बाहीक

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बाहीक उत्तर-पश्चिम की एक पैशाचिक जाति थी, जिसका उल्लेख पुराणों में भी प्राप्त होता है। यह जाति दो पिशाचों 'बाहि' और 'हीक' की सन्तानें मानी जाती हैं। महाभारत के अनुसार इस जाति के लोग गुणों से शून्य हैं। इस जाति को 'बाख्त्री' भी कहा गया है।

स्वभाव

बाहीक प्रदेश में निम्न श्रेणी के वेद-विद्या और धर्मभ्रष्ट ब्राह्मण निवास करते थे। धर्म से विमुख और यज्ञ याग से कोसों दूर इस जाति के लोग दस्यु प्रवृत्ति के होते हैं। यहाँ एक शाकल नगरी भी है, और इस स्थान पर एक अपगा नामक नदी बहती है। बाहीक-जरतिक्का लोगों से बसा यह क्षेत्र आर्त्ताह कहलाता है। लोग लड़ने-भिड़ने में मशहूर रहे होंगे, इसीलिए आर्त्तनाद (आर्त्ताह) सुनाई देता होगा। यहाँ जल वाहिकम् कहलाता है। महाभारत के अनुसार कर्ण भी विवश बाहीकों के मध्य में रहा था।[1]

पुरा उल्लेख

महाभारत, वेद और बुद्ध के बाद भी बाहीक उत्तर-पश्चिम के पंचनद प्रदेश में सक्रिय थे। निसंदेह इन बाहीकों का सम्बन्ध बंक्षु आमूदरिया की घाटी बाल्हीकों से था। इन्हीं बाख्त्री भी कहा गया। यह खत्री-खत्तिय से मिलता-जुलता शब्द है। यहाँ से ग्रीक, कुषाण, हूणों ने भारत पर आक्रमण किये।[2]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

भारतीय संस्कृति कोश, भाग-2 |प्रकाशक: यूनिवर्सिटी पब्लिकेशन, नई दिल्ली-110002 |संपादन: प्रोफ़ेसर देवेन्द्र मिश्र |पृष्ठ संख्या: 530 |

  1. म.भा., भीष्मपर्व, अध्याय 50, कर्णपर्व, अध्याय 44-45.
  2. उपाध्याय, डॉ. भगवतशरण, भारतीय व्यक्ति कोश, पृ. 149.

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