पिपरावा: Difference between revisions

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Jump to navigation Jump to search
[unchecked revision][unchecked revision]
m (श्रेणी:धर्म कोश; Adding category Category:बौद्ध धर्म कोश (को हटा दिया गया हैं।))
m (Text replace - "{{बौद्ध दर्शन2}}" to "{{बौद्ध धर्म}}")
Line 22: Line 22:
<references/>
<references/>
==संबंधित लेख==
==संबंधित लेख==
{{उत्तर प्रदेश के पर्यटन स्थल}}{{बौद्ध दर्शन2}}
{{उत्तर प्रदेश के पर्यटन स्थल}}{{बौद्ध धर्म}}
[[Category:ऐतिहासिक स्थल]]
[[Category:ऐतिहासिक स्थल]]
[[Category:उत्तर प्रदेश के धार्मिक स्थल]]
[[Category:उत्तर प्रदेश के धार्मिक स्थल]]

Revision as of 06:41, 17 March 2011

पिपरावा या पिपरहवा या पिपरिया, यह ज़िला बस्ती, उत्तर प्रदेश में नौगढ़ रेलवे स्टेशन से 13 मील उत्तर में नेपाल की सीमा के निकट बौद्धकालीन स्थान है। यहाँ बर्डपुर रियासत के ज़मींदार पीपी साहब को 1898 ई. में एक स्तूप के भीतर से बुद्ध की अस्थि-भस्म का एक प्रस्तर-कलश प्राप्त हुआ था, जिस पर पाँचवीं शती ई. पू. की ब्राह्मीलिपि में एक सुन्दर अभिलेख अंकित है, जो इस प्रकार है-

इयं सलिलनिधने बुधसभगवते सकियनं सुकितिभतिनं सभागिणकिनं सपुत दलनम् अर्थात् भगवान बुद्ध के भस्मावशेष पर यह स्मारक शाक्यवंशीय सुकिति भाइयों-बहनों, बालकों और स्त्रियों ने स्थापित किया

  • जिस स्तूप में यह सन्निहित था, उसका व्यास 116 फुट और ऊँचाई 21 फुट थी।
  • इसकी ईटों का परिमाप 16 इंच×10 इंच है। यह परिमाण मौर्यकालीन ईटों का है।
  • बौद्ध किंवदन्ती है कि इस स्तूप का निर्माण शाक्यों के द्वारा किया गया था। उन्होंने गौतम बुद्ध का शरीरान्त होने पर भस्म का आठवाँ भाग प्राप्त कर उसे एक प्रस्तर भांड में रख कर एक स्तूप के अन्दर सुरक्षित कर दिया था।
  • कुछ विद्वानों के विचार में ये अवशेष बुद्ध के निर्वाण के प्रायः सौ वर्ष पश्चात स्तूप में निहित किए गए थे।
  • यह सम्भव जान पड़ता है कि गौतम बुद्ध के पिता शुद्धोदन की राजधानी कपिलवस्तु पिपरावा के समीप ही स्थित थी।
  • कई विद्वानों का मत है कि, बुद्ध के समकालीन मौर्य वंशीय क्षत्रियों की राजधानी 'पिप्पलिवाहन', पिपरावा के स्थान पर बसी हुई थी और पिपरावा, पिप्पलि का ही रूपान्तर है।
  • स्तूप के कुछ अवशेष तथा भस्मकलश लखनऊ के संग्रहालय में सुरक्षित हैं।


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

(पुस्तक ऐतिहासिक स्थानावली से) पेज नं0 559

संबंधित लेख