रामाभार टीला कुशीनगर: Difference between revisions
[unchecked revision] | [unchecked revision] |
व्यवस्थापन (talk | contribs) m (Text replace - " नही " to " नहीं ") |
व्यवस्थापन (talk | contribs) m (Text replace - "Category:बौद्ध धर्म कोश" to "Category:बौद्ध धर्म कोशCategory:धर्म कोश") |
||
Line 13: | Line 13: | ||
==संबंधित लेख== | ==संबंधित लेख== | ||
{{बौद्ध धर्म}}{{उत्तर प्रदेश के पर्यटन स्थल}} | {{बौद्ध धर्म}}{{उत्तर प्रदेश के पर्यटन स्थल}} | ||
[[Category:उत्तर प्रदेश]][[Category:बौद्ध धार्मिक स्थल]][[Category:उत्तर प्रदेश के पर्यटन स्थल]][[Category:बौद्ध धर्म कोश]][[Category:पर्यटन कोश]][[Category:ऐतिहासिक स्थान कोश]][[Category:इतिहास कोश]] | [[Category:उत्तर प्रदेश]][[Category:बौद्ध धार्मिक स्थल]][[Category:उत्तर प्रदेश के पर्यटन स्थल]][[Category:बौद्ध धर्म कोश]][[Category:धर्म कोश]][[Category:पर्यटन कोश]][[Category:ऐतिहासिक स्थान कोश]][[Category:इतिहास कोश]] | ||
__INDEX__ | __INDEX__ |
Revision as of 13:45, 21 March 2014
रामाभार टीला उत्तर प्रदेश में कुशीनगर-देवरिया मार्ग पर 'माथा कुँवर मंदिर' से 1.61 कि.मी. की दूरी पर स्थित एक प्रसिद्ध एक टीला है। इसी के पास 'रामाभार झील' या तालाब भी स्थित है। संभव है इस टीले का नामकरण उक्त झील के नाम पर ही किया गया हो। इस स्थान पर मल्लों की अभिषेकशाला थी और वहीं पर बुद्ध का 'अंतिम संस्कार' किया गया था। इसे उस समय ‘मुकुट बंधन चैत्य’ के नाम से जाना जाता था।[1]
सर्वेक्षण व उत्खनन
कनिंघम के प्रथम सर्वेक्षण के समय रामाभार ‘भवानी की मठिया’ बन चुकी थी। समस्त भू-भाग वनाच्छादित एवं दुर्गम्य था। निकटवर्ती ग्रामवासियों द्वारा इन टीलों की ईंटें निकाल लिए जाने के कारण यह मात्र खंडहर के रूप में अवशिष्ट था। प्रथम बार इसकी खुदाई एक राजकीय कर्मचारी ने कराई थी।[2] उत्खनन का द्वितीय चरण 1910 ई. में हीरानंद शास्त्री की अध्यक्षता में प्रारंभ हुआ था, जिससे इसके वास्तविक स्वरूप का पता चला। 115 फुट व्यास में इसकी नींव थी और ऊपर 112 फुट व्यास का स्तूप बना था।[3] शास्त्रीजी को 1.52 मीटर नीचे खोदने पर ईंटों की एक दीवार का पता चला। परंतु इस भवन की तिथि के बारे में कुछ कह पाना आज संभव नहीं है।
स्तूप के अवशेष
श्री हीरानंद शास्त्री को टीले के पूर्वी भाग में उत्खनन से एक बड़े स्तूप का अवशेष मिला था। उत्खनन से प्राप्त मौर्यकालीन ईंटें इस स्तूप की प्राचीनता की परिचायक हैं। स्मरणीय है कि यह स्तूप भी कई बार बनाया गया। स्तूप के अवशिष्ट भाग से यह स्पष्ट होता है कि मुकुट बंधन स्तूप शालवन के परिनिर्वाण स्तूप से अधिक विस्तृत था। इस स्तूप के चारों ओर अन्य छोटे स्तूप, मंदिर तथा विहारों के अवशेष मिले हैं। मुख्य स्तूप की भाँति यह चैत्य भी अपनी पवित्रता के लिए प्रसिद्ध था। संभवत: इसीलिए इस चैत्य के चारों ओर सहायक स्मारक बने हुए थे।
- REDIRECTसाँचा:इन्हें भी देखें
|
|
|
|
|
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ 89- दीघनिकाय, भाग दो, पृ. 141, 161; चीनी यात्री ह्वेनसाँग ने भी इसका उल्लेख किया है। देखें, सेमुअल बील, बुद्धिस्ट रेकार्डस आफ दि वेस्टर्न वर्ल्ड, भाग 3, पृ. 287
- ↑ आ.स.रि., भाग 18 पृ. 75; इन्होंने उल्लेख किया कि इस उत्खनन में मृणमूर्तियों के अलावा कुछ नहीं मिला था।
- ↑ देबला मित्रा बुद्धिस्ट मानुमेंट्स (कलकत्ता, 1971 ई.) 71