ली की अपेक्षा कम तापमान की वजह से गर्मियों में रिहाइश के लिए उपयुक्त जगह थी। महरौली में ज़फ़र महल के पड़ोस में जहांदार शाह ने अपने पिता बहादुरशाह प्रथम की कब्र के पास संगमरमर की जाली का निर्माण करवाया था। मुग़ल बादशाह शाहआलम को भी इसी इलाके में दफनाया गया था। शाहआलम के पुत्र अकबर शाह द्वितीय की कब्र भी ज़फ़र महल के पास ही है। ज़फ़र ने खुद को दफनाए जाने की जगह को भी इसी इलाके में चिह्नित कर रखा था लेकिन दुर्भाग्यवश मुग़ल वंश के आखिरी बादशाह को अंग्रेजों द्वारा रंगून निर्वासित कर दिया गया।

स्थापत्य

संगमरमर और लाल बलुआ पत्थर से बनी इस तीन मंजिला इमारत का प्रवेशद्वार 50 फीट ऊंचा और 15 मीटर चौड़ा है। इस प्रवेश द्वार को 'हाथी गेट' कहा जाता है, जिसमें से हौदे सहित एक सुसज्जित हाथी आराम से पार हो सकता था। इस द्वार का निर्माण बहादुरशाह ज़फ़र ने करवाया था। जिसके बारे में प्रवेश द्वार पर एक अभिलेख लगा हुआ है। अभिलेख में लिखा गया है कि इस द्वार को मुग़ल बादशाह ज़फ़र ने अपने शासन के 11वें वर्ष में सन 1847-4848 में बनवाया। मुग़ल शैली में निर्मित एक विशाल छज्जा इस द्वार की एक महत्वपूर्ण विशेषता है। प्रवेश द्वार पर घुमावदार बंगाली गुंबजों और छोटे झरोखोॆं का निर्माण किया गया है। इसके साथ ही मेहराब के दोनों किनारों पर, बड़े कमल के रूप में दो अलंकृत फलक भी बनाए गए हैं।

संरक्षण

ज़फ़र महल को प्राचीन इमारत संरक्षण अधिनियम के तहत 1920 में संरक्षित इमारत घोषित कर दिया गया था, लेकिन इसके बावजूद इस इमारत के दक्षिणी और पूर्वी दीवार के पास अतिक्रमण साफतौर पर देखा जा सकता है। हांलाकि अब इंटैक ने इस इमारत को संरक्षित क्षेत्र के रूप में दर्ज कर लिया है। जिसके फलस्वरूप भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण विभाग ने इस महल में एक संग्रहालय की स्थापना का प्रस्ताव दिया था, जिससे यहाँ होने वाले अतिक्रमण को रोका जा सके और बाहर से आने वाले आगंतुकों को आकर्षित तथा प्रोत्साहित किया जा सके।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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