बोडो

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Revision as of 12:43, 9 October 2014 by रविन्द्र प्रसाद (talk | contribs) (''''बोडो''' पूर्वोत्तर भारत के असममेघालय राज्यों ...' के साथ नया पन्ना बनाया)
(diff) ← Older revision | Latest revision (diff) | Newer revision → (diff)
Jump to navigation Jump to search

बोडो पूर्वोत्तर भारत के असममेघालय राज्यों और बांग्लादेश में तिब्बती-बर्मी भाषाएं बोलने वाले लोगों का समूह है। बोडो असम में सबसे बड़ा अल्पसंख्यक समूह है और ब्रह्मपुत्र नदी की घाटी के उत्तरी क्षेत्रों में केंद्रित है। इनमें से अधिकतर लोग किसान बन गए हैं, यद्यपि पहले वे जगह बदलकर खेती किया करते थे।

जनजातियाँ

बोडो समूह कई जनजातियों से बना है। उनकी पश्चिमी जनजातियों में कुटिया, मैदानी कछारी, राभा, गारो, मेच, कोच, धीमल और जाइजोंग शामिल हैं; पूर्वी जनजातियों में डिमासा (या पहाड़ी कछारी), गलोंग (या गेल्लोंग), होजाई, लालुंग, टिपुरा और मोरान शामिल हैं। पहले लगभग 1825 ई. तक असम में बोडो बहुसंख्यक हुआ करते थे। 20वीं शताब्दी के अंत में भारत में बोडो भाषाएं बोलने वालों की कुल अनुमानित संख्या क़रीब 22 लाख थी।[1]

वंश परम्परा

बोडो जनजातियां सांस्कृतिक रूप से समान नहीं हैं। कुछ में, जैसे- गारो का सामाजिक तंत्र मातृवंशी है,[2] जबकि कुछ का पितृवंशी है। कई बोडो जनजातियां हिन्दू सामाजिक और धार्मिक विचारों से इतनी प्रभावित हुईं कि आधुनिक काल में उन्होंने स्वयं को हिन्दू जाति मान लिया है। अत: कोच उच्च हिन्दू क्षत्रिय जाति का होने का दावा करते हैं, तथापि उनका दावा सामान्यत: माना नहीं जाता है और कोच व उसकी जनजातियां कई प्रविभाजन जाति-अनुक्रम में बहुत नीचे हैं। कछारी जनजाति वंशों में विभाजित है, जिनका नामकरण प्रकृति के विभिन्न रूपों पर किया है, उदाहरणार्थ- स्वर्ग, पृथ्वी, नदियां, जानवर और पौधे।

संपत्ति का उत्तराधिकार

वंश उत्पत्ति और संपत्ति का उत्तराधिकार पुरुष वर्ग के आधार पर होता है। उनका एक जनजातीय धर्म भी है, जिसमें घर के देवताओं और ग्राम का एक विस्तृत देवकुल होता है। विवाह प्राय: माता-पिता द्वारा ही तय किया जाता है और इसमें दुल्हन की क़ीमत का भुगतान शामिल रहता है। अविवाहितों के लिए सामुदायिक भवन और उनके धर्म की कई विशेषताएं उन्हें असम की अन्य पहाड़ी जनजातियों और नागा से जोड़ती हैं, परंतु हिन्दू विचारों और प्रथाओं का बढ़ता प्रभाव इन्हें मैदानी असम के जाति समाज में सम्मिलित करता है।[1]

गारो में गांव का मुखिया उत्तराधिकारिणी का पति होता है, जो भू-स्वामी वंश की वरिष्ठ महिला होती है। वह मुखिया का अपना पद अपनी बहन के पुत्र को हस्तांतरिक करता है, जो मुखिया की लड़की (अगली उत्तराधिकारिणी) से विवाह करता है। इस तरह पुरुष मुखिया और स्त्री उत्तराधिकारिणी के वंशों में निरंतर संबंध रहता है। राजनैतिक उपाधि और भू-स्वामित्व, दोनों मातृवंश के अनुसार हस्तांतरित होते हैं। पहला एक वंशावली द्वारा और दूसरा दूसरी वंशावली के अनुसार। विभिन्न प्रथाओं और बोलियों वाली एक दर्जन उपजनजातियां हैं, परंतु सभी मातृपक्षीय वंशों में विभाजित हैं। विवाह अलग-अलग वंशों के सदस्यों में होते हैं। बहुविवाह प्रचलित है।

विधवा सास से विवाह

एक पुरुष को अपनी विधवा सास से अनिवार्यत: विवाह करना होता है, जो इस तरह की स्थितियों में वास्तविक या वर्गीकृत रूप में उसके पिता की बहन होती है। इस तरह, पुरुष का भांजा, जिसे 'नोकरोम' कहा जाता है, उससे बहुत ही अंतरंग संबंध से जुड़ा होता है, उसके दामाद के रूप में और अंत में उसकी विधवा के और उस माध्यम के रूप में, जिससे उसके परिवार का स्वत्व उसकी पत्नी की संपत्ति में आने वाली पीढ़ी के लिए सुरक्षित होगा, क्योंकि कोई भी पुरुष संपत्ति का उत्तराधिकारी नहीं हो सकता।[1]


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 1.0 1.1 1.2 भारत ज्ञानकोश, खण्ड-4 |लेखक: इंदु रामचंदानी |प्रकाशक: एंसाइक्लोपीडिया ब्रिटैनिका प्राइवेट लिमिटेड, नई दिल्ली और पॉप्युलर प्रकाशन, मुम्बई |संकलन: भारतकोश पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 60 |
  2. वंश उत्पत्ति की पहचान मातृपक्ष के अनुसार

संबंधित लेख


वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                              अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र   अः