पनका जनजाति: Difference between revisions
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ऐसा कहा जाता है। कि [[संत कबीर]] का जन्म [[जल]] में हुआ था और एक 'पनका' महिला द्वारा उनका पालन-पोषण हुआ था। पनका जाति मुख्यत: [[छत्तीसगढ़]] और विंध्य क्षेत्र में पाई जाती है। आजकल अधिकांश पनका [[कबीर पंथ|कबीर पंथी]] हैं। ये लोग 'कबीरहा' भी कहलाते हैं। मांस-मदिरा इत्यादि से ये परहेज करते हैं। एक दूसरा वर्ग 'शक्ति पनका' कहलाता है। इन दोनों में [[विवाह]] संबंध नहीं होते हैं। इनके गोत्र टोटम प्रधान हैं, जैसे- धुरा, नेवता, परेवा आदि। कबीर पंथी पनकाओं के धर्मगुरु मंति कहलाते हैं, जो अक्सर पीढ़ी गद्दी संभालते हैं। इसी प्रकार [[दीवान]] का पद भी उत्तराधिकार से ही प्राप्त होता है। एक गद्दी 10 से 15 गाँवों के कबीर पंथियों के धामिर्क क्रियाकलापों की देख-रेख करती है।<ref>{{cite web |url=http://www.mpinfo.org/mpinfonew/hindi/factfile/jansahriyal.asp |title=मध्य प्रदेश की जनजाति|accessmonthday=28 अक्टूबर|accessyear=2012|last= |first= |authorlink= |format= |publisher= |language=[[हिन्दी]]}}</ref> | ऐसा कहा जाता है। कि [[संत कबीर]] का जन्म [[जल]] में हुआ था और एक 'पनका' महिला द्वारा उनका पालन-पोषण हुआ था। पनका जाति मुख्यत: [[छत्तीसगढ़]] और विंध्य क्षेत्र में पाई जाती है। आजकल अधिकांश पनका [[कबीर पंथ|कबीर पंथी]] हैं। ये लोग 'कबीरहा' भी कहलाते हैं। मांस-मदिरा इत्यादि से ये परहेज करते हैं। एक दूसरा वर्ग 'शक्ति पनका' कहलाता है। इन दोनों में [[विवाह]] संबंध नहीं होते हैं। इनके गोत्र टोटम प्रधान हैं, जैसे- धुरा, नेवता, परेवा आदि। कबीर पंथी पनकाओं के धर्मगुरु मंति कहलाते हैं, जो अक्सर पीढ़ी गद्दी संभालते हैं। इसी प्रकार [[दीवान]] का पद भी उत्तराधिकार से ही प्राप्त होता है। एक गद्दी 10 से 15 गाँवों के कबीर पंथियों के धामिर्क क्रियाकलापों की देख-रेख करती है।<ref>{{cite web |url=http://www.mpinfo.org/mpinfonew/hindi/factfile/jansahriyal.asp |title=मध्य प्रदेश की जनजाति|accessmonthday=28 अक्टूबर|accessyear=2012|last= |first= |authorlink= |format= |publisher= |language=[[हिन्दी]]}}</ref> | ||
====धार्मिक विश्वास==== | ====धार्मिक विश्वास==== | ||
पनका जनजाति में कबीरदास जी को श्रद्धा अर्पण के उद्देश्य से [[माघ मास|माघ]] और [[कार्तिक मास|कार्तिक]] की [[पूर्णिमा]] को उपवास रखा जाता है। कट्टर कबीर पंथी [[हिन्दू देवी-देवता|देवी-देवताओं]] की [[पूजा]] नहीं करते, किंतु शक्ति पनका अनेक देवी-देवताओं की पूजा करते हैं। 'कबीरहा पनका' महिला एवं | पनका जनजाति में कबीरदास जी को श्रद्धा अर्पण के उद्देश्य से [[माघ मास|माघ]] और [[कार्तिक मास|कार्तिक]] की [[पूर्णिमा]] को उपवास रखा जाता है। कट्टर कबीर पंथी [[हिन्दू देवी-देवता|देवी-देवताओं]] की [[पूजा]] नहीं करते, किंतु शक्ति पनका अनेक देवी-देवताओं की पूजा करते हैं। 'कबीरहा पनका' महिला एवं पुरुष श्वेत वस्त्र तथा गले में कंठी धारण करते हैं। | ||
==अनुसूचित जनजाति में शामिल== | ==अनुसूचित जनजाति में शामिल== | ||
अन्य आदिवासियों की तुलना में [[छत्तीसगढ़]] के पनका अधिक प्रगतिशील हैं। इनमें से कई बड़े भूमिपति भी हैं, किन्तु ये कपड़े बुनने का कार्य करते हैं। गरीब पनके चरवाहों का काम करते हैं। पनका जनजाति मूल रूप से कपड़ा बुनने का कार्य करती है। पनका जाति आज़ादी से पूर्व मध्य प्रांत, जो पहले [[बरार]] क्षेत्र में आता था, में अनुसूचित जनजाति वर्ग में शामिल थी। [[मध्य प्रदेश]] के गठन के बाद राजपत्र की धारा 39 में इसे अनुसूचित जनजाति वर्ग में ही यथावथ रखा गया था। लेकिन शासन द्वारा सन [[1971]] में आठ ज़िलों की पनिका जाति को इस वर्ग से पृथक कर दिया गया, जो वर्तमान में [[छत्तीसगढ़]] के अंतर्गत आती है। | अन्य आदिवासियों की तुलना में [[छत्तीसगढ़]] के पनका अधिक प्रगतिशील हैं। इनमें से कई बड़े भूमिपति भी हैं, किन्तु ये कपड़े बुनने का कार्य करते हैं। गरीब पनके चरवाहों का काम करते हैं। पनका जनजाति मूल रूप से कपड़ा बुनने का कार्य करती है। पनका जाति आज़ादी से पूर्व मध्य प्रांत, जो पहले [[बरार]] क्षेत्र में आता था, में अनुसूचित जनजाति वर्ग में शामिल थी। [[मध्य प्रदेश]] के गठन के बाद राजपत्र की धारा 39 में इसे अनुसूचित जनजाति वर्ग में ही यथावथ रखा गया था। लेकिन शासन द्वारा सन [[1971]] में आठ ज़िलों की पनिका जाति को इस वर्ग से पृथक कर दिया गया, जो वर्तमान में [[छत्तीसगढ़]] के अंतर्गत आती है। |
Revision as of 07:32, 3 January 2016
पनका अथवा 'पनिका' द्रविड़ वर्ग की जनजाति है, जो विंध्यप्रदेश एवं शहडोल में पाई जाती है। इस जनजाति का मुख्य व्यवसाय कपड़ा बुनना और आखेट करना है। छोटा नागपुर में यह जनजाति 'पाने जनजाति' के नाम से जानी जाती है।
धर्म व विवाह
ऐसा कहा जाता है। कि संत कबीर का जन्म जल में हुआ था और एक 'पनका' महिला द्वारा उनका पालन-पोषण हुआ था। पनका जाति मुख्यत: छत्तीसगढ़ और विंध्य क्षेत्र में पाई जाती है। आजकल अधिकांश पनका कबीर पंथी हैं। ये लोग 'कबीरहा' भी कहलाते हैं। मांस-मदिरा इत्यादि से ये परहेज करते हैं। एक दूसरा वर्ग 'शक्ति पनका' कहलाता है। इन दोनों में विवाह संबंध नहीं होते हैं। इनके गोत्र टोटम प्रधान हैं, जैसे- धुरा, नेवता, परेवा आदि। कबीर पंथी पनकाओं के धर्मगुरु मंति कहलाते हैं, जो अक्सर पीढ़ी गद्दी संभालते हैं। इसी प्रकार दीवान का पद भी उत्तराधिकार से ही प्राप्त होता है। एक गद्दी 10 से 15 गाँवों के कबीर पंथियों के धामिर्क क्रियाकलापों की देख-रेख करती है।[1]
धार्मिक विश्वास
पनका जनजाति में कबीरदास जी को श्रद्धा अर्पण के उद्देश्य से माघ और कार्तिक की पूर्णिमा को उपवास रखा जाता है। कट्टर कबीर पंथी देवी-देवताओं की पूजा नहीं करते, किंतु शक्ति पनका अनेक देवी-देवताओं की पूजा करते हैं। 'कबीरहा पनका' महिला एवं पुरुष श्वेत वस्त्र तथा गले में कंठी धारण करते हैं।
अनुसूचित जनजाति में शामिल
अन्य आदिवासियों की तुलना में छत्तीसगढ़ के पनका अधिक प्रगतिशील हैं। इनमें से कई बड़े भूमिपति भी हैं, किन्तु ये कपड़े बुनने का कार्य करते हैं। गरीब पनके चरवाहों का काम करते हैं। पनका जनजाति मूल रूप से कपड़ा बुनने का कार्य करती है। पनका जाति आज़ादी से पूर्व मध्य प्रांत, जो पहले बरार क्षेत्र में आता था, में अनुसूचित जनजाति वर्ग में शामिल थी। मध्य प्रदेश के गठन के बाद राजपत्र की धारा 39 में इसे अनुसूचित जनजाति वर्ग में ही यथावथ रखा गया था। लेकिन शासन द्वारा सन 1971 में आठ ज़िलों की पनिका जाति को इस वर्ग से पृथक कर दिया गया, जो वर्तमान में छत्तीसगढ़ के अंतर्गत आती है।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ मध्य प्रदेश की जनजाति (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 28 अक्टूबर, 2012।