रमज़ान: Difference between revisions

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==रोज़ा==
==रोज़ा==
रोज़े को [[अरबी भाषा|अरबी]] में सोम कहते हैं, जिसका मतलब है रुकना। रोज़ा यानी तमाम बुराइयों से रुकना या परहेज़ करना। ज़बान से गलत या बुरा नहीं बोलना, आँख से गलत नहीं देखना, कान से गलत नहीं सुनना, हाथ-पैर तथा शरीर के अन्य हिस्सों से कोई नाजायज़ अमल नहीं करना। किसी को भला बुरा नहीं कहना। हर वक्त खुदा की इबादत करना।<ref>{{cite web |url=http://www.aajkikhabar.com/news/77154/77154.html |title=इबादतों का महीना है रमज़ान |accessmonthday=[[31 अगस्त]] |accessyear=[[2010]] |last=हबीब |first=तारिक |authorlink= |format=एच.टी.एम.एल |publisher=आज की ख़बर |language=हिन्दी }}</ref>
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==बरकतों वाला महीना==
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====<u>खजला, फेनी और सेवइयाँ</u>====
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रमज़ान का ख़ास पकवान है खजला, फेनी और सेवइयाँ। इन्हें दूध में भिगो कर खाया जाता है, जो रमज़ान का पौष्टिक आहार होता है। सूखी सेवईं चीनी, खोया और मावा के साथ जब तैयार होती है तो लोग अँगुली चाटते रह जाते हैं। ये सहरी के वक्त का ख़ास पकवान है।
रमज़ान का ख़ास पकवान है खजला, फेनी और सेवइयाँ। इन्हें दूध में भिगो कर खाया जाता है, जो रमज़ान का पौष्टिक आहार होता है। सूखी सेवईं चीनी, खोया और मावा के साथ जब तैयार होती है तो लोग अँगुली चाटते रह जाते हैं। ये सहरी के वक़्त का ख़ास पकवान है।
====<u>खजूर</u>====
====<u>खजूर</u>====
खजूर से रोजा खोलना सुन्नत है। खजूर [[ईरान]], [[ईराक़]], [[पाकिस्तान]], [[सऊदी अरब]], [[मिस्र]] और [[भारत|हिन्दुस्तान]] में [[गुजरात]] से आता है।
खजूर से रोजा खोलना सुन्नत है। खजूर [[ईरान]], [[ईराक़]], [[पाकिस्तान]], [[सऊदी अरब]], [[मिस्र]] और [[भारत|हिन्दुस्तान]] में [[गुजरात]] से आता है।
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रमज़ान के दिनों में इफ़्तार के समय के संतुलित आहार हैं पकौड़ियां व चने, जो देश के हर कोने में रोज़ेदार के दस्तरखान पर ज़रूर होते हैं। [[प्याज]], [[पालक]], [[बैंगन]], [[गोभी]], [[आलू]], दाल, न जाने कितने तरह के पकौड़ों का स्वाद एक साथ मिलता है।
रमज़ान के दिनों में इफ़्तार के समय के संतुलित आहार हैं पकौड़ियां व चने, जो देश के हर कोने में रोज़ेदार के दस्तरखान पर ज़रूर होते हैं। [[प्याज]], [[पालक]], [[बैंगन]], [[गोभी]], [[आलू]], दाल, न जाने कितने तरह के पकौड़ों का स्वाद एक साथ मिलता है।
====<u>मिठाइयाँ</u>====
====<u>मिठाइयाँ</u>====
शाही टुकड़े, फिरनी, खीर, हलवा और मीठा पुलाव भी रमज़ान के दिनों में बाज़ारों की शोभा बढ़ाते हैं। सहरी के वक्त चूँकि हल्का-फुल्का खाने को कहा गया है, इसलिए लोग इन्हीं मीठी चीजों से सहरी करते हैं।
शाही टुकड़े, फिरनी, खीर, हलवा और मीठा पुलाव भी रमज़ान के दिनों में बाज़ारों की शोभा बढ़ाते हैं। सहरी के वक़्त चूँकि हल्का-फुल्का खाने को कहा गया है, इसलिए लोग इन्हीं मीठी चीजों से सहरी करते हैं।
====<u>मुगलई मिठाइयाँ</u>====
====<u>मुगलई मिठाइयाँ</u>====
हब्शी हलवा और तरह-तरह के मावे से बनी मुग़लई मिठाइयों की बात ही निराली है। इनका सौभाग्य आपको रमज़ान में मिलेगा। राजधानी [[दिल्ली]], [[लखनऊ]] और [[हैदराबाद]] की दुकानों में ये सजी मिल जाएंगी।
हब्शी हलवा और तरह-तरह के मावे से बनी मुग़लई मिठाइयों की बात ही निराली है। इनका सौभाग्य आपको रमज़ान में मिलेगा। राजधानी [[दिल्ली]], [[लखनऊ]] और [[हैदराबाद]] की दुकानों में ये सजी मिल जाएंगी।

Revision as of 07:08, 30 November 2010

[[चित्र:Woman-praying.jpg|thumb|250px|नमाज़ पढ़ती महिला]]

माहे रमज़ान शब्द रम्ज़ से लिया गया है जिसका अर्थ होता है छोटे पत्थरों पर पड़ने वाली सूर्य की अत्याधिक गर्मी। माहे रमज़ान ईश्वरीय नामों में से एक नाम है। इसी महीने में पवित्र क़ुरआन नाज़िल हुआ था। यह ईश्वर का महीना है। इस महीने की जितनी भी प्रशंसा की जाए वह कम है।

अल्लाह ने अपने बंदों पर पाँच चीजें फ़र्ज़ की हैं। कलिमा-ए-तयैबा, नमाज़, हज, रोज़ा और ज़कात। इन्हें इस्लाम के ख़ास सुतून (स्तंभ) कहते हैं। रमज़ान इस्लामिक कैलेंडर का नौवाँ महीना है। रमज़ान बरकतों वाला महीना है, इस माहे मुबारक में अल्लाह अपने बंदो को बेइंतिहा न्यामतों से नवाज़ता है। इसी पवित्र महीने में अल्लाह रब्बुल इज्जत ने क़ुरआन पेगंबर हज़रत मुहम्मद साहब पर नाज़िल फ़रमाया। रमज़ान महीने के अंत पर तीन दिनों तक ईद मनायी जाती है।[1]

रमज़ान क्या है?

रमज़ान महीने का नाम है, जिस प्रकार हिन्दी महीने चैत, वैशाख, ज्येष्ठ, अषाढ़, सावन, भाद्र पद, आश्विन, कार्तिक, अगहन, पौष, माघ, फाल्गुन होते हैं और अंग्रेज़ी महीने जनवरी, फ़रवरी, मार्च, अप्रेल, मई, जून, जुलाई, अगस्त, सितंबर, अक्टूबर, नवंबर, दिसंबर होते हैं। उसी प्रकार, मुस्लिम महीने, मोहर्रम, सफ़र, रबीउल अव्वल, रबीउलसानी, जुमादलऊला, जुमादल उख़्र, रजब, शाबान, रमज़ान, शव्वाल, द्हू अल-क़िदाह, द्हू अल-हिज्जाह ये बारह महीने आते हैं।

रमज़ान के महीने में अल्लाह की तरफ़ से हज़रत मोहम्मद साहब सल्लहो अलहै व सल्लम पर क़ुरान शरीफ़ नाज़िल (उतरा) था। इस महीने की बरकत में अल्लाह ने बताया कि इसमें मेरे बंदे मेरी इबादत करें। इस महीने के आख़री दस दिनों में एक रात ऐसी है जिसे शबे क़द्र कहते हैं। 21, 23, 25, 27, 29 वें में शबे क़द्र को तलाश करते हैं। यह रात हज़ार महीने की इबादत करने से भी अधिक बेहतर होती है। शबे क़द्र का अर्थ है, वह रात जिसकी क़द्र की जाए । यह रात जाग कर अल्लाह की इबादत में गुज़ार दी जाती है।

रोज़ा

रोज़े को अरबी में सोम कहते हैं, जिसका मतलब है रुकना। रोज़ा यानी तमाम बुराइयों से रुकना या परहेज़ करना। ज़बान से गलत या बुरा नहीं बोलना, आँख से गलत नहीं देखना, कान से गलत नहीं सुनना, हाथ-पैर तथा शरीर के अन्य हिस्सों से कोई नाजायज़ अमल नहीं करना। किसी को भला बुरा नहीं कहना। हर वक़्त खुदा की इबादत करना।[2]

बरकतों वाला महीना

रमज़ान की कई फज़ीलत हैं। इस माह में नवाफ़िल का सवाब सुन्नतों के बराबर और हर सुन्नत का सवाब फ़र्ज़ के बराबर और हर फ़र्ज़ का सवाब 70 फ़र्ज़ के बराबर कर दिया जाता है। इस माह में हर नेकी पर 70 नेकी का सवाब होता। इस माह में अल्लाह के इनामों की बारिश होती है।[1]

इबादत का महीना

इस महीने में शैतान को क़ैद कर दिया जाता है, ताकि वह अल्लाह के बंदों की इबादत में खलल न डाल सके। इस पूरे माह में रोज़े रखे जाते हैं और इस दौरान इशा की नमाज़ के साथ 20 रकत नमाज़ में क़ुरआन मजीद सुना जाता है, जिसे तरावीह कहते हैं। इस महीने में आकाश तथा स्वर्ग के द्वार खुल जाते हैं तथा नरक के द्वार बंद हो जाते हैं। इस महीने की एक रात की उपासना, जिसे "शबे क़द्र" के नाम से जाना जात है, एक हज़ार महीनों की उपासना से बढ़ कर है। इस महीने मे रोज़ा रखने वाले का कर्तव्य, ईश्वर की अधिक से अधिक प्रार्थना करना है।

रोज़े का मक़सद

रोज़े का मक़सद सिर्फ भूखे-प्यासे रहना ही नहीं है, बल्कि अल्लाह की इबादत करके उसे राज़ी करना है। रोज़ा पूरे शरीर का होता है। रोज़े की हालत में न कुछ गलत बात मुँह से निकाली जाए और न ही किसी के बारे में कोई चु्ग़ली की जाए। ज़बान से सिर्फ़ अल्लाह का जिक्र ही किया जाए, जिससे रोज़ा अपने सही मक़सद तक पहुँच सके। रोज़े का असल मक़सद है कि बंदा अपनी ज़िन्दगी में तक्वा ले आए। वह अल्लाह की इबादत करे और अपने नेक आमाल और हुस्ने सुलूक से पूरी इंसानियत को फ़ायदा पहुँचाए। अल्लाह हमें कहने-सुनने से ज़्यादा अमल की तौफ़ीक दे।[1]

सेहरी

रोज़े रखने के लिए सब से पहले सेहरी खाया जाए क्यों कि सेहरी खाने में बरकत है, सेहरी कहते हैं सुबह सादिक़ से पहले जो कुछ उप्लब्ध हो उसे रोज़ा रखने की नीयत से खा लिया जाए। रसूल मोहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने फरमाया,” सेहरी खाओ क्यों कि सेहरी खाने में बरकत है “। एक दूसरी हदीस में आया है ” सेहरी खाओ चाहे एक घूँट पानी ही पी लो, ”

इफ़्तार

भूखे को खाना खिलाना भी बहुत बड़ा पुण्य है और जिसने किसी भूखे को खिलाया और पिलाया अल्लाह उसे जन्नत के फल खिलाएगा और जन्नत के नहर से पिलाएगा। जो रोज़ेदार को इफ़्तार कराएगा तो उसे रोज़ेदार के बराबर सवाब(पुण्य) मिलेगा और दोनों के सवाब में कमी न होगी जैसा कि रसूल मोहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) का फरमान है "जिसने किसी रोज़ेदार को इफ़्तार कराया तो उसे रोज़ेदार के बराबर सवाब (पुण्य) प्राप्त होगा मगर रोज़ेदार के सवाब में कु्छ भी कमी न होगी” (मुसनद अहमद तथा सुनन नसई)[3]

रमज़ान के निराले ज़ायके

बाक़रखानी

बाकरखानी रमज़ान के अलावा दूसरे महीनों में नसीब नहीं होती, क्योंकि एक दिन के बाद ही इसका स्वाद बदल जाता है। इसे एक ख़ास तापमान पर पकाया जाता है। देखने में यह बिस्कुट की तरह होती है। ताजी बाकरख़ानी के स्वाद का कहना ही क्या। thumb|250px|फ़ेनी बनती हुई

खजला, फेनी और सेवइयाँ

रमज़ान का ख़ास पकवान है खजला, फेनी और सेवइयाँ। इन्हें दूध में भिगो कर खाया जाता है, जो रमज़ान का पौष्टिक आहार होता है। सूखी सेवईं चीनी, खोया और मावा के साथ जब तैयार होती है तो लोग अँगुली चाटते रह जाते हैं। ये सहरी के वक़्त का ख़ास पकवान है।

खजूर

खजूर से रोजा खोलना सुन्नत है। खजूर ईरान, ईराक़, पाकिस्तान, सऊदी अरब, मिस्र और हिन्दुस्तान में गुजरात से आता है।

फ्रूट चाट

आमतौर पर इफ़्तार की फ्रूट चाट में केला, अमरुद, पपीता, सेब, खरबूजा, अनार, तरबूज़ आदि का इस्तेमाल किया जाता है। इफ़्तार से आधा एक घंटा पूर्व सभी फलों को छोटे-छोटे टुकड़ों में काट कर ऊपर से चीनी और चाट मसाला डाल दिया जाता है, क्योंकि 15 घंटों के रोज़े के बाद इनसे तरोताज़गी का अहसास होता है और ये ताक़त भी देते हैं।

पकौड़ियां, चने

रमज़ान के दिनों में इफ़्तार के समय के संतुलित आहार हैं पकौड़ियां व चने, जो देश के हर कोने में रोज़ेदार के दस्तरखान पर ज़रूर होते हैं। प्याज, पालक, बैंगन, गोभी, आलू, दाल, न जाने कितने तरह के पकौड़ों का स्वाद एक साथ मिलता है।

मिठाइयाँ

शाही टुकड़े, फिरनी, खीर, हलवा और मीठा पुलाव भी रमज़ान के दिनों में बाज़ारों की शोभा बढ़ाते हैं। सहरी के वक़्त चूँकि हल्का-फुल्का खाने को कहा गया है, इसलिए लोग इन्हीं मीठी चीजों से सहरी करते हैं।

मुगलई मिठाइयाँ

हब्शी हलवा और तरह-तरह के मावे से बनी मुग़लई मिठाइयों की बात ही निराली है। इनका सौभाग्य आपको रमज़ान में मिलेगा। राजधानी दिल्ली, लखनऊ और हैदराबाद की दुकानों में ये सजी मिल जाएंगी।

शरबत

सर्दियों की बात ही छोड़ दें। अब तो अगले 20 साल तक तपिश भरी गरमी में ही रमज़ान का मुबारक़ महीना रहेगा, इसलिए खजूर से रोज़ा खोलने के बाद पानी की जगह लोग तरह-तरह के शरबतों से अपने गले को तर करेंगे।[4]

  1. REDIRECT साँचा:इन्हें भी देखें
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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 1.0 1.1 1.2 खान, शराफत। रमज़ान : बरकतों वाला महीना (हिन्दी) (एच.टी.एम.एल) वेब दुनिया। अभिगमन तिथि: 31 अगस्त, 2010
  2. हबीब, तारिक। इबादतों का महीना है रमज़ान (हिन्दी) (एच.टी.एम.एल) आज की ख़बर। अभिगमन तिथि: 31 अगस्त, 2010
  3. रमज़ान के महीने में की जाने वाली इबादतें (हिन्दी) नवीन जीवन। अभिगमन तिथि: 31 अगस्त, 2010
  4. रमज़ान के निराले ज़ायके (हिन्दी) (एच.टी.एम.एल) हिन्दुस्तान। अभिगमन तिथि: 31 अगस्त, 2010

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