बहादुर शाह प्रथम: Difference between revisions

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Revision as of 07:24, 3 April 2011

बहादुर शाह प्रथम
पूरा नाम साहिब-ए-क़ुरान मुअज्ज़म शाह आलमगीर सानी अबु नासिर सैयद कुतुबबुद्दीन अबुल मुज़फ़्फ़र मुहम्मद मुअज्ज़म शाह आलम बहादुर शाह प्रथम पादशाह गाज़ी (खुल्द मंजिल)
अन्य नाम शाहआलम अथवा आलमशाह
जन्म 14 अक्तूबर, सन 1643 ई.
जन्म भूमि बुरहानपुर,भारत
मृत्यु तिथि 27 फ़रवरी, सन 1712 ई.
मृत्यु स्थान लाहौर
पिता/माता औरंगज़ेब, बाई बेगम
पति/पत्नी निज़ाम बाई और आठ अन्य
संतान आठ पुत्र और एक पुत्री
उपाधि शहज़ादा मुअज्ज़म
शासन 22 मार्च, सन 1707 ई. से 27 फ़रवरी, सन 1712 ई. तक
मक़बरा मोती मस्जिद, दिल्ली

बहादुर शाह प्रथम का जन्म 14 अक्तूबर, सन 1643 ई. में बुरहानपुर,भारत में हुआ था। बहादुर शाह प्रथम दिल्ली का सातवाँ मुग़ल बादशाह (1707-1712 ई.) था। शहज़ादा मुअज्ज़म कहलाने वाले बहादुरशाह, बादशाह औरंगज़ेब के दूसरे पुत्र थे। अपने पिता के भाई और प्रतिद्वंद्वी शाह शुजा के साथ बड़े भाई के मिल जाने के बाद शहज़ादा मुअज्ज़म ही औरंगज़ेब के संभावी उत्तराधिकारी थे। बादशाह बहादुरशाह प्रथम के दूसरे पुत्र का नाम शाहजादा अजीमुश्शान था।

क़ाबुल का सूबेदार

उन्हें सन 1663 ई. में दक्षिण के दक्कन पठार क्षेत्र और मध्य भारत में पिता का प्रतिनिधि बनाकर भेजा गया। सन1683-84 ई. में उन्होंने दक्षिण बंबई (वर्तमान मुंबई) गोवा के पुर्तग़ाली इलाक़ों में मराठों के ख़िलाफ़ सेना का नेतृत्व किया, लेकिन पुर्तग़ालियों की सहायता न मिलने की स्थिति में उन्हें पीछे हटना पड़ा। आठ वर्ष तक तंग किए जाने के बाद उन्हें उनके पिता ने 1699 में क़ाबुल (वर्तमान अफ़ग़ानिस्तान) का सूबेदार नियुक्त किया।

शासन

पिता की मौत के बाद शहज़ादा मुअज्ज़म ने साम्राज्य का स्वामी बनने के लिए अपने दो भाइयों को ख़त्म कर दिया। शाहजादे के रूप में बहादुर प्रथम मुअज्जम कहलाता था। वह शाह आलम के नाम से भी प्रसिद्ध है। तख़्त पर बैठने के बाद उसने बहादुर शाह का ख़िताब धारण किया, लेकिन वह अपने पहले नाम शाह आलम अथवा आलम शाह के नाम से भी पुकारा जाता था। उसके पिता अपने जीवन काल में उसके साथ अच्छा व्यवहार नहीं किया था, कुछ वर्षों तक तो उसे पिता की क़ैद में भी रहना पड़ा। कठोर दमन के कारण उसका व्यक्तित्व कुछ कुंठित हो चुका था और गद्दी पर बैठने के समय संकट की स्थिति में मुग़ल साम्राज्य की रक्षा करने अथवा उसे सुदृढ़ बनाने की क्षमता उसमें नहीं थी। फिर भी उसने पाँच वर्ष के अपने अल्प कालीन शासन में मुग़ल साम्राज्य को फिर से सुदृढ़ बनाने का प्रयास किया। उस समय मुग़ल साम्राज्य को मुख्य रूप से तीन शत्रुओं से ख़तरा था, यथा– राजपूत, मराठा और सिख। उसने राजपूतों को रियायतें देकर उनसे सुलह कर ली। शम्भुजी के पुत्र साहू को रिहा कर मराठों की शत्रुता को मिटाने का प्रयास किया। साहू के महाराष्ट्र लौटने के बाद मराठों में फूट पैदा हो गयी और गृह-युद्ध छिड़ जाने के कारण कुछ समय के लिए वे दिल्ली के मुग़ल साम्राज्य को परेशान करने की स्थिति में नहीं रहे। लेकिन बादशाह ने सिखों के विरुद्ध सख़्ती से काम लिया और उनके तथा उनके नेता वीर बन्दा वैरागी को पराजित करके उन्हें कुछ समय के लिए कुचल दिया। लेकिन उसके बाद ही 27 फ़रवरी, सन 1712 ई. में लाहौर में बहादुर शाह प्रथम की मृत्यु हो गयी।


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