कुवलयापीड़: Difference between revisions

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Jump to navigation Jump to search
[unchecked revision][unchecked revision]
No edit summary
No edit summary
 
(5 intermediate revisions by 4 users not shown)
Line 1: Line 1:
[[चित्र:Kubalayapid-and-Krishna.jpg|thumb|220px|[[कृष्ण]] की ओर बढ़ता कुवलयापीड़]]
'''कुवलयापीड़''' एक [[हाथी]] का नाम था, जिसका वध भगवान [[श्रीकृष्ण]] के द्वारा हुआ था। इस हाथी को [[मथुरा]] के राजा [[कंस]] ने कृष्ण और [[बलराम]] को मार डालने के लिए विशेष रूप से प्रशिक्षित करवाया था। किंतु कंस अपने इस षड़यंत्र में सफल नहीं हो सका और कुवलयापीड़ हाथी का कृष्ण कुवलयापीड़द्वारा संहार कर दिया गया।
==कथा==
मथुरा के दक्षिण में [[रंगेश्वर महादेव मथुरा|श्री रंगेश्वर महादेवजी]] क्षेत्रपाल के रूप में अवस्थित हैं। भेज–कुलांगार महाराज कंस ने श्रीकृष्ण और बलराम को मारने का षड़यन्त्र कर इस [[तीर्थ स्थान]] पर एक रंगशाला का निर्माण करवाया था। [[अक्रूर]] के द्वारा छलकर [[गोकुल]] से श्रीकृष्ण और बलदेव को लाया गया। श्रीकृष्ण और बलराम नगर भ्रमण के बहाने ग्वालबालों के साथ लोगों से पूछते–पूछते इस रंगशाला में प्रविष्ट हुये। रंगशाला बहुत ही सुन्दर सजायी गई थी। सुन्दर-सुन्दर तोरण-द्वार पुष्पों से सुसज्जित थे। सामने भगवान [[शिव]] का विशाल [[धनुष]] रखा गया था। मुख्य प्रवेश द्वार पर मतवाला कुवलयापीड़ हाथी झूमते हुए, बस संकेत पाने की प्रतीक्षा कर रहा था।
====वध====
कुवलयापीड़ को दोनों भाईयों को मारने के लिए भली-भाँति प्रशिक्षित किया गया था। रंगेश्वर महादेव की छटा भी निराली थी। उन्हें विभिन्न प्रकार से सुसज्जित किया गया था। रंगशाला के अखाड़े में [[चाणूर]], [[मुष्टिक]], शल, तोषल आदि बड़े-बड़े भयंकर पहलवान दंगल के लिए प्रस्तुत थे। [[कंस]] अपने बडे़-बड़े नागरिकों तथा मित्रों के साथ उच्च मञ्च पर विराजमान था। रंगशाला में प्रवेश करते ही [[श्रीकृष्ण]] ने अनायास ही धनुष को अपने बायें हाथ से उठा लिया। पलक झपकते ही सबके सामने उसकी डोरी चढ़ा दी तथा डोरी को ऐसे खींचा कि वह धनुष भयंकर शब्द करते हुए टूट गया। धनुष की रक्षा करने वाले सारे सैनिकों को दोनों भाईयों ने ही मार गिराया। कुवलयापीड़ का वध कर श्रीकृष्ण ने उसके दोनों दाँतों को उखाड़ लिया और उससे महावत एवं अनेक दुष्टों का संहार किया।


*[[कंस]] के मंडप की देहली पर ही कुवलयापीड़ नामक हाथी था। उसे अंकुश से उकसाकर महावत ने [[कृष्ण]] की ओर भेजा। कृष्ण ने थोड़ी देर उससे लड़ाई की, फिर उसे धरती पर दे पटका। उसके दोनों दांत निकालकर कृष्ण और [[बलराम]] ने एक-एक अपने कंधे पर रख लिये।
{{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक=प्रारम्भिक1|माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }}
*कंस डर गया।
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
*उसने कृष्ण के साथ चाणूर को तथा बलराम के साथ मुष्टिक नामक मल्ल को लड़ने के लिए भेजा। दोनों ही भयानक योद्धा माने जाते थें कृष्ण ने सहज ही चाणूर को तथा बलराम ने मुष्टिक को मार डाला।
*इसी प्रकार उन दोनों ने कूट, शल और तोशल को भी मार डाला। शेष मल्ल जान बचाकर भागे।
*कंस ने क्रुद्ध होकर [[वसुदेव]] को कैद करने की तथा उन दोनों को नगर से निकालने की आज्ञा दी।
*कृष्ण ने उसके सिंहासन के पास पहुंचकर उससे युद्ध आरंभ कर दिया तथा उसे धरती पर घसीट लिया। कंस मारा गया। द्वेष भाव से ही सही, कृष्ण का बार-बार स्मरण करने के कारण उसे सारूप्य मुक्ति प्राप्त हुई।<ref>[[भागवत पुराण|श्रीमद् भागवत]] 10।43-44, हरि0 वै0पु0।</ref> <ref>विष्णुपर्व ।29। [[विष्णु पुराण]] 5।20।–</ref>
 
 
==टीका-टिप्पणी==
<references/>
<references/>
 
==संबंधित लेख==
[[Category:पौराणिक कोश]]
{{कथा}}{{कृष्ण2}}
 
[[Category:कथा साहित्य]][[Category:पौराणिक कोश]][[Category:कृष्ण काल]][[Category:प्रसिद्ध चरित्र और मिथक कोश]]
[[Category:महाभारत]]
__INDEX__
__INDEX__
__NOTOC__

Latest revision as of 04:55, 6 August 2015

[[चित्र:Kubalayapid-and-Krishna.jpg|thumb|220px|कृष्ण की ओर बढ़ता कुवलयापीड़]] कुवलयापीड़ एक हाथी का नाम था, जिसका वध भगवान श्रीकृष्ण के द्वारा हुआ था। इस हाथी को मथुरा के राजा कंस ने कृष्ण और बलराम को मार डालने के लिए विशेष रूप से प्रशिक्षित करवाया था। किंतु कंस अपने इस षड़यंत्र में सफल नहीं हो सका और कुवलयापीड़ हाथी का कृष्ण कुवलयापीड़द्वारा संहार कर दिया गया।

कथा

मथुरा के दक्षिण में श्री रंगेश्वर महादेवजी क्षेत्रपाल के रूप में अवस्थित हैं। भेज–कुलांगार महाराज कंस ने श्रीकृष्ण और बलराम को मारने का षड़यन्त्र कर इस तीर्थ स्थान पर एक रंगशाला का निर्माण करवाया था। अक्रूर के द्वारा छलकर गोकुल से श्रीकृष्ण और बलदेव को लाया गया। श्रीकृष्ण और बलराम नगर भ्रमण के बहाने ग्वालबालों के साथ लोगों से पूछते–पूछते इस रंगशाला में प्रविष्ट हुये। रंगशाला बहुत ही सुन्दर सजायी गई थी। सुन्दर-सुन्दर तोरण-द्वार पुष्पों से सुसज्जित थे। सामने भगवान शिव का विशाल धनुष रखा गया था। मुख्य प्रवेश द्वार पर मतवाला कुवलयापीड़ हाथी झूमते हुए, बस संकेत पाने की प्रतीक्षा कर रहा था।

वध

कुवलयापीड़ को दोनों भाईयों को मारने के लिए भली-भाँति प्रशिक्षित किया गया था। रंगेश्वर महादेव की छटा भी निराली थी। उन्हें विभिन्न प्रकार से सुसज्जित किया गया था। रंगशाला के अखाड़े में चाणूर, मुष्टिक, शल, तोषल आदि बड़े-बड़े भयंकर पहलवान दंगल के लिए प्रस्तुत थे। कंस अपने बडे़-बड़े नागरिकों तथा मित्रों के साथ उच्च मञ्च पर विराजमान था। रंगशाला में प्रवेश करते ही श्रीकृष्ण ने अनायास ही धनुष को अपने बायें हाथ से उठा लिया। पलक झपकते ही सबके सामने उसकी डोरी चढ़ा दी तथा डोरी को ऐसे खींचा कि वह धनुष भयंकर शब्द करते हुए टूट गया। धनुष की रक्षा करने वाले सारे सैनिकों को दोनों भाईयों ने ही मार गिराया। कुवलयापीड़ का वध कर श्रीकृष्ण ने उसके दोनों दाँतों को उखाड़ लिया और उससे महावत एवं अनेक दुष्टों का संहार किया।


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख