Difference between revisions of "महात्मा गाँधी के अनमोल वचन"
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'''महात्मा, ट्रुथ इज गॉड, एविल रोट बाइ द इंग्लिश मिडीयम, द मैसेज ऑफ द गीता और माइंड ऑफ महात्मा गांधी''' पुस्तकों से [[चित्र:Mahatma-Gandhi-2.jpg|150px|right|[[महात्मा गाँधी]]|thumb]] | '''महात्मा, ट्रुथ इज गॉड, एविल रोट बाइ द इंग्लिश मिडीयम, द मैसेज ऑफ द गीता और माइंड ऑफ महात्मा गांधी''' पुस्तकों से [[चित्र:Mahatma-Gandhi-2.jpg|150px|right|[[महात्मा गाँधी]]|thumb]] | ||
*सार्थक [[कला]] रचनाकार की प्रसन्नता, समाधान और पवित्रता की गवाह होती है। | *सार्थक [[कला]] रचनाकार की प्रसन्नता, समाधान और पवित्रता की गवाह होती है। | ||
− | *सच्ची अहिंसा मृत्युशैया पर भी मुस्कराती रहेगी। '''अहिंसा''' ही वह एकमात्र शक्ति है जिससे हम शत्रु को अपना मित्र बना सकते हैं और उसके प्रेमपात्र बन सकते | + | *सच्ची अहिंसा मृत्युशैया पर भी मुस्कराती रहेगी। '''अहिंसा''' ही वह एकमात्र शक्ति है जिससे हम शत्रु को अपना मित्र बना सकते हैं और उसके प्रेमपात्र बन सकते हैं। |
*स्वच्छता, पवित्रता और आत्म-सम्मान से जीने के लिए धन की आवश्यकता नहीं होती। | *स्वच्छता, पवित्रता और आत्म-सम्मान से जीने के लिए धन की आवश्यकता नहीं होती। | ||
*सुखद जीवन का भेद त्याग पर आधारित है। त्याग ही जीवन है। | *सुखद जीवन का भेद त्याग पर आधारित है। त्याग ही जीवन है। | ||
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*आधुनिक सभ्यता ने हमें रात को दिन में और सुनहरी खामोशी को पीतल के कोलाहल और शोरगुल में परिवर्तित करना सिखाया है। | *आधुनिक सभ्यता ने हमें रात को दिन में और सुनहरी खामोशी को पीतल के कोलाहल और शोरगुल में परिवर्तित करना सिखाया है। | ||
*अपनी भूलों को स्वीकारना उस झाडू के समान है जो गंदगी को साफ़ कर उस स्थान को पहले से अधिक स्वच्छ कर देती है। | *अपनी भूलों को स्वीकारना उस झाडू के समान है जो गंदगी को साफ़ कर उस स्थान को पहले से अधिक स्वच्छ कर देती है। | ||
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*क्रूरता का उत्तर क्रूरता से देने का अर्थ अपने नैतिक व बौद्धिक पतन को स्वीकार करना है। | *क्रूरता का उत्तर क्रूरता से देने का अर्थ अपने नैतिक व बौद्धिक पतन को स्वीकार करना है। | ||
*किसी भी स्वाभिमानी व्यक्ति के लिए सोने की बेडियां, लोहे की बेडियों से कम कठोर नहीं होगी। चुभन धातु में नहीं वरन् बेडियों में होती है। | *किसी भी स्वाभिमानी व्यक्ति के लिए सोने की बेडियां, लोहे की बेडियों से कम कठोर नहीं होगी। चुभन धातु में नहीं वरन् बेडियों में होती है। | ||
*किसी भी समझौते की अनिवार्य शर्त यही है कि वह अपमानजनक तथा कष्टप्रद न हो। | *किसी भी समझौते की अनिवार्य शर्त यही है कि वह अपमानजनक तथा कष्टप्रद न हो। | ||
*किसी भी विश्वविद्यालय के लिए वैभवपूर्ण इमारत तथा सोने-चांदी के ख़ज़ाने की आवश्यकता नहीं होती। इन सबसे अधिक जनमत के बौद्धिक ज्ञान-भंडार की आवश्यकता होती है। | *किसी भी विश्वविद्यालय के लिए वैभवपूर्ण इमारत तथा सोने-चांदी के ख़ज़ाने की आवश्यकता नहीं होती। इन सबसे अधिक जनमत के बौद्धिक ज्ञान-भंडार की आवश्यकता होती है। | ||
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*जीवन में स्थिरता, शांति और विश्वसनीयता की स्थापना का एकमात्र साधन '''भक्ति''' है। | *जीवन में स्थिरता, शांति और विश्वसनीयता की स्थापना का एकमात्र साधन '''भक्ति''' है। | ||
*जहाँ तक मेरी दृष्टि जाती है मैं देखता हूं कि परमाणु शक्ति ने सदियों से मानवता को संजोये रखने वाली कोमल भावना को नष्ट कर दिया है। | *जहाँ तक मेरी दृष्टि जाती है मैं देखता हूं कि परमाणु शक्ति ने सदियों से मानवता को संजोये रखने वाली कोमल भावना को नष्ट कर दिया है। | ||
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*गीता में उल्लिखित भक्ति, कर्म और प्रेम के मार्ग में मानव द्वारा मानव के तिरस्कार के लिए कोई स्थान नहीं है। | *गीता में उल्लिखित भक्ति, कर्म और प्रेम के मार्ग में मानव द्वारा मानव के तिरस्कार के लिए कोई स्थान नहीं है। | ||
*गति जीवन का अंत नहीं हैं। सही अर्थों में मनुष्य अपने कर्तव्यों का निर्वाह करते हुए जीवित रहता है। | *गति जीवन का अंत नहीं हैं। सही अर्थों में मनुष्य अपने कर्तव्यों का निर्वाह करते हुए जीवित रहता है। | ||
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*हज़ारों लोगों द्वारा कुछ सैकडों की हत्या करना बहादुरी नहीं है। यह कायरता से भी बदतर है। यह किसी भी राष्ट्रवाद और धर्म के विरुद्ध है। | *हज़ारों लोगों द्वारा कुछ सैकडों की हत्या करना बहादुरी नहीं है। यह कायरता से भी बदतर है। यह किसी भी राष्ट्रवाद और धर्म के विरुद्ध है। | ||
*हमारा जीवन सत्य का एक लंबा अनुसंधान है और इसकी पूर्णता के लिए आत्मा की शांति आवश्यक है। | *हमारा जीवन सत्य का एक लंबा अनुसंधान है और इसकी पूर्णता के लिए आत्मा की शांति आवश्यक है। | ||
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*हमें बच्चों को ऐसी शिक्षा नहीं देनी चाहिए जिससे वे श्रम का तिरस्कार करें। | *हमें बच्चों को ऐसी शिक्षा नहीं देनी चाहिए जिससे वे श्रम का तिरस्कार करें। | ||
*हमारा समाजवाद अथवा साम्यवाद अहिंसा पर आधारित होना चाहिए जिसमें मालिक मज़दूर एवं जमपदार किसान के मध्य परस्पर सद्भावपूर्ण सहयोग हो। | *हमारा समाजवाद अथवा साम्यवाद अहिंसा पर आधारित होना चाहिए जिसमें मालिक मज़दूर एवं जमपदार किसान के मध्य परस्पर सद्भावपूर्ण सहयोग हो। | ||
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*यदि समाजवाद का अर्थ शत्रु के प्रति मित्रता का भाव रखना है तो मुझे एक सच्चा समाजवादी समझा जाना चाहिए। | *यदि समाजवाद का अर्थ शत्रु के प्रति मित्रता का भाव रखना है तो मुझे एक सच्चा समाजवादी समझा जाना चाहिए। | ||
*यदि अंधकार से [[प्रकाश]] उत्पन्न हो सकता है तो द्वेष भी प्रेम में परिवर्तित हो सकता है। | *यदि अंधकार से [[प्रकाश]] उत्पन्न हो सकता है तो द्वेष भी प्रेम में परिवर्तित हो सकता है। | ||
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*युद्धबंदी के लिए प्रयत्नरत् इस विश्व में उन राष्ट्रों के लिए कोई स्थान नहीं है जो दूसरे राष्ट्रों का शोषण कर उन पर वर्चस्व स्थापित करने में लगे हैं। | *युद्धबंदी के लिए प्रयत्नरत् इस विश्व में उन राष्ट्रों के लिए कोई स्थान नहीं है जो दूसरे राष्ट्रों का शोषण कर उन पर वर्चस्व स्थापित करने में लगे हैं। | ||
*यदि शक्ति का तात्पर्य नैतिक दृढता से है तो स्त्री पुरुषों से अधिक श्रेष्ठ है । | *यदि शक्ति का तात्पर्य नैतिक दृढता से है तो स्त्री पुरुषों से अधिक श्रेष्ठ है । | ||
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*'''नारी''' को अबला कहना अपमानजनक है। यह पुरुषों का नारी के प्रति अन्याय है। | *'''नारी''' को अबला कहना अपमानजनक है। यह पुरुषों का नारी के प्रति अन्याय है। | ||
*निःशस्त्र '''अहिंसा''' की शक्ति किसी भी परिस्थिति में सशस्त्र शक्ति से सर्वश्रेष्ठ होगी। | *निःशस्त्र '''अहिंसा''' की शक्ति किसी भी परिस्थिति में सशस्त्र शक्ति से सर्वश्रेष्ठ होगी। | ||
*निर्मल चरित्र एवं आत्मिक पवित्रता वाला व्यक्तित्व सहजता से लोगों का विश्वास अर्जित करता है और स्वतः अपने आस पास के वातावरण को शुद्ध कर देता है। | *निर्मल चरित्र एवं आत्मिक पवित्रता वाला व्यक्तित्व सहजता से लोगों का विश्वास अर्जित करता है और स्वतः अपने आस पास के वातावरण को शुद्ध कर देता है। | ||
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*[[बुद्ध]] ने अपने समस्त भौतिक सुखों का त्याग किया क्योंकि वे संपूर्ण विश्व के साथ यह खुशी बांटना चाहते थे जो मात्र सत्य की खोज में कष्ट भोगने तथा बलिदान देने वालों को ही प्राप्त होती है। | *[[बुद्ध]] ने अपने समस्त भौतिक सुखों का त्याग किया क्योंकि वे संपूर्ण विश्व के साथ यह खुशी बांटना चाहते थे जो मात्र सत्य की खोज में कष्ट भोगने तथा बलिदान देने वालों को ही प्राप्त होती है। | ||
*ब्रह्मचर्य क्या है ? यह जीवन का एक ऐसा मार्ग है जो हमें परमेश्वर की ओर अग्रसर करता है। | *ब्रह्मचर्य क्या है ? यह जीवन का एक ऐसा मार्ग है जो हमें परमेश्वर की ओर अग्रसर करता है। | ||
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*एकमात्र वस्तु जो हमें पशु से भिन्न करती है वह है सही और ग़लत के मध्य भेद करने की क्षमता जो हम सभी में समान रूप से विद्यमान है। | *एकमात्र वस्तु जो हमें पशु से भिन्न करती है वह है सही और ग़लत के मध्य भेद करने की क्षमता जो हम सभी में समान रूप से विद्यमान है। | ||
*एक सच्चे कलाकार के लिए सिर्फ़ वही चेहरा सुंदर होता है जो बाहरी दिखावे से परे, आत्मा की सुंदरता से चमकता है। | *एक सच्चे कलाकार के लिए सिर्फ़ वही चेहरा सुंदर होता है जो बाहरी दिखावे से परे, आत्मा की सुंदरता से चमकता है। | ||
− | |||
*चरित्र और शैक्षणिक सुविधाएँ ही वह पूँजी है जो माता-पिता अपने संतान में समान रूप से स्थानांतरित कर सकते हैं। | *चरित्र और शैक्षणिक सुविधाएँ ही वह पूँजी है जो माता-पिता अपने संतान में समान रूप से स्थानांतरित कर सकते हैं। | ||
− | + | *विश्व के सारे महान् '''[[धर्म]]''' मानवजाति की समानता, भाईचारे और सहिष्णुता का संदेश देते हैं। | |
− | *विश्व के सारे | ||
*वक्ता के विकास और चरित्र का वास्तविक प्रतिबिंब '[[भाषा]]' है। | *वक्ता के विकास और चरित्र का वास्तविक प्रतिबिंब '[[भाषा]]' है। | ||
*विश्वविद्यालय का स्थान सर्वोच्च है। किसी भी वैभवशाली इमारत का अस्तित्व तभी संभव है जब उसकी नपव ठोस हो। | *विश्वविद्यालय का स्थान सर्वोच्च है। किसी भी वैभवशाली इमारत का अस्तित्व तभी संभव है जब उसकी नपव ठोस हो। | ||
*वीरतापूर्वक सम्मान के साथ मरने की कला के लिए किसी विशेष प्रशिक्षण की आवश्यकता नहीं होती। उसके लिए परमात्मा में जीवंत श्रद्धा काफ़ी है। | *वीरतापूर्वक सम्मान के साथ मरने की कला के लिए किसी विशेष प्रशिक्षण की आवश्यकता नहीं होती। उसके लिए परमात्मा में जीवंत श्रद्धा काफ़ी है। | ||
− | |||
*शांति का मार्ग ही सत्य का मार्ग है। शांति की अपेक्षा सत्य अत्यधिक महत्त्वपूर्ण है। | *शांति का मार्ग ही सत्य का मार्ग है। शांति की अपेक्षा सत्य अत्यधिक महत्त्वपूर्ण है। | ||
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*धर्म के नाम पर हम उन तीन लाख बाल-विधवाओं पर वैधव्य थोप रहे हैं जिन्हें विवाह का अर्थ भी ज्ञात नहीं है। | *धर्म के नाम पर हम उन तीन लाख बाल-विधवाओं पर वैधव्य थोप रहे हैं जिन्हें विवाह का अर्थ भी ज्ञात नहीं है। | ||
*'''धर्म''' के बिना व्यक्ति पतवार बिना नाव के समान है। | *'''धर्म''' के बिना व्यक्ति पतवार बिना नाव के समान है। | ||
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*'''ईश्वर''' इतना निर्दयी व क्रूर नहीं है जो पुरुष-पुरुष और स्त्री-स्त्री के मध्य ऊंच-नीच का भेद करे। | *'''ईश्वर''' इतना निर्दयी व क्रूर नहीं है जो पुरुष-पुरुष और स्त्री-स्त्री के मध्य ऊंच-नीच का भेद करे। | ||
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*उस आस्था का कोई मूल्य नहीं जिसे आचरण में न लाया जा सके। | *उस आस्था का कोई मूल्य नहीं जिसे आचरण में न लाया जा सके। | ||
*उफनते तूफ़ान को मात देना है तो अधिक जोखिम उठाते हुए हमें पूरी शक्ति के साथ आगे बढना होगा। | *उफनते तूफ़ान को मात देना है तो अधिक जोखिम उठाते हुए हमें पूरी शक्ति के साथ आगे बढना होगा। | ||
− | |||
*भारतीयों के एक वर्ग को दूसरे के प्रति शत्रुता की भावना से देखने के लिए प्रेरित करने वाली मनोवृत्ति आत्मघाती है। यह मनोवृत्ति परतंत्रता को चिरस्थायी बनाने में ही उपयुक्त होगी। | *भारतीयों के एक वर्ग को दूसरे के प्रति शत्रुता की भावना से देखने के लिए प्रेरित करने वाली मनोवृत्ति आत्मघाती है। यह मनोवृत्ति परतंत्रता को चिरस्थायी बनाने में ही उपयुक्त होगी। | ||
− | |||
*प्रेम और एकाधिकार एक साथ नहीं हो सकता है। | *प्रेम और एकाधिकार एक साथ नहीं हो सकता है। | ||
*प्रतिज्ञा के बिना जीवन उसी तरह है जैसे लंगर के बिना नाव या रेत पर बना महल। | *प्रतिज्ञा के बिना जीवन उसी तरह है जैसे लंगर के बिना नाव या रेत पर बना महल। | ||
*प्रत्येक भौतिक आपदा के पीछे एक दैवी उद्देश्य विद्यमान होता है । | *प्रत्येक भौतिक आपदा के पीछे एक दैवी उद्देश्य विद्यमान होता है । | ||
*पीडा द्वारा तर्क मज़बूत होता है और पीडा ही व्यक्ति की अंत–दृष्टि खोल देती है। | *पीडा द्वारा तर्क मज़बूत होता है और पीडा ही व्यक्ति की अंत–दृष्टि खोल देती है। | ||
− | *पराजय के क्षणों में ही नायकों का निर्माण होता है। अंतः सफलता का सही अर्थ | + | *पराजय के क्षणों में ही नायकों का निर्माण होता है। अंतः सफलता का सही अर्थ महान् असफलताओं की श्रृंखला है।<ref>{{cite web |url=http://www.hindi.mkgandhi.org/efg.htm |title=गांधीजी के शब्दों में |accessmonthday=20 जनवरी |accessyear=2011 |last= |first= |authorlink= |format=एच.टी.एम.एल |publisher= |language=[[हिन्दी]]}}</ref> |
*मुठ्ठी भर संकल्पवान लोग, जिनकी अपने लक्ष्य में दृढ़ आस्था है, इतिहास की धारा को बदल सकते हैं। - <ref>{{cite web |url=http://hindisikhen.blogspot.com/2011/02/blog-post_6421.html |title=साहस / निर्भीकता / पराक्रम/ आत्म्विश्वास / प्रयत्न |accessmonthday=[[14 अप्रॅल]] |accessyear=[[2011]] |last= |first= |authorlink= |format=एच.टी.एम.एल |publisher=hindisikhen |language=[[हिन्दी]]}}</ref> | *मुठ्ठी भर संकल्पवान लोग, जिनकी अपने लक्ष्य में दृढ़ आस्था है, इतिहास की धारा को बदल सकते हैं। - <ref>{{cite web |url=http://hindisikhen.blogspot.com/2011/02/blog-post_6421.html |title=साहस / निर्भीकता / पराक्रम/ आत्म्विश्वास / प्रयत्न |accessmonthday=[[14 अप्रॅल]] |accessyear=[[2011]] |last= |first= |authorlink= |format=एच.टी.एम.एल |publisher=hindisikhen |language=[[हिन्दी]]}}</ref> | ||
+ | * अहिंसा का मार्ग तलवार की धार पर चलने जैसा है। जरा सी गफलत हुई कि नीचे आ गिरे। घोर अन्याय करने वाले पर भी गुस्सा न करें, बल्कि उसे प्रेम करें, उसका भला चाहें। लेकिन प्रेम करते हुए भी अन्याय के वश में न हो। | ||
+ | * अशुद्ध साधनों का परिणाम अशुद्ध ही होता है। | ||
+ | * अपने अहंकार पर विजय पाना ही प्रभु की सेवा है। | ||
+ | * आशा अमर है, उसकी आराधना कभी निष्फल नहीं होती। | ||
+ | * आचरण रहित विचार कितने अच्छे क्यों न हों, उन्हें खोटे मोती की तरह समझना चाहिए। | ||
+ | * आपका कोई भी काम महत्वहीन हो सकता है पर महत्त्वपूर्ण यह है कि आप कुछ करें। | ||
+ | * 'आशारहित होकर कर्म करो' यह [[गीता]] की वह ध्वनि है जो भुलाई नहीं जा सकती। जो कर्म छोड़ता है वह गिरता है। कर्म करते हुए भी जो उसका फल छोड़ता है वह चढ़ता है। | ||
+ | * आवेश और क्रोध को वश में कर लेने से शक्ति बढ़ती और आवेश को आत्मबल के रूप में परिवर्तित किया जा सकता है। | ||
+ | * आत्मा से संबंध रखने वाली बातों में पैसे का कोई स्थान नहीं है। | ||
+ | * आदमी को अपने को धोखा देने की शक्ति दूसरों को धोखा देने की शक्ति से कहीं अधिक है। इस बात का प्रत्यक्ष प्रमाण हरेक समझदार व्यक्ति है। | ||
+ | * अशांति के बिना शांति नहीं मिलती। लेकिन अशांति हमारी अपनी हो। हमारे मन का जब खूब मंथन हो जाएगा, जब हम दु:ख की अग्नि में खूब तप जाएंगे, तभी हम सच्ची शांति पा सकेंगे। | ||
+ | * स्वस्थ आलोचना मनुष्य को जीवन का सही मार्ग दिखाती है। जो व्यक्ति उससे परेशान होता है, उसे अपने बारे में गंभीरता से सोचना चाहिए। | ||
+ | * सही चीज़ के पीछे वक्त देना हमको खटकता है, निकम्मी चीज़ के पीछे ख्वार हैं, और खुश होते हैं। | ||
+ | * साहस और धैर्य ऐसे गुण हैं, जिनकी कठिन परिस्थितियों में आ पड़ने पर बड़ी आवश्यकता होती है। | ||
+ | * सच्चे संस्कृति सुधार और सभ्यता का लक्षण परिग्रह की वृद्धि नहीं, बल्कि विचार और इच्छापूर्वक उसकी कमी है। जैसे-जैसे परिग्रह कम करते हैं वैसे-वसे सच्चा सुख और संतोष बढ़ता है। | ||
+ | * सत्याग्रह एक ऐसी तलवार है जिसके सब ओर धार है। उसे काम में लाने वाला और जिस पर वह काम में लाई जाती है, दोनों सुखी होते हैं। ख़ून न बहाकर भी वह बड़ी कारगर होती है। उस पर न तो कभी जंग ही लगता है आर न कोई चुरा ही सकता है। | ||
+ | * सच पर विश्वास रखो, सच ही बोलो, सच ही करो। असत्य जीतता क्यों न लगे, सत्य का मुकाबला नहीं कर सकता। | ||
+ | * सच्चा प्रेम स्तुति से प्रकट नहीं होता, सेवा से प्रकट होता है। | ||
+ | * सदाचार और निर्मल जीवन सच्ची शिक्षा का आधार है। | ||
+ | * सत्य सर्वदा स्वाबलंबी होता है और बल तो उसके स्वभाव में ही होता है। | ||
+ | * सच्चा मूल्य तो उस श्रद्धा का है, जो कड़ी-से-कड़ी कसौटी के समय भी टिकी रहती है। | ||
+ | * संगीत गले से ही निकलता है, ऐसा नहीं है। मन का संगीत है, इंद्रियों का है, हृदय का है। | ||
+ | * समानता का बर्ताव ऐसा होना चाहिए कि नीचे वाले को उसकी खबर भी न हो। | ||
+ | * जिज्ञासा बिना ज्ञान नहीं होता। दु:ख बिना सुख नहीं होता। | ||
+ | * जिस तरह अध्ययन करना अपने आप में कला है उसी प्रकार चिन्तन करना भी एक कला है। | ||
+ | * जो मनुष्य जाति की सेवा करता है वह ईश्वर की सेवा करता है। | ||
+ | * जातिवाद आत्मा और राष्ट्र, दोनों के लिए नुक्सानदेह है। | ||
+ | * जिस देश को राजनीतिक उन्नति करनी हो, वह यदि पहले सामाजिक उन्नति नहीं कर लेगा तो राजनीतिक उन्नति आकाश में महल बनाने जैसी होगी। | ||
+ | * जहां धर्म नहीं, वहां विद्या, लक्ष्मी, स्वास्थ्य आदि का भी अभाव होता है। धर्मरहित स्थिति में बिल्कुल शुष्कता होती है, शून्यता होती है। | ||
+ | * जिस आदमी की त्याग की भावना अपनी जाति से आगे नहीं बढ़ती, वह स्वयं स्वार्थी होता है और अपनी जाति को भी स्वार्थी बनाता है। | ||
+ | * जब हम अपने पैर की धूल से भी अधिक अपने को नम्र समझते हैं तो ईश्वर हमारी सहायता करता है। | ||
+ | * जैसे [[सूर्य]] सबको एक सा [[प्रकाश]] देता है, [[बादल]] जैसे सबके लिए समान बरसते हैं, इसी तरह विद्या-वृष्टि सब पर बराबर होनी चाहिए। | ||
+ | * जो ज़मीन पर बैठता है, उसे कौन नीचे बिठा सकता है, जो सबका दास है, उसे कौन दास बना सकता है? | ||
+ | * जहां बड़े-बड़े विद्वानों की बुद्धि काम नहीं करती, वहां एक श्रद्धालु की श्रद्धा काम कर जाती है। | ||
+ | * जो सुधारक अपने संदेश के अस्वीकार होने पर क्रोधित हो जाता है, उसे सावधानी, प्रतीक्षा और प्रार्थना सीखने के लिए वन में चले जाना चाहिए। | ||
+ | * जो हुकूमत अपना गान करती है, वह चल नहीं सकती। | ||
+ | * हर सुधार का कुछ न कुछ विरोध अनिवार्य है। परंतु विरोध और आंदोलन, एक सीमा तक, समाज में स्वास्थ्य के लक्षण होते हैं। | ||
+ | * हम ऐसा मानने की ग़लती कभी न करें कि गुनाह में कोई छोटा-बड़ा होता है। | ||
+ | * हर व्यक्ति को जो चीज़ हृदयंगम हो गई है, वह उसके लिए धर्म है। धर्म बुद्धिगम्य वस्तु नहीं, हृदयगम्य है। इसलिए धर्म मूर्ख लोगों के लिए भी है। | ||
+ | * हमारी श्रद्धा अखंड ज्योति जैसी होनी चाहिए जो हमें प्रकाश देने के अलावा आसपास को भी रोशन करे। | ||
+ | * हंसी मन की गांठें बड़ी आसानी से खोल देती है- मेरे मन की ही नहीं, तुम्हारे मन की भी। | ||
+ | * मेरा लक्ष्य संसार से मैत्री है और मैं अन्याय का प्रबलतम विरोध करते हुए भी दुनिया को अधिक से अधिक स्नेह दे सकता हूं। | ||
+ | * मुट्ठी भर संकल्पवान लोग, जिनकी अपने लक्ष्य में दृढ़ आस्था है, इतिहास की धारा को बदल सकते हैं। | ||
+ | * मनुष्य की सच्ची परीक्षा विपत्ति में ही होती है। | ||
+ | * मांगना एक लज्जास्पद कार्य है। अपने उद्योग से कोई वस्तु प्राप्त करना ही सच्चे मनुष्य का कर्त्तव्य है। | ||
+ | * शौर्य किसी में बाहर से पैदा नहीं किया जा सकता। वह तो मनुष्य के स्वभाव में होना चाहिए। | ||
+ | * शंका के मूल में श्रद्धा का अभाव रहता है। | ||
+ | * शक्ति भय के अभाव में रहती है, न कि मांस या पुट्ठों के गुणों में, जो कि हमारे शरीर में होते हैं। | ||
+ | * शांतिमय लड़ाई लड़नेवाला जीत से कभी फूल नहीं उठता और न मर्यादा ही छोड़ता है। | ||
+ | * शरीर आत्मा के रहने की जगह होने के कारण तीर्थ जैसा पवित्र है। | ||
+ | * प्रेम हमें अपने पड़ोसी या मित्र पर ही नहीं बल्कि जो हमारे शत्रु हों, उन पर भी रखना है। | ||
+ | * प्रेम कभी दावा नहीं करता, वह हमेशा देता है। प्रेम हमेशा कष्ट सहता है। न कभी झुंझलाता है, न बदला लेता है। | ||
+ | * प्रार्थना आत्मशुद्धि का आह्वान है, यह विनम्रता को निमंत्रण देना है, यह मनुष्यों के दु:खों में भागीदार बनने की तैयारी है। | ||
+ | * प्रजातंत्र का अर्थ मैं यह समझता हूं कि इसमें नीचे से नीचे और ऊंचे से ऊंचे आदमी को आगे बढ़ने का समान अवसर मिले। | ||
+ | * प्रेम से भरा हृदय अपने प्रेम पात्र की भूल पर दया करता है और खुद घायल हो जाने पर भी उससे प्यार करता है। | ||
+ | * [[प्रार्थना]] या भजन [[जीभ]] से नहीं होता है। इसी से गूंगे, तोतले और मूढ़ भी प्रार्थना कर सकते हैं। | ||
+ | * प्रेम द्वेष को परास्त करता है। | ||
+ | * एक स्थिति ऐसी होती है जब मनुष्य को विचार प्रकट करने की आवश्यकता नहीं रहती। उसके विचार ही कर्म बन जाते हैं, वह संकल्प से कर्म कर लेता है। ऐसी स्थिति जब आती है तब मनुष्य अकर्म में कर्म देखता है, अर्थात अकर्म से कर्म होता है। | ||
+ | * कोई भी संस्कृति जीवित नहीं रह सकती यदि वह अपने को अन्य से पृथक् रखने का प्रयास करे। | ||
+ | * कोई असत्य से सत्य नहीं पा सकता। सत्य को पाने के लिए हमेशा सत्य का आचरण करना ही होगा। | ||
+ | * कवि के अर्थ का अंत ही नहीं है। जैसे मनुष्य का वैसे ही महाकाव्यों के अर्थ का भी विकास होता ही रहता है। | ||
+ | * दुनिया में रहते हुए भी सेवाभाव से और सेवा के लिए जो जीता है, वह संन्यासी है। | ||
+ | * दुनिया का अस्तित्व शस्त्रबल पर नहीं, बल्कि सत्य, दया और आत्मबल पर है। | ||
+ | * ग़लतियां करके, उनको मंजूर करके और उन्हें सुधार कर ही मैं आगे बढ़ सकता हूं। पता नहीं क्यों, किसी के बरजने से या किसी की चेतावनी से मैं उन्नति कर ही नहीं सकता। ठोकर लगे और दर्द उठे तभी मैं सीख पाता हूं। | ||
+ | * तपस्या धर्म का पहला और आखिरी क़दम है। | ||
+ | * तुम्हारी जेब में एक पैसा है, वह कहां से और कैसे आया है, वह अपने से पूछो। उस कहानी से बहुत सीखोगे। | ||
+ | * निर्मल अंत:करण को जिस समय जो प्रतीत हो वही सत्य है। उस पर दृढ़ रहने से शुद्ध सत्य की प्राप्ति हो जाती है। | ||
+ | * धर्म का पालन धैर्य से होता है। | ||
+ | * धनवान लोगों के मन में हमेशा शंका रहती है, इसलिए यदि हम लक्ष्मी देवी को खुश रखना चाहते हैं तो हमें अपनी पात्रता सिद्ध करनी होगी। | ||
+ | * चोरी का माल खाने से कोई शूरवीर नहीं, दीन बनता है। | ||
+ | * बिना अपनी स्वीकृति के कोई मनुष्य आत्म-सम्मान नहीं गंवाता। | ||
+ | * बड़प्पन सिर्फ उम्र में ही नहीं, उम्र के कारण मिले हुए ज्ञान, अनुभव और चतुराई में भी है। | ||
+ | * ब्रह्मा ज्ञान मूक ज्ञान है, स्वयं प्रकाश है। सूर्य को अपना प्रकाश मुंह से नहीं बताना पड़ता। वह है, यह हमें दिखाई देता है। यही बात ब्रह्मा-ज्ञान के बारे में भी है। | ||
+ | * विचारपूर्वक किया गया श्रम उच्च से उच्च प्रकार की समाजसेवा है। | ||
+ | * विचार ही कार्य का मूल है। विचार गया तो कार्य गया ही समझो। | ||
+ | * विजय के लिए केवल एक सत्याग्रही ही काफ़ी है। | ||
+ | * वैर लेना या करना मनुष्य का कर्तव्य नहीं है- उसका कर्तव्य क्षमा है। | ||
+ | * विश्वास करना एक गुण है। अविश्वास दुर्बलता की जननी है। | ||
+ | * विश्वास के बिना काम करना सतहविहीन गड्ढे में पहुंचने के प्रयत्नों के समान है। | ||
+ | * वीर वह है जो शक्ति होने पर भी दूसरों को डराता नहीं और निर्बल की रक्षा करता है। | ||
+ | * व्यक्ति की पूजा की बजाय गुण-पूजा करनी चाहिए। व्यक्ति तो ग़लत साबित हो सकता है और उसका नाश तो होगा ही, गुणों का नाश नहीं होता। | ||
+ | * यदि सुंदर दिखाई देना है तो तुम्हें भड़कीले कपड़े नहीं पहनना चाहिए। बल्कि अपने सदगुणों को बढ़ाना चाहिए। | ||
+ | * यदि हमारी इच्छाशक्ति ही कमज़ोर होने लगेगी तो मानसिक शक्तियां भी उसी तरह काम करने लगेंगी। | ||
+ | * ज्ञान का अंतिम लक्ष्य चरित्र-निर्माण होना चाहिए। | ||
+ | * श्रद्धा में निराशा का कोई स्थान नहीं। | ||
+ | * श्रद्धा के अनुसार ही बुद्धि सूझती है। | ||
+ | * श्रम पूंजी से कहीं श्रेष्ठ है। मैं श्रम और पूंजी का [[विवाह]] करा देना चाहता हूं। वे दोनों मिलकर आश्चर्यजनक काम कर सकते हैं। | ||
+ | * श्रद्धा में विवाद का स्थान ही नहीं है। इसलिए कि एक की श्रद्धा दूसरे के काम नहीं आ सकती। | ||
|} | |} | ||
</div> | </div> |
Latest revision as of 10:18, 9 February 2021
mahatma gaandhi vishay soochi
mahatma gaandhi ke anamol vachan |
---|
- REDIRECTsaancha:inhean bhi dekhean
left|30px|link=mahatma gaandhi ke prerak prasang|pichhe jaean | mahatma gaandhi ke anamol vachan | right|30px|link=mahatma gaandhi|age jaean |
tika tippani aur sandarbh
- ↑ gaandhiji ke shabdoan mean (hindi) (ech.ti.em.el). . abhigaman tithi: 20 janavari, 2011.
- ↑ sahas / nirbhikata / parakram/ atmvishvas / prayatn (hindi) (ech.ti.em.el) hindisikhen. abhigaman tithi: 14 aprॅl, 2011.