मुग़लकालीन संगीत: Difference between revisions

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'''मुग़लकालीन भारतीय संगीत''' अपने समय से ही काफ़ी प्रसिद्ध रहा है। [[मुग़ल काल]] में [[संगीत]] को कितने ही कवियों और गायकों ने अपने सुरों और मधुर आवाज़ से सजाया-संवारा। मुग़ल काल से ही भारतीय संगीत ने अपनी बुलन्दियों की ऊँचाइयों को छुआ। [[तानसेन]], जो कि [[अकबर के नवरत्न|अकबर के नवरत्नों]] में से एक था, उसे शायद ही कोई ऐसा होगा, जो जानता न होगा। [[अकबर]], [[जहाँगीर]] और [[शाहजहाँ]] के समय में भारतीय संगीत की नई-नई शैलियों का विकास हुआ। "ध्रुपद गायन" इस समय अपने चरम पर था।
'''मुग़लकालीन भारतीय संगीत''' अपने समय से ही काफ़ी प्रसिद्ध रहा है। [[हिन्दू]] तथा [[मुसलमान]] दोनों ने ही मिलकर इस क्षेत्र में काम किया था। [[मुग़ल काल]] में [[संगीत]] को कितने ही कवियों और गायकों ने अपने सुरों और मधुर आवाज़ से सजाया-संवारा। मुग़ल काल से ही भारतीय संगीत ने अपनी बुलन्दियों की ऊँचाइयों को छुआ। [[तानसेन]], जो कि [[अकबर के नवरत्न|अकबर के नवरत्नों]] में से एक था। तानसेन के बारे में कहा जाता है कि उन्होंने कई [[राग|रागों]] की रचना की। [[अकबर]], [[जहाँगीर]] और [[शाहजहाँ]] के समय में भारतीय संगीत की नई-नई शैलियों का विकास हुआ। "ध्रुपद गायन" इस समय अपने चरम पर था।
==अकबर का संरक्षण==
==अकबर का संरक्षण==
संगीत के क्षेत्र में अकबर के समय एक प्रसिद्ध संगीतज्ञ 'तानसेन' उसके नवरत्नों में से एक था। अकबर के समय में 'ध्रुपद' गायन शैली एवं 'वीना' (वीणा) का प्रचार हुआ। तानसेन के अतिरिक्त अन्य ध्रुपद गायक थे- 'बैज बख़्श', 'गोपाल', '[[हरिदास]]', [[सूरदास]] आदि। [[अबुल फ़ज़ल]] के अनुसार 36 गायक अकबर के संरक्षण में दरबार में थे। उनमें सर्वाधिक प्रसिद्ध 'तानसेन' एवं 'बाज बहादुर' थे। तानसेन ने [[राजा मानसिंह]] द्वारा स्थापित [[ग्वालियर]] के 'संगीत विद्यालय' में शिक्षा प्राप्त की थी। उनके गुरु हरिदास थे। अबुल फ़ज़ल ने तानसेन के बारे में लिखा है कि, "उसके जैसा गायक हज़ार वर्षों में कोई नहीं हुआ।" तानसेन ने ग्वालियर के सूफ़ी सन्त 'मुहम्मद गौस' की प्रेरणा से [[इस्लाम धर्म]] अंगीकार कर लिया था।
संगीत के क्षेत्र में अकबर के समय एक प्रसिद्ध [[संगीतज्ञ]]  'तानसेन' उसके नवरत्नों में से एक था। अकबर के समय में 'ध्रुपद' गायन शैली एवं 'वीना' (वीणा) का प्रचार हुआ। तानसेन के अतिरिक्त अन्य ध्रुपद गायक थे- 'बैज बख़्श', 'गोपाल', '[[हरिदास]]', [[सूरदास]] आदि। [[अबुल फ़ज़ल]] के अनुसार 36 गायक अकबर के संरक्षण में दरबार में थे। उनमें सर्वाधिक प्रसिद्ध 'तानसेन' एवं 'बाज बहादुर' थे। तानसेन ने [[राजा मानसिंह]] द्वारा स्थापित [[ग्वालियर]] के 'संगीत विद्यालय' में शिक्षा प्राप्त की थी। उनके गुरु हरिदास थे। अबुल फ़ज़ल ने तानसेन के बारे में लिखा है कि, "उसके जैसा गायक हज़ार वर्षों में कोई नहीं हुआ।" तानसेन ने ग्वालियर के सूफ़ी सन्त 'मुहम्मद गौस' की प्रेरणा से [[इस्लाम धर्म]] अंगीकार कर लिया था।
====तानसेन की रचनाएँ====
====तानसेन की रचनाएँ====
अकबर ने तानसेन को 'कण्ठाभरणवाणीविलास' की उपाधि दी थी। कालान्तर में 'ध्रुपद गायन शैली' का स्थान 'ख्याल गायन शैली' ने ग्रहण कर लिया। [[तानसेन]] की प्रमुख रचनाएँ थीं - 'मियाँ की टोड़ी', 'मियाँ की मल्हार', 'मियाँ की सारंग', 'दरबारी कान्हड़ी' आदि।  
अकबर ने तानसेन को 'कण्ठाभरणवाणीविलास' की उपाधि दी थी। कालान्तर में 'ध्रुपद गायन शैली' का स्थान 'ख्याल गायन शैली' ने ग्रहण कर लिया। [[तानसेन]] की प्रमुख रचनाएँ थीं - 'मियाँ की टोड़ी', 'मियाँ की मल्हार', 'मियाँ की सारंग', 'दरबारी कान्हड़ी' आदि। 'राम सागर' ग्रंथ की रचना अकबर के दरबार में की गयी। अकबर के समय के महत्त्वपूर्ण कलाकार (संगीत) [[मालवा]] के शासक [[बाजबहादुर]] के विषय में अबुल फ़ज़ल ने कहा है कि, "वह [[संगीत]], [[विज्ञान]] एवं [[हिन्दी]] गीत में अपने समय का सर्वश्रेष्ठ व्यक्ति था।"
'राम सागर' ग्रंथ की रचना अकबर के दरबार में की गयी। अकबर के समय के महत्वपूर्ण कलाकार (संगीत) [[मालवा]] के शासक [[बाजबहादुर]] के विषय में अबुल फ़ज़ल ने कहा है कि, "वह [[संगीत]], [[विज्ञान]] एवं [[हिन्दी]] गीत में अपने समय का सर्वश्रेष्ठ व्यक्ति था।"
==जहाँगीर का संरक्षण==
==जहाँगीर का संरक्षण==
[[जहाँगीर]] के दरबार के प्रमुख कलाकारों में 'तानसेन' के पुत्र 'विलास ख़ाँ', 'छत्तर ख़ाँ' एवं 'हमजान' थे। एक ग़ज़ल गायक 'शौकी' को जहाँगीर ने 'आनन्द ख़ाँ' की उपाधि दी। [[शाहजहाँ]] ने 'विलास ख़ाँ' के दामाद 'लाल ख़ाँ' को 'गुन-समुन्दर' की उपाधि दी थी।
[[जहाँगीर]] के दरबार के प्रमुख कलाकारों में 'तानसेन' के पुत्र 'विलास ख़ाँ', 'छत्तर ख़ाँ' एवं 'हमजान' थे। एक ग़ज़ल गायक 'शौकी' को जहाँगीर ने 'आनन्द ख़ाँ' की उपाधि दी। [[शाहजहाँ]] ने 'विलास ख़ाँ' के दामाद 'लाल ख़ाँ' को 'गुन-समुन्दर' की उपाधि दी थी।
==शाहजहाँ का संरक्षण==
==शाहजहाँ का संरक्षण==
शाहजहाँ अत्यन्त रसिक एवं संगीत मर्मज्ञ था। वह 'दीवाने-ख़ास' में प्रतिदिन संगीत सुना करता था। वह स्वयं एक अच्छा गायक था। [[शाहजहाँ]] के काल में 'लाल ख़ाँ', 'ख़ुशहाल ख़ाँ' एवं 'विलास ख़ाँ' प्रमुख संगीतज्ञ थे।
शाहजहाँ अत्यन्त रसिक एवं संगीत मर्मज्ञ था। वह 'दीवाने-ख़ास' में प्रतिदिन संगीत सुना करता था। वह स्वयं एक अच्छा गायक था। [[शाहजहाँ]] के काल में 'लाल ख़ाँ', 'ख़ुशहाल ख़ाँ' एवं 'विलास ख़ाँ' प्रमुख [[संगीतज्ञ]]  थे।
==वाद्य प्रेमी औरंगज़ेब==
औरंगज़ेब के समय में निःसन्देह ही [[संगीत]] को उभरने नहीं दिया गया, फिर भी उसके शासन काल में 'फ़कीरुल्लाह' ने 'मान कुतूहल' का अनुवाद 'राग दर्पण' नाम से करके औरंगज़ेब को अर्पित किया। कट्टर औरंगज़ेब ने [[संगीत]] को गाड़ने के लिए जो कुछ कहा था उसके बारे में कई कहानियाँ हैं। आधुनिक अनुसंधान से पता चलता है कि [[औरंगज़ेब]] ने गायकों को अपने राजदरबार से बहिष्कृत कर दिया था। लेकिन वाद्य संगीत पर कोई रोक नहीं लगाई थी। यहाँ तक की औरंगज़ेब स्वयं एक कुशल [[वीणा]] वादक था। औरंगज़ेब ने हरम की रानियों तथा उसके कई सरदारों ने भी सभी प्रकार के संगीत को बढ़ावा दिया। इसीलिए औरंगज़ेब के शासनकाल में [[भारतीय शास्त्रीय संगीत]] पर बड़ी संख्या में पुस्तकों की रचना की गई। संगीत के क्षेत्र में सबसे महत्त्वपूर्ण विकास अठारहवीं शताब्दी में [[मुहम्मदशाह रौशन अख़्तर|मुहम्मदशाह]] (1720-48 ई.) के शासनकाल में हुआ।


*[[औरंगज़ेब]] के समय में निःसन्देह ही [[संगीत]] को उभरने नहीं दिया गया, फिर भी उसके शासन काल में 'फ़कीरुल्लाह' ने 'मान कुतूहल' का अनुवाद 'राग दर्पण' नाम से करके औरंगज़ेब को अर्पित किया।
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Latest revision as of 13:00, 23 November 2012

मुग़लकालीन भारतीय संगीत अपने समय से ही काफ़ी प्रसिद्ध रहा है। हिन्दू तथा मुसलमान दोनों ने ही मिलकर इस क्षेत्र में काम किया था। मुग़ल काल में संगीत को कितने ही कवियों और गायकों ने अपने सुरों और मधुर आवाज़ से सजाया-संवारा। मुग़ल काल से ही भारतीय संगीत ने अपनी बुलन्दियों की ऊँचाइयों को छुआ। तानसेन, जो कि अकबर के नवरत्नों में से एक था। तानसेन के बारे में कहा जाता है कि उन्होंने कई रागों की रचना की। अकबर, जहाँगीर और शाहजहाँ के समय में भारतीय संगीत की नई-नई शैलियों का विकास हुआ। "ध्रुपद गायन" इस समय अपने चरम पर था।

अकबर का संरक्षण

संगीत के क्षेत्र में अकबर के समय एक प्रसिद्ध संगीतज्ञ 'तानसेन' उसके नवरत्नों में से एक था। अकबर के समय में 'ध्रुपद' गायन शैली एवं 'वीना' (वीणा) का प्रचार हुआ। तानसेन के अतिरिक्त अन्य ध्रुपद गायक थे- 'बैज बख़्श', 'गोपाल', 'हरिदास', सूरदास आदि। अबुल फ़ज़ल के अनुसार 36 गायक अकबर के संरक्षण में दरबार में थे। उनमें सर्वाधिक प्रसिद्ध 'तानसेन' एवं 'बाज बहादुर' थे। तानसेन ने राजा मानसिंह द्वारा स्थापित ग्वालियर के 'संगीत विद्यालय' में शिक्षा प्राप्त की थी। उनके गुरु हरिदास थे। अबुल फ़ज़ल ने तानसेन के बारे में लिखा है कि, "उसके जैसा गायक हज़ार वर्षों में कोई नहीं हुआ।" तानसेन ने ग्वालियर के सूफ़ी सन्त 'मुहम्मद गौस' की प्रेरणा से इस्लाम धर्म अंगीकार कर लिया था।

तानसेन की रचनाएँ

अकबर ने तानसेन को 'कण्ठाभरणवाणीविलास' की उपाधि दी थी। कालान्तर में 'ध्रुपद गायन शैली' का स्थान 'ख्याल गायन शैली' ने ग्रहण कर लिया। तानसेन की प्रमुख रचनाएँ थीं - 'मियाँ की टोड़ी', 'मियाँ की मल्हार', 'मियाँ की सारंग', 'दरबारी कान्हड़ी' आदि। 'राम सागर' ग्रंथ की रचना अकबर के दरबार में की गयी। अकबर के समय के महत्त्वपूर्ण कलाकार (संगीत) मालवा के शासक बाजबहादुर के विषय में अबुल फ़ज़ल ने कहा है कि, "वह संगीत, विज्ञान एवं हिन्दी गीत में अपने समय का सर्वश्रेष्ठ व्यक्ति था।"

जहाँगीर का संरक्षण

जहाँगीर के दरबार के प्रमुख कलाकारों में 'तानसेन' के पुत्र 'विलास ख़ाँ', 'छत्तर ख़ाँ' एवं 'हमजान' थे। एक ग़ज़ल गायक 'शौकी' को जहाँगीर ने 'आनन्द ख़ाँ' की उपाधि दी। शाहजहाँ ने 'विलास ख़ाँ' के दामाद 'लाल ख़ाँ' को 'गुन-समुन्दर' की उपाधि दी थी।

शाहजहाँ का संरक्षण

शाहजहाँ अत्यन्त रसिक एवं संगीत मर्मज्ञ था। वह 'दीवाने-ख़ास' में प्रतिदिन संगीत सुना करता था। वह स्वयं एक अच्छा गायक था। शाहजहाँ के काल में 'लाल ख़ाँ', 'ख़ुशहाल ख़ाँ' एवं 'विलास ख़ाँ' प्रमुख संगीतज्ञ थे।

वाद्य प्रेमी औरंगज़ेब

औरंगज़ेब के समय में निःसन्देह ही संगीत को उभरने नहीं दिया गया, फिर भी उसके शासन काल में 'फ़कीरुल्लाह' ने 'मान कुतूहल' का अनुवाद 'राग दर्पण' नाम से करके औरंगज़ेब को अर्पित किया। कट्टर औरंगज़ेब ने संगीत को गाड़ने के लिए जो कुछ कहा था उसके बारे में कई कहानियाँ हैं। आधुनिक अनुसंधान से पता चलता है कि औरंगज़ेब ने गायकों को अपने राजदरबार से बहिष्कृत कर दिया था। लेकिन वाद्य संगीत पर कोई रोक नहीं लगाई थी। यहाँ तक की औरंगज़ेब स्वयं एक कुशल वीणा वादक था। औरंगज़ेब ने हरम की रानियों तथा उसके कई सरदारों ने भी सभी प्रकार के संगीत को बढ़ावा दिया। इसीलिए औरंगज़ेब के शासनकाल में भारतीय शास्त्रीय संगीत पर बड़ी संख्या में पुस्तकों की रचना की गई। संगीत के क्षेत्र में सबसे महत्त्वपूर्ण विकास अठारहवीं शताब्दी में मुहम्मदशाह (1720-48 ई.) के शासनकाल में हुआ।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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