सवाई जयसिंह: Difference between revisions

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आमेर पर 44 वर्ष तक राज्य करने के बाद 1743 ई. में सवाई जयसिंह की मृत्यु हो गई। इसी के राज्यकाल में गुलाबी नगर [[जयपुर]] के रूप में नयी राजधानी की रचना हुई थी।
आमेर पर 44 वर्ष तक राज्य करने के बाद 1743 ई. में सवाई जयसिंह की मृत्यु हो गई। इसी के राज्यकाल में गुलाबी नगर [[जयपुर]] के रूप में नयी राजधानी की रचना हुई थी।
==स्थापत्य==
==स्थापत्य==
गुलाबी शहर जयपुर के संस्थापक राजा सवाई जयसिंह ने 18वीं सदी में [[भारत]] में अलग-अलग जगहों पर पाँच अंतरिक्षीय अनुसंधान केन्द्र बनवाए थे। [[दिल्ली]] का [[जंतर मंतर दिल्ली|जंतर-मंतर]] 1724 ई. में इस कड़ी में सबसे पहले बनवाया गया था। 1734 ई. में दिल्ली की वैधशाला को आधार बनाकर [[जयपुर]] [[जंतर मंतर जयपुर|जंतर मंतर]] में भी इसकी स्थापना की गई। बाद में [[वाराणसी]], [[मथुरा]] और [[उज्जैन]] में भी इनकी स्थापना की गई।
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Revision as of 12:22, 21 December 2011

सवाई जयसिंह आमेर का वीर और बहुत ही कूटनीतिज्ञ राजा था। उसे 'जयसिंह द्वितीय' के नाम से भी जाना जाता है। मुग़ल बादशाह औरंगज़ेब की मृत्यु हो जाने के बाद मुग़ल साम्राज्य में अव्यवस्था व्याप्त थी। इसी समय जयसिंह ने अपना बग़ावत का झंडा बुलन्द कर दिया। सवाई जयसिंह 44 वर्षों तक आमेर के राज्य सिंहासन पर रहे।

बग़ावत

औरंगज़ेब की मृत्यु के बाद जब मुग़ल साम्राज्य में अव्यवस्था फैल रही थी, तभी जयसिंह का नाम अचानक चमक उठा। उसने बहादुरशाह प्रथम के विरुद्ध बग़ावत का झण्डा बुलन्द कर दिया, परन्तु उसकी बग़ावत को दबा दिया गया और बादशाह ने भी उसे क्षमा कर दिया। वह मालवा में और बाद में आगरा में बादशाह का प्रतिनिधि नियुक्त हुआ। पेशवा बाजीराव प्रथम के साथ उसके मैत्रीपूर्ण सम्बन्ध थे। मुग़ल साम्राज्य के खण्डहरों पर 'हिन्दू-पद-पादशाही' की स्थापना करने के पेशवा के लक्ष्य से उसे सहानुभूति थी।

मृत्यु

आमेर पर 44 वर्ष तक राज्य करने के बाद 1743 ई. में सवाई जयसिंह की मृत्यु हो गई। इसी के राज्यकाल में गुलाबी नगर जयपुर के रूप में नयी राजधानी की रचना हुई थी।

स्थापत्य

गुलाबी शहर जयपुर के संस्थापक राजा सवाई जयसिंह ने 18वीं सदी में भारत में अलग-अलग जगहों पर पाँच अंतरिक्षीय अनुसंधान केन्द्र बनवाए थे। दिल्ली का जंतर-मंतर 1724 ई. में इस कड़ी में सबसे पहले बनवाया गया था। 1734 ई. में दिल्ली की वैधशाला को आधार बनाकर जयपुर में भी जंतर मंतर की स्थापना की गई। बाद में वाराणसी, मथुरा और उज्जैन में भी इनकी स्थापना की गई।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

भारतीय इतिहास कोश |लेखक: सच्चिदानन्द भट्टाचार्य |प्रकाशक: उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान |पृष्ठ संख्या: 164 |


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