दाहिरिया

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दाहिरिया इस्लाम में नास्तिक लोग, जिनका यह दावा है कि समय (अरबी में 'दहर') ही उनके अस्तित्व को संचालित करता है। क़ुरान में इनके एक संदर्भ के कारण इनका यह नामकरण हुआ है, जिसमें इनकी उक्ति, "हमारे वर्तमान जीवन के अतिरिक्त और कोई जीवन नहीं है; हम मरते हैं और हम जीते हैं तथा समय-चक्र के अलावा और कोई भी हमें नष्ट नहीं करता है"[1], के कारण इनका परित्याग किया गया है।[2]

  • इस्लामी धार्मिक साहित्य में दाहिरिया को प्रकृतिवादी और भौतिकवादी के रूप में दर्शाया गया है, जो ऐसी किसी भी वस्तु के अस्तित्व से इनकार करते हैं, जिसे इंद्रियों के माध्यम से अनुभूत न किया जा सके। लेकिन विद्वानों के बीच दाहिरिया की उत्पत्ति और उनके मौलिक सिद्धांतों को लेकर भ्रम की स्थिति बनी हुई है।
  • 11वीं शताब्दी में अलग़ज़ाली ने प्राचीन यूनानी दर्शन को उनका मूल स्त्रोत माना और प्रकृतिवादियों (ताबिई) से उन्हें अलग किया, जो उत्पत्तिकारक देवता में विश्वास रखते हैं, जबकि दाहिरिया सिर्फ़ प्राकृतिक नियमों को मान्यता देते हैं।
  • अन्य विद्वानों ने दाहिरियों को परम शक्ति में आस्था रखने वाला माना, जो आत्मा या शैतान तथा फ़रिश्तों में यकीन नहीं रखते।
  • धर्मपरायण मुसलमानों की सामान्य अवधारण में दाहिरिया लोग मौका परस्त हैं, जो स्वार्थी इच्छाओं के अनुरूप अपने जीवन को संचालित करते हैं। वे मनुष्य तथा अचल वस्तुओं में फ़र्क नहीं करते तथा उनमें करुण और मानवीय अनुभूतियां नहीं हैं।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. क़ुरआन 45:24
  2. भारत ज्ञानकोश, खण्ड-3 |लेखक: इंदु रामचंदानी |प्रकाशक: एंसाइक्लोपीडिया ब्रिटैनिका प्राइवेट लिमिटेड, नई दिल्ली और पॉप्युलर प्रकाशन, मुम्बई |संकलन: भारतकोश पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 23 |

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