धेनुकासुर वध: Difference between revisions

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Jump to navigation Jump to search
[unchecked revision][unchecked revision]
No edit summary
No edit summary
Line 1: Line 1:
[[चित्र:Krishna-Balram-Killing-Dhenukasur.jpg|thumb|300px|धेनुकासुर का वध करते कृष्ण और बलराम]]
'''धेनुकासुर''' महाभारतकालीन एक [[असुर]] था, जिसका वध [[बलराम]] ने अपनी बाल अवस्था में किया था। जब कृष्ण तथा [[बलराम]] अपने सखाओं के साथ ताड़ के वन में फलों को खाने गये, तब असुर धेनुकासुर ने गधे के रूप में उन पर हमला किया। बलराम ने उसके पैर पकड़कर और घुमाकर पेड़ पर पटक दिया, जिससे प्राण निकल गये।
'''धेनुकासुर''' महाभारतकालीन एक [[असुर]] था, जिसका वध [[बलराम]] ने अपनी बाल अवस्था में किया था। जब कृष्ण तथा [[बलराम]] अपने सखाओं के साथ ताड़ के वन में फलों को खाने गये, तब असुर धेनुकासुर ने गधे के रूप में उन पर हमला किया। बलराम ने उसके पैर पकड़कर और घुमाकर पेड़ पर पटक दिया, जिससे प्राण निकल गये।
==कथा==
==कथा==

Revision as of 06:54, 4 April 2013

thumb|300px|धेनुकासुर का वध करते कृष्ण और बलराम धेनुकासुर महाभारतकालीन एक असुर था, जिसका वध बलराम ने अपनी बाल अवस्था में किया था। जब कृष्ण तथा बलराम अपने सखाओं के साथ ताड़ के वन में फलों को खाने गये, तब असुर धेनुकासुर ने गधे के रूप में उन पर हमला किया। बलराम ने उसके पैर पकड़कर और घुमाकर पेड़ पर पटक दिया, जिससे प्राण निकल गये।

कथा

वृंदावन में रहते हुए बलराम और श्रीकृष्ण ने पौगण्ड-अवस्था में अर्थात छठे वर्ष में प्रवेश कर लिया था। बलराम और श्रीकृष्ण के सखाओं में एक प्रधान गोप बालक थे, जिनका नाम था- श्रीदामा। एक दिन उन्होंने बड़े प्रेम से बलराम और श्रीकृष्ण से कहा- "हम लोगों को सर्वदा सुख पहुँचाने वाले बलरामजी। आपके बाहुबल की तो कोई थाह ही नहीं है। हमारे मनमोहन श्रीकृष्ण! दुष्टों को नष्ट कर डालना तो तुम्हारा स्वभाव ही है। यहाँ से थोड़ी ही दूर पर एक बड़ा भारी वन है। उसमें बहुत सारे ताड़ के वृक्ष हैं। वे सदा फलों से लदे रहते हैं। वहाँ धेनुक नाम का दुष्ट दैत्य भी रहता है। उसने उन फलों को खाने पर रोक लगा रखी है। वह दैत्य गधे के रूप में रहता है। है श्रीकृष्ण! हमें उन फलों को खाने की बड़ी इच्छा है।" अपने सखा ग्वाल बालों की यह बात सुनकर भगवान श्रीकृष्ण और बलराम दोनों हंसे और फिर उन्हें प्रसन्न करने के लिए उनके साथ ताड़ वन के लिए चल पड़े।

धेनुकासुर का वध

वन में पहुँचकर बलराम ने अपनी बांहों से उन ताड़ के पेड़ों को पकड़ लिया और बड़े जोर से हिलाकर बहुत से फल नीचे गिरा दिए। जब गधे के रूप में रहने वाले दैत्य धेनुकासुर ने फलों के गिरने का शब्द सुना, तब वह बलराम की ओर दौड़ा। बलराम ने अपने एक ही हाथ से उसके दोनों पैर पकड़ लिए और उसे आकाश में घुमाकर एक ताड़ के पेड़ पर दे मारा। घुमाते समय ही उस गधे के प्राण पखेरू उड़ गए। उसकी इस गति को देखकर उसके भाई-बंधु अनेकों गदहे वहाँ पहुंचे। बलराम तथा कृष्ण ने सभी को मार डाला।[1] जिस प्रकार बलराम ने धेनुकासुर को मारा, ग्वालबाल बलराम के बल की प्रशंसा करते नहीं थकते थे। धेनुकासुर वह है, जो भक्तों को भक्ति के वन में भी आनंद के मीठे फल नहीं खाने देता। बलराम बल और शौर्य के प्रतीक हैं। जब कृष्ण हृदय में हों तो बलराम के बिना अधूरे हैं। बलराम ही भक्ति के आनंद को बढ़ाने वाले हैं। ग्वालबाल अब मीठे फल भी खा रहे हैं।


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. श्रीमद् भागवत 10 । 15, ब्रह्म पुराण- 186, विष्णु पुराण- 5-5, हरिवंश पुराण- वि. पर्व, 13.

संबंधित लेख