Difference between revisions of "सात्वत जाति"

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'''सात्वत जाति''' प्राचीन [[शूरसेन जनपद|शूरसेन]] (आधुनिक [[ब्रज मंडल|ब्रज प्रदेश]]) में बसने वाली जाति थी। सात्वत लोग, जो वैदिक पुरूवंशक एक जाति विशेष के थे, [[मगध]] के राजा [[जरासंध]] द्वारा आक्रान्ता होने के कारण कुरुपांचाल के शूरसेन प्रदेश से पश्चिमी सीमान्त प्रदेश की ओर चले गये थे। '[[ऐतरेय ब्राह्मण]]' में दक्षिण के सात्वतों द्वारा [[इन्द्र]] के [[अभिषेक]] का उल्लेख मिलता है। यह मालूम होता है कि सात्वतों का दक्षिणगमन उससे पहले हो चुका था। वे अपने साथ अपनी धार्मिक परम्पराएँ भी अवश्य लेते गये होंगे।
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'''सात्वत जाति''' प्राचीन [[शूरसेन जनपद|शूरसेन]] (आधुनिक [[ब्रज मंडल|ब्रज प्रदेश]]) में बसने वाली [[जाति]] थी। सात्वत लोग, जो वैदिक पुरूवंशक एक जाति विशेष के थे, [[मगध]] के राजा [[जरासंध]] द्वारा आक्रान्ता होने के कारण कुरुपांचाल के शूरसेन प्रदेश से पश्चिमी सीमान्त प्रदेश की ओर चले गये थे। '[[ऐतरेय ब्राह्मण]]' में दक्षिण के सात्वतों द्वारा [[इन्द्र]] के [[अभिषेक]] का उल्लेख मिलता है। यह मालूम होता है कि सात्वतों का दक्षिणगमन उससे पहले हो चुका था। वे अपने साथ अपनी धार्मिक परम्पराएँ भी अवश्य लेते गये होंगे।
  
 
*प्रारम्भ में '[[भागवत]]' उपासना-मार्ग शूरसेन में बसने वाली सात्वत जाति में सीमित था, परन्तु इसका प्रचार कदाचित सात्वतों के स्थानान्तरण के फलस्वरूप ई.पू. दूसरी-तीसरी शताब्दियों में ही पश्चिम की ओर भी हो गया था तथा कुछ विदेशी ([[यूनानी]]) लोग भी इसे मानने लगे थे।
 
*प्रारम्भ में '[[भागवत]]' उपासना-मार्ग शूरसेन में बसने वाली सात्वत जाति में सीमित था, परन्तु इसका प्रचार कदाचित सात्वतों के स्थानान्तरण के फलस्वरूप ई.पू. दूसरी-तीसरी शताब्दियों में ही पश्चिम की ओर भी हो गया था तथा कुछ विदेशी ([[यूनानी]]) लोग भी इसे मानने लगे थे।
*दक्षिण के प्राचीन तमिल साहित्य में '[[वासुदेव (कृष्ण)|वासुदेव]]', '[[संकर्षण]]' तथा '[[कृष्ण]]' के अनेक सन्दर्भ मिलते हैं। इन सन्दर्भों के आधार पर अनुमान किया गया है कि सात्वत लोग, जो वैदिक पुरूवंशक एक जाति विशेष के थे, [[मगध]] के राजा [[जरासंध]] द्वारा आक्रान्ता होने के कारण कुरुपांचाल के शूरसेन प्रदेश से पश्चिमी सीमान्त प्रदेश की ओर चले गये।
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*दक्षिण के प्राचीन तमिल साहित्य में '[[वासुदेव (कृष्ण)|वासुदेव]]', '[[संकर्षण]]' तथा '[[कृष्ण]]' के अनेक सन्दर्भ मिलते हैं। इन सन्दर्भों के आधार पर अनुमान किया गया है कि सात्वत लोग, जो वैदिक पुरूवंशक एक [[जाति]] विशेष के थे, [[मगध]] के राजा [[जरासंध]] द्वारा आक्रान्ता होने के कारण कुरुपांचाल के शूरसेन प्रदेश से पश्चिमी सीमान्त प्रदेश की ओर चले गये।
 
*मार्ग में सात्वतों में से कुछ लोग पालव और उसके दक्षिण की ओर बस गये और वहीं से दक्षिण देश के सम्पूर्ण उत्तरी क्षेत्र तथा [[कोंकण]] में फैल गये। इन्हीं में से कुछ और दक्षिण की ओर चले गये।
 
*मार्ग में सात्वतों में से कुछ लोग पालव और उसके दक्षिण की ओर बस गये और वहीं से दक्षिण देश के सम्पूर्ण उत्तरी क्षेत्र तथा [[कोंकण]] में फैल गये। इन्हीं में से कुछ और दक्षिण की ओर चले गये।
*दक्षिण के 'अद्विया', 'अण्डार' और 'इडैयर' जातियों के लोग पशुपालक 'अहीर' या '[[आभीर|आभीरों]]' के समकक्ष हैं।
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*दक्षिण के 'अद्विया', 'अण्डार' और 'इडैयर' जातियों के लोग पशुपालक '[[अहीर]]' या '[[आभीर|आभीरों]]' के समकक्ष हैं।
 
*सात्वत जाति भी पशुपालक [[क्षत्रिय|क्षत्रियों]] की जाति थी।
 
*सात्वत जाति भी पशुपालक [[क्षत्रिय|क्षत्रियों]] की जाति थी।
  

Latest revision as of 12:56, 11 November 2014

satvat jati prachin shoorasen (adhunik braj pradesh) mean basane vali jati thi. satvat log, jo vaidik puroovanshak ek jati vishesh ke the, magadh ke raja jarasandh dvara akranta hone ke karan kurupaanchal ke shoorasen pradesh se pashchimi simant pradesh ki or chale gaye the. 'aitarey brahman' mean dakshin ke satvatoan dvara indr ke abhishek ka ullekh milata hai. yah maloom hota hai ki satvatoan ka dakshinagaman usase pahale ho chuka tha. ve apane sath apani dharmik paramparaean bhi avashy lete gaye hoange.

  • prarambh mean 'bhagavat' upasana-marg shoorasen mean basane vali satvat jati mean simit tha, parantu isaka prachar kadachit satvatoan ke sthanantaran ke phalasvaroop ee.poo. doosari-tisari shatabdiyoan mean hi pashchim ki or bhi ho gaya tha tatha kuchh videshi (yoonani) log bhi ise manane lage the.
  • dakshin ke prachin tamil sahity mean 'vasudev', 'sankarshan' tatha 'krishna' ke anek sandarbh milate haian. in sandarbhoan ke adhar par anuman kiya gaya hai ki satvat log, jo vaidik puroovanshak ek jati vishesh ke the, magadh ke raja jarasandh dvara akranta hone ke karan kurupaanchal ke shoorasen pradesh se pashchimi simant pradesh ki or chale gaye.
  • marg mean satvatoan mean se kuchh log palav aur usake dakshin ki or bas gaye aur vahian se dakshin desh ke sampoorn uttari kshetr tatha koankan mean phail gaye. inhian mean se kuchh aur dakshin ki or chale gaye.
  • dakshin ke 'adviya', 'andar' aur 'idaiyar' jatiyoan ke log pashupalak 'ahir' ya 'abhiroan' ke samakaksh haian.
  • satvat jati bhi pashupalak kshatriyoan ki jati thi.


panne ki pragati avastha
adhar
prarambhik
madhyamik
poornata
shodh

tika tippani aur sandarbh

sanbandhit lekh

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