इसिपत्तन: Difference between revisions
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'''इसिपत्तन''' या 'इतिपतन' वर्तमान [[सारनाथ]] का प्राचीन नाम था। [[वाराणसी]], [[बौद्ध साहित्य|बौद्ध]] और [[पालि भाषा|पालि]] साहित्य में सारनाथ इसी नाम से प्रसिद्ध है। बुद्धत्व लाभ करने के पश्चात् भगवान [[महात्मा बुद्ध]] ने इसिपत्तन आकर अपना सर्वप्रथम उपदेश दिया था, जो 'धर्मचक्रप्रवर्तन' के नाम से प्रसिद्ध है।<ref>{{cite web |url= http:// | '''इसिपत्तन''' या 'इतिपतन' वर्तमान [[सारनाथ]] का प्राचीन नाम था। [[वाराणसी]], [[बौद्ध साहित्य|बौद्ध]] और [[पालि भाषा|पालि]] साहित्य में सारनाथ इसी नाम से प्रसिद्ध है। बुद्धत्व लाभ करने के पश्चात् भगवान [[महात्मा बुद्ध]] ने इसिपत्तन आकर अपना सर्वप्रथम उपदेश दिया था, जो 'धर्मचक्रप्रवर्तन' के नाम से प्रसिद्ध है।<ref>{{cite web |url= http://bharatkhoj.org/india/%E0%A4%87%E0%A4%B8%E0%A4%BF%E0%A4%AA%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%A4%E0%A4%A8|title=इसिपत्तन|accessmonthday=11 जुलाई|accessyear= 2014|last= |first= |authorlink= |format= |publisher=भारतखोज|language= हिन्दी}}</ref> | ||
*महात्मा बुद्ध से सम्बन्ध के कारण ही यह पुनीत भूमि आज भी सारे [[बौद्ध]] जगत् के लिए पवित्र [[तीर्थ स्थान]] बनी हुई है। | *महात्मा बुद्ध से सम्बन्ध के कारण ही यह पुनीत भूमि आज भी सारे [[बौद्ध]] जगत् के लिए पवित्र [[तीर्थ स्थान]] बनी हुई है। |
Revision as of 12:25, 25 October 2017
इसिपत्तन या 'इतिपतन' वर्तमान सारनाथ का प्राचीन नाम था। वाराणसी, बौद्ध और पालि साहित्य में सारनाथ इसी नाम से प्रसिद्ध है। बुद्धत्व लाभ करने के पश्चात् भगवान महात्मा बुद्ध ने इसिपत्तन आकर अपना सर्वप्रथम उपदेश दिया था, जो 'धर्मचक्रप्रवर्तन' के नाम से प्रसिद्ध है।[1]
- महात्मा बुद्ध से सम्बन्ध के कारण ही यह पुनीत भूमि आज भी सारे बौद्ध जगत् के लिए पवित्र तीर्थ स्थान बनी हुई है।
- इस स्थान का नाम 'इसिपत्तन' क्यों पड़ा, इस पर कई व्याख्याएँ प्राप्त होती हैं। कहा जाता है कि पूर्व काल में आकाश मार्ग से जाते हुए कुछ सिद्ध योगी निर्वाण प्राप्त कर यहीं गिर पड़े, जिससे इस स्थान का नाम 'ऋषि के गिरने का स्थान' अर्थात् 'इसिपत्तन' पड़ा।
- यह भी सम्भव है कि ऋषियों का 'पत्तन' (नगर) होने के कारण यह 'इसिपत्तन' के नाम से विख्यात हुआ हो।
- इसिपत्तन से सम्बंधित एक 'जातक कथा' में यहाँ निवास करने वाले मृगाधिपति सुवर्ण-शरीर-धारी बोधिसत्व का उल्लेख मिलता है, जिन्होंने अपने ज्ञान से वाराणसी के राजा को धर्मोपदेश कर जीव हिंसा का परित्याग कराया। फिर उन्हीं के नाम से यह स्थान 'सारंगनाथ' या 'सारनाथ' के नाम से प्रसिद्ध हुआ।[2]
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