हक़ीम हुमाम: Difference between revisions

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<blockquote>'''शैर (अर्थ)'''- एक शरीर के लिए दो नेत्र का हिसाब कम है, और वृद्धि की गिनती में सहस्त्रों बहुत है।</blockquote>  
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* 40 वें वर्ष सन 1004 हिजरी सन 1596 ई. में [[तपेदिक]] से दो महीने बीमार रहकर हक़ीम हुमाम मर गया। इसके दो लड़के थे। पहला हक़ीम हाजिक और दूसरा हक़ीम खुशहाल था, जो [[शाहजहाँ]] के समय एक हजारी मनसब पाकर दक्षिण का बख्शी नियत हुआ था। महाबत ख़ाँ अपनी सूबेदारी के समय इसपर विशेष कृपा रखता था।
* 40 वें वर्ष सन् 1004 हिजरी सन् 1596 ई. में [[तपेदिक]] से दो महीने बीमार रहकर हक़ीम हुमाम मर गया। इसके दो लड़के थे। पहला हक़ीम हाजिक और दूसरा हक़ीम खुशहाल था, जो [[शाहजहाँ]] के समय एक हजारी मनसब पाकर दक्षिण का बख्शी नियत हुआ था। महाबत ख़ाँ अपनी सूबेदारी के समय इसपर विशेष कृपा रखता था।





Revision as of 14:15, 6 March 2012

हक़ीम हुमाम, मुग़ल सम्राट अकबर का सलाहकार और नवरत्नों में से एक था। यह हक़ीम अबुलफ़तह गीलानी का भाई था। इसका नाम हुमायूँ था।

  • जब हक़ीम हुमाम, अकबर बादशाह की सेवा में भर्ती हुआ तब सम्मान के विचार से इसका नाम पहले हुमायूँ कुलीख़ाँ हुआ और इसके अनंतर यह हक़ीम हुमाम के नाम से प्रसिद्ध हुआ।
  • यह खत (लिपि) पहिचानने में और कविता समझने में अपने समय का एक था। यह मनोविज्ञान तथा वैंद्यक में कुछ गम रखता था। आचारवान, उदार, मीठा बोलने वाला तथा मिलनसार था। यह बावर्ची खाने के भंडारी-पद पर नियत था, पर बादशाह का मुसाहेब तथा परिचित होने से इसका सम्मान अधिक था।
  • 31 वें वर्ष में जब हक़ीम हुमाम की योग्यता और मिलनसारी को अकबर बादशाह ने समझ लिया तब इसको तूरान के बादशाह अब्बुल्ला ख़ाँ के यहाँ सन्देश लेकर तथा कुशल मंगल पूछने को भेजा और उसके पिता सिकन्दर ख़ाँ की मृत्यु पर, जिसे तीन साल हो चुके थे, मातमपुर्सी के लिए मीलन सदर जहाँ मुस्की को इसके साथ भेज दिया।
  • विशेष कृपा के कारण हक़ीम के बारे में उस पत्र में यह वाक्य लिखा गया था कि हक़ीमी का विद्वान, राजभक्त पार्श्ववर्ती तथा इच्छा अनुभवी विश्वस्त सेवक हक़ीम हुमाम को संदेशाहक बनाकर भेजते हैं, क्योंकि यह सत्य बोलनेवाला तथा आचारवान हैं और सेवा के आरम्भ से पार्श्ववर्ती सेवक होने के कारण इसे अब तक दूर भेजने का विचार नहीं किया था। हमारी सेवा में इसको यहाँ तक विश्वास है कि बिना मध्यस्थ के कुल दावे हम तक पहुँचा देता है। यदि वहाँ दरबार में भी ऐसा ही व्यवहार हो तो बिना मध्यस्थ के दोनों पक्ष में सन्धि हो जाया करे।
  • हक़ीम की अनुपस्थिति में अकबर बादशाह ने कई बार कहा था कि हक़ीम हुमाम के जाने से भोजन में स्वाद नहीं आता। हक़ीम अबुलफ़तह से कहा था कि हमारी समझ में नहीं आता कि भाई होते हुए तुमसे अधिक हमें उसके न रहने पर उसकी प्रतीक्षा रहती है मानो हक़ीम हुमाम कही पैदा हो जाएगा।
  • 34 वें वर्ष में जब क़ाबुल से लौटते हुए वारीक आब में पड़ाव पड़ा हुआ था, वहीं हक़ीम हुमाम तूरान से आ पहुँचा जब हक़ीम अबुलतह की मृत्यु को एक महीना बीत चुका था। यह जब सेवा में उपस्थित हुआ तब बादशाह ने इसे सांत्वना देने के लिए यह संतोषप्रद बात कही कि तुमको एक भाई था, जो संसार से उठ गया और मुझको दस।

शैर (अर्थ)- एक शरीर के लिए दो नेत्र का हिसाब कम है, और वृद्धि की गिनती में सहस्त्रों बहुत है।

  • 40 वें वर्ष सन् 1004 हिजरी सन् 1596 ई. में तपेदिक से दो महीने बीमार रहकर हक़ीम हुमाम मर गया। इसके दो लड़के थे। पहला हक़ीम हाजिक और दूसरा हक़ीम खुशहाल था, जो शाहजहाँ के समय एक हजारी मनसब पाकर दक्षिण का बख्शी नियत हुआ था। महाबत ख़ाँ अपनी सूबेदारी के समय इसपर विशेष कृपा रखता था।


टीका टिप्पणी और संदर्भ

  • 'मुग़ल दरबार के सरदार' भाग-2| लेखक: मआसिरुल् उमरा | प्रकाशन: नागरी प्रचारिणी सभा, वाराणसी | 690-691


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